- भोजपुरी भाषा का इतिहास 7 वीं सदी से शुरू होता है - 1000 से अधिक साल पुरानी!
- गुरु गोरख नाथ 1100 वर्ष में गोरख बानी लिखा था.
- संत कबीर दास (1297) का जन्म भोजपुरी दिवस के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है .
- भोजपुरी की अपनी लिपि - "कैथी" थी .यह मुगल युग से आधिकारिक स्क्रिप्ट गया था."ब्रिटिश सरकार के तहत बिहार की सरकारी लिपि 1880 में कैथी" थी . कहते है कि "कैथी" लिपि के उपयोगकर्ता उस समय देवनागरी से बहुत अधिक थे.
- किताबों की रिपोर्ट कैथी में "लखनऊ, पटना, कोलकाता से प्रकाशित किया जा रहा था . कैथी"शिकागो विश्वविद्यालय में सिखाया जा रहा था .
- भोजपुरी भाषा और 180 से अधिक मिलियन पृथ्वी के पांच महाद्वीपों में फैले लोगों की मातृभाषा है.संख्याओं द्वारा क्रमांकन, इसके बाद 10 वें स्थान पर है जापानी और जर्मन भाषाओं के बीच दुनिया.वास्तव में, भोजपुरी पहली भारतीय भाषा है जो एक महत्वपूर्ण वक्ता आबादी के लिए और एक आधा दर्जन देशों में अपनी माँ देश भारत से मान्यता प्राप्त करने की क्षमता के अलावा भाषा मिला है.
- भोजपुरी समाज के कई महान नेताओं को दी है राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के स्तर को मंत्री न केवल भारत में, लेकिन कुछ अन्य देशों में भी, अप करने के लिए.हिन्दी साहित्य भोजपुरी लेखकों के नाम के बिना अधूरा है.तथ्य यह है भोजपुरी शीर्ष दस भारत में हिंदी लेखकों की कम से कम 8 से बाहर के बीच मूल्यांकन कर रहे हैं.जबकि बंगालियों भारत की कलम से स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान भोजपुरी लाठी के माध्यम से वहाँ के हाथ इस युद्ध लड़े.
- भोजपुरी माटी को मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद और वीर कुंवर सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पादन सम्मान किया है.
भोजपुरी क्षेत्र के नेताओं से अनुरोध करना चाहिए की हमारे हजारों वर्ष की पुरानी मातृ भाषा भोजपुरी के प्रति अपनी ईमानदारी दिखाए . अपने घोषणापत्रों में भोजपुरी भाषा की मान्यता के मुद्दे को शामिल करें. (भारतीय संविधान की 8 वीं अनुसूची में भोजपुरी भाषा के शामिल किए जाने के मुद्दे पर संघ सरकार के पास लंबित बहुत लंबे समय के बाद से. है.) - भोजपुरी की जनगणना रिपोर्ट के अगले तैयार करने में एक अलग भाषा के रूप में शामिल किया जाना चाहिए. इस सटीक संख्या दिखाने ke liye .
- दरअसल भोजपुरी भाषी लोगों की sankhya सबसे अधिक है उनकी माँ भाषा के रूप में हिन्दी या उर्दू में likhi jaati hai jo सरकार के जनगणना रिपोर्ट में स्पष्ट है.
- भारत का.न्याय सच्चर की तर्ज पर एक समिति को भोजपुरी की दुर्दशा देश के विभिन्न भागों में लोगों को बोलने का अध्ययन का गठन किया जाना चाहिए. दरअसल भोजपुरी भाषी लोगों की बड़ी संख्या है उत्तर प्रदेश और बिहार से बाहर प्रवासी मजदूरों तरीके और अपनी आजीविका के साधन के रूप में खोजने के लिए जा रहे हैं.
- 160 साल पहले, unhe मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, त्रिनिदाद और दूसरों जैसे देशों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
- उत्तर प्रदेश के संपूर्ण भोजपुरी भाषी क्षेत्रों, बिहार झारखंड, सांसद एवं भारत में विकास के मामले में बहुत पीछे हैं और भारत के विकास के नक्शे से बाहर है.
26 मई, 2010
भोजपुरी भाषा का इतिहास
भोजपुरी हिंदी के बाद दूसरे भारतीय भाषाओं के बीच सबसे बड़ा है, प्रतीक्षा है, जब भारत सरकार एक आधिकारिक भाषा के रूप में भोजपुरी को पहचान देगी .
21 मई, 2010
बहारों ने लूटा
रंगीन सजी महफ़िल है मगर ,
दुल्हन को करारों ने लूटा .
एक दिव्य प्रभा की अस्मद को ,
नव लाख सितारों ने लूटा .
बागो में फूल खिले ऐसे,
मन मधुप न जाए फिर कैसे ?
खामोश बना दिलदार मगर ,
प्यार बहारों ने लूटा .
आँखों में अँधेरी जो छाई ,
वाहन को सवारों ने पायी .
अपने ही अपना ज्ञान नहीं,
ईमान सवारों ने लूटा.
नदियों में बिषमता की धारा ,
कोइ जीता कोई हारा .
धारा के बिषम इरादों को,
उस पार किनोरों ने लूटा.
एक दिव्य प्रभा की अस्मद को ,
नव लाख सितारों ने लूटा .
बागो में फूल खिले ऐसे,
मन मधुप न जाए फिर कैसे ?
खामोश बना दिलदार मगर ,
प्यार बहारों ने लूटा .
आँखों में अँधेरी जो छाई ,
वाहन को सवारों ने पायी .
अपने ही अपना ज्ञान नहीं,
ईमान सवारों ने लूटा.
नदियों में बिषमता की धारा ,
कोइ जीता कोई हारा .
धारा के बिषम इरादों को,
उस पार किनोरों ने लूटा.
----अवधेश कुमार तिवारी
13 मई, 2010
होत भिंसारे.
भरल बा बलकव्न से , अंगना ओसारे,
चली जएहें एक दिन, होत भिंसारे.
धनी हे ग्रिशम ऋतु, हऊ सुहावन ,
समा तोहार बनल, मॅन के लुभावन.
अवधपुरी जस, राम के सहारे,
चली जएहें ,एक दिन होत भिनुसारे.........
केहु के दादी हयी, केहु के सासू,
अंखिया दुअरिया पे, पहरा दे आंशू.
दिल के दरद गईलें, आंखी के दुआरे,
चली जएहें एक दिन, होत भिनुसारे.....
बम बम छूटी जईहें , हो जएहें सूना ,
चिठिया के आवा जाहि , घर और पूना .
दिन रात बीत जाला, बनी के बिचारे .
चली जएहें एक दिन, होत भिनुसारे.....
बीतिहें बरस पुनि , रहे बिश्वाषा ,
स्वाति के बूँद पैहें, चातक पियासा .
मॉस दिवस , गिन गिन के बिसारे .
चली जएहें एक दिन होत भिनुसारे.....
--अवधेश कुमार तिवारी11 मई, 2010
सरीरिया बा सुंदर, करमवा कौने काम के ?
चली जएब एक दिन,बिक्एब बिना दाम के.
चार दिन के चाँदनी बा,फिर अंधेरी रात बा.
फेरू नही अएब , जब जएब अपने धाम के.
सरीरिया बा सुंदर, करमवा कौने काम के.
कहु संकट देल, कहु के गारी,
नाहक बितवल , उमारिया ई सारी.
तनी एक सोच ल, की जॅयेब कौने धाम के.
सरीरिया बा सुंदर, करमवा कौने काम के.
उहे धन पाएब् , जस रही कमाई.
तोहरे ही सांगवा में, कहु नाही जाई.
का बा तोहार इहा, मरेल कौने शान के.
सरीरिया बा सुंदर, करमवा कौने काम के.
सरीरिया बा सुंदर, करमवा कौने काम के.
-अवधेश कुमार तिवारी
08 मई, 2010
जोरे के न आइल .
गिनती त जानीं जानि , लेकिन जोरे के न आइल .
जोरल बाटे जहाँ , तोरे के न आइल .
एक के करिश्मा , नौ के मेहेरबानी.
खेलि ये के बचपन , उल्ज़झल जवानी.
हासिल होला नाही दिन निगि चाईल .
गिनती त जानीं जानि , लेकिन जोरे के न आइल
जोरे के जहवां , ऊहें घटांई .
जहाँ घटावेके , उहँवे बढ़ायी ,
उलझन उल्झेला , छोरे के न आएल .
गिनती ता जानि , लेकिन जोरे के न आएल..
पांच से बनल बा , घूमे चौरासी .
आवेला निन्नानवे, ता गरवा में फांसी.
मिलेला गुनक् फल ,गुणक हेराएल .
गिनती त जानीं जानि , लेकिन जोरे के न आइल
आवेला अन्हरिया त, बंधन लगावे ,
ईहे करत मौन, जिनगी सेराईल .
-अवधेश कुमार तिवारी
04 मई, 2010
तब और अब
चले गए वे लोग सब, तजि मानुष के देह II
समय समय का खेल यह, भला बुरा न होय I
कारन सदा अदृश्य है, जनि सके न कोय II
चला गया सो चला गया , वर्तमान को जान I
आगे क्या फिर आएगा , उसको भी पहचान II
दिखत है सो कुछ नहीं, ना दिखत सो होय I .
भ्रम में सारा जगत है, अंधी अंखिया दोय II.
जानत हूँ सो कह दिया, भरा जहाँ अज्ञान I.
अभिमानी वह बन गया, झूठा भरा है शान.II
जहाँ शान तंह मान नहीं,मान जहाँ नहीं शान I.
आस पास में बस रहा जग प्यारा भगवान् II.
शान देख कर जानिए, राक्षस का अधिकार I.
राम सर्वदा दूर है , पा न सकेगा प्यार II.
हंसा था सरवर गया, सुगना गया पहाड़ I.
जाहू विप्र घर आपने, मंत्री काग सियार II.
हंश बढ़ाया हाथ जब , जा गिद्धों के राज I.
अपना हाथ बधाएये, रख दोनों की लाज II.
सोचा गिद्ध अच्छा हुआ ,मुझे चाहिए आँख I.
वह देने ही आ गया, जम गयी मेरी साख II.
--अवधेश कुमार तिवारी01 मई, 2010
धनि मेहमान
धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी ,हुलसे ला देखि देखि सकल परानी .
स्वाति के बूंद चाहे चातक पियासा, नैना गरीब के लगी रहे आशा .
फूले ना समाये पाई सैलानी , धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी .
राउरे दरश से कलि खिल गईली , कोयल के कूक मधु रतिया सुहैली .
मोरवा के थिरकन ,धन बा सुहानी. धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी.
टूटही मॅडयिया बा खात बा पुरानि ,कुरुयी में लाटा बा गदूअवा में पानी.
हम सब अपना के बॅड भागी जानी , धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी.
शबरी के बेर बा सुदामा के चाऊर , बिदूर के साग बाते प्यार बाते राउर .
हमारे निवास आईली, छोड़ी राजधानी , धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी.
अवधेश कुमार तिवारी
स्वाति के बूंद चाहे चातक पियासा, नैना गरीब के लगी रहे आशा .
फूले ना समाये पाई सैलानी , धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी .
राउरे दरश से कलि खिल गईली , कोयल के कूक मधु रतिया सुहैली .
मोरवा के थिरकन ,धन बा सुहानी. धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी.
टूटही मॅडयिया बा खात बा पुरानि ,कुरुयी में लाटा बा गदूअवा में पानी.
हम सब अपना के बॅड भागी जानी , धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी.
शबरी के बेर बा सुदामा के चाऊर , बिदूर के साग बाते प्यार बाते राउर .
हमारे निवास आईली, छोड़ी राजधानी , धनि मेहमान रौवा धनि मेहमानी.
अवधेश कुमार तिवारी
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