26 अगस्त, 2013

घाघ कवि के दोहे


 घाघ कवि के दोहे



सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।

अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।

सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Surha-Tal-Bird-Sanctuary, Ballia (U.P.)

Surha-Tal-Bird-Sanctuary, Ballia Ballia (Bhojpuri: बलिया, Hindi: बलिया ) is a city with a municipal board in the Indian state o...