03 जून, 2013

उत्तम जीवन-प्रवंधन





 
बहुत सरलतम शब्दों में, भूत वह होता है जो बीत गया ( बासे फूल की तरह) ...अर्थात रीत गया ...!! भविष्य वह है, जो अभी खिला नहीं (कली
की तरह) ...!!! और वर्तमान हैं, जो हमारे पास है ( ताजे फूल की तरह) ... !!!

भूत और भविष्य दोनों हमें, नहीं की ओर ले जाते हैं, और वर्तमान, पूर्णता के, विस्तार की ओर..!!!!

अतः जीवन का आधार, सिर्फ और सिर्फ, वर्तमान को बनायें ...!!! जिससे भी मिलें, पूरे के पूरे वर्तमान में मिलें, ना भूत का कोई गिला-शिकवा , ना भविष्य की कोई आशा ...!

बस वर्तमान जो घट रहा है, उसे सहजता से घटने दें ...! क्योंकि कोई भी प्रयत्न, असहजता ही पैदा करेगा ...!

जैंसे, स्वांश भी यदि प्रयत्न से लेनी पड़े, तो वह भी रोग (अस्थमा) की ही निशानी हैं ..! अतः, अकर्म की स्थिति (साक्षी-भाव) से शुरुआत करें ., सहजता अपने आप प्रगट होती जायेगी ...!

और जब पूर्ण सहजता में स्थापित होते हैं, तो ज्ञात होता है कि,
जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा ....!!!!!

इससे उत्तम जीवन-प्रवंधन (कर्मठता ) का कोई सूत्र ही नहीं है ....! और वह भी दिलो-दिमाग को पूर्ण ताजा रखे हुये,
क्योंकि यह सूत्र, सहजता के मार्ग में आने वाले , सम्पूर्ण अवरोधों को , सहजता से ही, हटाता जाता है ...!!

फिर तो मित्र-वर :---

चाह गई चिंता गई, मनुआ बेपरवाह,
जाको कछु ना चाहिए, वो ही शाहंशाह ....!!!

29 मई, 2013

मित्र : गोस्वामी तुलसीदास

मित्र

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातकभारी
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना
जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है। अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुःख को सुमेरु (बड़े भारी पर्वत) के समान जाने॥1॥
जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई॥
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा॥
जिन्हें स्वभाव से ही ऐसी बुद्धि प्राप्त नहीं है, वे मूर्ख हठ करके क्यों किसी से मित्रता करते हैं? मित्र का धर्म है कि वह मित्र को बुरे मार्ग से रोककर अच्छे मार्ग पर चलावे। उसके गुण प्रकट करे और अवगुणों को छिपावे॥2॥
देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई॥
बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा॥3॥
देने-लेने में मन में शंका न रखे। अपने बल के अनुसार सदा हित ही करता रहे। विपत्ति के समय तो सदा सौगुना स्नेह करे। वेद कहते हैं कि संत (श्रेष्ठ) मित्र के गुण (लक्षण) ये हैं॥3॥
आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई॥
जाकर ‍िचत अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई॥4॥
जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है- हे भाई! (इस तरह) जिसका मन साँप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है॥4॥
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥
सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें॥
मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र- ये चारों शूल के समान पीड़ा देने वाले हैं। हे सखा! मेरे बल पर अब तुम चिंता छोड़ दो। मैं सब प्रकार से तुम्हारे काम आऊँगा (तुम्हारी सहायता करूँगा)॥5॥

gazal

करे दरिया न पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे

बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे

वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे

वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कूचा-ओ-बाज़ार मेरे

तुम अपना हाल-ए-महजूरी सुनाओ
मुझे तो खा गये आज़ार मेरे

जिन्हें समझा था जानपरवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न बरदार मेरे

गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िन्दा सलमात यार मेरे

दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे

दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवायें ले उड़ी अशार मेरे

-महशर बदायुनी

इंप्लाइ अपने बॉस के कारण छोड़ते हैं नौकरी



इंप्लाइ अपने बॉस के कारण छोड़ते हैं नौकरी

कर्मचारियों के जॉब छोड़ने की कई वजहें होती है. कुछ अपने साथी कर्मचारियों से परेशान हो कर नौकरी छोड़ते हैं, तो कुछ नयी जॉब में बेहतर सैलरी की वजह से. लेकिन एसोचैम के एक सव्रे में यह बात सामने आयी है कि कई कर्मचारी अपने बॉस के कारण ही अपनी नौकरी से इस्तीफा देते हैं. ऑफिस अच्छा और ग्रो करने के बावजूद लोग अपने ऑफिस से रिजाइन दे देते हैं, क्योंकि उनके बॉस अच्छे नहीं होते हैं.
कुछ इंप्लाइ अपने बॉस से इतने तंग आ जाते हैं कि नौकरी छोड़ने के साथ-साथ वे अपना कैरियर भी बदल लेते हैं. बॉस के बुरे व्यवहार की वजह से उन्हें उस फील्ड से ही नफरत हो जाती है. वे दूसरी फील्ड में अपना कैरियर बनाने की कोशिश करते हैं. 70 प्रतिशत कॉरेस्पॉन्डेंट कहते हैं कि जितने इंप्लाइ नौकरी छोड़ते हैं, उनसे बात करने के बाद पता चलता है कि वे अपने बॉस के अजीब बर्ताव और एटीट्यूट से परेशान रहते थे.
सव्रे में लगभग 2500 एक्जीक्यूटिव्स ने हिस्सा लिया था. लगभग सभी का कहना था कि किसी भी ऑफिस में काम करने के लिए अच्छी सैलरी से ज्यादा अच्छा है कि काम करने के लिए बेहतर माहौल हो. उनका यह भी कहना था कि बॉस के खराब बर्ताव का असर इंप्लाइ की सेहत पर भी पड़ता है. लगभग 62 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके बॉस तो खराब बोली का भी इस्तेमाल करते हैं, जो कि एक फॉर्मल और कॉरपोरेट ऑफिसों में हरगीज नहीं होना चाहिए.
कई एक्जीक्यूटिव्स का कहना था कि उन्होंने अपने ऑफिस के मैनेजमेंट, सुपरवाइजिंग और माहौल की वजह से ऑफिस छोड़ा. वहीं 50 प्रतिशत लोगों का मानना है कि खराब बॉस के अंडर में काम करने से इंप्लाइ का आत्मविश्वास कम हो जाता है और प्रोडक्टिविटी पर भी काफी असर पड़ता है. जो इंप्लाइ खराब बॉस के अंडर काम करते हैं, वे काम में अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाते हैं और अपने बॉस से भी संतुष्ट नहीं होते हैं. ज्यादातर इंप्लाइ का कहना था कि एक बॉस को इनोवेटिव, क्रि एटिव, एक अच्छा मोटिवेटर और लीडर होना चाहिए, जो इंप्लाइ कीप्रोडक्टिव क्वालिटी को बढ़ा सके.
Source: Prabhat Khabar

Prolonged sitting may shorten our lives, say experts

Health Notes
Prolonged sitting may shorten our lives, say experts
New York: Emerging studies have found that prolonged sitting increases the risk of cardiovascular disease and diabetes, slows metabolism and even shortens our lives. A University of Sydney study has found that adults who sat 11 or more hours a day had a 40 per cent increased risk of dying in the next three years compared with those who sat for fewer than four hours a day, the New York Daily News reported. “That morning walk or trip to the gym is still necessary, but it’s also important to avoid prolonged sitting,” the paper quoted study author Dr Hidde van der Ploeg of the University of Sydney’s School of Public Health as saying in a statement. According to him, their results suggest the time people spend sitting at home, work and in traffic should be reduced by standing or walking more. For adults, van der Ploeg suggests a moderate intensity activity such as walking for at least 30 minutes in the morning. A similar report was earlier published in The British Journal of Sports Medicine, which highlighted a link between prolonged sitting and health. — ANI

25 मई, 2013

यज्ञोपवीत (जनेऊ) संस्कार - द्विज बालक

यज्ञोपवीत (जनेऊ) एक संस्कार है. इसके बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है. यज्ञोपवीत धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि भी है. शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है. यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कटि प्रदेश तक स्थित होती है. यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है. इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है. यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम-क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता.
अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है इसका मात्र एहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से परावृत्त होने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाए तो कोई आश्यर्च नहीं है. इसीलिए सभी धर्मों में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है. सारनाथ की अति प्राचीन बुद्ध प्रतिमा का सूक्ष्म निरीक्षण करने से उसकी छाती पर यज्ञोपवीत की सूक्ष्म रेखा दिखाई देती है. यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं बल्कि आरोग्य का पोषक भी है, अतएव एसका सदैव धारण करना चाहिए. शास्त्रों में दाएं कान में माहात्म्य का वर्णन भी किया गया है. आदित्य, वसु, रूद्र, वायु, अग्नि, धर्म, वेद, आप, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है. यदि इसे पवित्र दाएं कान पर यज्ञोपवीत रखा जाए तो अशुचित्व नहीं रहता.
यथा-निवीनी दक्षिण कर्णे यज्ञोपवीतं कृत्वा मूत्रपुरीषे विसृजेत.
अर्थात अशौच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना आवश्यक है. अपनी अशुचि अवस्था को सूचित करने के लिए भी यह कृत्य उपयुक्त सिद्ध होता है. हाथ पैर धोकर और कुल्ला करके जनेऊ कान पर से उतारें.
इस नियम के मूल में शास्त्रीय कारण यह है कि शरीर के नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है. दाएं कान को इतना महत्व देने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है. मूत्रोत्सर्ग के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने की संभावना रहती है. दाएं कान को ब्रह्मसूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है. यह बात आयुर्वेद की दृष्टि से भी सिद्ध हुई है. यदि बार-बार स्वप्नदोष होता हो तो  दाएं कान ब्रह्मसूत्र से बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है. बिस्तर में पेशाब करने वाले लड़कों को दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रूक जाती है.
किसी भी उच्छृंखल जानवर का दायां कान पकडऩे से वह उसी क्षण नरम हो जाता है. अंडवृद्धि के सात कारण हैं.
मूत्रज अंडवृद्धि उनमें से एक है. दायां कान सूत्रवेष्टित होने पर मूत्रज अंडवृद्धि का प्रतिकार होता है. इन सभी कारणों से मूत्र तथा पुरीषोत्सर्ग करते समय दाएं कान पर जनेऊ रखने की शास्त्रीय आज्ञा है.


24 मई, 2013

फिराक गोरखपुरी की ग़ज़ल




रुकी रुकी सी शब-ए-मर्ग ख़त्म पर आई
वोह पौ फटी, वोह नयी ज़िंदगी नज़र आई


ये मोड़ वोह है कि परछाईयाँ भी देंगी न साथ
मुसाफिरों से कहो, उसकी रहगुज़र आई


फिज़ा तबस्सुम-ए-सुबह-ए-बहार थी, लेकिन
पोहंच के मंजिल-ए-जानाँ पे आँख भर आई


कहाँ हर एक से इंसानियत का बार उठा
कि ये बला भी तेरे आशिकों के सर आई


ज़रा विसाल के बाद आईना तो देख ऐ दोस्त
तेरे जमाल की दोशीज़गी निखर आई


फ़िराक गोरखपुरी

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...