17 जुलाई, 2010

धुप- छावं



 धुप- छावं

 जवन बतीया आल भोरे में ,
दुपहरिया  होत  हेरा जाला.
संझवा रतिया में बदल गईल ,
अचके में सवेरा आ जाला.
परिवर्तन छन में होला ,
बचपन के बाद जवानी बा,
बुढ़ापा में जब कदम बढल ,
तब दिन पर दिन निगरानी बा.
केहू भोर देखल, केहू सांझ देखल,
कहीं अधि रतीया दुपहरिया बा.
बा समय एक जाने अनेक,
एईसन  ई खोट नजरिया बा.
रतिया देखलीं की डूबल बा ,
दिनवा देखलीं की उगल बा,
दिनवा रतिया जब एक भएल,
ना उगल बा डूबल बा.
सूरज सदा अकासे बा,
देखेवाला में अंतर बा.
श्रृष्टि के चक्कर में मालूम ना ,
कैसन जादू  व  मंतर बा.
वा तल हजार देखा निहार,
बस एके रूप समैल बा,
जब मनवा कपटी लोभी बा ,
सशंकित बा घबराइल बा .
ना नीमन बा ना बाऊर बा,
ना भूषि बा ना चाऊर बा,
अखिया पर पर्दा लागल बा ,
जबतक खेलिया ई राऊर बा. -अवधेश कुमार तिवारी




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