कुंडली मिलान
हमारे समाज में लडके व लडकी की शादी के लिए उन दोनो की जन्म कुण्डलियो का मिलान (Kundali matching) करने का रिवाज है. इसमें मंगलीक दोष (Mars blemish), जन्म राशी (Birth sign) तथा नक्षत्र (Birth Nakshatra) के आधार पर 36 गुणो का मिलान किया जाता है. 18 से अधिक गुण मिलने पर दोनो की कुण्डली विवाह के लिए उपयुक्त मान ली जाती है. तार्किक दृष्टिकोण से यहाँ पर यह प्रश्न उठता है कि प्राचीन समय से चली आ रही कुण्डली मिलान की यह विधि क्या आज भी प्रासांगिक है. यह एक महत्वपूर्ण एंव विचारणीय प्रश्न है, क्योंकि लेखक ने अपने जीवन में ऎसी बहुत सी कुण्डलियो की विवेचना की है जिसमें 18 से कम गुण मिलने पर भी लडके एवं लड्की दोनो को सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करते देखा है जबकि 25 से अधिक गुणो का मिलान होने पर भी दोनो के सम्बन्धो में तनाव देखा गया है. इस दृष्टि से प्राचीन ज्योतिष का यह सिद्धान्त/ नियम अप्रसांगिक हो जाता है. कमी कहाँ है, हमें इसकी संजीदगी से खोज करनी चाहिये.
कुण्डली मिलान (Kundali Matching) करने में हमारा सम्पूर्ण ध्यान नक्षत्र पर ही केन्द्रित होता है तथा जन्म लग्न की पूर्ण रुप से अवहेलना होती है. वर्ण, योनि, नाडी इत्यादि का आधार नक्षत्र ही होता है. इस सबमें भी एक बहुत रोचक कल्पित बात सामने आती है कि वैश्य जाति वालो की कुण्डली मिलान में यह एक दोष अग्राह्य है तो ब्राह्मण जाति वालो की कुण्डली में यह दूसरा दोष (नाडी) (Nadi Dosha) अग्राह्य है. यहाँ पर यह प्रश्न सामने आता है कि क्या दो इन्सानो की जन्मकुण्डली का मिलान भी जाति व्यवस्था के आधार पर होगा? इस प्रकार की मनगढ्न्त बाते ही ज्योतिष शास्त्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है. ग्रह सभी मनुष्यो पर एक सा प्रभाव रखते है. जाति, सम्प्रदाय , क्षेत्र, समाज, देश स्थिति एंव काल के अनुसार भेदभाव नही करते, न ही ज्योतिष के किसी ग्रन्थ में एसा लिखा है कि ये कुण्डली ब्राह्मण है, ये वैश्य की या फिर यह कुण्डली शूद्र की है. ग्रह गुणात्मक होते हैं तथा उपरोक्त वर्णित दोषो से रहित होते हैं.इन सब बातों को जानकर अब यह प्रश्न उठता है कि क्या हमें इन घिसी-पिटी बातों का ही अनुसरण करना चाहिये या फिर इसमें तथ्यपुर्ण क्रान्तिकारी परिवर्तन करने चाहिये. मेरे विचार से जन्मकुण्डलियो (Janm Kundali Matching) का मिलान नक्षत्रो की बजाए ग्रहो की स्थिति के आधार पर करना चाहिये क्योकि नक्षत्र तो एक छोटी सी ईकाई है तथा मनुष्य पर सबसे अधिक प्रभाव नवग्रहो (Nine planets) का पड्ता है. यहाँ पर मंगल का उदाहरण देना सबसे अधिक उपयुक्त रहेगा. कुण्डली के 1,4,7,8,12 भाव में मंगल होने से वह मंगलीक दोष से युक्त हो जाती है. मंगल को साहस, शक्ति, उर्जा, जमीन-जायदाद, छोटे भाई इत्यादि का कारक माना जाता है, उपरोक्त पाँच भावों में से तीन केन्द्र स्थान कहलाते हैं तथा फलित ज्योतिष के अनुसार सौम्य / शुभग्रह (चन्द्र, बुद्य, गुरु व शुक्र) केन्द्र स्थान में होने से दोषकारक होते है जबकि क्रुर ग्रह (सुर्य, मंगल, शनि व राहू) केन्द्र स्थान में होने से शुभफलदायी होते है. इस तरह दो प्रकार की विरोधात्मक बाते सामने आती है, मंगल ग्रह के कमजोर होने से क्या कुण्डली मिलान उत्तम रहता है. जबकि शनि ग्रह की सप्तम भाव पर दृष्टि विवाह में देरी या दो विवाह का योग बनाती है, परन्तु कुण्डली मिलान में इसका कही भी उल्लेख नही है. अतः हम सभी ज्योतिर्वेदो का कर्तव्य बनता है कि इस सब पर विचार करके एक तथ्यपूर्ण फलादेश बनाना चाहिये ताकि मानव जाति परमात्मा के इस अनुपम उपहार का सही अर्थो में अधिक से अधिक लाभ उठा सके. कम्प्यूटर में लड़के और लड़की का जन्म दिनांक, जन्म समय, जन्म स्थान फीड किया और झट से गुण संख्या देखी। यदि गुण अच्छे हैं और दोनों मंगली नहीं हैं तो हो गया कुण्डली मिलान।
यह सम्पूर्ण कुण्डली मिलान नहीं है। मात्र गुण मिलान से ही कुण्डली नहीं मिल जाती है। यदि आप गुण मिलान ही कुण्डली मिलान मानते हैं तो आप बहुत बड़ी भूल करते हैं और बाद में जब समस्याएं आती हैं तो कुण्डली को दोष देते हैं।
कुण्डली मिलान में गुण मिलान तो एक सोपान् हैं। इसमें कई सोपान चढ़ने के बाद कुण्डली मिलती है।
गुण मिलान करें और मंगली मिलान करें।
आजकल गुण मिलान के पीछे का रहस्य यह है कि आठ प्रकार के गुण होते हैं जिनके कुल 36अंक होते हैं। ये इस प्रकार हैं-
- १.. वर्ण-इसका एक अंक होता है। दोनों का वर्ण समान होना चाहिए। वर्ण न मिले तो पारस्परिक वैचारिक मतभेद रहने के कारण परस्पर दूरी रहती है, सन्तान होने में बाधाएं या परेशानियां आती हैं एवं कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
- 2. वश्य-इसके दो अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो जिद्द, क्रोध एवं आक्रामकता रहती है और ये तीनों पारिवारिक जीवन के लिए अच्छे नहीं हैं। इससे परस्पर सांमजस्य नहीं हो पाता है और गृहक्लेश रहता है। दोनों अपने अहं को ऊपर रखना चाहते हैं क्योंकि एक दूसरे पर अपना प्रभाव चाहता है जिससे शासन कर सके। अहं की लड़ाई गृहक्लेश ही लाती है।
- 3. तारा-इसके तीन अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो दोनों को धन, सन्तान एवं परस्पर तालमेल नहीं रहता है। दुर्भाग्य पीछा करता है।
- 4. योनि-इसके चार अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो मानसिक स्तर अनुकूल न होकर प्रतिकूल रहता है जिससे परेशानियां अधिक और चाहकर भी सुख पास नहीं आता है।
- 5. ग्रहमैत्री-इसके पांच अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो परस्पर तालमेल रहता ही नहीं है।
- 6. गण-इसके छह अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो भी गृहस्थ जीवन में बाधाओं एवं प्रतिकूलता का सामना करना पड़ता है।
- 7. भकुट-इसके सात अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो परस्पर प्रेमभाव नहीं रहता है, इसलिए दोनों एकदूजे की आवश्यक देखभाल नहीं करते हैं।
- 8. नाड़ी-इसके आठ अंक होते हैं। यदि ये न मिले तो स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। सन्तान होने में विलम्ब होता है या अनेक बाधाएं आती हैं।
ऐसा नहीं है कि गुण मिल गए तो सबकुछ अच्छा ही होगा। यह जान लें कि गुणमिलान के अलावा दोनों की कुण्डली का विश्लेषण तो करना ही होगा। कुण्डली का विश्लेषण करके यह देखना चाहिए कि-
- 1. आर्थिक स्थिति कैसी रहेगी, इसके कारण पारिवारिक जीवन में परेशानी तो नहीं आएगी।
- 2. शरीर पर भी दृष्टि डालकर देखें कि कोई बड़ा अरिष्ट, दुर्घटना या रोग तो नहीं होगा।
- 3. तलाक एवं वैधव्य या विधुर योग का विश्लेषण करें।
- 4. चरित्र दोष के कारण पर पुरुष या पर स्त्री के प्रति आकर्षण तो नहीं होगा जिससे गृहक्लेश या अलगाव की नौबत आए।
- 5. विवाह के बाद सन्तान होनी चाहिए, सन्तान संबंधी विचार करके देखें कि सन्तान सुख है या नहीं।
- 6. ईगो या अहम् के कारण परस्पर वैचारिक मतभेद या क्लेश तो नहीं होगा।
- 1. दोनों के कुल, संस्कार, सदाचार व सामाजिक प्रतिष्ठा का ध्यान देना चाहिए।
- 2. वर कन्या के स्वभाव को भी ध्यान में रखना चाहिए कि उनके स्वभाव में सामंजस्य हो सकता है या नहीं।
- 3. आर्थिक स्थिति, रोजगार आदि।
- 4. शैक्षिक योग्यता।
- 5. शारीरिक सुन्दरता, व्यक्तित्व, सबलता आदि।
- 6. आयु का सामंजस्य भी ध्यान में रखें। दोनों के आयु में बहुत अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए।
कुछ लोग जन्मपत्रियां होते हुए भी नाम राशि से ही कुण्डली मिलान के रूप में मात्र गुण मिला लेते हैं जोकि ठीक नहीं है। क्योंकि गुणमिलान सुखद् गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक नहीं है।
कुण्डली मिलान के अलावा विवाह के लिए परिणय बंधन(फेरों का समय) भी अवश्य निकालना चाहिए। फेरों का समय भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यदि इस समय की लग्न कुण्डली मजबूत है तो पारिवारिक जीवन को सुखमय बनाने में अधिक सहयोग मिलता है। वैसे भी कुण्डली मिलान के अलावा भी सुखद् गृहस्थ जीवन के लिए आपसी समझ, एक दूजे के लिए त्याग भावना, बुर्जुगों का मार्गदर्शन और मधुरभाषी सहित व्यवहारकुशल होना अति आवश्यक है।
मूलतः एक दृष्टि में श्रेष्ठ पारिवारिक जीवन के लिए कुल, स्वास्थ्य, आयु, आर्थिक स्थिति के अलावा कुण्डली का समम्यक विश्लेषण भी आवश्यक है।
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