29 सितंबर, 2015

पिता जी की डायरी से...






बिन ढूढे मिले नहीं , अपना ही पहचान .
क्या ढुढत हो गैर को,बसत जहाँ अज्ञान .
बसत जहाँ अज्ञान, राम भी पास में आये,
मनुष्य जीवन धन्य,बृथा नर मुर्ख गवाए,
कहें मौन कविराय , जग मन दुःख ही दुःख है
अपने को पहचान,सदा ही सुख ही सुख है.

-अवधेश कुमार तिवारी

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परिचय

इस ब्लॉग का उद्देश्य केवल लेखन नहीं, बल्कि जीवन की क्षणभंगुरता में छिपे सौंदर्य और सत्य को साझा करना है। हर लेख, हर कविता, हर विचार—पाठकों क...