25 दिसंबर, 2012

11Dec'2012 at TAIRIA
















अटल बिहारी वाजपेयी



//* // एक युग पुरुष ८९ जन्मदिवस //*//

अटल बिहारी वाजपेयी (जन्म: २५ दिसंबर, १९२४ ग्वालियर) भारत के पूर्व प्रधान मंत्री हैं। वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और १९६८ से १९७३ तक उसके अध्यक्ष भी रहे। वे जीवन भर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया।

वह भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और सन् १९६८ से १९७३ तक वह उसके अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सन् १९५५ में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली लेकिन हिम्मत नहीं हारी और सन् १९५७ में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँच कर ही दम लिया। सन् १९५७ से १९७७ तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। सन् १९६८ से ७३ तक वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में वह सन् १९७७ से १९७९ तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनाई।
१९८० में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। ६ अप्रैल, १९८० में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी जी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिये भी निर्वाचित हुए। लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् १९९७ में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। १९ अप्रैल, १९९८ को पुनः प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में १३ दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए।
सन् २००४ में कार्यकाल पूरा होने से पहले भयंकर गर्मी में सम्पन्न कराये गये लोकसभा चुनावों में भा०ज०पा० के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एन०डी०ए०) ने वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और भारत उदय (अंग्रेजी में इण्डिया शाइनिंग) का नारा दिया। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने भारत की केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त की और भा०ज०पा० विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई। सम्प्रति वे राजनीति से सन्यास ले चुके हैं।

कवि के रूप में अटल :- अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी हैं। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। पारिवारिक वातावरण साहित्यिक एवं काव्यमय होने के कारण उनकी रगों में काव्य रक्त-रस अनवरत घूमता रहा है। उनकी सर्व प्रथम कविता ताजमहल थी। इसमें ऋंगार रस के प्रेम प्रसून न चढ़ाकर "यक शहन्शाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम हसीनों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक" की तरह उनका भी ध्यान ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर ही गया। वास्तव में कोई भी कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता। राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेकों आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी।
उन्होने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया।

उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की रियासत ग्वालियर में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में २५ दिसम्बर १९२४[1] को ब्रह्ममुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अध्यापन कार्य तो करते ही थे इसके अतिरिक्त वे हिन्दी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि[2] भी थे। पुत्र में काव्य के गुण वंशानुगत परिपाटी से प्राप्त हुए। महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति "विजय पताका" पढकर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गयी। अटल जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे। कानपुर के डी०ए०वी० कालेज से राजनीति शास्त्र में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी[3] में उत्तीर्ण की। उसके बाद उन्होंने अपने पिताजी के साथ-साथ कानपुर में ही एल०एल०बी० की पढ़ाई भी प्रारम्भ की लेकिन उसे बीच में ही विराम देकर पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुट गये। डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ तो पढ़ा ही, साथ-साथ पाञ्चजन्य, राष्ट्रधर्म, दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन का कार्य[4] भी कुशलता पूर्वक करते रहे।
राजनीतिक जीवन :- वह भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और सन् १९६८ से १९७३ तक वह उसके अध्यक्ष भी रह चुके हैं। सन् १९५५ में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, परन्तु सफलता नहीं मिली लेकिन हिम्मत नहीं हारी और सन् १९५७ में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुँच कर ही दम लिया। सन् १९५७ से १९७७ तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। सन् १९६८ से ७३ तक वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में वह सन् १९७७ से १९७९ तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनाई।
१९८० में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। ६ अप्रैल, १९८० में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी जी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिये भी निर्वाचित हुए। लोकतन्त्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् १९९७ में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। १९ अप्रैल, १९९८ को पुनः प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में १३ दलों की गठबन्धन सरकार ने पाँच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के अनेक आयाम छुए।
सन् २००४ में कार्यकाल पूरा होने से पहले भयंकर गर्मी में सम्पन्न कराये गये लोकसभा चुनावों में भा०ज०पा० के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एन०डी०ए०) ने वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और भारत उदय (अंग्रेजी में इण्डिया शाइनिंग) का नारा दिया। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने भारत की केन्द्रीय सरकार पर कायम होने में सफलता प्राप्त की और भा०ज०पा० विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई। सम्प्रति वे राजनीति से सन्यास ले चुके हैं।
कवि के रूप में अटल:- अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी हैं। मेरी इक्यावन कविताएँ अटल जी का प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। पारिवारिक वातावरण साहित्यिक एवं काव्यमय होने के कारण उनकी रगों में काव्य रक्त-रस अनवरत घूमता रहा है। उनकी सर्व प्रथम कविता ताजमहल थी। इसमें ऋंगार रस के प्रेम प्रसून न चढ़ाकर "यक शहन्शाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम हसीनों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक" की तरह उनका भी ध्यान ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर ही गया। वास्तव में कोई भी कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता। राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेकों आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी।
अटल जी की प्रमुख रचनायें :-
उनकी कुछ प्रमुख प्रकाशित रचनाएँ इस प्रकार हैं :
• मृत्यु या हत्या
• अमर बलिदान (लोक सभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह)
• कैदी कविराय की कुण्डलियाँ
• संसद में तीन दशक
• अमर आग है
• कुछ लेख: कुछ भाषण
• सेक्युलर वाद
• राजनीति की रपटीली राहें
• बिन्दु बिन्दु विचार, इत्यादि।
जीवन के कुछ प्रमुख तथ्य :-
• अटल जी एक ऐसे नेता है जिन्होने जो देश-हित में था वही किया|
• आजीवन अविवाहित रहे।
• वे एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता (ओरेटर) एवं सिद्ध हिन्दी कवि भी हैं।
• परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की संभावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो और परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये। सन् १९९८ में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सी०आई०ए० को भनक तक नहीं लगने दी।
• अटल सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी। वह पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गठबन्धन सरकार को न केवल स्थायित्व दिया अपितु सफलता पूर्वक से संचालित भी किया।
• अटल ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।
• इन सबसे अलग उनके व्यक्तित्व का सबसे बडा गुण है कि वे सीधे सच्चे व सरल इन्सान हैं। उनके जीवन में किसी भी मोड पर कभी कोई व्यक्तिगत विरोधाभास नहीं दिखा।
वाजपेयी सरकार के कार्य :-सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाया। संरचनात्मक ढाँचे के लिए कार्यदल; सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल; केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन किया, साथ ही राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत आदि के माध्यम से बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम उठाये। राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं। इनके अलावा आवश्यक उपभोक्ता सामग्रियों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिये मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया, उड़ीसा के सर्वाधिक गरीब क्षेत्र के लिये सात सूत्रीय गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया, आवास निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए अर्बन सीलिंग एक्ट समाप्त किया तथा ग्रामीण रोजगार सृजन एवं विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिये बीमा योजना शुरू की। ये सारे तथ्य सरकारी विग्यप्तियों के माध्यम से समय समय पर प्रकाशित होते रहे हैं।
अटल जी की टिप्पणियाँ :- चाहे प्रधान मन्त्री के पद पर रहे हों या नेता प्रतिपक्ष; बेशक देश की बात हो या क्रान्तिकारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की; नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी करने में अटल जी कभी नहीं चूके। यहाँ पर उनकी कुछ टिप्पणियाँ दी जा रही हैं।
• "भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो।"
• "क्रान्तिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रान्तिकारियों को भूल रहे हैं, आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ।"
• "मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है।"

सादर चरण वंदन .....

जय जय श्री राम...........



Biography

      Shri Atal Bihari Vajpayee Born on December 25, 1924 at Gwalior, Madhya Pradesh to Shri Krishna Bihari Vajpayee and Smt. Krishna Devi.   Educated at Victoria (now Laxmi Bai) College, Gwalior and DAV College, Kanpur, Uttar Pradesh, Shri Vajpayee holds an M.A (Political Science) degree and has many literary, artistic and scientific accomplishments to his credit.
      He brings with him a long parliamentary experience spanning over four decades. He has been a Member of Parliament since 1957. He was elected to the 5th, 6th and 7th Lok Sabha and again to the 10th, 11th 12th and 13th Lok Sabha and to Rajya Sabha in 1962 and 1986. He has again been elected to Parliament from Lucknow in Uttar Pradesh for the fifth time consecutively. He is the only parliamentarian elected from four different States at different times namely - UP, Gujarat, MP and Delhi.
      Shri Atal Bihari Vajpayee was Prime Minister of India from May 16-31, 1996 and a second time from March 19, 1998 to May 13, 2004. With his swearing-in as Prime Minister, he has been the only Prime Minister since Jawaharlal Nehru to occupy the office of the Prime Minister of India through three successive mandates. Shri Vajpayee has also been the first Prime Minister since Smt. Indira Gandhi to lead his party to victory in successive elections.

22 दिसंबर, 2012

बजरंग बाण

बजरंग बाण
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥१
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥२
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥३
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥४
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥५
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥६
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥७
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥८
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥९
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥१०
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥११
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥१२
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥१३
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥१४
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥१५
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥१६
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥१७
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥१८
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥१९
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥२०
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥२१
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥२२
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥२३
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥२४
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥२५
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥२६
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥२७
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥२८
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥२९
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥३०
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥३१
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥३२
दोहा
उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

25 नवंबर, 2012

सरल जीवन जीने की कला

इस आपाधापी की जिदंगी मे क्या जिंदगी जीना वाकई मे कष्ट्दायक है … अधिकतर लोगॊं का मानना यही है लेकिन लियो बाबूटा ऐसा नही मानते । जीवन जटिल भी हो सकता है अगर ह्मारी सोच ऐसी बन चुकी हैं लेकिन Thich Nhat Hanh के शब्दों मे सरल जीवन जीने की कला मात्र छ्ह शब्दों पर केन्द्रित है , ’ मुस्कराओ , साँस लो और धीरे-२ चलो ’
अगर जीवन जीने के लिये इन छह शब्दों का पालन करेगें तो जीवन आसान हो सकता है लेकिन इसके अलावा इस आधुनिक युग मे कुछ और दिशानिर्देशों की आवशयकता है जैसे :
कम टी.वी. देखें और अधिक पढें ।
कम खरीददारी करे और अधिक बाहर निकले ।
कम अव्यवस्था फ़ैलाये और व्यवस्थित जीवन जियें ।
कम जल्दवाजी मचायें और काम को आराम से करें ।
कम खपत करें और अधिक बनायें ।
कम जंक फ़ूड खायें और अधिक कुदरती खाने पर जायें ।
कम बिजी रहे लेकिन प्रभावी रुप से रहें ।
कम ड्राइविंग करें लेकिन अधिक टहलें ।
कम शोर लेकिन अधिक एकांत ढूँढें।
भविष्य पर कम ध्यान दें लेकिन वर्तमान पर अधिक देखें ।
कम काम करें और अधिक खेले ।
कम चिंता करें और चेहरे पर अधिक मुस्कान लायें ।
सोशन नेट वर्किंग साइट का प्रयोग कम करें लेकिन वास्तविक जिदंगी में अधिक मित्र बनायें

19 नवंबर, 2012

Bala Saheb Thakare








On November 3, Bal Thackeray’s physician made a phone call from Mumbai. “Balasaheb is sinking,” he told cartoonist R.K. Laxman’s wife Kamala. “He wants to hear his voice just once.”
Later that afternoon from Pune, 91-year-old Laxman, who is slowly regaining his speech after a stroke he suffered in 2010, called his fellow-cartoonist and friend of more than 60 years to enquire about his health. “I’m well on my way out. Goodbye,” the 86-year-old Thackeray said, according to Ms. Laxman. “Then Balasaheb told me, ‘You know, I’ve never spoken like this. I didn’t want to regret not having called him’,” Ms. Laxman told this correspondent recently.
“As I can see it, you’ll recover and surely come to our Pune house again,” she told the ailing octogenarian. “I can only wish,” Mr. Thackeray replied, but insisted on saying goodbye again.
Their friendship may have looked unusual: R.K. Laxman, the relentless critic of the state of the world, yet affable creator of ‘The Common Man,’ who crossed all boundaries of identity and came to be regarded as the conscience of the nation, cannot be more different than the right-wing politician.
Thackeray met Mr. Laxman in 1946, when he joined The Free Press Journal, where Mr. Laxman was working. In their twenties and just starting out as political cartoonists, they hit it off instantly. “They visited cafes, shared many days of people-watching and laughing together. Both were cartoonists, what else do you expect? Their relationship grew on a steady dose of laughter,” Ms. Laxman said. Mr. Laxman, who gestured to convey the fact that his hearing too was not so good anymore, sat holding his wife’s hand, nodding in agreement to stories of yesteryear.
In 1950, Mr. Laxman joined The Times of India where he started his daily pocket cartoon, ‘You Said It.’ Soon, Thackeray too quit The Free Press Journal. “It became impossible to work there. The newspaper wanted them to follow Communist leanings, and both of them disagreed…,” Ms. Laxman said.





But their friendship continued over the years. Thackeray started his own magazine Marmik. “All through, he was proud of Laxman, and pampered him. Balasaheb knew Laxman was a better cartoonist, a step above,” she said.
In 1966, when Thackeray announced the launch of the Shiv Sena, it directly targeted south Indians. But this did not change anything. “There were no political strings attached to their relationship,” she said, describing Mr. Laxman as “apolitical.”
Asked whether the Sena’s vicious attacks on south Indians bothered Mr. Laxman, she said: “Sometimes he said he shouldn’t have gone this far. But we understood he perhaps had his own reasons for doing what he did. But it never mattered that Laxman was a south Indian. Our friendship was totally different.”
Through the 1980s and 1990s, when the Sena’s fanaticism peaked, Mr. Laxman’s cartoons never targeted it, Ms. Laxman said. “He kept quiet. …And Balasaheb appreciated it.”
“He registered his protest in silence. He didn’t understand the need for violence, though. He used to say, is he mad? Why does he need to do this? But they never talked about it, as far as I know. Maybe, his way of expressing was not to express at all. But Laxman forgives people.”
“Laxman liked the cartoonist Bal more than the politician Balasaheb. He’d have liked it if he had continued being a cartoonist, but he told me maybe it is his inner calling, we cannot avoid that. He always thought that if you are cut out to do something, you must do it,” Ms. Laxman explained.
Once, many years after the Sena was formed, Balasaheb confessed he felt sorry he didn’t continue being a cartoonist. “He felt sorry. He told Laxman, ‘I’m basically a cartoonist’,” she said.
Thackeray visited their Pune house for the first time last year with his son Uddhav and grandson Aditya. Showing off the sketch of the Common Man that Mr. Laxman made for him, he told reporters: “When he saw me, the poor chap started crying.”
“These days, every time they see each other, one starts crying and then the other starts crying — till one of them bursts out in laughter. The laughter stays,” she said.




                                         
An unprecedented multitude of supporters, celebrities, industrialists and common men converged upon the city’s Shivaji Park to bid an emotional adieu to Shiv Sena supremo Bal Keshav Thackeray, who was cremated here on Sunday with full state honours.
The mortal remains of the 86-year-old patriarch — a firebrand mascot of Hindu nationalism and Marathi pride — were consigned to the flames with a 21-gun salute preceding the final stages of his funeral.
The venue, located in the heart of the city, was chosen as it was the place where Mr. Thackeray had launched the Shiv Sena in 1966, thus commencing a stormy 46-year-old journey into politics.
“Between 5 p.m. and 6 p.m., there were around four to five lakh people at Shivaji Park,” Niket Kaushik, Additional Commissioner of Police, told The Hindu.
Earlier in the day, Mr. Thackeray’s funeral procession, that was scheduled to leave ‘Matoshree’ in suburban Bandra at 7 a.m., was delayed as roads around the Thackeray residence were clogged with lakhs of fervent supporters who blocked the route of the funeral procession.
Mr. Thackeray’s body was finally brought out of his house a little after 9 a.m. in a hearse adorned with flowers. His youngest son, Sena executive president Uddhav Thackeray, broke down as his father’s body was being put on the truck.
His estranged cousin, Maharashtra Navnirman Sena chief Raj Thackeray, walked alongside the hearse till Mahim causeway.
Apart from a grief-stricken Uddhav Thackeray, who was compelled to plead to the restive crowds to show restraint, his wife Rashmi and son Aditya Thackeray stood beside Mr. Thackeray’s body on the hearse that also bore Sena-alliance leaders, Ramdas Athawale of the Republican Party of India (A) and senior BJP leader Vinod Tawde.
Cries of ‘Parat ya parat ya Balasaheb parat ya (Balasaheb come back) rent the air as frenzied Sainiks crowded near the cortege, slowing down its movement. The procession reached Shivaji Park at around 4:30 in the evening as a host of dignitaries gathered to pay their last respects to Mr. Thackeray.




A stellar cast of politicians, Bollywood movie stars and industry titans attended the funeral.
Politicians, including the top brass of the Bharatiya Janata Party (a political ally of the Sena in the State) that included leaders like L.K. Advani, Sushma Swaraj, Arun Jaitley, Nitin Gadkari, Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chauhan and Gopinath Munde were present on the occasion.
Among the ruling coalition leaders, Mr. Thackeray’s close friend, Nationalist Congress Party chief Sharad Pawar, Maharashtra Chief Minister Prithviraj Chavan, senior NCP leaders Praful Patel and Chhagan Bhujbal, State Home Minister R.R. Patil were present, along with virtually every top State leader.
Amitabh Bachchan, Sanjay Dutt, Nana Patekar and Madhur Bhandarkar were among the prominent Bollywood celebrities present.
The final rites were performed by Mr. Uddhav Thackeray and an emotionally overwhelmed Raj Thackeray.
Shivaji Park resounded with cries of “Balasaheb amar rahe” (long live Balasaheb) as a grim-looking Mr. Uddhav Thackeray lit the pyre.
All through the day, a veritable swarm of Sena supporters from all parts of Maharashtra disregarding personal privation poured onto the streets leading from “Matoshree” — the Thackeray home in suburban Bandra — to Shivaji Park in order to catch final glimpses of Mr. Thackeray’s journey.
Despite no formal call being given, a total shutdown, prompted by fear of violence on the part of Sena cadres, prevailed in many parts of the city and its outer limits including Navi Mumbai and Thane in the wake of Mr. Thackeray’s death.
Markets, that began downing shutters since Saturday evening, were shut to the last shop in Sena strongholds. Trains were the only visible mode of functioning public transport as taxis and auto rickshaws completely stopped plying the roads.
Hoardings hailing the former founder of the Shiv Sena as ‘The Last Hindu’ and a ‘Saffron Storm’ dotted the cityscape throughout the Sena strongholds of Dadar and Bandra.

17 नवंबर, 2012

छठ पूजा



छठ पूजा
छठ पर्व या छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी भी मनाते देखे गए हैं।

पुराणों से : :

एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी।

इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

सामाजिक/सांस्कृतिक महत्व : :

छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है न ऐश्वर्य युक्त मूर्तियों की। बिजली के लट्टुओं की चकाचौंध, पटाखों के धमाके और लाउडस्पीकर के शोर से दूर यह पर्व बाँस निर्मित सूप, टोकरि, मिट्टी के बरतनों, गन्ने के रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद, और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।

शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गई उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रंथ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थअना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के साथकी जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाइ, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबंधन, तालाव या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा भाव और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।


छठ पूजा
छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस पूजा में भगवान भास्कर (सूर्य) की अराधना एंव उपासना का विषेश महत्व है। यह एक मात्र व्रत है जिसमें सूर्य भगवान के

उदय एंव अस्त होने पे अराधना की जाती है। छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी अर्थात दिपावली के ठीक छः दिन बाद मनाया जाता है। कार्तिक अंग्रेजी महीने के हिसाब से अक्टूबर से नवम्बर के बीच में पड़ता है।
खास तौर से छठ पूजा का प्रचलन ब

िहार राज्य में है। बिहार के साथ साथ पूर्वी उ.प्र., दिल्ली, झारखंड आदि अन्य शहरो में भी मनाया जाता है। यह व्रत पूरे चार दिन तक मनाया जाता है, व्रत करने वाली सभी स्त्रीयाँ गंगा किनारे निवास कर पूरे विधि विधान से इस पूजा को सफल बनातीं हैं। छठ पूजा करने का विषेश उद्देश्य भगवान को धन्यवाद देना है, क्योंकि
भगवान सूर्य की कृपा से इस धरती पर सभी को सहज जीवन की प्राप्ती होती है एंव साथ ही साथ अपनी इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति भी मिलती है। इस पूजा को स्त्री व पुरुष समान रूप से मनाते है, दोनों ही अपने पारिवारिक जीवन के लिए छठ मईया से सुख-समृध्दि और मनोवांछित फल की कामना करते है। छठ मईया और भगवान भास्कर का संबंध भाई-बहन का है, इसीलिए छठ मईया और सूर्य देवता की पूजा एक ही दिन की जाती है।
छठ पूजा के पहले दिन ‘‘नहाई-खाई’’ का रिवाज है। इसमें व्रतियाँ पवित्र गंगा में स्नान करने के बाद गंगा जी के जल से ही प्रसाद बनातीं हैं।
दूसरे दिन ‘‘खारना’’ अर्थात पूरे दिन निराजल रह कर व्रती पूजा-पाठ करतीं हैं, दिन के आखिरी में प्रसाद रूपी ‘‘गन्ने के रस में चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पीठ्ठा और घी की रोटी’’ बनाई जाती है। पूजा के प्रसादी में नमक एंव चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इस व्रत के दौरान घर में स्वछता का विषेश ध्यान भी दिया जाता है।
तीसरे दिन ‘‘संध्या अघ्र्य’’ का होता है। इस दिन को छठ का प्रसाद अर्थात ठेकुवा, चावल के लड्डू, साँचा और विभिन्न प्रकार के फल सम्मलित किए जाते हैं।
षाम को बाँस की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है। स्त्रीयां पवित्र नदी गंगा में खड़े होकर सूर्य भगवान के अस्त होने से पूर्व जल एंव दूध का अघ्र्य दान कर करतीं हैं। तत् पष्चात् छठ माई की पूजा प्रसाद भरे सूप से करतीं है। और नदी में तब तक खड़ी रहतीं हैं जब तक सूर्य पूर्ण रूप से अस्त नहीं हो जाते।
चैथे दिन ‘‘उशा अघ्र्य’’ अर्थात र्काितक षुक्ल पक्ष की सप्तमी की सुबह उगते सूर्य को अघ्र्य दान दिया जाता है। अंत में व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करतीं है|
छठ पूजा का यह अनोखा तरीका बड़ा ही मनमोहक होता है। सभी लोग इसे एक उत्सव की तरह मनाते है। नदी किनारे जैसे मेला सा लग जाता है। स्त्रीयां छठ पूजा के सुहाने गीत गातीं है। गन्ने से बने छोटे-छोटे मंडप बड़े ही सुन्दर लगते है। व्रती अपने पूर्ण श्रृंगार के साथ-साथ अपनी नाक से लेकर पूरी मांग में पीला सिंदूर भरती हैं। सिंदूर लगाने का यह तरीका भी इस व्रत की एक बहुत बड़ी पहचान है।



यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...