होली के गीत/ भोजपुरी/ फगुआ गीत /
१.
धनि-धनि ए सिया रउरी भाग, राम वर पायो।
लिखि चिठिया नारद मुनि भेजे, विश्वामित्र पिठायो।
साजि बरात चले राजा दशरथ,
जनकपुरी चलि आयो, राम वर पायो।
वनविरदा से बांस मंगायो, आनन माड़ो छवायो।
कंचन कलस धरतऽ बेदिअन परऽ,
जहाँ मानिक दीप जराए, राम वर पाए।
भए व्याह देव सब हरषत, सखि सब मंगल गाए,
राजा दशरथ द्रव्य लुटाए, राम वर पाए।
धनि -धनि ए सिया रउरी भाग, राम वर पायो।
धनि-धनि ए सिया रउरी भाग, राम वर पायो।
लिखि चिठिया नारद मुनि भेजे, विश्वामित्र पिठायो।
साजि बरात चले राजा दशरथ,
जनकपुरी चलि आयो, राम वर पायो।
वनविरदा से बांस मंगायो, आनन माड़ो छवायो।
कंचन कलस धरतऽ बेदिअन परऽ,
जहाँ मानिक दीप जराए, राम वर पाए।
भए व्याह देव सब हरषत, सखि सब मंगल गाए,
राजा दशरथ द्रव्य लुटाए, राम वर पाए।
धनि -धनि ए सिया रउरी भाग, राम वर पायो।
२.
  बारहमासा
  शुभ कातिक सिर विचारी, तजो वनवारी।
  जेठ मास तन तप्त अंग भावे नहीं सारी, तजो वनवारी।
  बाढ़े विरह अषाढ़ देत अद्रा झंकारी, तजो वनवारी।
  सावन सेज भयावन लागतऽ,
  पिरतम बिनु बुन्द कटारी, तजो वनवारी।
  भादो गगन गंभीर पीर अति हृदय मंझारी,
  करि के क्वार करार सौत संग फंसे मुरारी, तजो वनवारी।
  कातिव रास रचे मनमोहन,
  द्विज पाव में पायल भारी, तजो वनवारी।
  अगहन अपित अनेक विकल वृषभानु दुलारी,
  पूस लगे तन जाड़ देत कुबजा को गारी।
  आवत माघ बसंत जनावत, झूमर चौतार झमारी, तजो वनवारी।
  फागुन उड़त गुलाब अर्गला कुमकुम जारी, 
  नहिं भावत बिनु कंत चैत विरहा जल जारी,
  दिन छुटकन वैसाख जनावत, ऐसे काम न करहु विहारी, तजो वनवारी। 
गांव की गोरी प्रियतम के होली में घर न आने पर कह उठती है -
फागुन मास नियरैलइलै हो रामा
सजन घर नाहीं
अमवां में आइल मन्जरियां
उड़ी-उड़ी रस भंवरा ले जाय
पी-पी करे कोइलरिया हो रामा
तन विरह अगिनी जलाय
सजन घर नाहीं।
ब्रज बाला लाल गुलाल में पग जाती हैं। रसखान जी गा उठते हैं:-
जाहू न कोऊ सखी जमुना जल रोके खड़े मग नंद को लाला।
नैन नचाई चलाई जितै रसखानि चलावत प्रेम को भाला।।
मैं जो गई हुती बैरन बाहर मेरी करी गति टूटि गौ माता।
होरी भई के हरी भए लाल कै लाल गुलाल पगी ब्रजबाला।।
गांव का रसिक भी गा उठता है:-
होरी खेले कन्हैया बिरज में-2
केकरा हाथे लाल रंग शोभे
केकरा हाथे पिचकारी
राधा के हाथे लाल रंग शोभे
कन्हैया हाथे पिचकारी।।
क्या पशु-पक्षी, मानव, पेड़-पौधे सभी में नव उल्लास का संचार पनप उठता है। गांव की नवयुवती का पति खेतों में काम करके थका हुआ आया है और सो गया है। वह उसे जगाती है होली के रंग में रंगने के लिए, किंतु वह जागता नहीं है तो वह गा उठती है-
उड़ी-उड़ी कागा झुलनियां पर बैठे
झुलनी का रसवा ले भागा
मारे सईयां अभागा न जागा
गांव की गोरी प्रियतम के होली में घर न आने पर कह उठती है -
फागुन मास नियरैलइलै हो रामा
सजन घर नाहीं
अमवां में आइल मन्जरियां
उड़ी-उड़ी रस भंवरा ले जाय
पी-पी करे कोइलरिया हो रामा
तन विरह अगिनी जलाय
सजन घर नाहीं।
ब्रज बाला लाल गुलाल में पग जाती हैं। रसखान जी गा उठते हैं:-
जाहू न कोऊ सखी जमुना जल रोके खड़े मग नंद को लाला।
नैन नचाई चलाई जितै रसखानि चलावत प्रेम को भाला।।
मैं जो गई हुती बैरन बाहर मेरी करी गति टूटि गौ माता।
होरी भई के हरी भए लाल कै लाल गुलाल पगी ब्रजबाला।।
गांव का रसिक भी गा उठता है:-
होरी खेले कन्हैया बिरज में-2
केकरा हाथे लाल रंग शोभे
केकरा हाथे पिचकारी
राधा के हाथे लाल रंग शोभे
कन्हैया हाथे पिचकारी।।
क्या पशु-पक्षी, मानव, पेड़-पौधे सभी में नव उल्लास का संचार पनप उठता है। गांव की नवयुवती का पति खेतों में काम करके थका हुआ आया है और सो गया है। वह उसे जगाती है होली के रंग में रंगने के लिए, किंतु वह जागता नहीं है तो वह गा उठती है-
उड़ी-उड़ी कागा झुलनियां पर बैठे
झुलनी का रसवा ले भागा
मारे सईयां अभागा न जागा

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