02 फ़रवरी, 2011

कुंडली मिलान


कुंडली मिलान 

मारे समाज में लडके लडकी की शादी के लिए उन दोनो की जन्म कुण्डलियो का मिलान (Kundali matching) करने का रिवाज है. इसमें मंगलीक दोष (Mars blemish), जन्म राशी (Birth sign) तथा नक्षत्र (Birth Nakshatra) के आधार पर 36 गुणो का मिलान किया जाता है. 18 से अधिक गुण मिलने पर दोनो की कुण्डली विवाह के लिए उपयुक्त मान ली जाती है. तार्किक दृष्टिकोण से यहाँ पर यह प्रश्न उठता है कि प्राचीन समय से चली रही कुण्डली मिलान की यह विधि क्या आज भी प्रासांगिक है. यह एक महत्वपूर्ण एंव विचारणीय प्रश्न है, क्योंकि लेखक ने अपने जीवन में ऎसी बहुत सी कुण्डलियो की विवेचना की है जिसमें 18 से कम गुण मिलने पर भी लडके एवं लड्की दोनो को सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करते देखा है जबकि 25 से अधिक गुणो का मिलान होने पर भी दोनो के सम्बन्धो में तनाव देखा गया है. इस दृष्टि से प्राचीन ज्योतिष का यह सिद्धान्त/ नियम अप्रसांगिक हो जाता है. कमी कहाँ है, हमें इसकी संजीदगी से खोज करनी चाहिये.
कुण्डली मिलान (Kundali Matching) करने में हमारा सम्पूर्ण ध्यान नक्षत्र पर ही केन्द्रित होता है तथा जन्म लग्न की पूर्ण रुप से अवहेलना होती है. वर्ण, योनि, नाडी इत्यादि का आधार नक्षत्र ही होता है. इस सबमें भी एक बहुत रोचक कल्पित बात सामने आती है कि वैश्य जाति वालो की कुण्डली मिलान में यह एक दोष अग्राह्य है तो ब्राह्मण जाति वालो की कुण्डली में यह दूसरा दोष (नाडी) (Nadi Dosha) अग्राह्य है. यहाँ पर यह प्रश्न सामने आता है कि क्या दो इन्सानो की जन्मकुण्डली का मिलान भी जाति व्यवस्था के आधार पर होगा? इस प्रकार की मनगढ्न्त बाते ही ज्योतिष शास्त्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है. ग्रह सभी मनुष्यो पर एक सा प्रभाव रखते है. जाति, सम्प्रदाय , क्षेत्र, समाज, देश स्थिति एंव काल के अनुसार भेदभाव नही करते, ही ज्योतिष के किसी ग्रन्थ में एसा लिखा है कि ये कुण्डली ब्राह्मण है, ये वैश्य की या फिर यह कुण्डली शूद्र की है. ग्रह गुणात्मक होते हैं तथा उपरोक्त वर्णित दोषो से रहित होते हैं.इन सब बातों को जानकर अब यह प्रश्न उठता है कि क्या हमें इन घिसी-पिटी बातों का ही अनुसरण करना चाहिये या फिर इसमें तथ्यपुर्ण क्रान्तिकारी परिवर्तन करने चाहिये. मेरे विचार से जन्मकुण्डलियो (Janm Kundali Matching) का मिलान नक्षत्रो की बजाए ग्रहो की स्थिति के आधार पर करना चाहिये क्योकि नक्षत्र तो एक छोटी सी ईकाई है तथा मनुष्य पर सबसे अधिक प्रभाव नवग्रहो (Nine planets) का पड्ता है. यहाँ पर मंगल का उदाहरण देना सबसे अधिक उपयुक्त रहेगा. कुण्डली के 1,4,7,8,12 भाव में मंगल होने से वह मंगलीक दोष से युक्त हो जाती है. मंगल को साहस, शक्ति, उर्जा, जमीन-जायदाद, छोटे भाई इत्यादि का कारक माना जाता है, उपरोक्त पाँच भावों में से तीन केन्द्र स्थान कहलाते हैं तथा फलित ज्योतिष के अनुसार सौम्य / शुभग्रह (चन्द्र, बुद्य, गुरु शुक्र) केन्द्र स्थान में होने से दोषकारक होते है जबकि क्रुर ग्रह (सुर्य, मंगल, शनि राहू) केन्द्र स्थान में होने से शुभफलदायी होते है. इस तरह दो प्रकार की विरोधात्मक बाते सामने आती है, मंगल ग्रह के कमजोर होने से क्या कुण्डली मिलान उत्तम रहता है. जबकि शनि ग्रह की सप्तम भाव पर दृष्टि विवाह में देरी या दो विवाह का योग बनाती है, परन्तु कुण्डली मिलान में इसका कही भी उल्लेख नही है. अतः हम सभी ज्योतिर्वेदो का कर्तव्य बनता है कि इस सब पर विचार करके एक तथ्यपूर्ण फलादेश बनाना चाहिये ताकि मानव जाति परमात्मा के इस अनुपम उपहार का सही अर्थो में अधिक से अधिक लाभ उठा सके. कम्प्यूटर में लड़के और लड़की का जन्म दिनांक, जन्म समय, जन्म स्थान फीड किया और झट से गुण संख्या देखी। यदि गुण अच्छे हैं और दोनों मंगली नहीं हैं तो हो गया कुण्डली मिलान।
यह सम्पूर्ण कुण्डली मिलान नहीं है। मात्र गुण मिलान से ही कुण्डली नहीं मिल जाती है। यदि आप गुण मिलान ही कुण्डली मिलान मानते हैं तो आप बहुत बड़ी भूल करते हैं और बाद में जब समस्याएं आती हैं तो कुण्डली को दोष देते हैं।
कुण्डली मिलान में गुण मिलान तो एक सोपान्‌ हैं। इसमें कई सोपान चढ़ने के बाद कुण्डली मिलती है।
गुण मिलान करें और मंगली मिलान करें।
आजकल गुण मिलान के पीछे का रहस्य यह है कि आठ प्रकार के गुण होते हैं जिनके कुल 36अंक होते हैं। ये इस प्रकार हैं-
 
  • १.. वर्ण-इसका एक अंक होता है। दोनों का वर्ण समान होना चाहिए। वर्ण न मिले तो पारस्परिक वैचारिक मतभेद रहने के कारण परस्पर दूरी रहती है, सन्तान होने में बाधाएं या परेशानियां आती हैं एवं कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
  • 2. वश्य-इसके दो अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो जिद्द, क्रोध एवं आक्रामकता रहती है और ये तीनों पारिवारिक जीवन के लिए अच्छे नहीं हैं। इससे परस्पर सांमजस्य नहीं हो पाता है और गृहक्लेश रहता है। दोनों अपने अहं को ऊपर रखना चाहते हैं क्योंकि एक दूसरे पर अपना प्रभाव चाहता है जिससे शासन कर सके। अहं की लड़ाई गृहक्लेश ही लाती है।
  • 3. तारा-इसके तीन अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो दोनों को धन, सन्तान एवं परस्पर तालमेल नहीं रहता है। दुर्भाग्य पीछा करता है।
  • 4. योनि-इसके चार अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो मानसिक स्तर अनुकूल न होकर प्रतिकूल रहता है जिससे परेशानियां अधिक और चाहकर भी सुख पास नहीं आता है।
  • 5. ग्रहमैत्री-इसके पांच अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो परस्पर तालमेल रहता ही नहीं है।
  • 6. गण-इसके छह अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो भी गृहस्थ जीवन में बाधाओं एवं प्रतिकूलता का सामना करना पड़ता है।
  • 7. भकुट-इसके सात अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो परस्पर प्रेमभाव नहीं रहता है, इसलिए दोनों एकदूजे की आवश्यक देखभाल नहीं करते हैं।
  • 8. नाड़ी-इसके आठ अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। सन्तान होने में विलम्ब होता है या अनेक बाधाएं आती हैं।
गुण 36 में से 18 औसत माने गए हैं। ऐसा हो तो सुख, सन्तान, धन और स्थिरता सामान्य रहती है। जितने गुण अधिक होते जाते हैं, मिलान उतना अच्छा होता जाता है।
ऐसा नहीं है कि गुण मिल गए तो सबकुछ अच्छा ही होगा। यह जान लें कि गुणमिलान के अलावा दोनों की कुण्डली का विश्लेषण तो करना ही होगा। कुण्डली का विश्लेषण करके यह देखना चाहिए कि-
  • 1. आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी, इसके कारण पारिवारिक जीवन में परेशानी तो नहीं आएगी।
  • 2. शरीर पर भी दृष्टि डालकर देखें कि कोई बड़ा अरिष्ट, दुर्घटना या रोग तो नहीं होगा।
  • 3. तलाक एवं वैधव्य या विधुर योग का विश्लेषण करें।
  • 4. चरित्र दोष के कारण पर पुरुष या पर स्त्री के प्रति आकर्षण तो नहीं होगा जिससे गृहक्लेश या अलगाव की नौबत आए।
  • 5. विवाह के बाद सन्तान होनी चाहिए, सन्तान संबंधी विचार करके देखें कि सन्तान सुख है या नहीं।
  • 6. ईगो या अहम्‌ के कारण परस्पर वैचारिक मतभेद या क्लेश तो नहीं होगा।
ध्यान रखें कि गुण अधिक मिल जाने के बाद भी यदि उक्त पांचों बातों में से कोई भी बात नकारात्मक है तो पारिवारिक क्लेश अवश्य होगा। कुण्डली मिलान करते समय उक्त विचार कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्यक्ष मिलान छानबीन या देखकर भी यह सब विचारना चाहिए कि -
  • 1. दोनों के कुल, संस्कार, सदाचार व सामाजिक प्रतिष्ठा का ध्यान देना चाहिए।
  • 2. वर कन्या के स्वभाव को भी ध्यान में रखना चाहिए कि उनके स्वभाव में सामंजस्य हो सकता है या नहीं।
  • 3. आर्थिक स्थिति, रोजगार आदि।
  • 4. शैक्षिक योग्यता।
  • 5. शारीरिक सुन्दरता, व्यक्तित्व, सबलता आदि।
  • 6. आयु का सामंजस्य भी ध्यान में रखें। दोनों के आयु में बहुत अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए।
लोग आयु बढ़ जाने पर कम करके नकली या डुप्लीकेट कुण्डली बनवा लेते हैं, इससे मिलान करना तो निरर्थक ही है।
कुछ लोग जन्मपत्रियां होते हुए भी नाम राशि से ही कुण्डली मिलान के रूप में मात्र गुण मिला लेते हैं जोकि ठीक नहीं है। क्योंकि गुणमिलान सुखद् गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक नहीं है।
कुण्डली मिलान के अलावा विवाह के लिए परिणय बंधन(फेरों का समय) भी अवश्य निकालना चाहिए। फेरों का समय भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि इस समय की लग्न कुण्डली मजबूत है तो पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाने में अधिक सहयोग मिलता है। वैसे भी कुण्डली मिलान के अलावा भी सुखद् गृहस्थ जीवन के लिए आपसी समझ, एक दूजे के लिए त्याग भावना, बुर्जुगों का मार्गदर्शन और मधुरभाषी सहित व्यवहारकुशल होना अति आवश्यक है।
मूलतः एक दृष्टि में श्रेष्ठ पारिवारिक जीवन के लिए कुल, स्वास्थ्य, आयु, आर्थिक स्थिति के अलावा कुण्डली का समम्यक विश्लेषण भी आवश्यक है।

जब लड़के व लड्की की  कुण्डली मिलायी जाती है तो यह देखा जाता है कि कितने गुण मिले। आठ प्रकार के गुण होते हैं इनसे कुल 36 गुण मिलते हैं जिसमें से 18 से अधिक गुण मिलने पर यह आशा की जाती है कि वर-वधू का जीवन प्रसन्तामयी एवं प्रेमपूर्ण रहेगा। इन आठ गुणों में से सर्वाधिक अंक नाड़ी के 8 होते हैं। इसके बाद सर्वाधिक अंक भकूट के 7 होते हैं। मूलतः भकूट से तात्पर्य वर एवं वधू की राशियों के अन्तर से है। यह 6 प्रकार का होता है-1. प्रथम-सप्तम 2. द्वितीय-द्वादश 3. तृतीय-एकादश 4. चतुर्थ-दशम 5. पंचम-नवम 6. छह-आठ।
ज्योतिष के अनुसार निम्न भकूट अशुभ हैं-द्विर्द्वादश, नवपंचम एवं षडष्टक।
तीन भकूट शुभ हैं-प्रथम-सप्तम, तृतीय-एकादश एवं चतुर्थ-दशम। इनके रहने पर भकूट दोष माना जाता है।
भकूट जानने के लिए वर की राशि से कन्या की राशि तक तथा कन्या की राशि से वर की राशि तक गणना करनी चाहिए। यदि दोनों की राशि आपस में एक दूसरे से द्वितीय एवं द्वादश भाव में पड़ती हो तो द्विर्द्वादश भकूट होता है। वर-कन्या की राशि परस्पर पांचवी व नौवीं पड़ती है तो नव-पंचम भकूट होता है, इस क्रम में यदि वर-कन्या की राशियां परस्पर छठे एवं आठवें स्थान पर पड़ती हों तो षडष्टक भकूट बनता है। 
नक्षत्र मेलापक में द्विर्द्वादश, नव-पंचम एवं षडष्टक ये तीनों भकूट अशुुभ माने गए हैं। द्विर्द्वादश को अशुभ इसलिए कहा गया है क्योकि द्सरा भाव धन का होता है और बारहवां भाव व्यय का होता है, इस स्थिति के होने पर यदि विवाह किया जाता है तो आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।
नवपंचम भकूट को इसलिए अशुुभ कहा गया है क्योंकि जब राशियां परस्पर पांचवे तथा नौवें भाव में होती हैं तो धार्मिक भावना, तप-त्याग, दार्शनिक दृष्टि और अहंकार की भावना जागृत होती है जो पारिवारिक जीवन में विरक्ति लाती है और इससे संतान भाव प्रभावित होता है।  
षडष्टक भकूट को महादोष माना गया है क्योंकि कुण्डली में छठा एवं आठवां भाव रोग व मृत्यु का माना जाता है। इस स्थिति के होने पर यदि विवाह होता है तो पारिवारिक जीवन में मतभेद, विवाद एवं कलह ही स्थिति बनी रहती है जिसके फलस्वरूप अलगाव, हत्या एवं आत्महत्या की घटनाएं घटित होती हैं। मेलापक के अनुसार षडाष्टक दोष हो तो विवाह नहीं करना चाहिए।
शेष तीन भकूट-प्रथम-सप्तम, तृतीय-एकादश तथा चतुर्थ-दशम शुभ होते हैं।  शुभ भकूट का फल अधोलिखित है-
मेलापक में राशि यदि प्रथम-सप्तम हो तो विवाहोपरान्त दोनों का जीवन सुखमय होता है और उन्हे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। 
वर कन्या का परस्पर तृतीय-एकादश भकूट हो तो उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रहने के कारण परिवार में समृद्धि रहती है। 
जब वर कन्या का परस्पर चतुर्थ -दशम भकूट हो तो विवाहोपरान्त दोनों के मध्य परस्पर आकर्षण एवं प्रेम बना रहता है।
कुण्डली मिलान में जब अधोलिखित स्थितियां बनती हों तो भकूट दोष नहीं रहता है या भंग हो जाता है-
1. यदि वरवधू दोनों के राशि स्वामी परस्पर मित्र हों।
2. यदि दोनों के राशि स्वामी एक हों।
3. यदि दोनों के नवांश स्वामी परस्पर मित्र हों।
4. यदि दोनों के नवांश स्वामी एक हो।
कुण्डली मिलान में सुखद् गृहस्थ जीवन के लिए नाड़ी दोष के बाद भकूट विचार अवश्य विचार करना चाहिए। आठ गुणों में से ये दोनों गुण अधिक महत्वपूर्ण हैं।

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