08 नवंबर, 2025

वृद्धावस्था




वृद्धावस्था कोई आश्चर्य जनक घटना नहीं है
मनुस बेचारे की बात करे कौन हरिहर ,
दिनकर की तीन गति होत एक दिन में.
जिसने जन्म लिया है उसे मरना भी होता है . लेकिन मैं मरूंगा यह बात मानाने को कोई तैयार नहीं होता . सिद्धार्थ जब किसी व्यक्ति की अंतिम यात्रा देखकर उत्सुकता बस पूछते है तो उन्हें बताया जाता है की इनकी मौत हो चुकी है .शायद ऐसी बात ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया …..एक दिन सबको मरना होता है……
जब आदमी चकाचौध के कारन समझ नहीं पाता है तो कहता है मरने के पहले जिन्दा रहना है . अभिप्राय यह की वह जो कुछ कर रहा है जीने के लिए कर रहा है..
वास्तविक ज्ञान शमशान भूमि में ही प्राप्त होता है . इसीलिए घर आते ही उसे लाल मिर्च खाने के लिए
दिया जाता है , तीखा लगेगा तो जो ज्ञान उत्पन्न हुआ था , वह विचलित हो जाता है , इस दुनिया वापस आ जाता है ……..शायद यही इस दुनियां की वास्तविकता है.
समय का चक्र तो अबाध गति से चलता रहता है। नियति का स्वाभाव है। आज जो बालक है वह कल युवा तो परसों वृद्ध होगा। इसकी कोइ निश्चित आयु सीमा नहीं है , कोई समय से पहले ही बूढा हो जाता है . कोई कुछ अधिक आयु सीमा जवान ही बने रहने का दिखावा करता है.
यह निर्विवाद सत्य है कि वृद्धावस्था में मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता है… सोचने की छमता भी धूमिल होने लगाती है .सबकी अपनी सोच है मैंने बचपन से वृद्ध लोंगो को अधिक सम्मान दिया है ,हालाँकि उस समय सोच भी उम्र के स्तर से कुछ बड़ी लगाती थी ….लगता था इनके साथ वितायें गए क्षणों में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और मिला भी.
अब धीरे धीरे उस दिशा की बढ़ रहे हैं तो लगता है अनुभव वृद्ध तो बहुत पहले हो गया था अब साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा है .
बर्रे बालक एक स्वभाउ …………भी समझ में आने लगा है सोचा लिपिबद्ध करने से समय भी कटेगा और शायद इस अनुभव का कुछ लाभ किसी को मिल सके.
जीवन में जिस वृद्ध को मैंने नज़दीक से देखा वह अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति हमेशा अपने बारे में ही सोचने में लगा रहना , दूसरे के विषय अपने स्वार्थ की प्रतिपूर्ति में ही सोचना ….. शायद यही सीमा सोच की सीमा थी.लेकिन इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता.              आया है सो जायेगा राजा रैंक फ़क़ीर
निम्न पक्तियां मुझे कुछ सोचने का मार्ग दिखा देती हैं
ख़ुदा ने खुदकशी कर ली जो देखा जान के बाद ,
जमीं पे कोई नमूना न आदमी का रहा
शायद यही इस जग की सच्चाई है . वृद्धावस्था में ज्ञान की चक्छुयें अत्यंत संवेदनशील हो जाती है .
आज के इस व्यस्ततम जीवन में किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है
जिंदगी सवारने की चाहत में,
हम इतने मशगूल हो गए…
चंद सिक्कों से तो रूबरू हुए,
पर ज़िन्दगी से दूर हो गए.
और फिर वही बात आती है सबकुछ लूटाके होश में आया तो क्या किया ???
कहते हैं…………. आओ जिंदगी के विषय में कुछ सोचें और उदास होएं ……
सच में अगर सोचते हैं तो उदास ही होंगें
R D N Srivastav  की कविता यहाँ पे याद आती है
जिंदगी एक कहानी है समझ लीजिये
दर्द भरी लन्ति रानी समझ लीजिये
चहरे पर खिले ये अक्षांश देशान्तर
उम्र की छेड़ कहानी समझ लीजिये
यह कहना गलत है कि कमी के कारण सीनियर सिटिजंस की देखभाल नहीं कर पाते। दरअसल नई पीढ़ी आत्मग्रस्त होती जा रही है। बसों में वे सीनियर सिटिजंस को जगह नहीं देते। बुजुर्ग अकेलापन झेल रहे हैं क्योंकि युवा पीढ़ी उन्हें लेकर बहुत उदासीन हो रही है , मगर हमें भी अब इन्हीं सबके बीच जीने की आदत पड़ गई है। सीनियर सिटिजंस की तकलीफ की एक बड़ी वजह युवाओं का उनके प्रति कठोर बर्ताव है।
लाइफ इतनी फास्ट हो गयी है की सीनियर सिटिजंस के लिए उसके साथ चलना असंभव हो गया है। एक दूसरी परेशानी यह है कि युवा पीढ़ी सीनियर सिटिजंस की कुछ भी सुनने को तैयार नहीं- घर में भी और बाहर भी। दादा-दादियों को भी वे नहीं पूछते, उनकी देखभाल करना तो बहुत दूर की बात है। जिंदगी की ढलती साँझ में थकती काया और कम होती क्षमताओं के बीच हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का सबसे बड़ा रोग असुरक्षा के अलावा अकेलेपन की भावना है।
बुजुर्ग लोगों को ओल्ड एज होम में भेज देने से उनकी परिचर्या तो हो जाती है, लेकिन भावनात्मक रूप से बुजुर्ग लोगों को वह खुशी और संतोष नहीं मिल पाता, जो उन्हें अपने परिजनों के बीच में रहकर मिलता है। शहरी जीवन की आपाधापी तथा परिवारों के घटते आकार एवं बिखराव ने समाज में बुजुर्ग पीढ़ियों के लिए तमाम समस्याओं को बढ़ा दिया है। कुछ परिवारों में इन्हें बोझ के रूप में लिया जाता है।

वृद्धावस्था में शरीर थकने के कारण हृदय संबंधी रोग, रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों के दर्द जैसी आम समस्याएँ तो होती हैं, लेकिन इससे बड़ी समस्या होती है भावनात्मक असुरक्षा की। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ाहट, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मानवीय संबंध परस्पर प्रेम और विश्वास पर आधारित होते हैं। लेकिन इसे समझनेवाला है कौन ??
जिंदगी की अंतिम दहलीज पर खड़ा व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों को अगली पीढ़ी के साथ बाँटना चाहता है, लेकिन उसकी दिक्कत यह होती है कि युवा पीढ़ी के पास उसकी बात सुनने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं होता।

03 नवंबर, 2025

Life & Spirituality in INDIA

 



     Life & Spirituality in India

Life and spirituality are most common subjects which every individual tries to learn throughout life and understand its glimpse to feel happy mostly when he is sad. Every individual has own experience which he shares to others but others may agree but not fully satisfied and thus the journey of life starts during that those who follow the path of spirituality, try to achieve mental peace and satisfaction .
 In India, spirituality and religion are part of everyday life. In no other country, perhaps, will you see a sadhu (a renounced ascetic or a practitioner of yoga)
Walking on the street with just a blanket and his rosary as his possessions without attracting any attention. India is home to all the major religions of the world, thriving in harmony since centuries. Although we will discuss the predominant religions in the country, we begin with Hinduism since it is the dominant religion in the subcontinent. Hindu’s comprise 80% of the population in India.

ईश्वर क्या है?



🌿 ईश्वर वह चेतना है
जो सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है,
जो हमारे भीतर भी है और बाहर भी।

🕉️ वेदों में कहा गया है —

> “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति।”
— अर्थात्, सत्य एक है, ज्ञानी लोग उसे अनेक नामों से पुकारते हैं।



ईश्वर न केवल सृष्टिकर्ता है, वह संरक्षक और संहारक भी है।
वह शक्ति है जो प्राणों में गति देती है, मन में प्रेरणा जगाती है, और अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने का साहस देती है।

🪔 दार्शनिक दृष्टि से,
ईश्वर वह “परम सत्य” है,
जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है।

💫 भक्त के लिए,
ईश्वर प्रेम है —
माँ की ममता, पिता का संरक्षण, मित्र का स्नेह,
और अंतर्मन की वह शांति जो किसी भी परिस्थिति में डगमगाती नहीं।

> “ईश्वर को पाने के लिए मंदिर या तीर्थ नहीं चाहिए,
बस मन को निर्मल और हृदय को विनम्र बनाना पड़ता है।”




30 अक्टूबर, 2025

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार


1. नाद : इस ध्वनि को कहते हैं। अनाहत अर्थात जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं होती बल्कि स्वयंभू है। इसे ही नाद कहा गया है। ओम की ध्वनि एक शाश्वत ध्वनि है जिससे ब्रह्मांड का जन्म हुआ है। एक ध्वनि है, जो किसी ने बनाई नहीं है। यह वह ध्वनि है जो पूरे कण-कण में, पूरे अंतरिक्ष में हो रही है और मनुष्य के भीतर भी यह ध्वनि जारी है। सहित ब्रह्मांड के प्रत्येक गृह से यह ध्वनि बाहर निकल रही है।

2. ब्रह्मांड का जन्मदाता : पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात शुद्ध प्रकाश। यह ध्वनि आज भी सतत जारी है। ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। परमेश्वर का प्रकाश। इसे ही शुद्ध प्रकाश कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड और कुछ नहीं सिर्फ कंपन, ध्वनि और प्रकाश की उपस्थिति ही है। जहां जितनी ऊर्जा होगी वहां उतनी देर तक जीवन होगा। यह जो हमें सूर्य दिखाई दे रहा है एक दिन इसकी भी ऊर्जा खत्म हो जाने वाली है। धीरे-धीरे सबकुछ विलिन हो जाने वाला है। बस नाद और बिंदु ही बचेगा।

3. ओम शब्द का अर्थ : ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म...। इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। अ मतलब अकार, उ मतलब ऊंकार और म मतलब मकार। 'अ' ब्रह्मा का वाचक है जिसका उच्चारण द्वारा हृदय में उसका त्याग होता है। 'उ' विष्णु का वाचक हैं जिसाक त्याग कंठ में होता है तथा 'म' रुद्र का वाचक है और जिसका त्याग तालुमध्य में होता है।

4. ओम का आध्यात्मिक अर्थ : ओ, उ और म- उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अपरम्पार है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं।
5. मोक्ष का साधन : ओम ही है एकमात्र ऐसा प्रणव मंत्र जो आपको अनहद या मोक्ष की ओर ले जा सकता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मूल मंत्र या जप तो मात्र ओम ही है। ओम के आगे या पीछे लिखे जाने वाले शब्द गोण होते हैं। प्रणव ही महामंत्र और जप योग्य है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण, कैवल्य ज्ञान या मोक्ष की अवस्था का प्रतीक है। जब व्यक्ति निर्विचार और शून्य में चला जाता है तब यह ध्वनि ही उसे निरंतर सुनाई देती रहती है।

6. प्रणव की महत्ता : शिव पुराण में प्रणव के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ और भाव बताए गए हैं- 'प्र' यानी प्रपंच, 'ण' यानी नहीं और 'व:' यानी तुम लोगों के लिए। सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है। यही कारण है ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है। दूसरे अर्थों में प्रणव को 'प्र' यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली 'ण' यानी नाव बताया गया है। इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से 'प्र' अर्थात प्रकर्षेण, 'ण' अर्थात नयेत् और 'व:' अर्थात युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव: है।

7. स्वत: ही उत्पन्न होता है जाप : ॐ के उच्चारण का अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आता है जबकि उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं होती आप सिर्फ आंखों और कानों को बंद करके भीतर उसे सुनें और वह ध्वनि सुनाई देने लगेगी। भीतर प्रारंभ में वह बहुत ही सूक्ष्म सुनाई देगी फिर बढ़ती जाएगी। साधु-संत कहते हैं कि यह ध्वनि प्रारंभ में झींगुर की आवाज जैसी सुनाई देगी। फिर धीरे-धीरे जैसे बीन बज रही हो, फिर धीरे-धीरे ढोल जैसी थाप सुनाई देने लग जाएगी, फिर यह ध्वनि शंख जैसी हो जाएगी और अंत में यह शुद्ध ब्रह्मांडीय ध्वनि हो जाएगी।

8. शारीरिक रोग और मानसिक शांति हेतु : इस मंत्र के लगातार जप करने से शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होता है। इससे शारीरिक रोग के साथ ही मानसिक बीमारियां दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं।
9. सृष्टि विनाश की क्षमता : ओम की ध्वनि में यह शक्ति है कि यह इस ब्रहमांड के किसी भी गृह को फोड़ने या इस संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखता है। यह ध्वनि सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और विराट से भी विराट होने की क्षमता रखती है।

10. शिव के स्थानों पर होता रहता है ओम का उच्चारण : सभी ज्योतिर्लिंगों के पास स्वत: ही ओम का उच्चारण होता रहता है। यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे, तो आपको निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज 'डमरू' या 'ॐ' की ध्वनि जैसी होती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो। यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहां से 'ॐ' की आवाजें सुनाई देती हैं।

कर्म और भाग्य

बहुत पुराने समय की बात है। एक जंगल में एक महात्मा निवास करते थे। जंगल के दोनों ओर दो अलग-अलग राज्य थे। दोनों के ही राजा महात्मा के पास आया करते थे। जंगल के बीच में से एक नदी बहती थी। जिसे लेकर दोनों राज्यों में तनातनी रहती थी। आखिर बात बिगड़ते-बिगड़ते युद्ध तक पहुंच गयी। दोनों तरफ तैयारियां जोर-शोर से चल पड़ीं। दोनों ही राजाओं ने महात्मा से आशीर्वाद लेने के लिये सोचा।
पहला राजा महात्मा के पास पहुंचा और सारी बात बताकर आशीर्वाद मांगा। महात्मा ने थोड़ा सोच कर कहा, ‘भाग्य में तो जीत नहीं दिखती, आगे हरि इच्छा।’ यह सुनकर राजा थोड़ा विचलित तो हुआ लेकिन फिर सोचा कि यदि ऐसा है तो खून की आखिरी बूंद भी बहा देंगे लेकिन जीते-जी तो हार नहीं मानेंगे। अब उसने वापस लौटकर ​सिर पर कफन बांधकर युद्ध की तैयारी करनी शुरू कर दी। उधर दूसरा राजा भी महात्मा के पास आशीर्वाद लेने के लिये पहुंचा। महात्मा ने हंसते हुये कहा, ‘भाग्य तो तुम्हारे पक्ष में ही लगता है।’ यह सुनकर वह खुशी से भर उठा। वापस लौटकर सभी से कहने लगा, ‘चिन्ता मत करो, जीत हमारे भाग्य में लिखी है।’
युद्ध का समय आ पहुंचा। दूसरा राजा जीत का सपना लिये अभी निकला ही था कि उसके घोड़े के एक पैर की नाल निकल गयी। घोड़ा थोड़ा लंगड़ाया तो मंत्री ने कहा, ‘महाराज! अभी तो समय है, नाल लगवा लेते हैं या फिर घोड़ा बदल लेते हैं।’ लेकिन राजा बेपरवाही के साथ बोला, ‘अरे! जब जीत अपने भाग्य में लिखी है तो फिर ऐसी छोटी सी बात की चिन्ता क्यों करते हो।’
युद्ध शुरू हुआ। दोनों ओर की सेनाएं मरने-मारने के लिये एक दूसरे से भिड़ गईं। जल्दी ही दोनों राजा भी आमने-सामने आ गये। घनघोर युद्ध छिड़ गया। अचानक पैंतरा बदलते हुये वह एक नाल निकला हुआ घोड़ा लड़खड़ा कर गिर पड़ा। राजा दुश्मन के हाथ पड़ गया। पासा ही पलट गया। भाग्य ने धोखा दे दिया।
पहला राजा जीत का जश्न मनाता हुआ फिर से महात्मा के पास पहुंचा और सारा हाल बताया। दोनों ही राजाओं के मन में जिज्ञासा थी कि भाग्य का लिखा कैसे बदल गया। महात्मा ने दोनों को शान्त करते हुए कहा, ‘अरे भई! भाग्य बदला थोड़े ही है। भाग्य तो अपनी जगह बिल्कुल सही है लेकिन तुम लोग जरूर बदल गये हो।’ जीतने वाले राजा की ओर देखते हुए महात्मा आगे कहने लगे, ‘अब देखो न, अपनी संभावित हार के बारे में सुनकर तुमने दिन-रात एक करके, सारी सुख-सुविधाएं छोड़कर, खाना-पीना-सोना तक भूलकर जबर्दस्त तैयारी की और खुद प्रत्येक बात का पूरा-पूरा ध्‍यान रखा। जबकि पहले वही तुम थे कि सेनापति के बल पर ही युद्ध जीतना चाह रहे थे।’
‘और तुम’ महात्मा बन्दी राजा से बोले ‘अभी युद्ध शुरू भी नहीं हुआ कि जीत का जश्न मनाने लगे। एक घोड़े का तो समय पर यान नहीं रख पाये तो भला युद्ध में इतनी बड़ी सेना को कैसे सही से संभाल पाते और वही हुआ जो होना था। भाग्य नहीं बदला लेकिन जिन व्यक्तियों के लिये वह भाग्य लिखा हुआ था उन्होंने अपना व्यक्तित्व ही बदल डाला तो बेचारा भाग्य भी क्या करता।’
यह कहानी भले ही सुनने में काल्पनिक लगे लेकिन आज यह प्राय: घर-घर में दुहारायी जा रही है। समस्या केवल इतनी ही है कि नकल सभी दूसरे राजा की करते हैं और अन्तत: हारते हैं। अरे, जरा सोच कर तो देखो कि भाग्य आखिर कहते किसे हैंॽ
पूर्व जन्मों में या पूर्व समय में हमने जो भी कर्म किये, उन्हीं सब का फल मिलकर तो भाग्य रूप में हमारे सामने आता है। भाग्य हमारे पूर्व कर्म संस्कारों का ही तो नाम है और इनके बारे में एकमात्र सच्चाई यही है कि वह बीत चुके हैं। अब उन्हें बदला नहीं जा सकता। लेकिन अपने वर्तमान कर्म तो हम चुन ही सकते हैं। यह समझना कोई मुश्किल नहीं कि भूत पर वर्तमान हमेशा ही भारी रहेगा क्योंकि भूत तो जैसे का तैसा रहेगा लेकिन वर्तमान को हम अपनी इच्छा और अपनी हिम्मत से अपने अनुसार ढाल सकते हैं।
हमारे पूर्व कर्म संस्कार जिन्हें हम भाग्य भी कह लेते हैं, मात्र परि​स्थितियों का निर्माण करते हैं। जैसे हमारे जन्म का देश-काल, घर-व्यापार, शरीर-स्वास्थ्य आदि हमारी इच्छा से नहीं मिलता लेकिन उन परिस्थितियों का हम कैसे मुकाबला करते हैं, वही हमारी नियति को निर्धारित करता है। कालिदास, बोपदेव, नेपोलियन आदि कितने ही नाम गिनाये जा सकते हैं जिन्होंने अपना भाग्य, भाग्य के सहारे छोड़कर धोखा नहीं खाया, वरन् कर्म के प्रबल वेग से सुनहरे अक्षरों में लिखवाया।
वस्तुत: भाग्य तो हम सभी का एक ही है, जिसे कोई बदल नहीं सकता और वह भाग्य है कि हम सभी ने परम पद की, पूर्णता की प्राप्ति करनी है। जो कर्मयोगी हैं, पूरी दृढ़ता, हिम्मत और उत्साह से हंसते-खेलते सहज ही वहां पहुंचने का यत्न करेंगे। दूसरी ओर जो आलसी और तमोगुणी हैं, वह बचने या टालने की कोशिश करेंगे। लेकिन कब तकॽ आखिर चलना तो उन्हें भी पड़ेगा क्योंकि सचमुच भाग्य को कोई नहीं बदल सकता। हम सभी ने संघर्ष के द्वारा अपनी चेतना का विकास करना ही है, चाहे या अनचाहे। परमात्मा ने मनुष्य को इसीलिये तो सोचने-समझने की शक्ति दी है ताकि वह अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर सही रास्ते का चुनाव कर सके और माया के चक्कर से निकल कर पूरी समझ के साथ पूर्णता के पथ पर आगे बढ़े। सुख तो स्वयं प्राप्ति में ही है, उधार या दान के द्वारा भोजन-धन आदि तो मिल सकता है लेकिन सुख और संतोष नहीं।। 

गौतम इंटर कालेज पिपरा रामधर देवरिया


 

गौतम इंटर कालेज पिपरा रामधर देवरिया उत्तर प्रदेश

 एक संस्थागत स्मृति-पत्र (Institutional Note / Tribute) 


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🏫 गौतम इंटर कॉलेज, पिपरा रामधर, देवरिया (उ.प्र.)

📖 परिचय

गौतम इंटर कॉलेज, देवरिया जिले का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान रहा है, जिसने शिक्षा, संस्कार और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया।


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👑 प्रमुख हस्तियाँ (संस्थान के स्तंभ)

1. स्वर्गीय राधेश्याम द्विवेदी जी –

प्रिंसिपल

अनुशासनप्रिय, दूरदर्शी और छात्रों को संस्कारित करने वाले प्रेरणादायी व्यक्तित्व।



2. विश्वनाथ मिश्र जी –

संस्थापक एवं व्यवस्थापक

विद्यालय की नींव और विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान।



3. जगदीश मिश्र जी –

उप-प्रधानाचार्य

शिक्षा प्रशासन में सहयोगी और संस्थान को मजबूती देने वाले।





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👨‍🏫 प्रमुख शिक्षक (प्रवक्ता)

श्री शिव अवतार पांडेय "शास्त्री जी" –
प्रवक्ता (संस्कृत), गहन विद्वान और वेद-शास्त्र के आचार्य।

सच्चिदानंद कुशवाहा जी –
प्रवक्ता (अंग्रेज़ी), आधुनिक शिक्षा और भाषा ज्ञान के प्रेरक।

वकील पांडेय जी –
प्रवक्ता (भूगोल), भूगोल विषय को सरल और रोचक बनाने वाले आदरणीय शिक्षक।

अन्य विषयों के प्रवक्ताओं और शिक्षकों ने भी इस संस्थान को गौरवपूर्ण पहचान दिलाई।



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🌿 विशेषताएँ

विद्यार्थियों को शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ नैतिक संस्कार देना।

ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का प्रसार कर कई पीढ़ियों को दिशा देना।

भोजपुरी और पूर्वांचली संस्कृति की पृष्ठभूमि में आधुनिक शिक्षा का संगम।



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🙏 यह सब व्यक्तित्व न केवल शिक्षण कार्य बल्कि छात्रों के जीवन निर्माण में सदैव याद किए जाएँगे।




मेरे पितामह स्वर्गीय श्री सीता राम तिवारी

 पितामह श्री सीता राम तिवारी जी की स्मृती जीवन का चित्रण है: --- ✍️ साहित्यिक-काव्यात्मक परिचय टैरिया की धरती का गौरव, सलेमपुर-देवरिया की पह...