05 अप्रैल, 2016

किसानों की दुखद कहानी निल गायों का उत्पात





किसानों की दुखद कहानी निल गायों का उत्पात

अब खेती करना निल गायों के कारन बहुत कठिन हो जा रहा है . किसान खेत की तैयारी करता है , उत्तम खाद बीज  का प्रवन्ध करता है . और निल गायों के आतंक से उसकी फसल बर्बाद हो जाती है . कोई चारा नहीं है . शिवाय सर धुन कर पछताने के. कर भी क्या कर सकता है --इसके नाम में जो गाय शब्द जुड़ गया है लोग इसे  उसी दृस्टि से देखते है .

वैसे  इसका सम्बन्ध हिरन प्रजाति से है . पहले ये जंगलों में छिपकर रहते थे लेकिन जैसे जैसे   जनसँख्या ज्यादे होती गयी , खेती की जमींन  कम  पड़ने लगी . मजबूरन किसान जंगलों को काट कर उसे खेती योग्य जमींन में परिवर्तित करता गया . नीलगाय जो पहले मनुष्य और आबादी को देखकर भागते थे . अब झुण्ड बनाकर  किसानों के खेतों की तरफ रुख कर लेते हैं और खेत / खेती चौपट कर देते हैं .

नीलगाय चूंकि जंगली जानवर है, इसलिए इनकी दौड़ने की रफ्तार भी 45 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है। ऐसे में इन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल काम होता है। नीलगाय हिरण की प्रजाति का होता है। चूंकि यह गाय की तरह दिखता है और इसका रंग हल्का नीला होता है, इसलिए इसका नाम नीलगाय पड़ गया है। चूंकि हिन्दू संस्कृति में गाय को मारना पाप माना जाता है, इसलिए ग्रामीण भी नीलगाय का शिकार नहीं करते है। जंगली प्राणी होने के कारण नीलगाय काफी गुस्सैल और हिंसक होती हैं। अक्सर जंगल में भी वह मांसाहारी जानवरों से अपनी जान बचाने के लिए मुकाबला करती हैं। नीलगाय के सींग छोटे पर बहुत पैने होते है। ऐसे में जब ग्रामीण उन्हें भगाने का प्रयास करते हैं, तो गायों के पलटकर हमला करने का भय हमेशा बना रहता है।


नीलगायों का अगर गांवों में आतंक है, तो वह जिला प्रशासन से मदद ले सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि इसमें मुआवजा मिलना चाहिए, तो किसानों को मुआवजा देने का अधिकार भी जिला प्रशासन के पास में ही है।



नीलगाय अगर किसानों की फसल चौपट कर रही हैं, तो  एसडीएम को मौके पर जाकर जाँच करनी होती है  और अगर संभव हुआ तो ,अगर फसल को नुकसान अधिक हुआ है, तो  किसानों को मुआवजा  भी कभी कभार मिल जाता है लेकिन सामान्यतया यह  कम ही संभव हो पाता है .



जंगलों में पहले बाघ, तेंदुए, लकड़बग्घे आदि मांसाहारी जानवर रहते थे, जो नीलगायों को अपना शिकार बनाकर इनकी संख्या को काबू में रखते थे, लेकिन मांसाहारी जानवरों की तादाद कम होने से नीलगायों का कोई भी प्राकृतिक शिकारी नहीं रहा। इसके कारण इनकी तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरी ओर जंगल भी कटाई के कारण सिमट कर कम होते जा रहे हैं, ऐसे में जंगलों में नीलगाय के लिए पर्याप्त खाना नहीं होने के कारण वह अक्सर जंगल से निकलकर गांवों की ओर रूख करती हैं। अबतो बहुत सामान्य बात हो गयी है इनसे किसान को बहुत नुकसान हो रहा है ...

इनकी प्रजनन छमता अधिक होने के कारण इनकी संख्या में भयानक वृद्धि होती जारही है . न तो किसान के पास न तो सरकार   के प्रशासन के पास और न किसान के इसका कोई उचित समाधान दिख नहीं रहा है अगर आपको कुछ समाधान ज्ञात हो तो अवश्य व्यक्त करें , बड़ी कृपा होगी. 

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