21 मार्च, 2016

वृद्धावस्था




वृद्धावस्था कोई आश्चर्य जनक घटना नहीं है
मनुस बेचारे की बात करे कौन हरिहर ,
दिनकर की तीन गति होत एक दिन में.
जिसने जन्म लिया है उसे मरना भी होता है . लेकिन मैं मरूंगा यह बात मानाने को कोई तैयार नहीं होता . सिद्धार्थ जब किसी व्यक्ति की अंतिम यात्रा देखकर उत्सुकता बस पूछते है तो उन्हें बताया जाता है की इनकी मौत हो चुकी है .शायद ऐसी बात ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया …..एक दिन सबको मरना होता है……
जब आदमी चकाचौध के कारन समझ नहीं पाता है तो कहता है मरने के पहले जिन्दा रहना है . अभिप्राय यह की वह जो कुछ कर रहा है जीने के लिए कर रहा है..
वास्तविक ज्ञान शमशान भूमि में ही प्राप्त होता है . इसीलिए घर आते ही उसे लाल मिर्च खाने के लिए
दिया जाता है , तीखा लगेगा तो जो ज्ञान उत्पन्न हुआ था , वह विचलित हो जाता है , इस दुनिया वापस आ जाता है ……..शायद यही इस दुनियां की वास्तविकता है.
समय का चक्र तो अबाध गति से चलता रहता है। नियति का स्वाभाव है। आज जो बालक है वह कल युवा तो परसों वृद्ध होगा। इसकी कोइ निश्चित आयु सीमा नहीं है , कोई समय से पहले ही बूढा हो जाता है . कोई कुछ अधिक आयु सीमा जवान ही बने रहने का दिखावा करता है.
यह निर्विवाद सत्य है कि वृद्धावस्था में मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता है… सोचने की छमता भी धूमिल होने लगाती है .सबकी अपनी सोच है मैंने बचपन से वृद्ध लोंगो को अधिक सम्मान दिया है ,हालाँकि उस समय सोच भी उम्र के स्तर से कुछ बड़ी लगाती थी ….लगता था इनके साथ वितायें गए क्षणों में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और मिला भी.
अब धीरे धीरे उस दिशा की बढ़ रहे हैं तो लगता है अनुभव वृद्ध तो बहुत पहले हो गया था अब साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा है .
बर्रे बालक एक स्वभाउ …………भी समझ में आने लगा है सोचा लिपिबद्ध करने से समय भी कटेगा और शायद इस अनुभव का कुछ लाभ किसी को मिल सके.
जीवन में जिस वृद्ध को मैंने नज़दीक से देखा वह अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति हमेशा अपने बारे में ही सोचने में लगा रहना , दूसरे के विषय अपने स्वार्थ की प्रतिपूर्ति में ही सोचना ….. शायद यही सीमा सोच की सीमा थी.लेकिन इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता.              आया है सो जायेगा राजा रैंक फ़क़ीर
निम्न पक्तियां मुझे कुछ सोचने का मार्ग दिखा देती हैं
ख़ुदा ने खुदकशी कर ली जो देखा जान के बाद ,
जमीं पे कोई नमूना न आदमी का रहा
शायद यही इस जग की सच्चाई है . वृद्धावस्था में ज्ञान की चक्छुयें अत्यंत संवेदनशील हो जाती है .
आज के इस व्यस्ततम जीवन में किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है
जिंदगी सवारने की चाहत में,
हम इतने मशगूल हो गए…
चंद सिक्कों से तो रूबरू हुए,
पर ज़िन्दगी से दूर हो गए.
और फिर वही बात आती है सबकुछ लूटाके होश में आया तो क्या किया ???
कहते हैं…………. आओ जिंदगी के विषय में कुछ सोचें और उदास होएं ……
सच में अगर सोचते हैं तो उदास ही होंगें
R D N Srivastav  की कविता यहाँ पे याद आती है
जिंदगी एक कहानी है समझ लीजिये
दर्द भरी लन्ति रानी समझ लीजिये
चहरे पर खिले ये अक्षांश देशान्तर
उम्र की छेड़ कहानी समझ लीजिये
यह कहना गलत है कि कमी के कारण सीनियर सिटिजंस की देखभाल नहीं कर पाते। दरअसल नई पीढ़ी आत्मग्रस्त होती जा रही है। बसों में वे सीनियर सिटिजंस को जगह नहीं देते। बुजुर्ग अकेलापन झेल रहे हैं क्योंकि युवा पीढ़ी उन्हें लेकर बहुत उदासीन हो रही है , मगर हमें भी अब इन्हीं सबके बीच जीने की आदत पड़ गई है। सीनियर सिटिजंस की तकलीफ की एक बड़ी वजह युवाओं का उनके प्रति कठोर बर्ताव है।
लाइफ इतनी फास्ट हो गयी है की सीनियर सिटिजंस के लिए उसके साथ चलना असंभव हो गया है। एक दूसरी परेशानी यह है कि युवा पीढ़ी सीनियर सिटिजंस की कुछ भी सुनने को तैयार नहीं- घर में भी और बाहर भी। दादा-दादियों को भी वे नहीं पूछते, उनकी देखभाल करना तो बहुत दूर की बात है। जिंदगी की ढलती साँझ में थकती काया और कम होती क्षमताओं के बीच हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का सबसे बड़ा रोग असुरक्षा के अलावा अकेलेपन की भावना है।
बुजुर्ग लोगों को ओल्ड एज होम में भेज देने से उनकी परिचर्या तो हो जाती है, लेकिन भावनात्मक रूप से बुजुर्ग लोगों को वह खुशी और संतोष नहीं मिल पाता, जो उन्हें अपने परिजनों के बीच में रहकर मिलता है। शहरी जीवन की आपाधापी तथा परिवारों के घटते आकार एवं बिखराव ने समाज में बुजुर्ग पीढ़ियों के लिए तमाम समस्याओं को बढ़ा दिया है। कुछ परिवारों में इन्हें बोझ के रूप में लिया जाता है।

वृद्धावस्था में शरीर थकने के कारण हृदय संबंधी रोग, रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों के दर्द जैसी आम समस्याएँ तो होती हैं, लेकिन इससे बड़ी समस्या होती है भावनात्मक असुरक्षा की। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ाहट, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मानवीय संबंध परस्पर प्रेम और विश्वास पर आधारित होते हैं। लेकिन इसे समझनेवाला है कौन ??
जिंदगी की अंतिम दहलीज पर खड़ा व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों को अगली पीढ़ी के साथ बाँटना चाहता है, लेकिन उसकी दिक्कत यह होती है कि युवा पीढ़ी के पास उसकी बात सुनने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं होता।

29 सितंबर, 2015

पिता जी की डायरी से...






बिन ढूढे मिले नहीं , अपना ही पहचान .
क्या ढुढत हो गैर को,बसत जहाँ अज्ञान .
बसत जहाँ अज्ञान, राम भी पास में आये,
मनुष्य जीवन धन्य,बृथा नर मुर्ख गवाए,
कहें मौन कविराय , जग मन दुःख ही दुःख है
अपने को पहचान,सदा ही सुख ही सुख है.

-अवधेश कुमार तिवारी

29 September 2004



मृत्यु जीवन का सत्य है लेकिन एक सत्य, मृत्यु के बाद शुरु होता है। इस सच के बारे में, बहुत कम लोग जानते हैं। क्या वाकई, मृत्यु के समय व्यक्ति को कोई दिव्य दृष्टि मिलती है? आखिर मृत्यु के कितने दिनों बाद, आत्मा यमलोक पहुंचती है? गरुण पुराण में, भगवान के वाहन गरुण, श्रीहरि विष्णु से मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति को लेकर प्रश्न उठाते हैं। वह पूछते हैं कि मृत्यु के बाद, आत्मा कहां जाती है? इसका उत्तर भगवान विष्णु ने, गरुण पुराण में दिया है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है।
क्या होता है मृत्यु से पहले?
गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु से पहले, मनुष्य की आवाज चली जाती है। जब  अंतिम समय आता है, तो मरने वाले व्यक्ति को दिव्य दृष्टि मिलती है। इस दिव्य दृष्टि के बाद, मनुष्य, सारे संसार को, एक रूप में देखने लगता है। उसकी सारी इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं।
क्या होता है मृत्यु के समय?
गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु के समय 2 यमदूत आते हैं। इनके भय से अंगूठे के बराबर जीव, हा हा की आवाज़ करते हुये, शरीर से बाहर निकलता है। यमराज के दूत, जीवात्मा के गले में पाश बांधकर, उसे यमलोक ले जाते हैं। इसके बाद, जीव का सूक्ष्म शरीर, यमदूतों से डरता हुआ आगे बढ़ता है।
कैसा है मृत्यु का मार्ग?
मृत्यु का रास्ता अंधेरा और गर्म बालू से भरा होता है। यमलोक पहुंचने पर, पापी जीव को यातना देने के बाद, यमराज के कहने पर, उसे आकाश मार्ग से घर छोड़ दिया जाता है। घर आकर वह जीवात्मा, अपने शरीर में, फिर से घुसना चाहती है। लेकिन यमदूत के पाश से मुक्त नहीं हो पाती है। पिंडदान के बाद भी, वह जीवात्मा तृप्त नहीं हो पाती है। इस तरह भूख प्यास से बेचैन आत्मा, फिर यमलोक आ जाती है। जब तक उस आत्मा के वंशज, उसका पिंडदान नहीं करते, तो आत्मा दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय यातना भोगने के बाद, उसे विभिन्न योनियों में नया शरीर मिलता है। इसीलिये मनुष्य की मृत्यु के 10 दिन तक, पिंडदान ज़रुर करना चाहिए। दसवें दिन पिंडदान से, सूक्ष्म शरीर को चलने की शक्ति मिलती है। मृत्यु के 13वें दिन फिर यमदूत उसे पकड़ लेते हैं। उसके बाद शुरू होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। वैतरणी नदी को पार करने में पूरे 47 दिन का समय लगता है। उसके बाद जीवात्मा यमलोक पहुंच जाती है।
क्या है गरुण पुराण?
गरुण पुराण के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं। इसमें 19 हजार श्लोक थे, लेकिन अब सिर्फ 7 हज़ार श्लोक ही हैं। गरुण पुराण 2 भागों में है। पहले भाग में श्रीविष्णु की भक्ति, उनके 24 अवतार की कथा और पूजा विधि के बारे में बताया गया है। दूसरे भाग में, प्रेत कल्प और कई तरह के नरक के वर्णन है। मृत्यु के बाद मनुष्य की क्या गति होती है? उसे किन-किन योनियों में जन्म लेना पड़ता है? क्या प्रेत योनि से मुक्ति पाई जा सकती है? श्राद्ध और पिंडदान कैसे किया जाता है? श्राद्ध के कौन-कौन से तीर्थ हैं? मोक्ष कैसे मिल सकता है? इस बारे में विस्तार से वर्णन है।
गरुण पुराण की कथा
महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद जीवात्मा की स्थिति के बारे में प्रश्न किया था। तब विष्णु जी ने, मृत्यु के बाद की जीवात्मा की गति के बारे में, गरुण को बताया था। इसीलिए इसका नाम गरुण पुराण पड़ा।
गरुण पुराण का विषय
गरुण पुराण की शुरुआत में सृष्टि के बनने की कहानी है। इसके बाद सूर्य की पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा, नवव्यूह की पूजा विधि के बारे में बताया गया है। साथ ही साथ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार और निष्काम कर्म की महिमा भी बताई गयी है। श्राद्ध में गरुण पुराण के पाठ से आत्मा को मुक्ति और मोक्ष मिलता है। इसीलिये श्राद्ध के 15 दिनों में जगह जगह गरुण पुराण के पाठ का आयोजन होता है। अपने पितरों और पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के  लिये, ज़रूर पढ़ें गरुण पुराण।

26 फ़रवरी, 2014

रामेश्वर नाथ तिवारी








अपने बारे में

मेरा जन्म    तेरह जनवरी  उन्नीस सौ उनसठ को   ग्राम  टैरिया  , पत्रालय - सोहनाग,  तहसील-सलेमपुर  , जिला  देवरिया , उत्तर प्रदेश  में हुआ। पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी प्राइमरी स्कूल तिलौली ,सोहनाग में सहायक अध्यापक थे . बाद में प्रधान अध्यापक और फिर जूनियर हाई स्कूल सोहनाग में सहायक अध्यापक हो गए थे और वाही से रिटायर भी गए थे .

 पिता जी ृ रिटायरमेंट के बाद अपना पूरा समय भगवान की भक्ति में और काव्य रचना में व्यतीत करते थे .  अधय्त्मिक उत्कर्ष इतना अधिक हो गया था की वे संसार की हर बात को मिथ्या समझ बैठे थे .

जब भी दुखी और चिंतित होता हूँ  उनकी कविताओं से बड़ी राहत मिलती है और एक दिव्य दृष्टि भी .

देख रहा हूँ सपना क्या है ?
सपना है तो अपना क्या है ?

विशुद्ध ग्रामीण परिवेश    टैरिया  नामक  गाँव , देवरिया जनपद में सलेमपुर से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . यह प्रसिद्ध सोहनाग , परशुराम धाम सोहनाग  से मात्र २ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है . ऐतिहासिक धार्मिक केंद्र .

नाना पंडित राम चन्द्र शर्मा ,प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  थे।

पितामह पंडित श्री  सीता राम तिवारी रेलवे में कार्यरत थे । अत्यंत दयालु स्वाभाव  के थे .


सोहनाग  के प्रसिद्द  प्राइमरी  स्कूल से पाचवी  पास की एवं जूनियर  हाई स्कूल सोहनाग से आठवीं । बाद में गौतम इण्टर कॉलेज पिपरा रामधर से  दसवीं और बारहवी उत्तर प्रदेश  बोर्ड, इलाहाबाद   से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ.   बारहवी में  मैरिट लिस्ट में नाम था –जनपद में प्रथम स्थान  था ।    गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर    में  जब बी.ए . प्रवेश लिया तो      विश्व विद्यालय  में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था .       गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर से इंग्लिश, संस्कृत और भूगोल विषय से प्रथम श्रेणी में बी.ए .  १९७८ में   उत्तीर्ण हुआ . गोरखपुर विश्व विद्यालय से ही एम् .ए .भूगोल  १९८० में उत्तीर्ण हुआ ।

मदन मोहन मालवीय डिग्री कॉलेज भाटपार रानी में लेक्चरर शिप न हो पाने के बाद  गांव छोड़ने निश्चय किया और यहाँ पुणे ,महाराष्ट्र को अपनी कर्म स्थली बनाया .

कॉर्पोरेट्स में २५ साल कार्य किया . ग्रुप जनरल मैनेजर के पद पर पचीस  वर्षों कार्य करने के बाद त्याग पत्र दे  दिया  था . फाउंडर ट्रस्टी के रूप में मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की स्थापना भी किया था .

बाद में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन एंड एच आर साढ़े आठ साल रहा , इंदिरा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूट्स जिसमें के जी से   पी जी    तक की पढ़ाई होती थी मैनेजमेंट ,इंजीनियरिंग , फार्मेसी,इत्यादि .इत्यादि .
अब रिटायर्ड लाइफ बड़े आनंद से बीत रहा है .






































रामेश्वर नाथ तिवारी








अपने बारे में

मेरा जन्म    तेरह जनवरी  उन्नीस सौ उनसठ को   ग्राम  टैरिया  , पत्रालय - सोहनाग,  तहसील-सलेमपुर  , जिला  देवरिया , उत्तर प्रदेश  में हुआ। पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी प्राइमरी स्कूल तिलौली ,सोहनाग में सहायक अध्यापक थे . बाद में प्रधान अध्यापक और फिर जूनियर हाई स्कूल सोहनाग में सहायक अध्यापक हो गए थे और वाही से रिटायर भी गए थे .

 पिता जी ृ रिटायरमेंट के बाद अपना पूरा समय भगवान की भक्ति में और काव्य रचना में व्यतीत करते थे .  अधय्त्मिक उत्कर्ष इतना अधिक हो गया था की वे संसार की हर बात को मिथ्या समझ बैठे थे .

जब भी दुखी और चिंतित होता हूँ  उनकी कविताओं से बड़ी राहत मिलती है और एक दिव्य दृष्टि भी .

देख रहा हूँ सपना क्या है ?
सपना है तो अपना क्या है ?

विशुद्ध ग्रामीण परिवेश    टैरिया  नामक  गाँव , देवरिया जनपद में सलेमपुर से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . यह प्रसिद्ध सोहनाग , परशुराम धाम सोहनाग  से मात्र २ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है . ऐतिहासिक धार्मिक केंद्र .

नाना पंडित राम चन्द्र शर्मा ,प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  थे।

पितामह पंडित श्री  सीता राम तिवारी रेलवे में कार्यरत थे । अत्यंत दयालु स्वाभाव  के थे .


सोहनाग  के प्रसिद्द  प्राइमरी  स्कूल से पाचवी  पास की एवं जूनियर  हाई स्कूल सोहनाग से आठवीं । बाद में गौतम इण्टर कॉलेज पिपरा रामधर से  दसवीं और बारहवी उत्तर प्रदेश  बोर्ड, इलाहाबाद   से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ.   बारहवी में  मैरिट लिस्ट में नाम था –जनपद में प्रथम स्थान  था ।    गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर    में  जब बी.ए . प्रवेश लिया तो      विश्व विद्यालय  में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था .       गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर से इंग्लिश, संस्कृत और भूगोल विषय से प्रथम श्रेणी में बी.ए .  १९७८ में   उत्तीर्ण हुआ . गोरखपुर विश्व विद्यालय से ही एम् .ए .भूगोल  १९८० में उत्तीर्ण हुआ ।

मदन मोहन मालवीय डिग्री कॉलेज भाटपार रानी में लेक्चरर शिप न हो पाने के बाद  गांव छोड़ने निश्चय किया और यहाँ पुणे ,महाराष्ट्र को अपनी कर्म स्थली बनाया .

कॉर्पोरेट्स में २५ साल कार्य किया . ग्रुप जनरल मैनेजर के पद पर पचीस  वर्षों कार्य करने के बाद त्याग पत्र दे  दिया  था . फाउंडर ट्रस्टी के रूप में मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की स्थापना भी किया था .

बाद में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन एंड एच आर साढ़े आठ साल रहा , इंदिरा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूट्स जिसमें के जी से   पी जी    तक की पढ़ाई होती थी मैनेजमेंट ,इंजीनियरिंग , फार्मेसी,इत्यादि .इत्यादि .
अब रिटायर्ड लाइफ बड़े आनंद से बीत रहा है .






































गौतम इंटर कालेज पिपरा रामधर देवरिया उत्तर प्रदेश

 एक संस्थागत स्मृति-पत्र (Institutional Note / Tribute)  --- 🏫 गौतम इंटर कॉलेज, पिपरा रामधर, देवरिया (उ.प्र.) 📖 पर...