27 जून, 2025
15 जून, 2024
बाबा मुन्जेश्वरनाथ,'भौवापार जिला गोरखपुर
बाबा मुन्जेश्वरनाथ,
बाबा मुन्जेश्वरनाथ की नगरी और कभी सतासी राजवंश की राजधानी रही . 'भौवापार जिला गोरखपुर . बताया जाता है कि बाबा मुन्जेश्वरनाथ ने अपने ऊपर आज तक किसी भी प्रकार की छत को नहीं पड़ने दिया। वे पीपल और बरगद के पेड़ की छाया में विराजमान हैं। वैसे तो यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि के दिन यहां काफी भीड़ होती है।
सतासी राजवंश, राजभर राजवंश, स्वतंत्रता के पहले और बाद दिए गए भौवापार के लोगों के योगदान
अविस्मरणीय हैं .
पूरी होती है बाबा के धाम में भक्तों की मुराद
मंदिर के पुजारी चंद्रभान गिरी के अनुसार भौवापार के बाबा मुन्जेश्वरनाथ भक्तों द्वारा सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद को पूरा करते हैं। उन्होंने बताया, ''सतासी नरेश राजा मुंज सिंह सहित क्षेत्र के कई अन्य लोगों ने शिवलिंग (गर्भगृह) स्थल पर बाबा को छत के रूप में मंदिर का स्वरुप देने की कई बार कोशिश की। लेकिन बाबा के सिर पर कोई छत टिक नहीं सकी। जब-जब मंदिर बनाया जाता, तब-तब पूरा ढांचा ध्वस्त हो जाता है।''
इस कारण नाम पड़ा मुन्जेश्वरनाथ
भौवापार के ही रहने वाले युवा इतिहासविद डॉ. दानपाल सिंह ने बताया, ''किवदंतियों के अनुसार एक बार मजदूर गर्भ गृह स्थल पर मौजूद मूज (सरपत) को कुदाल से हटा रहे थे। इस बीच एक मजदूर का फावड़ा मूज की जड़ के नीचे पड़े एक पत्थर से टकराया और पत्थर का ऊपरी हिस्सा फावड़े की वार से टूट गया। मजदूर शिवलिंग के आकार के इस पत्थर को वहां से हटाना चाह रहा था, तभी पत्थर में मजदूर को भगवान शिव की छवि दिखाई दी और टूटे स्थल से दूध की धारा बहने लगी। यह देखकर मजदूर काफी डर गया और राजदरबार पहुंचा। उसने सतासी राजा मुंज सिंह को सारी कहानी बताई। मूज से स्वयंभू रूप में निकले और राजा मुंज द्वारा स्थापित किए जाने के कारण ही बाबा का नाम मुन्जेश्वरनाथ धाम पड़ा।
13 जून, 2024
बीता हुआ कल
बीता हुआ कल...
प्रत्येक व्यकति का एक बीता हुआ कल होता है, जिसके बारे में बात ही की जाए तो बेहतर है।
इन पंक्तियों के सहारे एक बड़ी ही गंभीर लेकिन बड़े काम की बात कह गया, कालिदास रंगालय में मंचित नाटक महुआ। नाट्य संस्था राग के बैनर तले मंचित और काशीनाथ सिंह के उपन्यास महुआ-चरित पर आधारित इस नाटक के निर्देशक थे रंधीर कुमार। वहीं इसके कलाकार थे कुमार रविकांत और रेखा सिंह। नाटक में स्त्री देह की दमित इच्छाओं और पुरुषवादी समाज की परंपरागत सोच के बीच के द्वंद्व को दिखाया गया। नाटक कहता है स्त्री के देह की भी कुछ इच्छाएं हो सकती है जिसे अक्सर समाज और खुद स्त्री भी समझ नहीं पाती।
नाटक सवाल करता है कि आखिर क्यों सारा विवेक धरा का धरा रह जाता है और देह बाजी मार ले जाता है। यह नश्वर देह, ऐसा क्या है इस देह में कि हम हर चीज का बंटवारा तो सह लेते हैं लेकिन इस देह का बंटवारा नहीं सहा जाता। ऐसा क्यो है? इसका तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन मन का सारा रिश्ता नाता तहस-नहस हो जाता है।
यहथी कहानी
नाटककी कहानी मध्यवर्गीय समाज की महुआ के इर्द गिर्द घूमती है। 29 की उम्र हो जाने के बाद भी शादी नहीं होने होने के कारण जीवन में अकेलापन छाया रहता है। पिता कहते हैं कि घूमो-फिरो कभी घर से बाहर निकलो और खुश रहो, लेकिन उदासी का असल कारण कोई नहीं समझता। एक दिन महुआ को ख्याल आता है कि घर की माली हालत और कॅरियर की चिंता के बीच उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी भी देह है और इसकी जरूरत है। उसे याद आता है कि कॉलेज के दिनों हर्षुल उसका दीवाना था, लेकिन उसने हर्षुल के प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
इसे दूर करता है उसका पड़ोसी और दो बच्चों का बाप साजिद। चंद मुलाकातों के बाद ही दाेनों में जिस्मानी संबंध बन जाते हैं। कुछ दिनों बाद ही जीवन में पूर्व प्रेमी हर्षुल आता है, जिसके जिंदगी में वृतका नाम की एक अन्य औरत भी है। इसे छुपाते हुए वह महुआ से शादी करता है लेकिन जब पता चलता है कि महुआ का पूर्व में साजिद से संबंध रहा है तो वह उसे घर से निकाल देता है।
कहानी बहुत गम्भीरता से आगे बढ़ते हुए अपने ढंग से अपनी बात कहने में सफल रही है .
मशहूर अभिनेता श्रीराम लागू का 92 साल की उम्र में निधन
1टिप्पणियां
मशहूर अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू (Shriram Lagoo) का वृद्धावस्था से संबंधित बीमारियों के चलते मंगलवार शाम पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी. नाटककार सतीश अलेकर ने बताया, 'मैंने उनके दामाद से बात की. वृद्धावस्था संबंधित बीमारियों के कारण उनका निधन हुआ.'
प्रशिक्षित ईएनटी सर्जन लागू ने विजय तेंदुलकर, विजय मेहता और अरविंद देशपांडे के साथ आजादी के बाद वाले काल में महाराष्ट्र में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी.
Mr.Manoj Joshi.(मनोज जोशी
Discussing Chankya Play ........
Memorable moments with Mr.Manoj Joshi.
Manoj Joshi (मनोज जोशी) is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujarati and Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
Manoj Joshi hails from Adapodara village near Himatnagar in north Gujarat.
Memorable moments with Mr.Manoj Joshi.
Manoj Joshi (मनोज जोशी) is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujarati and Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
Manoj Joshi hails from Adapodara village near Himatnagar in north Gujarat.
Manoj Joshi is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujaratiand Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
He acted in TV series including Chanakya, Ek Mahal Ho Sapno Ka, Rau (Marathi), Sangdil, Kabhi Souten Kabhi Saheli, Khichdi,Mura Raska Mai La (Marathi). He debuted in Sarfarosh (SI Bajju) alongside his brother who played Bala Thakur in the film. His other works include the film Hungama followed by Hulchul, Dhoom, Bhagam Bhag, Phir Hera Pheri, Chup Chup Ke, Bhool Bhulaiyaa,[and Billo Barber.
He also portrayed Chanakya in Chakravartin Ashoka Samrat.
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