करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे
बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे
वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे
वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कूचा-ओ-बाज़ार मेरे
तुम अपना हाल-ए-महजूरी सुनाओ
मुझे तो खा गये आज़ार मेरे
जिन्हें समझा था जानपरवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न बरदार मेरे
गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िन्दा सलमात यार मेरे
दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे
दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवायें ले उड़ी अशार मेरे
-महशर बदायुनी
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे
बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे
वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे
वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कूचा-ओ-बाज़ार मेरे
तुम अपना हाल-ए-महजूरी सुनाओ
मुझे तो खा गये आज़ार मेरे
जिन्हें समझा था जानपरवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न बरदार मेरे
गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िन्दा सलमात यार मेरे
दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे
दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवायें ले उड़ी अशार मेरे
-महशर बदायुनी
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