पिताजी की डायरी से.....
नेता जी.
राजनीती कहवा से सिखलीं, नेता भयिलिन कहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में,चाटत रहलीं महिया.
त्यागी तपस्वी बनी नाही,कैसे चली यी गाड़ी.
काहें जाएब पटना दिल्ली ,गउएं चाटी हांड़ी .
आसन पर बैठब जब राउया,नाश हो जाई तहिया.
हम टी देखली कोल्हुवाड़े में,चाटत रहलीं महिया.
आपन गदही पाड़ी लेके ,वापस घर के जाईं.
हंसा कोई बिरला होला , रौवा तनि सरमायीं
आपन जोर लगाईं तनिको, धशिं जाई ई पहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में,चाटत रहलीं महिया.
राउर ई तिहार जेल ह ,राउर चम्बल घाटी.
सोची समझी सिर न उठायीं ,अति तोरी परिपाटी .
रौवा जैसे लगत बानी , पाकिस्तानी अहिया.
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
प्रजा तंत्र के बोली बोलनी, नेता तंत्र ले ऐली.
ज्ञान श्रधा सच्चाई जग से, नोच नोच के खैली.
इंसानियत के कैली बिदाई, राजा भएली जहिया.
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
रोज रोज चुनाव करायीं , बाटे नाही आशा.
राउर ई सरकार कभी ,ना चली बारहों मासा .
कुर्सी के लो भी के चलते, देश नाश के रहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
राज पद ह ऊँचा आसन , बैठे सब बिचारीं.
काहें रौया धईले बा, मोहि ले चल के बीमारी .
देशवा जली के राख हो जाई ,बात बुझाई तहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
एक छत्र छाया के निचे ,रौवा सब चली आयीं
जाती पात के भेद भुला के ,सबके गले लगाईं
सुमति राखि कुमति के छोड़ीं , राम राज होई तहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
----अवधेश कुमार तिवारी
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में,चाटत रहलीं महिया.
त्यागी तपस्वी बनी नाही,कैसे चली यी गाड़ी.
काहें जाएब पटना दिल्ली ,गउएं चाटी हांड़ी .
आसन पर बैठब जब राउया,नाश हो जाई तहिया.
हम टी देखली कोल्हुवाड़े में,चाटत रहलीं महिया.
आपन गदही पाड़ी लेके ,वापस घर के जाईं.
हंसा कोई बिरला होला , रौवा तनि सरमायीं
आपन जोर लगाईं तनिको, धशिं जाई ई पहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में,चाटत रहलीं महिया.
राउर ई तिहार जेल ह ,राउर चम्बल घाटी.
सोची समझी सिर न उठायीं ,अति तोरी परिपाटी .
रौवा जैसे लगत बानी , पाकिस्तानी अहिया.
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
प्रजा तंत्र के बोली बोलनी, नेता तंत्र ले ऐली.
ज्ञान श्रधा सच्चाई जग से, नोच नोच के खैली.
इंसानियत के कैली बिदाई, राजा भएली जहिया.
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
रोज रोज चुनाव करायीं , बाटे नाही आशा.
राउर ई सरकार कभी ,ना चली बारहों मासा .
कुर्सी के लो भी के चलते, देश नाश के रहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
राज पद ह ऊँचा आसन , बैठे सब बिचारीं.
काहें रौया धईले बा, मोहि ले चल के बीमारी .
देशवा जली के राख हो जाई ,बात बुझाई तहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
एक छत्र छाया के निचे ,रौवा सब चली आयीं
जाती पात के भेद भुला के ,सबके गले लगाईं
सुमति राखि कुमति के छोड़ीं , राम राज होई तहिया .
हम ता देखली कोल्हुवाड़े में, चाटत रहलीं महिया.
----अवधेश कुमार तिवारी
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