महा शिव रात्रि .२.३.२०११
आज महाशिव रात्रि है.मेरे जीवन में शिव रात्रि का कुछ विशेष महत्त्व है. २८ जनवरी १९७६ को गोरखपुर से मेरी शादी की बारात लौटी थी. उस दिन भी शिवरात्रि थी. २० फरवरी १९८३ को मुझे पुणे में रहने के लिए फ्लैट मिल गया था . ३१६, विजयश्री अपार्टमेन्ट ,नारायण पेठ पुणे, उस दिन भी शिवरात्रि थी .हो भी क्यों न ? मेरा नामकरण भी तो बाबा जी ( हमारे पितामह स्वर्गिव श्री सीता राम तिवारी ) के रामेश्वरम तीर्थ यात्रा से जुड़ा हुआ है. उन्होंने ने ही यह नाम दिया था.
आज तक निम्न ज्योतिर्लिंगों का ही दर्शन प्राप्त हो सका है.
१. कशी विश्वनाथ.
२. सोमनाथ
३. भीमाशंकर
४. त्ययाम्ब्केश्वर
५.उज्जैन
६. ओंकारेश्वर
॥शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापं प्रणाशनम्। आचाण्डाल मनुष्याणं भुक्ति मुक्ति प्रदायकं॥
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। वैसे तो शिवरात्रि हर मास में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है। इस व्रत मे त्रयोदशी विद्धा (युक्त) चतुर्दशी तिथि ली जाती है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि में भगवान् शिव का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था और यह भी मान्यता है की श्री शिव की लिंग स्वरुप उत्त्पत्ति इसी तिथि पर हुई थी | प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। शिव का शाब्दिक अर्थ है "कल्याण"। शिव सर्वस्व शरणागत का कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर शिव की साधना व सिद्धि के सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव के विवाह की रात्रि के रूप में भी इस तिथि की मान्यता है जिसमे शिव अपने समस्त गण, प्रेतों व पिशाचों आदि से घिरे रहते हैं। शरीर पर चिता भस्म, कंठ में विषैले सर्पो का हार सुशोभित , कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। नंदी अर्थात बैल को वाहन स्वरुप में स्वीकार करने वाले शिव भक्तों का मंगल, कल्याण व हर प्रकार से कस्ट करने हेतु सदैव तत्पर रहते है व श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं। शास्त्रों के अनुसार एक बार माँ पार्वती ने भगवान श्री शिव से पूछा, 'ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन तिथि व विधान है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' तब स्वयं भगवान श्री शिव ने इस महान व्रत की महिमा का व्याखान दिया | गरूड़, स्कंद, अग्नि, शिव तथा पद्म पुराणों में महाशिवरात्रि का वर्णन मिलता है व इस पर्व की विशेषता,महत्ता दर्शाती कई सारी पौराणिक कथाये भी मिलती है। यद्यपि सर्वत्र एक ही प्रकार की कथा नहीं है, परंतु सभी कथाओं की रूपरेखा लगभग एक समान है। हिन्दू सनातन परम्परा में चार रात्रियो का विशेष उल्लेख मिलता है, दीप पर्व दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है, शिवरात्रि महारात्रि है, श्री कृष्ण जन्म अष्टमी मोहरात्रि है, और होली अहोरात्रि है | यह पर्व परम पावन उपलब्धि है जो जीव मात्र को प्राप्त होकर उसके परम भाग्यशाली होने का संकेत व अवसर प्रदान करता है। यह परम सिद्धिदायक उस महान स्वरूप की उपासना का क्षण है जिसके बारे में संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी ने त्रिलोकपति मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के मुखारविन्द से कहलवाया है-
'शिवद्रोही मम दास कहावा। सो नर मोहि सपनेहु नहिं भावा।'
किन्तु इसकी उत्कट गुरुता एवं महत्ता को शिवसागर में और ज्यादा विषद रूप में देखा जा सकता है-
'
धारयत्यखिलं दैवत्यं विष्णु विरंचि शक्तिसंयुतम्। जगदस्तित्वं यंत्रमंत्रं नमामि तंत्रात्मकं शिवम्।'
अर्थात् विविध शक्तियाँ, विष्णु एवं ब्रह्मा जिसके कारण देवी एवं देवता के रूप में विराजमान हैं, जिसके कारण जगत का अस्तित्व है, जो यंत्र हैं, मंत्र हैं। ऐसे तंत्र के रूप में विराजमान भगवान शिव को नमस्कार है।
ज्योतिषीय दृष्टि से चतुदर्शी (14) अपने आप में बड़ी ही महत्वपूर्ण है। इस तिथि के देवता भगवान शिव हैं, जिसका योग 1+4=5 हुआ अर्थात् पूर्णा तिथि बनती है, साथ ही कालपुरूष की कुण्डली में पाँचवाँ भाव प्रेम भक्ति का माना गया है। अर्थात् इस व्रत को जो भी प्रेम भक्ति के साथ करता है उसके सभी वांछित मनोरथ भगवान शिव की कृपा से पूर्ण होते हैं। ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया हैं।
ज्योतिषीय गणित के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी क्षीणस्थ अवस्था में पहुंच जाते हैं। जिस कारण बलहीन चंद्रमा सृष्टि को ऊर्जा देने में असमर्थ हो जाते हैं। चंद्रमा का सीधा संबंध मन से कहा गया है। अब मन: बलहीन होने पर भौतिक संताप प्राणी को घेर लेते हैं तथा विषाद की स्थिति उत्पन्न होती है। जिससे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का आश्रय लिया जाता है। महाशिवरात्रि शिव की परमप्रिय तिथि है। अत: प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश व पुन:स्थापन के बीच की कड़ी है। प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख। अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।
त्रिपथगामिनी गंगा जिनकी जटा में शरण एवं विश्राम पाती हैं, त्रिलोक (आकाश, पाताल एवं मृत्यु ) वासियों के त्रिकाल (भूत, भविष्य एवं वर्तमान) को जिनके त्रिनेत्र त्रिगुणात्मक (सतोगुणी, रजोगुणी एवं तमोगुणी) बनाते हैं, जिनके तीनों नेत्रों से उत्सर्जित होने वाली तीन अग्नि (जठराग्नि, बड़वाग्नि एवं दावाग्नि) जीव मात्र का शरीर पोषण करती हैं, जिनके त्रैराशिक तत्वों से जगत को त्रिरूप (आकार, प्रकार एवं विकार) प्राप्त होता है, जिनका त्रिविग्रह (शेषशायी विष्णु, शेषनागधारी शिव तथा शेषावतार रुद्र) त्रिलोक के त्रिताप (दैहिक, दैविक एवं भौतिक) को त्रिविध रूप (यंत्र, मंत्र एवं तंत्र) के द्वारा नष्ट करता है ऐसे त्रिवेद (ऋग्, साम तथा यजुः अथवा मतान्तर से भग-रेती, भगवान-लिंग तथा अर्द्धनारीश्वर) रूप भगवान शिव आज मधुमास पूर्वा प्रदोषपरा त्रयोदशी तिथि को प्रसन्न हो।' ऐसी मनोकामना से श्री शिव को पूजित करे |
दक्षिण भारत का प्रसिद्ध एवं परमादरणीय ग्रन्थ 'नटराजम्' अपने इन उपरोक्त वाक्यों में भगवान शिव का सम्पूर्ण आलोक प्रस्तुत कर देता है। उपरोक्त वाक्यों पर ध्यान देने से यह बात विल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि मधुमास अर्थात् चैत्र माह के पूर्व अर्थात् फाल्गुन मास की प्रदोषपरा अर्थात त्रयोदशी या शिवरात्रि को प्रपूजित भगवान शिव कुछ भी देना शेष नहीं रखते हैं, अर्थात इस तिथि पर हर प्रकार के वर प्राप्ति व इक्षा पूर्ति, वर सिद्धि,श्री शिव की कृपा से स्वत: ही होती है | महाशिवरात्रि पर्व तपस्या एवं व्रत प्रधान उत्सव है। यह उत्सव व्यक्त से हटकर अव्यक्त में लीन होने का दिन है। भोग से हटकर योग और विकारों से हटकर निर्विकार में गोता लगाकर अपने को डुबाने का उत्सव है। महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को शिव महिमा का वर्णन किया है। शिवरात्रि पर शिव लिंग का पूजन करके शुभ संकल्प विकसित करें अथवा शिव स्वभाव को जाग्रत करें।
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