Saturday, 29 September 2012
Birth:. 1 July 1940 Death :29 September 2004
Saturday, 29 September 2012
स्व.श्री अवधेश कुमार तिवारी
Saturday, 29 September 2012
स्व.श्री अवधेश कुमार तिवारी
आज मेरे स्वर्गीय पूज्य पिता जी की पुण्य तिथि है.आज ही के दिन,9 वर्ष पूर्व 2004, प्रकृति ने उनके स्थूल शारीर को ब्रह्मांड का अंग बना लिया,अब वे ग्रह नक्षत्रों के बीच मन की कल्पना में समाहित हो लिए। जीवन की तपीस से अगर कहीं बट बृक्ष था तो वह पिताजी थे । जो छांह थी वो अब जाती रही, सायंकाल उनका गोरखपुर में निधन हो गया था.पुणे से सुबह ही पहुंचा था.दिन भर उनके साथ रहने का योग मिला था.वह दिन मैं प्रतिदिन याद रखना चाहता हूँ , लेकिन ऐषा संभव नहीं हो पता है .
मै शरीर की नश्वरता को भी जानता हूँ,किन्तु अचेतन मन में उनके अस्तित्वहीन होने का बोध कभी होता ही नहीं था,अचेतन में पिता जी अस्तित्वहिन् होने के बोध के बीच की खायी को पाटने का प्रयाश कर रहा हूँ।एक व्यक्ति के रूप में मैंने जब भी मूल्यांकन किया है मै शब्दों में उन्हें संत कह सकता हूँ।शुद्ध अन्तःकरण पिताजी जी ग्रहस्थ जीवन के संत थे,अपनी जागतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन सुचिता पूर्वक करते हुए जीवन के युद्ध में घमासान करते रहे और एक अपराजेय योद्ध की तरह वे अपनी परिस्थियों से जूझते रहे।जय पराजय के बोध से मुक्त सिर्फ योद्धा की तरह जीवन संग्राम में अपनी जिजीविषा उद्दाम प्राणवत्ता के साथ दो -दो हाथ करते रहे वे निम्न मध्यवर्गीय परिवार के होते हुए तमाम विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के होते हुए भी अपने पुत्रों में अपने जीवन की जीत देखते रहे।जबकि पुत्र के रूप में मेरी भी भूमिका उसी स्वर लय ताल में आबद्ध हुयी जैसी की उनकी खुद की जीवन परिथितियाँ थी,आज जब मै एक पिता के रूप में पिता जी की जगह ले चूका हूँ इस बीच पुत्र से पिता होने की यात्रा कितनी जटिल है ,से परिचित हो रहा हूँ।
पिताजी एक कविता प्रति क्षण जीवन का रहस्य समझाने की चेष्टा करती रहती है,
Birth:. 1 July 1940 Death :29 September 2004
Saturday, 29 September 2012
आज मेरे स्वर्गीय पूज्य पिता जी की पुण्य तिथि है.आज ही के दिन,9 वर्ष पूर्व 2004, प्रकृति ने उनके स्थूल शारीर को ब्रह्मांड का अंग बना लिया,अब वे ग्रह नक्षत्रों के बीच मन की कल्पना में समाहित हो लिए। जीवन की तपीस से अगर कहीं बट बृक्ष था तो वह पिताजी थे । जो छांह थी वो अब जाती रही, सायंकाल उनका गोरखपुर में निधन हो गया था.पुणे से सुबह ही पहुंचा था.दिन भर उनके साथ रहने का योग मिला था.वह दिन मैं प्रतिदिन याद रखना चाहता हूँ , लेकिन ऐषा संभव नहीं हो पता है .
मै शरीर की नश्वरता को भी जानता हूँ,किन्तु अचेतन मन में उनके अस्तित्वहीन होने का बोध कभी होता ही नहीं था,अचेतन में पिता जी अस्तित्वहिन् होने के बोध के बीच की खायी को पाटने का प्रयाश कर रहा हूँ।एक व्यक्ति के रूप में मैंने जब भी मूल्यांकन किया है मै शब्दों में उन्हें संत कह सकता हूँ।शुद्ध अन्तःकरण पिताजी जी ग्रहस्थ जीवन के संत थे,अपनी जागतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन सुचिता पूर्वक करते हुए जीवन के युद्ध में घमासान करते रहे और एक अपराजेय योद्ध की तरह वे अपनी परिस्थियों से जूझते रहे।जय पराजय के बोध से मुक्त सिर्फ योद्धा की तरह जीवन संग्राम में अपनी जिजीविषा उद्दाम प्राणवत्ता के साथ दो -दो हाथ करते रहे वे निम्न मध्यवर्गीय परिवार के होते हुए तमाम विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के होते हुए भी अपने पुत्रों में अपने जीवन की जीत देखते रहे।जबकि पुत्र के रूप में मेरी भी भूमिका उसी स्वर लय ताल में आबद्ध हुयी जैसी की उनकी खुद की जीवन परिथितियाँ थी,आज जब मै एक पिता के रूप में पिता जी की जगह ले चूका हूँ इस बीच पुत्र से पिता होने की यात्रा कितनी जटिल है ,से परिचित हो रहा हूँ।
पिताजी एक कविता प्रति क्षण जीवन का रहस्य समझाने की चेष्टा करती रहती है,
सपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है?
सपना है ,तो अपना क्या है ?
घिरा हुआ ,अविरल घेरे में ,
कैसे जानूँ , क्या तेरे में ?
बंधन चक्कर, जब अजेय है,
निस वासर, ये तपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है.
सपना है, तो अपना क्या है?
राजा था ,क्यों रंक हो गया ?
ज्ञानी था, तो कहाँ खो गया ?
पता नहीं ,जब कोई किसी का,
नाम लिए ,और जपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है........
पाना खोना, खोना पाना,
क्या कैसा है ,किसने जाना ?
सब कुछ है ,और कुछ भी नहीं है ,
ऐसे में ये, कल्पना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है.........
क्या जानूँ , की सत्य कौन है ?
समझ न पाऊं, दिष्टि मौन है .
शांति चित्त बन जाये जिस छन ,
अति आनंद बरसना क्या है ?
देख रहा हूँ .............
यह भी मैं, और वह भी मैं हूँ,
जड़ भी मैं ,और चेतन मैं हूँ .
समय चक्र का, फंदा सारा,
सृस्ती जगत , भरमना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है,
सपना है तो अपना क्या है ?
-अवधेश कुमार तिवारी
अश्रु पूरित नेत्रों से विनम्र श्रद्धांजलि............अब शब्द नहीं है..........................
देख रहा हूँ, सपना क्या है?
सपना है ,तो अपना क्या है ?
घिरा हुआ ,अविरल घेरे में ,
कैसे जानूँ , क्या तेरे में ?
बंधन चक्कर, जब अजेय है,
निस वासर, ये तपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है.
सपना है, तो अपना क्या है?
राजा था ,क्यों रंक हो गया ?
ज्ञानी था, तो कहाँ खो गया ?
पता नहीं ,जब कोई किसी का,
नाम लिए ,और जपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है........
पाना खोना, खोना पाना,
क्या कैसा है ,किसने जाना ?
सब कुछ है ,और कुछ भी नहीं है ,
ऐसे में ये, कल्पना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है.........
क्या जानूँ , की सत्य कौन है ?
समझ न पाऊं, दिष्टि मौन है .
शांति चित्त बन जाये जिस छन ,
अति आनंद बरसना क्या है ?
देख रहा हूँ .............
यह भी मैं, और वह भी मैं हूँ,
जड़ भी मैं ,और चेतन मैं हूँ .
समय चक्र का, फंदा सारा,
सृस्ती जगत , भरमना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है,
सपना है तो अपना क्या है ?
-अवधेश कुमार तिवारी
अश्रु पूरित नेत्रों से विनम्र श्रद्धांजलि............अब शब्द नहीं है..........................
There are no words to describe what our family lost on September29,
2004. This man truly understood what fatherhood was all about. Firstly, he
loved God and thanked him daily for the blessings he has bestowed upon his
life.
Today is the 9th death anniversary of my beloved father
Late Shree Awadhesh Kumar Tiwari.
I stood at home, alone, gazing into the distance,
thinking of him, his life, and the end that one day comes too soon.
He literally cashed in his life's savings and brought
them over to give everything to us.
Here's to us always being true to ourselves, even when
we're the last ones standing at the land's end of our own lives.
He was a model of humility, strength, determination, and
hope. He died at the age of 64.
We all four brothers deeply thank my father for teaching
and demonstrating honesty, faith, courage, strength and endurance.
सुन्दर शब्दों में व्यक्त सुन्दर भाव...
जवाब देंहटाएंपिताजी को विनम्र श्रद्धासुमन.
सादर
अनु
Anil Shukla
जवाब देंहटाएंSheridan College, Brampton
Brampton, Ontario
Spanish Language & Culture
Pita ke prati aapka sneh aur aabhar ullekhneeya hai. Ye message aaj ki generation me bhee percolate hona chahiye. Bahut si gumnaam zindagiyon me khush haali aa sakti hai.
पिता-पुत्र सम्बन्ध सबसे अहम् सम्बन्ध है.समय के साथ साथ इस सम्बन्ध की सघनता भी छिड़ होने लगती है.शायद यह स्वाभाविक है. पुत्र पिता से जो कुछ भी अच्छा सिखाता है, जीवन भर उससे लाभान्वित होता रहता है।
जवाब देंहटाएंसंदीप द्विवेदी
जवाब देंहटाएंसृजनात्मक निदेशक at अतेलिये ऑथेंटिक (Atelier Authentic)
संदीप द्विवेदी मेरी ओर से भी भावभीने श्रद्धासुमन अर्पित हैं! ऐसी कालजयी कविता के लिए उन्हें कोटिशः नमन..
जवाब देंहटाएंShyam Bihari Shyamal
Worked at Dainik Jagran (CHEIF SUB EDITOR)
Shyam Bihari Shyamal भावपूर्ण स्मरण.. नमन..
Avanish Mani Tripathi
जवाब देंहटाएंReporter@ INDIA TV,&voice president-journlists press club
Avanish Mani Tripathi हे आकाश दीप मेरे पास आपको अर्पित करने के लिए श्रद्धा सुमन ....और आपसे मांगने के लिए आपका अमृत आशीष के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ...
Anand Pandey
जवाब देंहटाएं।Worked at Bharat Sanchar Nigam Limited
Anand Pandey पूज्यनीय पिता जी का॓ भावभीनी श्रद्धांजलि
आप की कविता न॓ मुग्ध कर दिया हम॓ ह॓ ईश्वर इन्ह॓ फिर ए॓स॓ ही रूप म॓ धरती पर भ॓जना
मानव जीवन की स॓वा करन॓ ह॓तु ।
का॓टिश नमन
सादर प्रणाम
धन्यवाद आर.एन. तिवारी भाई जी
आपन॓ हम॓ पिता श्री क॓ दर्शन कराय॓
Santosh K. Misra
जवाब देंहटाएंIndian Institute of Science - Bangalore
Ph.D. Scholar, Bio-organic chemist · Bangalore, India
"atisundar rachana...marmik aur naisargikta se purn...."
Harendra Pandey
जवाब देंहटाएंDefence Accounts Department
हार्दिक श्रधान्जली....
Anoop Shukla
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रधान्जली