21 मई, 2010

बहारों ने लूटा

 

रंगीन सजी महफ़िल है मगर ,

दुल्हन को करारों ने लूटा .

एक दिव्य प्रभा की अस्मद को ,

नव लाख सितारों ने लूटा .

बागो में फूल खिले ऐसे,

 मन मधुप न जाए फिर कैसे ?

खामोश बना दिलदार मगर ,

प्यार बहारों ने लूटा .

आँखों में अँधेरी जो छाई ,

वाहन को सवारों ने पायी .

अपने ही अपना ज्ञान नहीं,

ईमान सवारों ने लूटा.

नदियों में बिषमता की धारा ,

कोइ जीता कोई हारा .

धारा के बिषम इरादों को,

उस पार किनोरों ने लूटा.

 ----अवधेश कुमार तिवारी

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