भरल बा बलकव्न से , अंगना ओसारे,
चली जएहें एक दिन, होत भिंसारे.
धनी हे ग्रिशम ऋतु, हऊ सुहावन ,
समा तोहार बनल, मॅन के लुभावन.
अवधपुरी जस, राम के सहारे,
चली जएहें ,एक दिन होत भिनुसारे.........
केहु के दादी हयी, केहु के सासू,
अंखिया दुअरिया पे, पहरा दे आंशू.
दिल के दरद गईलें, आंखी के दुआरे,
चली जएहें एक दिन, होत भिनुसारे.....
बम बम छूटी जईहें , हो जएहें सूना ,
चिठिया के आवा जाहि , घर और पूना .
दिन रात बीत जाला, बनी के बिचारे .
चली जएहें एक दिन, होत भिनुसारे.....
बीतिहें बरस पुनि , रहे बिश्वाषा ,
स्वाति के बूँद पैहें, चातक पियासा .
मॉस दिवस , गिन गिन के बिसारे .
चली जएहें एक दिन होत भिनुसारे.....
--अवधेश कुमार तिवारी
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