13 जून, 2024

Meri Janm Bhoomi--TAIRIA (टैरिया) , Tahsil: SALEMPUR, District.DEORIA(UttarPradesh) -274509(India)




                           
Welcome To
Village: TAIRIA (
टैरिया) ,
Tahsil: SALEMPUR,
District.DEORIA(UttarPradesh)
-274509(India)

टैरिया नामक गाँव देवरिया जनपद  के सलेमपुर तहसील  से मात्र 3  किलोमीटर की दूरी पर सलेमपुर बरहज रोड पर स्थित है. पहले यह कहाँ स्थित है यह बताने के लिए कहा जाता था ,लोहरौली और बिराजमार के बिच में तिवारी जी लोगों का एक छोटा सा टोला है . सड़क मार्ग की दुर्लभता के कारन किसी बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुँचाने में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। http://www.indiamapped.com/uttar-pradesh/deoria/salempur/tairia/

            
 

स्व.पंडित सीता राम तिवारी

बाबा जी का प्रिय श्लोक
 आदौ रामतपोवनादिगमनं हत्वा मृगं काञ्चनम्
वैदेहीहरणं जटायुमरणम् सुग्रीवसंभाषणम् |
वालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लङ्कापुरीदाहनम्
पश्चाद्रावणकुम्भकर्णहननं एतद्धिरामायणम् |

 इति श्रीरामायणसूत्र ||

               

                   स्व.पंडित अवधेश कुमार  तिवारी   

पिताजी का अचानक चले  जाना , जीवन  की    सबसे दुखद बेला होती है। रह रह कर यह वेदना हमें और कमजोर करती रहती है ........

 बाकी  जिंदगी तो   जीनी  ही पड़ेगी ......पिता जी यादों को सहेज कर रखें,  ऐसा लोग  समझाते हैं। जबकि ऐसा करना बड़ा मुश्किक्ल होता  है । 

Tairia is small village very close to Salempur only 3 KM distance from Salempur is situated on Sohnag Road/Barhaj Road , Post office : Sohnag,Tahsil &  Block: SALEMPUR, District Deoria -274509. Distance from Majhauliraj will be about 12 Km via Salempur. It is told that all families are from one person Late Shri Bhogi Baba,Shrimukh Sandilya Gotra Tiwari(Triprawar)who  migrated from Sohagaura (Gorakhpur).All families are so closely bonded with each other.It was told by My grand father Late Shri Sita Ram Tiwari that it was a jungle of Tairy trees (small trees)and the village was named after that.

 As per google maharaj:

 
Tairia ("Mims") Flowers (born January 9, 1981 in Tucson, Arizona) is an American softball player. She is best known for competing on the Gold medal winning United States National softball team. She played college softball at UCLA, the program with the most national championships in NCAA Division I softball, having won 10 of the 24 National Championships.


After searching entire google, NOTHING WAS AVAILABLE ABOUT TAIRIA VILLAGE , Hence,I decided to write this blog about TAIRIA Village.

  BUT NOTHING WAS AVAILABLE ABOUT TAIRIA VILLAGE

 

             पूज्य पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी एवं माता जी




              पूरा  गाँव - एक परिवार
 कृतज्ञता वह सुकृत्य है जो व्यक्ति के सुसंस्कृत होने का भान कराती है, साथ ही उसे सामाजिक और सांसारिक भी बनाती है। कृतज्ञता एक संस्कार है। इससे संस्कारित व्यक्ति विनम्रता की मूर्ति होता है। जहां दूसरों की सहायता एवं सेवा करना उत्कृष्ट मानवीय कर्तव्य है वहीं संकट की विषम स्थिति में दूसरों द्वारा अपने प्रति की गई सहायता एवं सेवा के लिए कृतज्ञ व्यक्तित्व अपने हृदय में उसके प्रति विशेष आदर का भाव रखता है। सहृदयता का प्रतिकार वह विनम्र आभार द्वारा चुकाता है। धन्यवाद, साधुवाद, शुक्रिया आदि शब्द कृतज्ञता के सूचक शब्द मात्र ही नहीं,अपितु हार्दिक आभार के भार से नमित सुकर्म होते हैं।
कृपालुओं का सहयोग मिलता रहे, इसलिए इस शिष्टाचार के माध्यम से वह अपने व्यक्तित्व का उज्जवल एवं मानवीय पक्ष समाज के सामने प्रस्तुत करने के साथ ही एक आदर्श एवं प्रेरक उदाहरण भी बनना चाहता है। यह शिष्टाचार उसे सम्मान में सम्मानित नागरिकों की श्रेणी में खड़ा कर देता है। कृतज्ञता अनुग्रहकर्ता के प्रति अनुग्रहीत होने का भाव-ज्ञापन भी है। जहां अनुग्रहकर्ता वंदनीय एवं उसका कृत्य अभिनंदनीय होता है वहीं अनुग्रहीत होकर कृतज्ञता ज्ञापित न करने वाला निंदनीय होता है। कृतज्ञता के ज्ञापन से जहां एक ओर अनुग्रहकर्ता को अपने किए कार्य की महत्ता का ज्ञान एवं उसके कृतज्ञता रूपी प्रतिफल का आनंद प्राप्त होता है वहीं अनुग्रहीत को समय पर सहायता मिल जाने से संकट की विकरालता से मुक्त होने का सुख प्राप्त होता है। इससे दोनों पक्ष लाभान्वित एवं आनंदित होते हैं।कुछ लोग संकट काल में काम आने वाले महानुभावों के चिर ऋणी होने की अभिव्यक्ति द्वारा अपने कृतज्ञता संपन्न होने का परिचय देते हैं। कृतज्ञता एक सामान्य शिष्टाचार भी है। कृतज्ञ प्राणी अपने शिष्ट वचनों द्वारा कृपा करने वाले का आभार व्यक्त करता है। वह जानता है कि उसकी रत्तीभर की उदासीनता उसे भविष्य में इस प्रकार की कृपा से वंचित कर सकती है।
 

 टैरिया में जन्म प्राप्त होने पर मुझे गर्व है. एक ऐसा गाँव जिसके विषय में उस क्षेत्र के थानेदार को भी जानकारी नहीं होती थी.गौतम इंटर कॉलेज ,पिपरा रामधर जब नौवीं में पढ़ने गया ,उस समय बड़ी मुस्किल होती थी ,यह बताने में की यह गाँव कहाँ स्थित है.तब यही कहना पड़ता था---लोहरौली और बिराजमार के मध्य ब्राह्मणों का एक छोटा सा गाँव है.वर्ष  1976 में  जब मैं  गोरखपुर विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने गया,उस समय स्थिति यह थी , अगर कोई मित्र अचानक घर आने का प्रयास किया तो उसे बैरिया आदि अनेक मिलते जुलते नाम वाले गांवो   और कहाँ कहाँ तक की यात्रा करनी पड़ी.आज स्थिति बदल गयी है. वैसे पहले भी अनेक प्रसिद्द लोग थे जिनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता था.उनमें से कुछ लोगों का उल्लेख करना सर्वथा समीचीन लगता है.
१.पंडित गजाधर तिवारी-प्रख्यात ज्योतिषी
२.पंडित सीता राम तिवारी मेरे पितामह , रेलवे कर्मचारी , वेहद धार्मिक एवं करुणामय व्यकतित्व.
३.पंडित मुक्ति नाथ  तिवारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी.
४.पंडित अवधेश कुमार तिवारी, मेरे पिताजी , विद्वान शिक्षक , कवि- हृदय,अत्यंत लोकप्रिय ,मनभावन व्यकतित्व.
५.पंडित राज किशोर  तिवारी, गाँव के पहले स्नातक B.H.U. से ,रेलवे कर्मचारी , विद्वान एवं निष्पक्ष व्यकतित्व.
६. पंडित राम छबीला   तिवारी, हंसमुख मिलनसार एवं संगीत प्रेमी
उक्त व्यक्ति आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी स्मृतियाँ सदैव हम लोगों का मार्गदर्शन करती रहेंगी ऐसा मेरा विश्वास है.पुरानी  पीढ़ी के बुज़ुर्ग पंडित बांके बिहारी  तिवारी-प्रख्यात ज्योतिषी एवं पंडित राधा कृष्ण तिवारी रेलवे कर्मचारी आज भी हमारे बीच जीवित हैं और उनके आशीर्वाद पूरा गाँव ही नहीं पूरा क्षेत्र लाभान्वित हो रहा है. 





Sometimes it happens in life that a man may be talented, brilliant, honest and hardworking. Yet, fortune may not smile on him. He may never make much headway in life in spite of being blessed with abundance of intelligence and despite having worked hard. Or there may be other misfortunes that strike him.


जन्मभूमि
सुरसरि सी सरि है कहा मेरू सुमेर समान।
जन्मभूमि सी भू नहीं भूमंडल में आन।।
.........................................
प्रतिदिन पूजें भाव से चढ़ा भक्ति के फूल।
नहीं जन्म भर हम सके जन्मभूमि को भूल।।

जन्मभूमि में हैं सकल सुख सुषमा समवेत।
अनुपम रत्न समेत हैं मानव रत्न निकेत।।
-- अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' 







              गाँव का काली माता का मंदिर

                    Rameshwar Nath Tiwari (1974)


                       R.N.Tiwari 1976

बचपन
बारबार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया, ले गया तू जीवन की सब से मस्त खुशी मेरी।।

चिन्ता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छन्द।
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनन्द?

.................................................................
जिसे खोजती थी बरसों से अब जाकर उसको पाया।
भाग गया था मुझे छोड़कर वह बचपन फिर से आया।।

-सुभद्रा कुमारी चौहान







            


                  विवेकानंद तिवारी





                
              विवेकानंद तिवारी,विनय तिवारी,विजय शंकर तिवारी




                अनुराग  तिवारी एवं विवेकानंद तिवारी. 

                 
                  Rajeshwar Nath Tiwari






                My house at Village Tairia






The Person who made history--Rajeshwar Nath Tiwari ,Gram Pradhan.




          रामेश्वर नाथ तिवारी पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्र शेखर जी के साथ 



 
          Hon. Justice A.K.Tripathi,Allahabad High Court & R.N.Tiwari 


विचारहीन व्यक्ति सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। यदि उसे जाने-अनजाने में सफलता मिल भी जाए तो उसका अहसास व अनुभव नहीं कर सकता। विचारों के बाद विवेक की जरूरत है। विचार विवेक के बाद उन्हें वर्तन करना जरूरी है। दो चित्त वाला मनुष्य सफल नहीं हो सकता है। वह जीवन में चार बातों को कभी न भूलें। मां, जन्मभूमि, जन्म संस्था व जन्म की भाषा। जिस जन्म भूमि ने उसको जन्म दिया उसकी सेवा करना भी इंसान का दायित्व है।





The very famous Digeshwar Nath temple ( Lord Shiva temple ) is located very lose to Majhauli Raj. This temple is very old temple which was renovated with self less efforts of Bangali Baba and help and cooperation of then D.M. of Deoria. After death of Bangali Baba, this place has become a place  of pilgimage.




We can reach TAIRIA  by four wheeler and Two wheeler within less than 20 minutes. Its nearest Railway station is Salempur Jn Approx.3KM.







PARSHURAM DHAM,SOHNAG, 
A place of cultural & historical importance 'ParashuramDham'where lord PARSHU- RAM of Ramayan were living & worshiping.
The famous Parasu Ram dham Sohnag, related to  Bhagwan Parasuram is just 7Km from Salempur .This place which was very famous for Sohnag Mela on Akshay Tritiya also called EKTIJIYA KA MELA. This place is associated with lord Parasuram's epic story. There is a pond which is always full of lotus flowers.

Salempur (Presently under Deoria District U.P.) was under Gupta and Pal dynasty. Due to thick forest all-around it was never invaded by Muslim rulers.
In Mugal period their representative Salim Khan was here which was the source of its name.Salempur was named after name of Salim Khan. It was under Majhauliraj.The Mall dynasty ruler.
One of the king of Majhauliraj accepted Islam as religion so the queen became angry and made her residence across the Bhat(a type of land) thus the name BhatparRani came into existence.




Deoria District came into existence on  March 16' 1946 from Gorakhpur district.The name DEORIA is derived from 'Devaranya' or probably 'Devpuria' as believed.According to official gazzettes,the district name 'deoria' is taken by its headquarter name 'Deoria'  and the term ' DEORIA' generally means a place where there are temples.  The name ' DEORIA' originated  by a fossil( broken) Shiva Temple by the side of 'kurna river' in its  northside.
This district is located between 26 ° 6' north and 27° 8'  to 83° 29'  east    and  84° 26' east longitude out of which district Kushinagar was created in 1994 by  taking north & east portion of Deoria district.District deoria is surrounded by district kushinagar in North, district Gopalganj & Siwan(Bihar state)in  East ,district Mau & district Ballia in south and district  Gorakhpur in West.Deoria district headquarter is situated at 53 km. milestone from Gorakhpur by road towards east.Ghaghara, Rapti & Chhoti Gandak are the main rivers in this district.



Welcome to Tairia  Village in Deoria District
Social and Developmental Canvas of the village
Statistical analysis base : Census 2001 unless mentioned otherwise

No of Households
22



Total Population176
Population below 06 yrs37
Male Population74
Population below 06 Male17
Female Population102
Population below 06 Female20
Total Agriculture Labour16


Marginal Agriculture Labour - Male5
Marginal Agriculture Labour - Female11
Literate Polulation109
 Illiterate Population67
Male Literate54
Male illiterate population20
Female Literate55
Female illiterate population47
No of Households
22

Working Population67
Main working population20


Main Working Population Male6
Main Working Population Female14
Main Casual Working Population3
Total Casual labour
Main Casual Working Population
Male
0
Main Casual Working Population
Female
3
Number of SC
33



Male SC Population13
Female SC Population20
Number of ST
0



Male ST Population0
Female ST Population0





मोमोज़ की कहानी:

मोमोज़





नॉर्थ ईस्‍ट की यह डिश कैसे बन गई इतनी पॉपुलर ??

मोमो का मतलब मोमो एक चाइनीज़ शब्‍द है जिसका मतलब है भाप में पकी हुई रोटी



मोमोज़ एक ऐसी डिश है जिसे एक बार खाने पर दिल बार बार उसी को चाहता है। यह ना केवल दिल्‍ली और लखनऊ में ही फेमस है बल्‍कि साउथ में भी लोग इसे बड़ी अच्‍छी तरह से पहचानने लगे हैं। आप इन्‍हें सड़कों पर भी बिकता हुआ देख सकते हैं और बडे़-बडे़ रेस्‍ट्रॉन्‍ट्स में भी।

 लखनऊ के 20 नवाबी जायके जिन्‍हें खाने के बाद आप भी कहेंगे वाह जनाब बिना तेल-मसाले की यह डिश स्‍टीम में पकाई जाती है इसलिये शायद यह सभी के दिल पर राज करती है। पर क्‍या आपने सोंचा है कि पूरे भारत में बिकने वाला मोमोज़ भला यहां तक पहुंचा कैसे? लोग मानते हैं कि मोमोज़, नॉर्थ ईस्‍ट का खाना है, जहां से यह आया है।



 ऐसे बनाइये टेस्‍टी मोमोज मोमोज़ तिब्‍बत और नेपाल की पारंपरिक डिश है जहां से यह आई। लेकिन नॉर्थ ईस्‍ट में शिलांग एक ऐसी जगह है जहाँ अन्य राज्यों की तुलना में सबसे स्वादिष्ट मोमो बिकते हैं। यहां पर मीट से तैयार किये मोमो ज्‍यादा खाए जाते हैं। इन 8 भारतीय खानों ने विदेशों में भी मारी है बाजी शिलांग में मोमोज़ एक चीनी समुदाय दृारा लाया गया था, जो चीन से आ कर शिलांग में बस गया था। और फिर उसी समुदाय ने चाइनीज़ फूड, जिसमें खास तौर पर मोमोज़ (पारंपरिक तिब्बती) की शुरुआत की।इन लोगों का अहम आहार है मोमोज़ वहीं दूसरी ओर मोमोज़, अरुणाचल प्रदेश के मोनपा और शेरदुकपेन जनजाति, जिसका बॉर्डर पूरी तरह से तिब्‍बत से जुड़ा हुआ है, उनके आहार का भी एक अहम हिस्‍सा है। इन जगहों पर मोमोज़ की फिलिंग में पोर्क और सरसों की पत्‍तियां तथा अन्‍य हरी सब्‍जियां भर कर डाली जाती हैं और फिर इसे तीखी मिर्च के पेस्‍ट के साथ सर्व किया जाता है।

सिक्किम तक कैसे पहुंचा मोमोज़ अब आइये बात करते हैं कि मोमोज़ सिक्किम तक कैसे पहुंचा? यहां पर मोमोज़, भूटिया, लेपचा और नेपाली समुदायों की वजह से पहुंचा, जिनके आहार का हिस्‍सा मोमोज़ रहा करता था। सिक्‍किम में जो मोमोज़ बनाए जाते हैं, वह तिब्‍बती मोमोज़ जैसा ही होता है। 1960 के दशक में बहुत भारी संख्या में तिब्बतियों ने अपने देश से पलायन किया, जिसकी वजह से उनकी कुज़ीन भारत के सिक्किम, मेघालय, पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग और कलिमपोंग के पहाड़ी शहरों और दिल्ली तक पहुंच गई।


किस चीज़ की होती है फिलिंग सिक्‍किम में बीफ और पोर्क मोमोज़ में भरने के लिये एक पारंपरिक चीज़ मानी जाती है। लेकिन यहां का क्राउड तो चिकन, वेजिटेबल और चीज़ से भरे मोमोज़ का खासा दीवाना है।

मोमो या डिमसम ? जहां मोमो नेपाल, तिब्‍बत और भूटान में मोमोज़ के नाम से जाना जाता है वहीं मोमोज़ चाइना में अलग नाम "डिमसम" के नाम से जाना जाता है। चाइनीज़ डिमसम में सूअर का मांस,बीफ, झींगा, सब्जियां और टोफू आदि भरे जाते हैं।

नैमिषारण्य

गोरखपुर विश्वविद्यालय और डॉ चन्द्र बदन तिवारी





 गोरखपुर विश्वविद्यालय और डॉ चन्द्र बदन तिवारी
Although the idea of residential University at Gorakhpur was first mooted by C. J. Chako, the then Principal of St. Andrews College, then under Agra University, who initiated post-graduate and undergraduate science teaching in his college, the idea got crystallized and took concrete shape by the untiring efforts of Dr S. N. M.Tripathi.ICS.who was actively thinking of establishing the University in Gorakhpur when he was collector at Gorakhpur.
The proposal was accepted in principle by the Chief Minister of U.P., Gobind Ballabh Pant, but it was only in 1956 that the University came into existence by an act passed by the U.P. Legislature.
Mahant Digvijay Nath also made valuable contribution in the formation of the University.
It actually started functioning since 1 September 1957, when the faculties of Arts, Commerce, Law and Education were started Geography department started its functioning on 16th July 1958, one year after the inception of University. Geography Department of the Maharana Pratap Degree College, Gorakhpur was merged in the university.
At the initial stage time there were only three faculties in Geography department. Dr. Mahatma Singh as the Head of the department and Dr. Chandra Badan Tiwari and Dr. (Miss) Surinder Pannu as lecturers.
Dr. Chandra Badan Tiwari, the senior most Lecturer ( one of the founders ) was appointed as Reader in Dec.1977. Phirtu Ram Chauhan joined the department in Januaryl978 to fill the vacancy of Dr. M. Singh who was retired earlier .Before joining the department he was serving at Sant Vinoba Degree College Deoria on same post Dr. Ujagir Singh retired on 30th June 1979 after serving the department as Professor and Head for about 12 years.
Dr. C.B.Tiwari ( Chandra Badan Tiwari) left the department as he became Principal of Buddha P.G. College Kushinagar, by the end of 1980 and thereafter he was elevated as Vice-Chancellor of Meerut University. The department shifted in new building of its own on 26th Jan. 1981. In Feb.1981 Dr. Jagdish Singh was appointed as Professor and V K.Srivastava as Reader.
Hostels
• Sant Kabir Hostel
• Gautam Buddha Hostel
• Vivekanand Hostel
• Nath Chandravat Hostel
• Rani Lakshmi Bai Mahila Hostel world
NOTABLE ALUMNI
Rajnath Singh, former chief minister of UP, president Bharatiya Janta Party and union home minister of India.
Chandrapal Singh Yadav, a Samajwadi Party MP from Jhansi.
Veer Bahadur Singh ,former chief minister of UP
Ravindra Singh , MLA
Jagdambika Pal , a Bharatiya Janta Party MP from Doomariyaganj.
Mata Prasad Pandey , Speaker of Uttar Pradesh Assembly.
Parichay Das,eminent bhojpuri-hindi writer, Ex Secretary, Maithili-Bhojpuri Academy, Delhi Govt. and Ex Secretary, Hindi Academy, Delhi Govt.
Kalp Nath Rai Former Union Minister
गोरखपुर विश्वविद्यालय और डॉ चन्द्र बदन तिवारी
कहते है जब किसी कार्य वश डॉ सी बी तिवारी बुद्धा स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राचार्य थे, लखनऊ गए थे , उस समय श्री वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश मुख्य मंत्री थे उनसे मिले उन्होंने बड़े आदर भाव से उनका स्वागत किया . वास्तव में एक गुरु और उसके छात्र का यह मिलन बड़ा ही मनमोहक था . गुरु के चेहरे पर गर्व एवं संतोष का चिन्ह था की उनका छात्र उन्ही के प्रदेश का मुख्य मंत्री है . और क्या चाहिए ??
सुबह वे लखनऊ से गोरखपुर सुबह पहुंचे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा लोग फूल माला हर लेकर उनका स्वागत करने के लिए भोर में ही गोरखपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे हुए थे . उन्होंने लोगों से पूछा क्या बात है भाई ??
लोगों ने बताया ये लोग आज का अख़बार पढ़कर आये है —-आप मेरठ विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर बन गए हैं. और उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था , जब लोगों ने अख़बार दिखाया फिर उन्हें विश्वास हुआ .

शमी का पेड़- Prosopis spicigera.


अति प्रसन्न शमी बृक्ष की दिव्य छटा......











शमी - Prosopis spicigera.


Shami trees are planted for checking desertification, and stabilization of sand dunes.These trees are also planted for the reclamation of land.Shami is a rare medicinal tree and it can grow in very harsh climatic
conditions, and in poor or degraded soil. Roots of shami can grow down as deep as 35 meters in search of water.Being a Legume, it adds nitrogen to the soil and increases its fertility.
Shami the sacred plant is the beloved tree of Lord Rama & the protector of the arms of Pandavas during their one year long "Agyaat Vaas". Shami protects human beings from the bad forces of Shani, and the symbol of victory in all walks of life … Shami samyate papam …”,
Ayurvedic Uses:Shami is an important medicinal plant. Ayurveda recommends it for the treatment of a number of ailments and iseases like mental disorder, Schizophrenia, respiratory tract infection, excessive heat, herpes, loose motion, leucorrhoea etc. but different parts of the plant are used for different purposes.
The extract of leaves of shami tree has been reported to kill intestinal parasitic worms. Its extract is reported to be useful in the treatment of leprosy also.The methanolic extract of shami leaves has anti-inflamatory activities.The pods and roots of the plant have been reported to possess astringent properties, and are used for the treatment of dysentery. Flowers of shami when mixed with sugar, are eaten by women during pregnancy as a safeguard against miscarriage.
The bark of SHAMI is used in Ayurvedic formulations for its medicinal benefits in ailments like: Diarrhea, Anorexia, Piles, Rheumatoid Arthritis, Asthma, Chronic cough & minor Skin diseases. Pods are indicated un Uro-genital conditions.









माता पार्वती ने शमी वृक्ष की महत्ता पर विस्तार से बताने को कहा तो भगवान शिव ने कहा- दुर्योधन ने पांडवों को इस शर्त पर वनवास दिया था कि वे बारह वर्ष प्रकट रूप से वन में घूमें, लेकिन एक वर्ष पूरी तरह से अज्ञातवास में रहें। और अज्ञातवास के दौरान अगर पांडवों का परिचय किसी ने जान लिया तो फिर से उन्हें 12 साल का वनवास भोगना होगा। इस अज्ञातवास के दौरान ही अर्जुन ने शमी वृक्ष पर अपने धनुष और बाण रख थे। राजा विराट के यहां बृहन्नला के रूप में रह रहे अर्जुन दुर्योधन के नेतृत्व में आए कौरवों से गायों की रक्षा के लिए राजा विराट के पुत्र उत्तर के सारथी बने और उस समय शमी वृक्ष से अपने धनुष और बाण उतारे। उत्तर को विश्वास दिलाया कि वह ही अर्जुन है। शमी ने तब तक देवता की तरह अपने खोल में उनके धनुष और बाण की पूरी तरह से रक्षा की। ऐसे ही शमी वृक्ष की पूजा जब भगवान राम ने की तो शमी ने कहा- आपकी विजय होगी। दशहरे के दिन शमी वृक्ष का पूजन राजाओं द्वारा किया जाता है। घर के ईशान कोण में विराजमान शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है।


कर्म और भाग्य

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अनंतकाल से इस विषय पर बहस चली आ रही है कि कर्म महत्वपूर्ण है या भाग्य। जीवन में अगर आपको कुछ पाना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी। मंजिलें उन्हीं को मिलती है जो उसकी ओर कदम बढ़ाते हैं। 

महाभारत में जब अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध में अपने स्वजनों को अपने सामने खड़ा पाया तो उसका ‍शरीर निस्तेज हो गया। हाथों से धनुष छूट गया। प्राणहीन मनुष्य के समान वह धरती पर गिर गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता के कर्म ज्ञान का उपदेश दिया। 
भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि राज्य तुम्हारे भाग्य में है या नहीं यह तो बाद में, पहले तुम्हें युद्ध तो लड़ना पड़ेगा। तुम्हें अपना कर्म तो करना पड़ेगा अर्थात स्वजनों के खिलाफ युद्ध तो लड़ना पड़ेगा। तुलसीदासजी ने भी श्रीरामचरित मानस में लिखा है- 'कर्म प्रधान विश्व करि राखा'। अर्थात युग तो कर्म का है। 

इसका अर्थ यह हुआ कि हम अपना कार्य करें, फल ‍की चिंता बाद में करें। किसान जब खेत में बीज बोता है तो उसे यह नहीं पता होता कि बारिश होगी या नहीं। जमीन में से बीज से अंकुर फूटेगा या नहीं। अगर पौधे आ भी गए तो उस पर फल आएंगे या नहीं। लेकिन किसान बीजों को जमीन बोता है और फसल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देता है। 
भाग्य का समर्थन करने वाले कहते है कि हमें जो सुख, संपत्ति, वैभव प्राप्त होता है वह भाग्य से होता है। जैसे लालूप्रसाद यादव की पत्नी राबड़ीदेवी बिहार की मुख्यमं‍त्री बनीं तो यह उनकी किस्मत थी। डॉ. मनमोहनसिंह भारत के प्रधानमंत्री बने तो उनकी कुंडली में राजयोग था। अगर ‍किसी अभिनेता का बेटा अभिनेता बनता है तो यह उसका भाग्य रहता है कि वह ‍अभिनेता के यहां पैदा हुआ।
जब चार लोग एक समान बुद्धि और ज्ञान रखने वाले एक ही समान कार्य को करें और उनमें से सिर्फ दो को ही सफलता मिले तो हम इसे क्या कहेंगे। दो लोगों के साथ भाग्य साथ नहीं था। ऐसा एक उदाहरण हम यह दे सकते हैं दो व्यक्ति एक साथ लॉटरी का टिकट खरीदते हैं पर लगती लॉटरी एक ही व्यक्ति की है। जब दोनों ने लॉटरी खरीदने का कर्म एक साथ किया तो फल अलग-अलग क्यों? 
अंत में यही कहा जा सकता है कि भाग्य भी उन लोगों का साथ देता है जो कर्म करते हैं। किसी खुरदरे पत्थर को चिकना बनाने के लिए हमें उसे रोज घिसना पड़ेगा। ऐसा ही जिंदगी में समझें हम जिस भी क्षेत्र में हों, स्तर पर हों हम अपना कर्म करते रहें बिना फल की चिंता किए। जैसे परीक्षा देने वाले विद्यार्थी परीक्षा देने के बाद उसके परिणाम का इंतजार करते हैं। 

कर्म और भाग्य एक अन्योन्याश्रित हैं। कर्म के बिना भाग्य फलदायी नहीं होता और भाग्य के बिना कर्म। इस बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि वे एक दूसरे के पूरक हैं और एक ही सिक्के के पहलू हैं।
       यदि मनुष्य का भाग्य प्रबल होता है तब उसे थोड़ी मेहनत करने पर अधिक फल प्राप्त होता है। यदि वह सोचे कि मैं बड़ा बलवान हूँ मुझे मेहनत करने की क्या आवश्यकता है। सब मेरे पास थाली में परोस कर आ जाएगा तो यह उसका भ्रम है। श्रम न करके वह अपना स्वर्णिम अवसर खो देता है। उस समय अहंकार के वशीभूत वह भूल जाता है कि ईश्वर बार-बार अवसर नहीं देता।
      इसके विपरीत कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मनुष्य कठोर श्रम करता है परंतु आशा के अनुरूप उसे ल नहीं मिलता। इसका यह अर्थ नहीं कि वह परिश्रम करना छोड़कर निठल्ला बैठ जाए और भाग्य को कोसे या ईश्वर को।
        मनुष्य को अपने भाग्य और कर्म दोनों को एक समान मानते हुए बार-बार सफलता प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। हमेशा चींटी का श्रम याद रखिए जो पुनः पुनः प्रयास करके अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो जाती है।
     
        जब-जब हम अपने बाहुबल पर विश्वास करके कठोर परिश्रम करेंगे तो हमारा भाग्य देर-सवेर अवश्यमेव फल देगा। शर्त यह है कि अवसर की प्रतीक्षा करते हुए हमें हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना है अन्यथा हम अच्छा अवसर खो देंगे।

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...