बहुत सरलतम शब्दों में, भूत वह होता है जो बीत गया ( बासे फूल की तरह) ...अर्थात रीत गया ...!! भविष्य वह है, जो अभी खिला नहीं (कली की तरह) ...!!! और वर्तमान हैं, जो हमारे पास है ( ताजे फूल की तरह) ... !!!
भूत और भविष्य दोनों हमें, नहीं की ओर ले जाते हैं, और वर्तमान, पूर्णता के, विस्तार की ओर..!!!!
अतः जीवन का आधार, सिर्फ और सिर्फ, वर्तमान को बनायें ...!!! जिससे भी मिलें, पूरे के पूरे वर्तमान में मिलें, ना भूत का कोई गिला-शिकवा , ना भविष्य की कोई आशा ...!
बस वर्तमान जो घट रहा है, उसे सहजता से घटने दें ...! क्योंकि कोई भी प्रयत्न, असहजता ही पैदा करेगा ...!
जैंसे, स्वांश भी यदि प्रयत्न से लेनी पड़े, तो वह भी रोग (अस्थमा) की ही निशानी हैं ..! अतः, अकर्म की स्थिति (साक्षी-भाव) से शुरुआत करें ., सहजता अपने आप प्रगट होती जायेगी ...!
और जब पूर्ण सहजता में स्थापित होते हैं, तो ज्ञात होता है कि,
जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा ....!!!!!
इससे उत्तम जीवन-प्रवंधन (कर्मठता ) का कोई सूत्र ही नहीं है ....! और वह भी दिलो-दिमाग को पूर्ण ताजा रखे हुये,
क्योंकि यह सूत्र, सहजता के मार्ग में आने वाले , सम्पूर्ण अवरोधों को , सहजता से ही, हटाता जाता है ...!!
फिर तो मित्र-वर :---
चाह गई चिंता गई, मनुआ बेपरवाह,
जाको कछु ना चाहिए, वो ही शाहंशाह ....!!!
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