दिनांक 06/05/2011,अक्षय तृतीया
बचपन से ही अक्षय तृतीया की प्रतीक्षा बड़े ही मनोयोग से किया करता था क्योंकि उसी दिन से परसुराम धाम सोहनाग का प्रशिद्ध मेला सुरु होता था . पहले तो यह मेला एक माह तक चलता था. कालांतर में इसका प्रभाव भी कम हो गया. उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में सलेमपुर तहसील के अंतर्गत एक प्राचीन प्रशिद्ध स्थान है परसुराम धाम सोहनाग. यहाँ एक तिजिया के मेला के नाम बहुत ही प्रसिद्द मेला लगता था. पुरे क्षेत्र के लोग पुरे साल की मुख्य खरीद दारी इसी मेले में करते थे. आज इस मेले का स्वरुप और प्रभाव बदल गया है.श्रद्धेय पवहारी जी महाराज के अतिरिक्त अनेकानेक साधू महात्मा इस अवसर पर आते थे. अब तो बहुत वर्षों से इस मेले को देखने का भी अवसर नहीं मिला.लोग बताते हैं ,अब वो बात नहीं रही.
अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इस तिथि को आखातीज के नाम से भी पुकारा जाता है।पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है कि इस दिन शुरू किए जाने वाले काम का अक्षय फल मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि आज के दिन जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिये अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान मांगना चाहिए।पौराणिक कहानियों के मुताबिक, इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई।
द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर यह बताया था कि आज के दिन जो भी रचनात्मक या सांसारिक कार्य करोगे, उसका पुण्य मिलेगा। कोई भी नया काम, नया घर और नया कारोबार शुरू करने से उसमें बरकत और ख्याति मिलेगी। माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन स्नान, ध्यान, जप तप करना, हवन करना, स्वाध्याय पितृ तर्पण करना और दान पुण्य करने से पुण्य मिलता है। देवताओं की पूजा करने को भी उन्होंने पुण्य बताया है। इसीलिए इस दिन कोई भी नया काम शुरू करना बहुत शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि किसी की शादी का मुहूर्त अगर नहीं निकल रहा हो तो उसकी शादी अक्षय तृतीया को बिना मुहूर्त देखे कि जा सकती है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, लेकिन वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।
भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को लिया था।ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था।
कहते हैं अक्षय तृतीया के दिन ऐसे विवाह भी मान्य होते हैं, जिनका मुहूर्त साल भर नहीं निकल पाता है। दूसरे शब्दों में ग्रहों की दशा के चलते अगर किसी व्यक्ति के विवाह का दिन नहीं निकल पा रहा है, तो अक्षय तृतीया के दिन बिना लग्न व मुहूर्त के विवाह होने से उसका दांपत्य जीवन सफल हो जाता है। यही कारण है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल आदि में आज भी अक्षय तृतीया के दिन हजारों की संख्या में विवाह होते हैं।
माना जाता है कि जिनके अटके हुए काम नहीं बन पाते हैं, व्रत उपवास करने के बावजूद जिनकी मनोकामना की पूर्ति नहीं हो पा रही हो और जिनके व्यापार में लगातार घाटा चल रहा हो तो ऐसे लोगों के काम की नई शुरुआत के लिए अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है।
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