यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है. इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा
स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है. यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में
एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है. शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक
प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है. यह रेखा दाएं
कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है. यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म
नस है. इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है. यदि यह नस संकोचित
अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता.
अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य
भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने
के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है. इसीलिए सभी
धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है. सारनाथ की अति
प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर
यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है. यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही
नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए.
शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है. आदित्य,
वसु, रूद्र, वायु, अग्नि, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का
निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी
आचमन का फल प्राप्त होता है. यदि इसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए
तो अशुचित्व नहीं रहता.
यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत.
अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है.
अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता
है. हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें.
इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से
ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र
माना गया है. दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस
कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है.
मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है. दाएं
कान को ब्रह्मसूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है. यह बात
आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है. यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो
दाएं कान ब्रह्मसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है. बिस्तर में
पेशाब करने वाले लड़कों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक
जाती है.
किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडऩे से वह उसी क्षण नरम हो जाता है. अंडवृद्धि के सात कारण हैं.
मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है. दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर
मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है. इन सभी कारणों से मूत्र तथा
पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है.