26 फ़रवरी, 2014

रामेश्वर नाथ तिवारी








अपने बारे में

मेरा जन्म    तेरह जनवरी  उन्नीस सौ उनसठ को   ग्राम  टैरिया  , पत्रालय - सोहनाग,  तहसील-सलेमपुर  , जिला  देवरिया , उत्तर प्रदेश  में हुआ। पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी प्राइमरी स्कूल तिलौली ,सोहनाग में सहायक अध्यापक थे . बाद में प्रधान अध्यापक और फिर जूनियर हाई स्कूल सोहनाग में सहायक अध्यापक हो गए थे और वाही से रिटायर भी गए थे .

 पिता जी ृ रिटायरमेंट के बाद अपना पूरा समय भगवान की भक्ति में और काव्य रचना में व्यतीत करते थे .  अधय्त्मिक उत्कर्ष इतना अधिक हो गया था की वे संसार की हर बात को मिथ्या समझ बैठे थे .

जब भी दुखी और चिंतित होता हूँ  उनकी कविताओं से बड़ी राहत मिलती है और एक दिव्य दृष्टि भी .

देख रहा हूँ सपना क्या है ?
सपना है तो अपना क्या है ?

विशुद्ध ग्रामीण परिवेश    टैरिया  नामक  गाँव , देवरिया जनपद में सलेमपुर से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . यह प्रसिद्ध सोहनाग , परशुराम धाम सोहनाग  से मात्र २ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है . ऐतिहासिक धार्मिक केंद्र .

नाना पंडित राम चन्द्र शर्मा ,प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  थे।

पितामह पंडित श्री  सीता राम तिवारी रेलवे में कार्यरत थे । अत्यंत दयालु स्वाभाव  के थे .


सोहनाग  के प्रसिद्द  प्राइमरी  स्कूल से पाचवी  पास की एवं जूनियर  हाई स्कूल सोहनाग से आठवीं । बाद में गौतम इण्टर कॉलेज पिपरा रामधर से  दसवीं और बारहवी उत्तर प्रदेश  बोर्ड, इलाहाबाद   से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ.   बारहवी में  मैरिट लिस्ट में नाम था –जनपद में प्रथम स्थान  था ।    गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर    में  जब बी.ए . प्रवेश लिया तो      विश्व विद्यालय  में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था .       गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर से इंग्लिश, संस्कृत और भूगोल विषय से प्रथम श्रेणी में बी.ए .  १९७८ में   उत्तीर्ण हुआ . गोरखपुर विश्व विद्यालय से ही एम् .ए .भूगोल  १९८० में उत्तीर्ण हुआ ।

मदन मोहन मालवीय डिग्री कॉलेज भाटपार रानी में लेक्चरर शिप न हो पाने के बाद  गांव छोड़ने निश्चय किया और यहाँ पुणे ,महाराष्ट्र को अपनी कर्म स्थली बनाया .

कॉर्पोरेट्स में २५ साल कार्य किया . ग्रुप जनरल मैनेजर के पद पर पचीस  वर्षों कार्य करने के बाद त्याग पत्र दे  दिया  था . फाउंडर ट्रस्टी के रूप में मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की स्थापना भी किया था .

बाद में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन एंड एच आर साढ़े आठ साल रहा , इंदिरा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूट्स जिसमें के जी से   पी जी    तक की पढ़ाई होती थी मैनेजमेंट ,इंजीनियरिंग , फार्मेसी,इत्यादि .इत्यादि .
अब रिटायर्ड लाइफ बड़े आनंद से बीत रहा है .






































रामेश्वर नाथ तिवारी








अपने बारे में

मेरा जन्म    तेरह जनवरी  उन्नीस सौ उनसठ को   ग्राम  टैरिया  , पत्रालय - सोहनाग,  तहसील-सलेमपुर  , जिला  देवरिया , उत्तर प्रदेश  में हुआ। पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी प्राइमरी स्कूल तिलौली ,सोहनाग में सहायक अध्यापक थे . बाद में प्रधान अध्यापक और फिर जूनियर हाई स्कूल सोहनाग में सहायक अध्यापक हो गए थे और वाही से रिटायर भी गए थे .

 पिता जी ृ रिटायरमेंट के बाद अपना पूरा समय भगवान की भक्ति में और काव्य रचना में व्यतीत करते थे .  अधय्त्मिक उत्कर्ष इतना अधिक हो गया था की वे संसार की हर बात को मिथ्या समझ बैठे थे .

जब भी दुखी और चिंतित होता हूँ  उनकी कविताओं से बड़ी राहत मिलती है और एक दिव्य दृष्टि भी .

देख रहा हूँ सपना क्या है ?
सपना है तो अपना क्या है ?

विशुद्ध ग्रामीण परिवेश    टैरिया  नामक  गाँव , देवरिया जनपद में सलेमपुर से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . यह प्रसिद्ध सोहनाग , परशुराम धाम सोहनाग  से मात्र २ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है . ऐतिहासिक धार्मिक केंद्र .

नाना पंडित राम चन्द्र शर्मा ,प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  थे।

पितामह पंडित श्री  सीता राम तिवारी रेलवे में कार्यरत थे । अत्यंत दयालु स्वाभाव  के थे .


सोहनाग  के प्रसिद्द  प्राइमरी  स्कूल से पाचवी  पास की एवं जूनियर  हाई स्कूल सोहनाग से आठवीं । बाद में गौतम इण्टर कॉलेज पिपरा रामधर से  दसवीं और बारहवी उत्तर प्रदेश  बोर्ड, इलाहाबाद   से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ.   बारहवी में  मैरिट लिस्ट में नाम था –जनपद में प्रथम स्थान  था ।    गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर    में  जब बी.ए . प्रवेश लिया तो      विश्व विद्यालय  में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था .       गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर से इंग्लिश, संस्कृत और भूगोल विषय से प्रथम श्रेणी में बी.ए .  १९७८ में   उत्तीर्ण हुआ . गोरखपुर विश्व विद्यालय से ही एम् .ए .भूगोल  १९८० में उत्तीर्ण हुआ ।

मदन मोहन मालवीय डिग्री कॉलेज भाटपार रानी में लेक्चरर शिप न हो पाने के बाद  गांव छोड़ने निश्चय किया और यहाँ पुणे ,महाराष्ट्र को अपनी कर्म स्थली बनाया .

कॉर्पोरेट्स में २५ साल कार्य किया . ग्रुप जनरल मैनेजर के पद पर पचीस  वर्षों कार्य करने के बाद त्याग पत्र दे  दिया  था . फाउंडर ट्रस्टी के रूप में मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की स्थापना भी किया था .

बाद में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन एंड एच आर साढ़े आठ साल रहा , इंदिरा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूट्स जिसमें के जी से   पी जी    तक की पढ़ाई होती थी मैनेजमेंट ,इंजीनियरिंग , फार्मेसी,इत्यादि .इत्यादि .
अब रिटायर्ड लाइफ बड़े आनंद से बीत रहा है .






































02 जनवरी, 2014

जीवन में सफलता के सात नियम

जीवन में सफलता हासिल करने का वैसे तो कोई निश्चित फार्मूला नहीं है लेकिन मनुष्य सात आध्यात्मिक नियमों को अपनाकर कामयाबी के शिखर को छू सकता है।

ला जोला कैलीफोर्निया में “द चोपड़ा सेंटर फार वेल बीइंग” के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी डा.दीपक चोपड़ा ने अपनी पुस्तक “सफलता के सात आध्यात्मिक नियम” में सफलता के लिए जरूरी बातों का उल्लेख करते हुए बताया है कि कामयाबी हासिल करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य, ऊर्जा, मानसिक स्थिरता, अच्छा बनने की समझ और मानसिक शांति आवश्यक है।

“एजलेस बाडी, टाइमलेस माइंड” और “क्वांटम हीलिंग” जैसी 26 लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक डा.चोपड़ा के अनुसार सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति में विशुद्ध सामर्थ्य, दान, कर्म, अल्प प्रयास, उद्देश्य और इच्छा, अनासक्ति और धर्म का होना आवश्यक है।

पहला नियम:

विशुद्ध सामर्थ्य का पहला नियम इस तथ्य पर आधारित है कि व्यक्ति मूल रूप से विशुद्ध चेतना है, जो सभी संभावनाओं और असंख्य रचनात्मकताओं का कार्यक्षेत्र है। इस क्षेत्र तक पहुंचने का एक ही रास्ता है. प्रतिदिन मौन. ध्यान और अनिर्णय का अभ्यास करना। व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन.बोलने की प्रकिया से दूर. रहना चाहिए और दिन में दो बार आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम अकेले बैठकर ध्यान लगाना चाहिए।

इसी के साथ उसे प्रतिदिन प्रकृति के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और हर जैविक वस्तु की बौद्धिक शक्ति का चुपचाप अवलोकन करना चाहिए। शांत बैठकर सूर्यास्त देखें. समुद्र या लहरों की आवाज सुनें तथा फूलों की सुगंध को महसूस करें ।

विशुद्ध सामर्थ्य को पाने की एक अन्य विधि अनिर्णय का अभ्यास करना है। सही और गलत, अच्छे और बुरे के अनुसार वस्तुओं का निरंतर मूल्यांकन है –“निर्णय’ । व्यक्ति जब लगातार मूल्यांकन, वर्गीकरण और विश्लेषण में लगा रहता है, तो उसके अन्तर्मन में द्वंद्व उत्पन्न होने लगता है जो विशुद्ध सामर्थ्य और व्यक्ति के बीच ऊर्जा के प्रवाह को रोकने का काम करता है। चूंकि अनिर्णय की स्थिति दिमाग को शांति प्रदान करती है. इसलिए व्यक्ति को अनिर्णय का अभ्यास करना चाहिए। अपने दिन की शुरुआत इस वक्तव्य से करनी चाहिए- “आज जो कुछ भी घटेगा, उसके बारे में मैं कोई निर्णय नहीं लूंगा और पूरे दिन निर्णय न लेने का ध्यान रखूंगा।”

दूसरा नियम: 

सफलता का दूसरा आध्यात्मिक नियम है.- देने का नियम। इसे लेन- देन का नियम भी कहा जा सकता है। पूरा गतिशील ब्रह्मांड विनियम पर ही आधारित है। लेना और देना- संसार में ऊर्जा प्रवाह के दो भिन्न- भिन्न पहलू हैं । व्यक्ति जो पाना चाहता है, उसे दूसरों को देने की तत्परता से संपूर्ण विश्व में जीवन का संचार करता रहता है।

देने के नियम का अभ्यास बहुत ही आसान है। यदि व्यक्ति खुश रहना चाहता है तो दूसरों को खुश रखे और यदि प्रेम पाना चाहता है तो दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखे।

यदि वह चाहता है कि कोई उसकी देखभाल और सराहना करे तो उसे भी दूसरों की देखभाल और सराहना करना सीखना चाहिए । यदि मनुष्य भौतिक सुख-समृद्धि हासिल करना चाहता है तो उसे दूसरों को भी भौतिक सुख- समृद्धि प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।

तीसरा नियम:

सफलता का तीसरा आध्यात्मिक नियम, कर्म का नियम है। कर्म में क्रिया और उसका परिणाम दोनों शामिल हैं। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है- “कर्म मानव स्वतंत्रता की शाश्वत घोषणा है.. हमारे विचार, शब्द और कर्म. वे धागे हैं, जिनसे हम अपने चारों ओर एक जाल बुन लेते हैं। .. वर्तमान में जो कुछ भी घट रहा है. वह व्यक्ति को पसंद हो या नापसंद, उसी के चयनों का परिणाम है जो उसने कभी पहले किये होते हैं।

कर्म, कारण और प्रभाव के नियम पर इन बातों पर ध्यान देकर आसानी से अमल किया जा सकता है... आज से मैं हर चुनाव का साक्षी रहूंगा और इन चुनावों के प्रति पूर्णतः साक्षीत्व को अपनी चेतन जागरूकता तक ले जाऊंगा। जब भी मैं चुनाव करूंगा तो स्वयं से दो प्रश्न पूछूंगा.. जो चुनाव मैं करने जा रहा हूं. उसके नतीजे क्या होंगे और क्या यह चुनाव मेरे और इससे प्रभावित होने वाले लोगों के लिए लाभदायक और इच्छा की पूर्ति करने वाला होगा। यदि चुनाव की अनुभूति सुखद है तो मैं यथाशीघ्र वह काम करूंगा लेकिन यदि अनुभूति दुखद होगी तो मैं रुककर अंतर्मन में अपने कर्म के परिणामों पर एक नजर डालूंगा। इस प्रकार मैं अपने तथा मेरे आसपास के जो लोग हैं. उनके लिए सही निर्णय लेने में सक्षम हो सकूंगा।.

चौथा नियम:

सफलता का चौथा नियम “अल्प प्रयास का नियम” है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति प्रयत्न रहित सरलता और अत्यधिक आजादी से काम करती है। यही अल्प प्रयास यानी विरोध रहित प्रयास का नियम है।

प्रकृति के काम पर ध्यान देने पर पता चलता है कि उसमें सब कुछ सहजता से गतिमान है। घास उगने की कोशिश नहीं करती, स्वयं उग आती है। मछलियां तैरने की कोशिश नहीं करतीं, खुद तैरने लगती हैं, फूल खिलने की कोशिश नहीं करते, खुद खिलने लगते हैं और पक्षी उडने की कोशिश किए बिना स्वयं ही उडते हैं। यह उनकी स्वाभाविक प्रकृति है। इसी तरह मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपने सपनों को बिना किसी कठिन प्रयास के भौतिक रूप दे सकता है।

मनुष्य के भीतर कहीं हल्का सा विचार छिपा रहता है जो बिना किसी प्रयास के मूर्त रूप ले लेता है। इसी को सामान्यतः चमत्कार कहते हैं लेकिन वास्तव में यह अल्प प्रयास का नियम है। अल्प प्रयास के नियम का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए इन बातों पर ध्यान देना होगा..-  मैं स्वीकृति का अभ्यास करूंगा। आज से मैं घटनाओं, स्थितियों, परिस्थितियों और लोगों को जैसे हैं. वैसे ही स्वीकार करूंगा, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार ढालने की कोशिश नहीं करूंगा। मैं यह जान लूंगा कि यह क्षण जैसा है, वैसा ही होना था क्योंकि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ऐसा ही है । मैं इस क्षण का विरोध करके पूरे ब्रह्मांड से संघर्ष नहीं करूंगा, मेरी स्वीकृति पूर्ण होगी। मैं उन स्थितियों का, जिन्हें मैं समस्या समझ रहा था, उनका उत्तरदायित्व स्वयं पर लूंगा। किसी दूसरे को अपनी स्थिति के लिए दोषी नहीं ठहराऊंगा। मैं यह समझूंगा कि प्रत्येक समस्या में सुअवसर छिपा है और यही सावधानी मुझे जीवन में स्थितियों का लाभ उठाकर भविष्य संवारने का मौका देगी।.. ..मेरी आज की जागृति आगे चलकर रक्षाहीनता में बदल जाएगी। मुझे अपने विचारों का पक्ष लेने की कोई जरूरत नहीं पडेगी। अपने विचारों को दूसरों पर थोपने की जरूरत भी महसूस नहीं होगी । मैं सभी विचारों के लिए अपने आपको स्वतंत्र रखूंगा ताकि एक विचार से बंधा नहीं रहूं। ..


पांचवा नियम:

सफलता का पांचवां आध्यात्मिक नियम “उद्देश्य और इच्छा का नियम” बताया गया है। यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि प्रकृति में ऊर्जा और ज्ञान हर जगह विद्यमान है। सत्य तो यह है कि क्वांटम क्षेत्र में ऊर्जा और ज्ञान के अलावा और कुछ है ही नहीं। यह क्षेत्र विशुद्ध चेतना और सामर्थ्य का ही दूसरा रूप है. जो उद्देश्य और इच्छा से प्रभावित रहता है।

ऋग्वेद में उल्लेख है.. प्रारंभ में सिर्फ इच्छा ही थी जो मस्तिष्क का प्रथम बीज थी। मुनियों ने अपने मन पर ध्यान केन्द्रित किया और उन्हें अर्न्तज्ञान प्राप्त हुआ कि प्रकट और अप्रकट एक ही है। उद्देश्य और इच्छा के नियम का पालन करने के लिए व्यक्ति को इन बातों पर ध्यान देना होगा.. उसे अपनी सभी इच्छाओं को त्यागकर उन्हें रचना के गर्त के हवाले करना होगा और विश्वास कायम रखना होगा कि यदि इच्छा पूरी नहीं होती है तो उसके पीछे भी कोई उचित कारण होगा । हो सकता है कि प्रकृति ने उसके लिए इससे भी अधिक कुछ सोच रखा हो। व्यक्ति को अपने प्रत्येक कर्म में वर्तमान के प्रति सतर्कता का अभ्यास करना होगा और उसे ज्यों का त्यों स्वीकार करना होगा लेकिन उसे साथ ही अपने भविष्य को उपयुक्त इच्छाओं ओर दृढ उद्देश्यों से संवारना होगा।

छठवां नियम:

सफलता का छठा आध्यात्मिक नियम अनासक्ति का नियम है। इस नियम के अनुसार व्यक्ति को भौतिक संसार में कुछ भी प्राप्त करने के लिए वस्तुओं के प्रति मोह त्यागना होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने उद्देश्यों को ही छोड दे । उसे केवल परिणाम के प्रति मोह को त्यागना है। व्यक्ति जैसे ही परिणाम के प्रति मोह छोड देता है. उसी वह अपने एकमात्र उद्देश्य को अनासक्ति से जोड लेता है। तब वह जो कुछ भी चाहता है. उसे स्वयमेव मिल जाता है।

अनासक्ति के नियम का पालन करने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना होगा.. आज मैं अनासक्त रहने का वायदा करता हूं। मैं स्वयं को तथा आसपास के लोगों को पूर्ण रूप से स्वतंत्र रहने की आजादी दूंगा। चीजों को कैसा होना चाहिए. इस विषय पर भी अपनी राय किसी पर थोपूंगा नहीं। मैं जबरदस्ती समस्याओं के समाधान खोजकर नयी समस्याओं को जन्म नहीं दूंगा। मैं चीजों को अनासक्त भाव से लूंगा। सब कुछ जितना अनिश्चित होगा. मैं उतना ही अधिक सुरक्षित महसूस करूंगा क्योंकि अनिश्चितता ही मेरे लिए स्वतंत्रता का मार्ग सिद्ध होगी। अनिश्चितता को समझते हुए मैं अपनी सुरक्षा की खोज करूंगा।..


सातवां नियम:


सफलता का सातवां आध्यात्मिक नियम. धर्म का नियम. है। संस्कृत में धर्म का शाब्दिक अर्थ..जीवन का उद्देश्य बताया गया है। धर्म या जीवन के उद्देश्य का जीवन में आसानी से पालन करने के लिए व्यक्ति को इन विचारों पर ध्यान देना होगा.. ..मैं अपनी असाधारण योग्यताओं की सूची तैयार करूंगा और फिर इस असाधारण योग्यता को व्यक्त करने के लिए किए जाने वाले उपायों की भी सूची बनाऊंगा। अपनी योग्यता को पहचानकर उसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करूंगा और समय की सीमा से परे होकर अपने जीवन के साथ दूसरों के जीवन को भी सुख.समृद्धि से भर दूंगा। हर दिन खुद से पूछूंगा..मैं दूसरों का सहायक कैसे बनूं और किस प्रकार मैं दूसरों की सहायता कर सकता हूं। इन प्रश्नों के उत्तरों की सहायता से मैं मानव मात्र की प्रेमपूर्वक सेवा करूंगा।..

30 दिसंबर, 2013

Sankat Mochan Hanuman Temple




Sankat Mochan Hanuman Temple is one of the sacred temples of Hindu god Hanuman in the city of Varanasi, Uttar Pradesh, India. It is situated by the Assi river, on the way to the Durga and New Vishwanath temples within the Banaras Hindu University campus. Sankat Mochan in Hindi means reliever from troubles.[citation needed] The current temple structure was built in early 1900s by the educationist and freedom fighter, Pandit Madan Mohan Malviya, the founder Banaras Hindu University. Hanuman Jayanti, the birthday of Hanuman, is celebrated in fanfare, during which a special shobha yatra, a procession starting from Durgakund adjacent to the historic Durga temple to Sankat Mochan, is carried out.

In the temple, offerings to Lord Hanuman (called Prasad) are sold like the special sweet "besan ke ladoo", which the devotees relish; and the idol is also decked with a pleasant marigold flower garland as well. This temple has the unique distinction of having Lord Hanuman facing his Lord, Rama, whom he worshiped with steadfast and selfless devotion.


It is believed that temple has been built on the very spot where Tulsidas had a vision of Hanuman. Sankat Mochan Temple was founded by Tulsidas who was the author of the Ramacharitamanasa, which is the Awadhi version of the Hindu epic Ramayana originally written by Valmiki. Tradition promises that regular visitors to the temple will gain special favor of Hanuman. Every Tuesday and Saturday thousands of people queue up in front of temple to offer prayers to Lord Hanuman. According to Vedic Astrology, Hanuman saves human beings from the anger of the planet Shani (Saturn), and people having an ill-placed Saturn in their horoscopes especially visit this temple for astrological remedies. This is supposed to be the most effective way for appeasing Shani. While it is suggested that Hanuman did not hesitate in engulfing in his mouth the sun, the lord of all planets, humbling all the gods and angel, making them worship him for Sun's release. Some astrologers believe that worshiping Hanuman can neutralize the ill-effect of Mangal (Mars) and practically any planet that has ill effect on human life.



14 दिसंबर, 2013

जीवन के महान रहस्य-सम्पूर्ण ज्ञान

जीवन के महान रहस्य-सम्पूर्ण ज्ञान

‘भाग्य नहीं अपना नज़रिया बदलें, लोग नहीं अपनी सोच बदलें औरों को नहीं पहले स्वयं को पहचानें।’ क्या आप इस पंक्ति से सहमत हैं ? यदि हाँ तो आईये इस पंक्ति को अपने जीवन में उतारें। यदि आप उपरोक्त पंक्ति से सहमत नहीं हैं तो पहले इस पंक्ति की गहराई समझें:
‘जो भाग्य से मुक्त वह भाग्यशाली, जो जीवन से भागा वह अभागा, जो जीवन में जागा और जिसने जाना संपूर्ण जीवन रहस्य वह महाभाग्यशाली’
इस नये नज़रिये से ऊपर दी गयी सच्चाई समझें। लोग रिश्ते बदलते हैं लेकिन अपनी सोच नहीं बदलते। लोग राशियों और ज्योतिषियों के यहाँ चक्कर लगाते रहते हैं ताकि भाग्य बदले लेकिन अपना नज़रिया नहीं बदलते। लोग बड़े लोगों से पहचान बनाने के चक्कर में, धन समय और बल खर्च करते हैं लेकिन स्वयं को पहचानने के लिये एक पुस्तक नहीं खरीदते, वे सत्य सुनने का समय नहीं निकाल सकते, मौन (ध्यान) में बैठ नहीं सकते।
इंसान आने वाले कल का रहस्य आज जानता है। वह उम्मीद के सहारे जीवन काटता है। भविष्य का रहस्य जानकर वह वर्तमान में खुश होना चाहता है। अगर भविष्य में सारी परेशानियाँ मिट जाने वाली हैं तो वह वर्तमान में धीरज के साथ जी सकता है, ऐसी उसकी मान्यता है इसलिये वह भविष्य जानने के लिये अगल-अलग लोगों के पास भटकता है क्या भविष्य की जानकारी जानकर परेशानियों से मुक्ति पायी जा सकती ? परेशानियों से मुक्त होना है तो वर्तमान का रहस्य जानना चाहिये। वर्तमान का रहस्य जानकर हर इंसान प्रसन्न हो सकता है। वर्तमान का रहस्य हर एक के लिये एक जैसा है। वर्तमान का रहस्य काल्पनिक नहीं सच्चा होता है। भविष्य का रहस्य कुछ काल्पनिक और कुछ अधूरा है इसीलिये भविष्य के रहस्य में न उलझकर जीवन के पाँच महान रहस्य जानें जो हमारा वर्तमान सँवारते हैं।

वर्तमान का रहस्य अभी और यहीं है। वर्तमान का क्षण सत्य है। हम सबको वर्तमान में रहना सीख लेना चाहिये। वर्तमान में ही सही कर्म किया जा सकता है। वर्तमान से ही भविष्य बदला जा सकता है। वर्तमान ही अकल का ताला खोलता है। अकल यानी जहाँ कल नहीं है (अ-कल)। बीता हुआ कल और आने वाला कल अकल के साथ नहीं है। हमें भी अकल का ताला खोलकर यानी जीवन के पाँच महान रहस्य, महाजीवन के नियम जानकर आनंदित जीवन जीना चाहिये।
हर इंसान आनंद पाना चाहता है लेकिन आनंद की राह में आने वाली रुकावटों से रुक जाता है। जीवन में होने वाली घटनाओं से परेशान होकर वह मन को बहाना दे देता है। बहाना पाकर मन लक्ष्य की ओर यात्रा बन्द कर देता है लेकिन इंसान को अपना लक्ष्य नहीं भूलना चाहिए। कभी भी मन के बहानों में न बहें, बहानों में तैरना सीखें। जो लोग बहानों में बह गये उन्होंने कभी भी अपना लक्ष्य नहीं पाया। वे लोग जीवन के अनमोल रहस्य जाने बिना इस संसार से चले गये। वे लोग जीवनभर दुःख असंतुष्टि और पश्चाताप में जीते रहे। हमें बहानों में तैरकर अपने असली लक्ष्य तक पहुँचना है। हमें जीवन के पाँच महान रहस्य आत्मसात करने हैं, जो इस पुस्तक का लक्ष्य है। जीवन के पाँच महान रहस्य आत्मसात करने हैं, जो इस पुस्तक का लक्ष्य है। जीवन के पाँच महान रहस्य जानकर सदा विश्वास और आनंद से दूसरों को आनंदित करते हुए जीवन जीयें। जीवन के वे पाचों महान रहस्य आपको जीवन का संपूर्ण ज्ञान देंगे।

जीवन में आने वाली परेशानी को परेशानी न समझकर उसे सीढ़ी निमित्त सीख चुनौती बनाने की कला सीखें। इस रहस्य को याद रखने के लिये आपकी पाँच अंगुलियों पर बिठाया गया है। आप इसे चलते-फिरते, काम करते, अंगुलियों के सहारे याद रखकर इस्तेमाल कर सकते हैं। हर परेशानी आपको महान रहस्यों की याद दिलायेगी। हर काल्पनिक चित्र दिया गया है। इस चित्र में जीवन के पाँचों महान रहस्य प्रतीक के रूप में दिखाये गये हैं। इस चित्र के सहारे आप पाँचों महान रहस्य सदा याद रख पायेंगे और उनका उपयोग अपने जीवन में कर पायेंगे।
इस पुस्तक को शुरूआत से अंत तक पूरा पढ़ें और इसमें दिये गये संपूर्ण ज्ञान का पूर्ण उपयोग करें ताकि जीवन का कोई भी पहलू आपसे अपरिचित न रहे। इस पुस्तक द्वारा आप संपूर्ण जीवन का ज्ञान प्राप्त करके अपना जीवन सफल करें।
यह पुस्तक पढ़कर आप अपने तथा औरों के जीवन को बेहतर बनाने जा रहे हैं। इस कार्य के लिये आपको शुभ इच्छा, हॅपी थॉट्स।
सरश्री....

पहला खण्ड

पहला महान रहस्य
महाजीवन दर्शन
एक हाथ की ताली
अध्याय 1

सत्य के रहस्य को, जीवन के महान रहस्य को समझने आये हुए खोजियों (सत्य प्रेमियों) का स्वागत है। आप सबको शुभेच्छा। शुभ इच्छा वह है जो हमें मान्यताओं से मुक्ति दिलाये। शुभ इच्छा वह है जो तेजज्ञान (महान रहस्य) समझाये, शुभ इच्छा वह है जो सभी इच्छाओं से मुक्त करके खुद मिट जाय। शुभ इच्छा वह है जो महाजीवन का दर्शन कराये।
क्या जीवन एक सफर है जिसे हर एक को भुगतना (suffer करना) पड़ता है ? क्या जीवन एक रास्ता है जहाँ हर एक को धक्के खाकर यात्रा करनी पड़ती है ? क्या जीवन का अर्थ कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं ? क्या जीवन चलने का नाम है जहाँ सुबह और शाम चलते रहना पड़ता है ? क्या जीवन एक संघर्ष है जहाँ हार और जीत का युद्ध चल रहा है ? क्या जीवन एक पहेली है जो कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है ? क्या जीवन एक आइस्क्रीम की तरह है जिसे समय रहते खा लेना चाहिये ? क्या जीवन एक चिड़िया है जो मौत के पिंजरे में कैद है ? क्या जीवन का दर्शन गरीबों की बस्ती में देखने को मिलता है ? क्या जीवन महाजीवन बन सकता है जो मृत्यु से मुक्त है ?

हर इंसान में जीवन है। जीवन ही चैतन्य है। जीवन जिंदादिली का नाम है। जीवन वह जादू है जिसकी उपस्थिति में कोयल गीत गाती है, बुलबुल मीठे बोल सुनाती है, तितली शहद का स्वाद लेती है, फूल खुशबू लुटाते हैं, बादल जल बरसाते हैं, कवि कविता लिखते हैं, भक्त भजन करते हैं। जीवन वह ताली है जो एक हाथ से बजती है क्योंकि जीवन के अलावा विश्व में कुछ भी नहीं है। जीवन जब जीवन का अनुभव इंसान के शरीर द्वारा करता है तब एक हाथ की ताली जिसे अनहद (अनाहत) नाद कहा गया है, बजती है। जीवन वह चैतन्य है जो दुनिया का, साक्षी बनने से लेकर स्वसाक्षी बनना चाहता है।
जीवन को जीवन की अभिव्यक्ति करने के लिये, अपने रंग, अपने रूप, अपने गुण प्रकट करने के लिये किस चीज की आवश्यकता है ? जीवन को अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति करने के लिये एक ऐसे इंसानी शरीर की आवश्यकता है जो मान्यता से मुक्त है, जो गलत संस्कारों, आदतों, वृत्तियों (पैटर्नस्) से मुक्त है, जो तमोगुण से आज़ाद है। जीवन को अपने संपूर्ण आयाम से खुलने के लिये ऐसे इंसानी शरीर की आवश्यकता है जो भक्ति युक्त, प्रेम से भरा हुआ, नफरत, ईर्ष्या, द्वेष व अहंकार से मुक्त है। ऐसा शरीर पाने के लिये जीवन को साधना बनाना चाहिये। अपने अथवा दूसरों के शरीर को सताने की बजाय उसे ध्यान में बैठने का प्रशिक्षण देना चाहिये। इसे एक उदाहरण से समझें।
एक धोबी था। वह धोबी अपने गधे को लेकर कपड़े धोने घाट पर जाता था। उसके घर में उसके पास एक बकरी और बंदर भी थे। वह रोज बकरी और बंदर भी थे। वह रोज बकरी और बंदर को बाँधकर जाता था। रोज ऐसा होता था कि धोबी के जाने के बाद बंदर अपनी रस्सी खोल लेता था और उछल कूद करता था, घूमता-फिरता था और धोबी के आने से पहले रस्सी बाँधकर बैठ जाता था।

एक दिन ऐसा हुआ कि धोबी ने थैला भरकर मूँगफली लायी और घर पर रख दी। फिर वह काम से निकल गया। बंदर ने रोज की तरह अपनी रस्सी खोल दी, सारी मूँगफली खा ली और अपने आपको फिर से बाँधकर बैठ गया मगर अपने आपको बाँधने से पहले उसने बकरी की रस्सी खोल दी। अब आप जानते हैं कि क्या होगा। अब धोबी घर आता है, मूँगफली न देखकर और बकरी की रस्सी खुली देखकर उस बकरी की पिटाई करता है। बंदर मन ही मन खुश होता है। आप जानते हैं कि बकरी का दोष न होते हुए भी बकरी की पिटाई हुई।
इस कहानी में बकरी कौन है ? बंदर कौन है ? मूँगफली क्या है ? धोबी कौन था ? जो बकरी है वह हमारा शरीर है जिसकी पिटाई हुई और बंदर है तोलू मन, उछल कूद करने वाला मन। घटना होने पर हमारा मन यह बड़बड़ करता है कि ‘यह अच्छा हुआ, यह बुरा हुआ, ऐसा क्यों हुआ, ऐसा नहीं होना चाहिये, वैसा होता था तो अच्छा होता था, ऐसा नहीं होता था तो ज्यादा सही था।’ मन की कितनी उछल कूद होती है ? इसलिये कहते हैं, ‘मन अंदर मंदर, मन बाहर बंदर’ मन अंदर है तो मंदिर है। असली मंदिर बनाये गये ताकि मंदिर को देखकर आपको याद आये कि क्या आपका मन अंदर भी जाता है या सदा बाहर ही बाहर माया के आकर्षण में रहता है ?

अब इस कहानी से समझें कि दोष किसका होता है और पिटाई किसकी होती है। इंसान महाजीनव की यात्रा शुरू करता है तो वह सोचना है कि अभी मुझे उपवास रखने चाहिये, ये-ये उपवास रखूँगा तो मन शांत हो जायेगा, सत्य मालूम पड़ेगा। यह सोचकर कोई उपवास रख रहा है, शरीर को तपा रहा है, तप कर रहा है, कोई चार बजे उठकर गंगा नहाता है। यह सोचकर कि इस दिन को यह नहीं खाना चाहिये, इस दिन वहाँ नहीं जाना चाहिये, ऐसा अनिष्ट हो जायेगा, वैसा अपशगुन हो जायेगा, बहुत सारे डर पाल लेता है। कितने सारे कर्मकाण्ड शरीर से जुड़े हुए हैं। आपने ये कर्मकाण्ड पढ़े होंगे, सुने होंगे, कर रहे होंगे मगर महाजीवन पाना है तो समझना है कि जो शरीर की पिटाई है वह गलत है। समझ और प्रशिक्षण मन को मिलना चाहिये। हमें अलग-अलग तरह के मार्ग बताये गये हैं, जैसे कि जप, तप, तंत्र, सेवा, धर्म, कर्म और ध्यान इन सभी मार्गों के ऊपर जो समझ तैयार होनी चाहिये वह अगर नहीं होती है तो शरीर की पिटाई होती रहती है। हमें असली रहस्य समझना चाहिये। जीवन के महान रहस्य समझकर जीवन की अभिव्यक्ति करनी चाहिये। ऐसा करके हमारा जीवन महाजीवन बनेगा।
सच्चाई, असलियत, हकीकत, सत्य क्या है ? हमें क्या समझना है ? जीवन का रहस्य क्या है ? हम इस शरीर के द्वारा, मन के द्वारा, अपनी बुद्धि के द्वारा जीवन की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। हमारे पास बकरी और बंदर भी है तो किसके पास बकरी है ? किसके पास बंदर है ? जीवन का यह रहस्य समझ में आयेगा तो जो बोझ लेकर हम जी रहे हैं वह खतम होगा। जीवन में लोग दो तरह के बोझ लेकर जीते हैं, आने वाले भविष्य का बोझ या जो हो चुका है उस अतीत का बोझ। हमसे जो कुछ गलतियाँ हो चुकी हैं उनका अपराध बोध (गिल्ट) हमारे मन पर होता है ‘मैंने ऐसा क्यों किया, मेरे हाथ से ऐसा क्यों हो गया’, यह सोचकर इंसान अनावश्यक बोझ लेकर जीता है। जब हमें जीवन रहस्य समझ में आता है तो हमें पता चलता है कि ये बोझ लेकर जीने की जरूरत नहीं है।

अगर हमने इस वक्त मिठाई खायी है और मिठाई खाकर यदि हम चाय पीयें तो क्या होगा ? आपको चाय फीकी लगती है क्योंकि पहले से ही जो मिठाई खायी हुई है उसकी मिठास चाय का स्वाद लेने में बाधा बनती है। उसी तरह आपने यदि जीवन के बारे में कुछ सोच (मान) रखा है तो उसे कुछ समय के लिये थोड़ा बाजू में रखकर पढ़ेंगे तो आप इन रहस्यों और जीवन के नियमों को समझ पायेंगे।
किसी इंसान ने एक लेक्चर लिया। वह इंसान लेक्चर इस बात पर ले रहा था कि शराब पीने से क्या नुकसान होते हैं, लोग शराब पीना क्यों छोड़ दें। उसने पानी से भरे दो गिलास लाये थे। एक गिलास में पानी रखा है और एक में शराब रखी और वह कुछ जिंदा कीड़े लेकर आया था। वे कीड़े उसने पानी में और शराब में डाले। फिर लोगों ने देखा कि देखते ही देखते जो कीड़े शराब के अंदर गये थे वे मर गये। उस इंसान ने लोगों से पूछा कि इस प्रयोग से आपने क्या समझा ? एक इंसान ने उठकर कहा, ‘अगर हम शराब पीयेंगे तो ऐसे कीड़े हमारे पेट में नहीं रहने वाले।’ बताया जा रहा था। कि शराब पीना कितना हानिकारक है मगर वह बात नहीं समझी गयी, कुछ अलग ही समझ लिया गया। इसलिये आप जीवन की कोई भी धारणा मन में न रखते हुए जीवन के महान रहस्य पढ़ें और उनका पूरा व सही फायदा लें।

जीवन रहस्य का पता चलने से ही आपको आनंद की कमी नहीं होगी। ज्ञान न होने की वजह से हम गलत चीजों में आनंद लेना चाहते हैं। कोई शराब पीयेगी, जुआ खेलेगा, रेस कोर्स में जायेगा, कोई कहेगा मैं यह चीज पा लूँ, वह चीज पा लूँ, मेरा प्रमोशन हो जाय, यह हो जाय, वह हो जाय ताकि मुझे आनंद मिले। उसे पता नहीं है कि असली आनंद हमारे अंदर है, उसे कैसे पाया जाय यह जानना आवश्यक है।
जीवन रहस्य पता चल जाय तो फिर कभी आपको आनंद की कमी नहीं होगी या जो चीज आप जीवन में चाहते हैं, उसकी कमी नहीं होगी। हमें दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। आज हम दूसरों पर निर्भर होते हैं, ‘कोई मेरी तारीफ करे, मेरा काम करे, मेरे बर्थ डे पर तोहफा लाकर दे तो मैं खुश हो जाऊँ। कोई और मेरे लिये कुछ करने वाला है तो मैं आनंद पाऊँगा।’ मगर क्या ऐसा हो सकता है कि मेरा आनंद मेरे अंदर ही हो, मैं जितना चाहूँ, जब चाहूँ आनंद ले सकूँ ? क्या ऐसा कोई इंसान आपको मिलता है जो आपको कहे कि मैं खुश हूँ, कारण ‘मैं हूँ’ मेरे लिये इतना ही काफी है। मेरा होना ही आनंद का कारण है।
आनंदित इंसान ही अपने जीवन को जीवन से बदलकर महाजीवन बना सकता है। आनंदित इंसान ही सच्चे जीवन का दर्शन कर सकता है, जो आँखों से नहीं हृदय से महसूस किया जाता है।

महान का मकान
आप पृथ्वी पर मेहमान हैं
अध्याय 2

हर इंसान इस पृथ्वी पर मेहमान है। अगर हर इंसान पृथ्वी पर मेहमान है तो यह सवाल उठता है कि ‘हम किसके मेहमान है ?’
हम सब महान के मेहमान हैं। ईश्वर महान है। अगर आपको उस महान का मकान दिखायी दे तो आपका रहना, चलना, उठना, बैठना सब बदल जायेगा। जब आप किसी के घर मेहमान बनकर जाते हैं तो वहाँ कैसे रहते हैं ? क्या वहाँ आप यह सोचते हैं कि यह आपका कमरा है, इसमें कोई न आये ? ऐसी जिद आप मेहमान बनकर दूसरे के घर पर नहीं करते क्योंकि आपको सतत् यह बात याद रहती है कि आप वहाँ मेहमान हैं। अगर आप महान के मेहमान हैं और यह बात आपने समझ के साथ पूरी तरह से जान ली है तो आपका व्यवहार अलग होगा।
किसी इंसान के घर में एक उपयोगी वस्तु है मगर उसे पता नहीं कि वह वस्तु उसके घर में है तो उस वस्तु के होने का लाभ वह नहीं ले पायेगा। जैसे किसी के घर में एक छाता है और उसे पता नहीं है कि उसके घर में छाता है तो वह इंसान ‘अतेज धूप’ में जलता रहेगा और ‘अतेज बारिश’ में भीगता रहेगा। फिर कोई उसे बतायेगा, ‘आपके पास एक छाता है और वह छाता आपके घर में ही है।’ उसके पास छाता है यह जानकर वह सिर्फ खुश होता रहा तो भी उसका काम पूरा नहीं होगा। जब तब कोई उसे छाता खोलना नहीं सिखाता तब तक उस इंसान की पूरी संभावना नहीं खुलेगी।

एक गाँव के दस लोग कहीं जा रहे थे। यह जानते हुए कि उनकी बुद्धि थोड़ी मंद है, लोगों ने उन्हें समझाया कि दस लोग जा रहे हैं तो दस लोग ही वापस आयें। जाते-जाते रास्ते में उन्हें एक नदी पार करनी पड़ी। वह नदी उन्होंने तैरकर पार की। दूसरे किनारे पर पहुँचने के बाद उन्होंने तय किया कि सबसे पहले कितने लोग नदी पार करके आये हैं यह गिनते हैं। उनमें से एक ने गिनती करना शुरू किया और उसने नौ लोगों को ही गिना। सिर्फ नौ लोग ही नदी पार करके आये हैं यह देखकर वह इंसान रोने लगा। उसे लगा कि दस में से एक इंसान डूब गया मगर आप समझ गये होंगे कि वह इंसान खुद को छोड़कर बाकी सबकी गिनती कर रहा था।
इंसान भी अपने जीवन में यही कर रहा है, खुद को छोड़कर सबकी गिनती कर रहा है। अगर आपने किसी से पूछा, ‘‘क्या आप खुद को जानते हैं ?’ तो उसका सिर शर्म से झुक जायेगा क्योंकि इंसान सब कुछ जानने में समय बिताता है मगर उसे खुद के बारे में बहुत कम जानकारी होती है। उसे विश्व के सारे सवालों के जवाब मालूम होते हैं, वह प्रतियोगिता (कॉन्टेस्ट) में गया तो करोड़पति बन जाता है मगर उससे पूछा कि आप कौन हैं तो उसका जवाब उसके पास नहीं है।
जीवन के पाँच महान रहस्यों के साथ भी ऐसा ही है। ये रहस्य लोग पहले से ही जानते हैं। आप जो जानते हैं, वही आपको बताया जा रहा है। जो आपके पास है, उसके बारे में ही बातचीत की जाती है। ये पाँच रहस्य ऐसे हैं जो सभी को पता हैं। फिर भी आपको इसलिये बताया जा रहा है क्योंकि आप वे रहस्य शब्दों में नहीं जानते और साथ ही उनका इस्तेमाल करना भी नहीं जानते नीचे दी गयी सूची से आपको जीवन के पाँच महान रहस्यों की जानकारी मिलेगी।

10 दिसंबर, 2013

रहेंगे चिंता मुक्त तो होंगे सफल

रहेंगे चिंता मुक्त तो होंगे सफल 
 जाजलि नाम का एक ब्राह्मण था। वह ज्ञान प्राप्त करना चाहता था। इसके लिए वह जगह-जगह भटकता फिरा, कई साधु-महात्माओं के पीछे दौड़ता रहा। लेकिन उसे कोई ऐसा ज्ञानी नहीं मिला, जिसे वह अपना गुरु बना सके। जब अपनी खोज से उसे निराशा महसूस होने लगी, तब अचानक एक दिन उसकी मुलाकात एक नए साधु से हो गई। जाजलि ने कहा, "तुम तो साधु हो, किसी ऐसे गुरु का पता बताओ, जो मुझे सही राह दिखा सके।" साधु ने कहा, "तुम्हें भटकने की जरूरत नहीं है
, तुम अपने नगर के तुलाधार वैश्य के पास जाओ। उसी से तुम्हे ज्ञान मिलेगा।" जाजलि पहले तो उस साधु को आश्चर्य से देखता रहा, फिर सोचने लगा कि शायद साधु मेरा मजाक उड़ा रहा है। लेकिन साधु के मुख पर गंभीरता देखकर जाजलि ने उसकी सलाह आजमाने का इरादा किया। 

वह तुरंत साधु से विदा लेकर तुलाधार वैश्य की तलाश में निकल पड़ा। फिर तुलाधार के पास पहुंचकर उसने अपनी इच्छा प्रकट की और कहा, "मुझे ऐसा ज्ञान दीजिए, जिससे मेरा जीवन सुधर जाए।" तुलाधार बोला, "भैया, मैं तो कोई ज्ञानी पंडित नहीं हूं, जो तुम्हे चिंतन का तरीका बता सकूं। लेकिन वह रास्ता जरूर बता सकता हूं जिस राह पर खुद चलता हूं, क्योंकि मैं हमेशा अपनी तराजू से मार्गदर्शन पाता हूं और उसकी डंडी हमेशा सीधी रखता हूं, न ऊंची, न नीची।" जाजलि ने सोचा शायद यही वजह है कि दुकान पर आने वाले सभी लोगों के लिए तुलाधार एक समान व्यवहार रखता है, क्योंकि हम जो कुछ करते हैं, उसका सीधा असर हमारे मन पर होता है। 

इसलिए खूब चिंतन कीजिए और नीचे लिखे गुरुमंत्रों को दिल की गहराइयों में उतारिए : * ईश्वर आपकी चिंता करता है और वह आपको कभी नहीं छोड़ेगा, न कभी आपसे अलग होगा। यही उसकी की विशेषता है, इसलिए खूब चिंतन कीजिए, क्योंकि आस्था में बहुत गहरा रहस्य छिपा है। * भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था, जो मेरा चिंतन करता है और सदा मेरे प्रति विश्वास रखता है, मैं भी उसके लिए दया भाव रखता हूं।

 * सफल वही होते हैं जो पूरी तरह से चिंता मुक्त होते हैं, क्योंकि जो लोग चिंता में रहते हैं वे हमेशा कुंठाओं मे जीते हैं।

 * चिंतन करने वाले लोग जब यह निश्चय कर लेते हैं कि उन्हें अपना लक्ष्य प्राप्त करना है, तब वे अपना लक्ष्य प्राप्त करके ही रहते हैं। * चिंतन करने से विश्वास उत्पन्न होता है और विश्वास से लगन पैदा होती है। फिर जब मनुष्य मेहनत करते की ठान लेता है, तब दोनों का प्रभाव लक्ष्य तक पहुंचाने में सीढ़ी का काम करता है।

 * चिंता आपको जीपन की मुख्यधारा से भटका देती है, फिर आपको सफलता के मार्ग पर स्पीड बैरियर दिखाई देने लगते हैं

। * चिंता औ चिंतन एक सिक्के के दो पहलू हैं, लेकिन चिंता आदमी को मौत के मुंह में पहुंचा देता है, जबकि चिंतन मनुष्य को महान बना देता है। परंतु यह आपपर निर्भर करता है कि आप चिंता करते है या चिंतन। * जो पहले आपने पढ़ा, वह अतीत भा, लेकिन जो अब पढ़ रहे हैं, वह भविष्य है। इसलिए अतीत को भूल जाइए और भविष्य की चिंता की चिंता कीजिए।

 * कमजोरी का इलाज अपनी कमजोरियों की चिंता करना नहीं है, बल्कि शक्ति का विचार करना है।

 * कभी आपने सोचा है कि चिंता क्या होती है। यदि नहीं सोचा, तो हम बता देते हैं। चिंता उन लोगों द्वारा चुकाया जाने वाला ब्याज है, जो मुसीबतें उधार लेकर आता है। 

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...