06 अक्टूबर, 2012

काशी महात्म

 
 
काशी महात्म
यह विश्वनाथ की काशी है, रक्षक इसका अविनाशी है /
"सर्वं सविघ्नंमोक्षाय साध्नाङ्काशिकां बिना /
काशी निर्विघ्नजननी कशीमोक्षस्य सत्खनिः //" काशी रहस्य १३.८३
काशी के बिना सभी साधन मोक्ष के विघ्न हैं, काशी निर्विघ्नता की जननी है, और काशी मोक्ष की खान है /
जो गति अगम महामुनि दुर्लभ, कहत संत श्रुति सकल पुराण /
सो गति मरण काल अपने पुर, देत सदा शिव सबहीं समान //
जोग कोटि करी जो गति हरि सों, मुनि मांगत सकुचाहीं /
वेद विदित तेहि पद पुरारी पुर, कीट पतंग समाहीं //

03 अक्टूबर, 2012

शरीर के अंगों पर तिल का मतलब

शरीर के अंगों पर तिल का मतलब
शरीर के विभिन्न अंगों पर तिल के निशान को लेकर अनेक प्रकार की धारणाएं देखने, सुनने और पढ़ने को मिलती है। बदन पर तिल होने पर यह भी कहा जाता है कि उक्त स्थान पर व्यक्ति को पूर्व जन्म में चोट लगी थी। इस तरह की कई बातें तिल के बारे में प्रचलित हैं। आइए नजर डालते हैं, ऐसी कुछ धारणाओं पर -

  • ?जिनके दायें कंधे पर तिल होता है, वे दृढ संकल्पित होते हैं।
  • ?यदि तिल पर बाल हो, तो वो शुभ नहीं माना जाता और न ही अच्छा लगता है।
  • ?तिल यदि बड़ा हो, तो शुभ होने के साथ सगुन बढ़ाता है।
  • ?तिल गहरे रंग का हो, तो माना जाता है कि बड़ी बाधाएं सामने आएंगी।
  • ?हल्के रंग का तिल सकारात्मक विशेषता का सूचक माना जाता है।
  • ?जिस व्यक्ति के ललाट पर दायीं तरफ तिल हो, उसे प्रतिभा का धनी माना जाता है और बायीं तरफ होने पर उसे फिजूलखर्च व्यक्ति माना जाता है। जिसके ललाट के मध्य में तिल हो, उस व्यक्ति को अच्छा प्रेमी माना जाता है।
  • ?दायीं गाल पर तिल हो, वैवाहिक जीवन सफल रहता है। बायीं गाल पर तिल संघर्षपूर्ण जीवन का द्योतक है।
  • ?जिस व्यक्ति के होंठों पर तिल होता है, उसे विलासी प्रवृत्ति का माना जाता है।
  • ?ठोड़ी पर तिल इस बात का सूचक है कि व्यक्ति सफल और संतुष्ट है।
  • ?आंख पर तिल हो, तो माना जाता है कि व्यक्ति कंजूस प्रवृत्ति का है।
  • ?पलकों पर तिल होना इस बात का द्योतक है कि व्यक्ति संवेदनशील और एकांतप्रिय है।
  • ?कान पर तिल इस बात का सूचक है कि व्यक्ति धीर, गंभीर और विचारशील है।
  • ?नाक पर तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होगा।
  • ?गर्दन पर तिल वाला वाला व्यक्ति अच्छा दोस्त होता है।
  • ?कूल्हे पर तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति शारिरिक व मानसिक दोनों स्तर पर परिश्रमी होता है।
  • ?जिसके मुंह के पास तिल होता है, वह एक न एक दिन धन प्राप्त करता है।
  • ?जिसके आंख के अंदर तिल हो, वह व्यक्ति कोमल हृदय अर्थात भावुक होता है।
  • ?दायीं भौं पर तिल वाले व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहता है।
  • ?टखना पर तिल इस बात का सूचक है कि आदमी खुले विचारों वाला है।
  • ?जोड़ों पर तिल होना शारिरिक दुर्बलता की निशानी माना जाता है।
  • ?पांव पर तिल लापरवाही का द्योतक है।
  • ?नाभि पर तिल मनमौजी प्रवृत्ति का संकेत है।
  • ?कोहनी पर तिल होना विद्वान होने का संकेत है।
  • ?कमर पर दायीं ओर तिल होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपनी बात पर अटल रहने वाला और सच्चाई पसंद करने वाला है।
  • ?जिसके घुटने पर तिल हो, वह व्यक्ति सफल वैवाहिक जीवन जीता है।
  • ?जिसके बायें कंधे पर तिल होता है, वह व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का होता है।
  • ?कंधे और कोहनी के मध्य तिल होने पर माना जाता है कि व्यक्ति में उत्सुक प्रवृत्ति का है।
  • ?जिस व्यक्ति के कोहनी और पोंहचे के मध्य कहीं तिल होता है, वह रोमांटिक प्रवृत्ति का होता है।

29 सितंबर, 2012

पिता जी की पुण्य तिथि



Saturday, 29 September 2012







Birth:. 1 July 1940                                                                        Death :29 September 2004

 Saturday, 29 September 2012
स्व.श्री अवधेश कुमार तिवारी



Birth:. 1 July 1940                                                                        Death :29 September 2004


 Saturday, 29 September 2012
स्व.श्री अवधेश कुमार तिवारी
आज मेरे स्वर्गीय पूज्य पिता जी की पुण्य तिथि है.आज ही के दिन,9 वर्ष पूर्व 2004, प्रकृति ने उनके स्थूल शारीर को ब्रह्मांड का अंग बना लिया,अब वे ग्रह नक्षत्रों के बीच मन की कल्पना में समाहित हो लिए। जीवन की तपीस से अगर कहीं बट बृक्ष था तो वह पिताजी थे । जो छांह थी वो अब जाती रही,  सायंकाल उनका गोरखपुर में निधन हो गया था.पुणे से सुबह ही पहुंचा था.दिन भर उनके साथ रहने का योग मिला था.वह दिन मैं प्रतिदिन याद रखना चाहता हूँ , लेकिन ऐषा संभव नहीं हो पता है .  

मै शरीर  की नश्वरता को भी जानता हूँ,किन्तु अचेतन मन में उनके अस्तित्वहीन होने का बोध कभी होता ही नहीं था,अचेतन में पिता जी  अस्तित्वहिन् होने के बोध के बीच की खायी को पाटने का प्रयाश कर रहा हूँ।एक व्यक्ति के रूप में मैंने जब भी मूल्यांकन किया है मै शब्दों में उन्हें संत कह सकता हूँ।शुद्ध अन्तःकरण पिताजी जी ग्रहस्थ जीवन के संत थे,अपनी जागतिक जिम्मेदारियों का निर्वहन सुचिता पूर्वक करते हुए जीवन के युद्ध में घमासान करते रहे और एक अपराजेय योद्ध की तरह वे अपनी परिस्थियों से जूझते रहे।जय पराजय के बोध से मुक्त सिर्फ योद्धा की तरह जीवन संग्राम में अपनी जिजीविषा उद्दाम प्राणवत्ता के साथ दो -दो हाथ करते रहे वे निम्न मध्यवर्गीय परिवार के होते हुए तमाम विपरीत आर्थिक परिस्थितियों के होते हुए भी अपने पुत्रों में अपने जीवन की जीत देखते रहे।जबकि पुत्र के रूप में मेरी भी भूमिका उसी स्वर लय ताल में आबद्ध हुयी जैसी की उनकी खुद की जीवन परिथितियाँ थी,आज जब मै एक पिता के रूप में पिता जी की जगह ले चूका हूँ इस बीच पुत्र से पिता होने की यात्रा कितनी जटिल है ,से परिचित हो रहा हूँ।
 पिताजी एक कविता प्रति क्षण जीवन का रहस्य समझाने  की चेष्टा करती रहती है,




सपना क्या है?

देख रहा हूँ, सपना क्या है?
सपना है ,तो अपना क्या है ?
घिरा हुआ ,अविरल घेरे में ,
कैसे जानूँ , क्या तेरे में ?
बंधन चक्कर, जब अजेय है,
निस वासर, ये तपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है.
सपना है, तो अपना क्या है?

राजा था ,क्यों रंक हो गया ?
ज्ञानी था, तो कहाँ खो गया ?
पता नहीं ,जब कोई किसी का,
नाम लिए ,और जपना क्या है?
देख रहा हूँ, सपना क्या है........

पाना खोना, खोना पाना,
क्या कैसा है ,किसने जाना ?
सब कुछ है ,और कुछ भी नहीं है ,
ऐसे में ये, कल्पना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है.........

क्या जानूँ , की सत्य कौन है ?
समझ न पाऊं, दिष्टि मौन है .
शांति चित्त बन जाये जिस छन ,
अति आनंद बरसना क्या है ?
देख रहा हूँ .............

यह भी मैं, और वह भी मैं हूँ,
जड़ भी मैं ,और चेतन मैं हूँ .
समय चक्र का, फंदा सारा,
सृस्ती जगत , भरमना क्या है ?
देख रहा हूँ ,सपना क्या है,
सपना है तो अपना क्या है ?


-अवधेश कुमार तिवारी
अश्रु पूरित नेत्रों से विनम्र श्रद्धांजलि............अब शब्द नहीं है..........................



There are no words to describe what our family lost on September29, 2004. This man truly understood what fatherhood was all about. Firstly, he loved God and thanked him daily for the blessings he has bestowed upon his life.
Today is the 9th death anniversary of my beloved father Late Shree Awadhesh Kumar Tiwari.
I stood at home, alone, gazing into the distance, thinking of him, his life, and the end that one day comes too soon.
He literally cashed in his life's savings and brought them over to give everything to us.
Here's to us always being true to ourselves, even when we're the last ones standing at the land's end of our own lives.
He was a model of humility, strength, determination, and hope. He died at the age of 64.
We all four brothers deeply thank my father for teaching and demonstrating honesty, faith, courage, strength and endurance.




22 सितंबर, 2012

शेर-ओ-शायरी


शेर-ओ-शायरी


छोड़ दीजे मुझको मेरे हाल पर,
जो गुजरती है गुजर ही जायेगी।

-असर लखनवी
 
तुझे यह नाज कि जन्नत की भीक मांगूगा,
मुझे यह जिद् कि तकाजा मेरा उसूल नहीं।

-मंजूर अहमद मंजूर


दर्द मन्नतकश- ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।
जम्अ करते हो क्यों रकीबों को,
इक तमाशा हुआ, गिला न हुआ।

-मिर्जा 'गालिब'


न पूछो क्या गुजरती है, दिले-खुद्दार पर अक्सर,
किसी बेमेहर को जब मेहरबां कहना ही पड़ता है।

-जगन्नाथ आजाद


सफीना जब तेरे होते हुए भी डूब सकता है,
उठायें फिर तेरे एहसान क्यों ऐ नाखुदा कोई।
-फारिंग सीमाबी


19 सितंबर, 2012

वास्तु शास्त्र.


 वास्तु शास्त्र.


वास्तु शास्त्र वह है जिसके तहत ब्रह्मांड की विभिन्न ऊर्जा जैसे घर्षण, विद्युतचुम्बकीय शक्ति और अलौकिक ऊर्जा के साम्य के साथ मनुष्य जिस वातावरण में रहता है, उसकी बनावट और निर्माण का अध्ययन किया जाता है।

हालांकि वास्तु आधारभूत रूप से फेंग शुई से काफी मिलता जुलता है जिसके अंतर्गत घर के द्वारा ऊर्जा के प्रवाह को अपने अनुरूप करने का प्रयास किया जाता है। हालांकि फेंग शुई घर की वस्तुओं की सजावट, सामान रखने की स्थिती तथा कमरे आदि की बनावट के मामले में वास्तु शास्त्र से भिन्न है।


भूमि- धरती, घर के लिए जमीन
प्रासाद- भूमि पर बनाया गया ढांचा
यान- भूमि पर चलने वाले वाहन
शयन- प्रासाद के अन्दर रखे गए फर्नीचर

ये सभी श्रेणियां वास्तु के नियम दर्शाती हैं, जोकि बड़े स्तर से छोटे स्तर तक होते हैं। इसके अंतर्गत भूमि का चुनाव, भूमि की योजना और अनुस्थापन, क्षेत्र और प्रबन्ध रचना, भवन के विभिन्न हिस्सों के बीच अनुपातिक सम्बन्ध और भवन के गुण आते हैं।


वास्तु शास्त्र, क्षेत्र (सूक्ष्म ऊर्जा) पर आधारित है, जोकि ऐसा गतिशील तत्व है जिस पर पृथ्वी के सभी प्राणी अस्तित्व में आते हैं और वहीं पर समाप्त भी हो जाते हैं। इस ऊर्जा का कंपन प्रकृति के सभी प्राणियों की विशेष लय और समय पर आधारित होता है। वास्तु का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के सानिध्य में रहकर भवनों का निर्माण करना है। वास्तु विज्ञान और तकनीकी में निपुण कोई भी भवन निर्माता, भवन का निर्माण इस प्रकार करता है जिससे भवन धारक के जन्म के समय सितारों का कंपन आंकिक रूप से भवन के कंपन के बराबर रहे।


वास्तु पुरुष मंडल:
वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र का अटूट हिस्सा है। इसमें मकान की बनावट की उत्पत्ति गणित और चित्रों के आधार पर की जाती है। जहां ‘पुरुष’ ऊर्जा, आत्मा और ब्रह्मांडीय व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ‘मंडल’ किसी भी योजना के लिए जातिगत नाम है। वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र में प्रयोग किया जाने वाला विशेष मंडल है। यह किसी भी भवन/मन्दिर/भूमि की आध्यात्मिक योजना है जोकि आकाशीय संरचना और अलौकिक बल को संचालित करती है।


दिशा और देवता:
हर दिशा एक विशेष देव द्वारा संचालित होती है। यह देव हैं:
उत्तरी पूर्व- यह दिशा भगवान शिव द्वारा संचालित की जाती है।
पूर्व- इस दिशा में सूर्य भगवान का वास होता है।
दक्षिण पूर्व- इस दिशा में अग्नि का वास होता है।
दक्षिण- इस दिशा में यम का वास होता है।
दक्षिण पश्चिम- इस दिशा में पूर्वजों का वास होता है।
पश्चिम- वायु देवता का वास होता है।
उत्तर- धन के देवता का वास होता है।
केन्द्र- ब्रह्मांड के उत्पन्नकर्ता का वास होता है।


वास्तु और योग:
वास्तुशास्त्र योग के सिद्धांत से काफी मिलता-जुलता है। जिस प्रकार किसी योगी के शरीर से प्राण (ऊर्जा) मुक्त रूप से प्रवाहित होता है। उसी प्रकार वास्तु गृह भी इस तरह से बनाया जाता है कि उसमें ऊर्जा का मुक्त प्रवाह हो। वास्तु शास्त्र के अनुसार एक आदर्श ढांचा वह होता है जहां ऊर्जा के प्रवाह में गतिशील साम्य हो। यदि यह साम्य नहीं बैठता है तो जीवन में भी उचित तालमेल नहीं बैठ पाता है।
-वास्तु शास्त्र का दृढ़ता से मानना है कि प्रत्येक भवन चाहे वह घर हो, गोदाम हो, फैक्टरी हो या फिर कार्यालय हो, वहां अविवेकपूर्ण विस्तार तथा फेरबदल आदि नहीं होने चाहिए।


मुख्य द्वार:
भवन में ‘प्राण’ (जीवन-ऊर्जा) के प्रवेश के लिए द्वार की स्थिति और उसके खुलने की दिशा वास्तु की विशेष गणना द्वारा चुनी जाती है। इसके सही चयन से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाया जा सकता है। घर का अगला व पिछला द्वार एक ही सीध में होना चाहिए, जिससे ऊर्जा का प्रवाह बिना किसी रुकावट के चलता रहे।
-
ऊर्जा के इस मार्ग को ‘वम्स दंडम’ कहा जाता है जिसका मानवीकरण करने पर उसे रीढ़ की संज्ञा दी जाती है। इसका ताथ्यिक लाभ घर में शुद्ध हवा का आवागमन है, जबकि आत्मिक महत्व के तहत सौर्य ऊर्जा का मुख्य द्वार से प्रवेश और पिछले द्वार से निर्गम होने से, घर में ऊर्जा का प्रवाह बिना रुकावट निरंतर बना रहता है।


घर और वास्तु शास्त्र:
घर केवल रहने की जगह मात्र नहीं होता है। यह हमारे मानसिक पटल का विस्तार और हमारे व्यक्तित्व का दर्पण भी होता है।
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जिस प्रकार हम अपनी पसन्द के अनुसार इसकी बनावट व आकार देते हैं, सजाते और इसकी देखभाल करते हैं, उसी प्रकार यह हमारे स्वभाव, विचार, जैव ऊर्जा, निजी और सामाजिक जीवन, पहचान, व्यावसायिक सफलता और वास्तव में हमारे जीवन के हर पहलू से गहराई से जुड़ा हुआ होता है।


ऑफिस और वास्तु शास्त्र:
जब वास्तु को सही तरह से लागू किया जाता है तो वह व्यापारिक वृद्धि में भी खासा मददगार सिद्ध होता है। भवन विस्तार या जगह का उपयोग करते समय वास्तु को ध्यान में रखना चाहिए, जिससे भवन में आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को काफी हद तक कम किया जा सके।


Source : http://bhagwan.hpage.com

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...