23 मई, 2012

महाभारत काल से आधुनिक काल तक ...

महाभारत के बाद से आधुनिक काल तक के सभी राजाओं का विवरण क्रमवार तरीके से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है...!

आपको यह जानकर एक बहुत ही आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया था..... जिसका पूरा विवरण इस प्रकार है :
क्र................... शासक का नाम.......... वर्ष....माह.. दिन

1. राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir)..... 36.... 08.... 25
2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit)........ 60.... 00..... 00
3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay).... 84.... 07...... 23
4 अश्वमेध (Ashwamedh )................. 82.....08..... 22
5 द्वैतीयरम (Dwateeyram )............... 88.... 02......08
6 क्षत्रमाल (Kshatramal)................... 81.... 11..... 27
7 चित्ररथ (Chitrarath)...................... 75......03.....18
8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya)............... 75.....10.......24
9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain)......... 78.....07.......21
10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain).......78....07........21
11 भुवनपति (Bhuwanpati)................69....05.......05
12 रणजीत (Ranjeet).........................65....10......04
13 श्रक्षक (Shrakshak).......................64.....07......04
14 सुखदेव (Sukhdev)........................62....00.......24
15 नरहरिदेव (Narharidev).................51.....10.......02
16 शुचिरथ (Suchirath).....................42......11.......02
17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II)........58.....10.......08
18 पर्वतसेन (Parvatsain )..................55.....08.......10
19 मेधावी (Medhawi)........................52.....10......10
20 सोनचीर (Soncheer).....................50.....08.......21
21 भीमदेव (Bheemdev)....................47......09.......20
22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II)...45.....11.......23
23 पूरनमाल (Pooranmal)..................44.....08.......07
24 कर्दवी (Kardavi)...........................44.....10........08
25 अलामामिक (Alamamik)...............50....11........08
26 उदयपाल (Udaipal).......................38....09........00
27 दुवानमल (Duwanmal)..................40....10.......26
28 दामात (Damaat)..........................32....00.......00
29 भीमपाल (Bheempal)...................58....05........08
30 क्षेमक (Kshemak)........................48....11........21

इसके बाद ....क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 विश्व (Vishwa)......................... 17 3 29
2 पुरसेनी (Purseni)..................... 42 8 21
3 वीरसेनी (Veerseni).................. 52 10 07
4 अंगशायी (Anangshayi)........... 47 08 23
5 हरिजित (Harijit).................... 35 09 17
6 परमसेनी (Paramseni)............. 44 02 23
7 सुखपाताल (Sukhpatal)......... 30 02 21
8 काद्रुत (Kadrut)................... 42 09 24
9 सज्ज (Sajj)........................ 32 02 14
10 आम्रचूड़ (Amarchud)......... 27 03 16
11 अमिपाल (Amipal) .............22 11 25
12 दशरथ (Dashrath)............... 25 04 12
13 वीरसाल (Veersaal)...............31 08 11
14 वीरसालसेन (Veersaalsen).......47 0 14

इसके उपरांत...राजा वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा वीरमाह (Raja Veermaha)......... 35 10 8
2 अजितसिंह (Ajitsingh)...................... 27 7 19
3 सर्वदत्त (Sarvadatta)..........................28 3 10
4 भुवनपति (Bhuwanpati)...................15 4 10
5 वीरसेन (Veersen)............................21 2 13
6 महिपाल (Mahipal)............................40 8 7
7 शत्रुशाल (Shatrushaal).....................26 4 3
8 संघराज (Sanghraj)........................17 2 10
9 तेजपाल (Tejpal).........................28 11 10
10 मानिकचंद (Manikchand)............37 7 21
11 कामसेनी (Kamseni)..................42 5 10
12 शत्रुमर्दन (Shatrumardan)..........8 11 13
13 जीवनलोक (Jeevanlok).............28 9 17
14 हरिराव (Harirao)......................26 10 29
15 वीरसेन द्वितीय (Veersen II)........35 2 20
16 आदित्यकेतु (Adityaketu)..........23 11 13

ततपश्चात् प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण इस प्रकार है ..

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा धनधर (Raja Dhandhar)...........23 11 13
2 महर्षि (Maharshi)...............................41 2 29
3 संरछि (Sanrachhi)............................50 10 19
4 महायुध (Mahayudha).........................30 3 8
5 दुर्नाथ (Durnath)...............................28 5 25
6 जीवनराज (Jeevanraj).......................45 2 5
7 रुद्रसेन (Rudrasen)..........................47 4 28
8 आरिलक (Aarilak)..........................52 10 8
9 राजपाल (Rajpal)..............................36 0 0

उसके बाद ...सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 समुद्रपाल (Samudrapal).............54 2 20
2 चन्द्रपाल (Chandrapal)................36 5 4
3 सहपाल (Sahaypal)...................11 4 11
4 देवपाल (Devpal).....................27 1 28
5 नरसिंहपाल (Narsighpal).........18 0 20
6 सामपाल (Sampal)...............27 1 17
7 रघुपाल (Raghupal)...........22 3 25
8 गोविन्दपाल (Govindpal)........27 1 17
9 अमृतपाल (Amratpal).........36 10 13
10 बालिपाल (Balipal).........12 5 27
11 महिपाल (Mahipal)...........13 8 4
12 हरिपाल (Haripal)..........14 8 4
13 सीसपाल (Seespal).......11 10 13
14 मदनपाल (Madanpal)......17 10 19
15 कर्मपाल (Karmpal)........16 2 2
16 विक्रमपाल (Vikrampal).....24 11 13

टिप : कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों।

इसके उपरांत .....विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 मालकचन्द (Malukhchand) 54 2 10
2 विक्रमचन्द (Vikramchand) 12 7 12
3 मानकचन्द (Manakchand) 10 0 5
4 रामचन्द (Ramchand) 13 11 8
5 हरिचंद (Harichand) 14 9 24
6 कल्याणचन्द (Kalyanchand) 10 5 4
7 भीमचन्द (Bhimchand) 16 2 9
8 लोवचन्द (Lovchand) 26 3 22
9 गोविन्दचन्द (Govindchand) 31 7 12
10 रानी पद्मावती (Rani Padmavati) 1 0 0

रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 हरिप्रेम (Hariprem) 7 5 16
2 गोविन्दप्रेम (Govindprem) 20 2 8
3 गोपालप्रेम (Gopalprem) 15 7 28
4 महाबाहु (Mahabahu) 6 8 29

इसके बाद.......राजा महाबाहु ने सन्यास ले लिया । इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 अधिसेन (Adhisen) 18 5 21
2 विल्वसेन (Vilavalsen) 12 4 2
3 केशवसेन (Keshavsen) 15 7 12
4 माधवसेन (Madhavsen) 12 4 2
5 मयूरसेन (Mayursen) 20 11 27
6 भीमसेन (Bhimsen) 5 10 9
7 कल्याणसेन (Kalyansen) 4 8 21
8 हरिसेन (Harisen) 12 0 25
9 क्षेमसेन (Kshemsen) 8 11 15
10 नारायणसेन (Narayansen) 2 2 29
11 लक्ष्मीसेन (Lakshmisen) 26 10 0
12 दामोदरसेन (Damodarsen) 11 5 19

लेकिन जब ....दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 दीपसिंह (Deepsingh) 17 1 26
2 राजसिंह (Rajsingh) 14 5 0
3 रणसिंह (Ransingh) 9 8 11
4 नरसिंह (Narsingh) 45 0 15
5 हरिसिंह (Harisingh) 13 2 29
6 जीवनसिंह (Jeevansingh) 8 0 1

पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 0 माह 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 पृथ्वीराज (Prathviraj) 12 2 19
2 अभयपाल (Abhayapal) 14 5 17
3 दुर्जनपाल (Durjanpal) 11 4 14
4 उदयपाल (Udayapal) 11 7 3
5 यशपाल (Yashpal) 36 4 27

विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

उपरोक्त जानकारी http://www.hindunet.org/ से साभार ली गई है जहाँ पर इस जानकारी का स्रोत स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ, चित्तौड़गढ़ राजस्थान से प्रकाशित पत्रिका हरिशचन्द्रिका और मोहनचन्द्रिका के विक्रम संवत1939 के अंक और कुछ अन्य संस्कृत ग्रंथों को बताया गया है।
साभार ....जी.के. अवधिया |

जय महाकाल....!!!

नोट : इस पोस्ट को मैंने नहीं लिखा है और मैंने इसे अपने एक मित्र की पोस्ट से कॉपी किया है क्योंकि मुझे ये अमूल्य जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने की इच्छा हुई...!

21 मई, 2012

निति वाक्य

हौं केहिको का मित्र को, कौन काल अरु देश।
लाभ खर्च को मित्र को, चिंता करे हमेशा।

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अभी समय कैसा है? मित्र कौन हैं? यह देश कैसा है? मेरी कमाई और खर्च क्या हैं? मैं किसके अधीन हूं? और मुझमें कितनी शक्ति है? इन छ: बातों को हमेशा ही सोचते रहना चाहिए।आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वही व्यक्ति समझदार और सफल है जिसे इन छ: प्रश्नों के उत्तर हमेशा मालुम रहते हो। समझदार व्यक्ति जानता है कि वर्तमान में कैसा समय चल रहा है। अभी सुख के दिन हैं या दुख के। इसी के आधार पर वह कार्य करता हैं। हमें यह भी मालुम होना चाहिए कि हमारे सच्चे मित्र कौन हैं? क्योंकि अधिकांश परिस्थितियों में मित्रों के वेश में शत्रु भी आ जाते हैं। जिनसे बचना चाहिए।
लुब्धमर्थेन गृहणीयात् स्तब्धमञ्जलिकर्मणा।
मूर्खं छन्दानुवृत्या च यथार्थत्वेन पण्डितम्।।

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अर्थात् जो लोग लालची हैं उन्हें धन से वश में करें, जो लोग घमंडी हैं उन्हें मान-सम्मान देकर, जो मूर्ख हैं उन्हें प्रशंसा करके और जो लोग विद्वान हैं उन्हें ज्ञान की बातों से वश में किया जा सकता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो लोग लालची होते हैं उनका मोह सिर्फ धन में ही होता है। ऐसे लोगों से कुछ काम करवाना हो तो धन देकर ही करवाया जा सकता है। धन देखते ही ये लोग वश में हो जाते हैं। जो लोग अभिमानी और घमंडी स्वभाव के हैं उन्हें मान-सम्मान देकर वश में किया जा सकता है। मूर्ख लोग जिद्दी स्वभाव के होते हैं अत: इन्हें वश में करने के लिए वैसा ही करें जैसा वे चाहते हैं। साथ ही इनकी झूठी प्रशंसा करें। ये लोग वश में हो जाएंगे। इनके अतिरिक्त जो लोग समझदार हैं, विद्वान हैं उन्हें वश में करने के लिए ज्ञान की बातों का सहारा लेना चाहिए। विद्वान लोगों ज्ञानी व्यक्ति के वश में हो जाते हैं।

जो काम सिर्फ खुद के लिए किए जाते हैं वे पशुवत कर्म माने गए हैं क्योंकि अपने लिए तो सिर्फ जानवर ही जीते हैं। अगर हम मनुष्य हैं, तो उसमें हमारा मनुष्यत्व छलकना चाहिए।

रामायण में भरत का चरित्र यह सिखाता है। राम को वनवास हो गया और राज्य भरत को मिला। राम की भी आज्ञा थी और पिता दशरथ की भी कि भरत अयोध्या के राजा बनकर राज्य चलाएं लेकिन भरत ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इस बात पर गहराई से विचार किया कि भले ही अयोध्या का राजा बनना उनके लिए धर्म सम्मत है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे। उन्होंने राजा बनना स्वीकार नहीं किया। अपने उस कर्तव्य को महत्व दिया जो उनका राम के प्रति था।
 क्या संभव है कि हम कर्म के बिना इस दुनिया में रह पाएं। हमें कुछ तो करना ही पड़ेगा। जीवन के लिए सांस लेना भी एक कर्म ही है। हम कर्म करने के लिए बाध्य हैं लेकिन प्रकृति ने हमें अपने कर्म को चुनने की स्वतंत्रता दी है।
हम कौन सा काम चुनते हैं यह हम पर ही निर्भर करता है। प्रकृति सिर्फ हमारे निर्णय पर प्रतिक्रिया देती है, और वह प्रतिक्रिया हमारे कर्म के परिणाम के रूप में सामने आती है। यहीं से शुरू होती है हमारे कर्तव्यों की बात। हमारा पहला कर्तव्य क्या है। कर्म का चयन हमारा पहला कर्तव्य है। हम जब भी अपने लिए कोई मार्ग चुनें तो सिर्फ खुद को ध्यान में रखकर नहीं। वरन हमसे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हर व्यक्ति के बारे में अच्छे से विचार कर के ही चुने।
हम अक्सर इस उलझन में रहते हैं कि हमारा कर्तव्य क्या है। जो किताबी बातें हैं वो कर्तव्य है या जिन परिस्थितियों से हम गुजर रहे हैं, उसमें हमारी भूमिका कर्तव्य है। अधिकतर बार ऐसा होता है कि यह समझने में ही सारा वक्त गुजर जाता है कि हम करें क्या। क्या करें, क्या न करे, क्या सही है और क्या गलत है, किस कार्य को करने से धर्म की, नैतिकता की और इंसानियत की मयार्दा का उल्लंघन होता है?

निति निर्धारक श्लोक

यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि।।

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इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित वस्तुओं की ओर भागता है उसके हाथों से दोनों ही वस्तुएं निकल जाती है। अत: जीवन में निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की गलतियां हमें नहीं करना चाहिए।आचार्य चाणक्य के अनुसार लालची लोगों के साथ अक्सर ऐसा ही होता है, अंत में वह खाली हाथ ही रह जाता है। जो वस्तुएं, सुविधाएं हमारे पास पहले से ही हैं उन्हें छोड़कर अनिश्चित सुविधाओं के पीछे भागने वाले इंसान को अंत में दुख का ही सामना करना पड़ता है। जबकि समझदारी इसी में है कि जो वस्तुएं या सुविधाएं हमारे पास हैं उन्हीं से संतोष प्राप्त करें। इसके विपरित जो सुविधाएं हमारे पास हैं वे भी नष्ट हो जाएंगी।

निद्र्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खगा वीतफलं वृक्ष भुक्तवा चाभ्यागतो गृहम्।।

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आचार्य चाणक्य को उच्चकोटि की राजनीति और कूटनीति के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई ऐसी अचूक नीतियां बताई हैं जिनमें जीवन का सारांश छिपा हुआ है
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इसका अर्थ है कि यदि कोई बहुत अमीर व्यक्ति किसी वेश्या पर मोहित होकर अपना सबकुछ भी उसे दे तब भी वह उसे छोड़ सकती है। वेश्याओं का काम दूसरों का पैसा लूटना होता है। वे तब तक ही किसी पुरुष के संपर्क में रहती हैं जब तक वह आदमी धनी है। गरीब पुरुष को वेश्या तुरंत छोड़ देती है। इसी प्रकार जिस देश का राजा निर्बल है उसकी राज्य की प्रजा अपने राजा पर भरोसा नहीं करती है और उसे सम्मान नहीं देती है। यहां तक कि पक्षी भी उसी वृक्ष पर निवास करते हैं जहां उन्हें फल प्राप्त होता हैं। समाज का एक नियम यह भी है कि मेहमान अच्छा भोजन, स्वागत-सत्कार के बाद तुरंत अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ जाता हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें अपने आत्मसम्मान की रक्षा स्वयं करनी है और अपमान की स्थिति बने इससे पहले हमें संभल जाना चाहिए। किसी भी स्थान विशेष, व्यक्ति, वस्तु से अधिक लगाव रखना उचित नहीं है।

न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं मित्रं सर्वगुह्यं प्रकाशयेत्।।

इसका अर्थ है कि अपनी गुप्त बात के लिए किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। यदि कोई मित्र बुरे स्वभाव वाला है तो उस पर तो कभी भी अपनी राज की बातें जाहिर न होने दें। यहां तक कि जो आपके अच्छे मित्र हैं उन्हें भी ऐसी बातें नहीं बताना चाहिए क्योंकि जब उस व्यक्ति से मित्रता बिगड़ जाए तो वह आपको क्षति भी पहुंचा सकता है।
मूर्खस्तु परिहत्र्तव्य: प्रत्यक्षो द्विपद: पशु:।
भिद्यते वाक्यशूलेन अद्वश्यं कण्टकं यथा।।

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इसका अर्थ है कि मूर्ख या बेवकूफ व्यक्ति दो पैर वाला जानवर ही है। अत: ऐसे लोगों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि बुद्धिहीन लोग अक्सर शब्दों के शूल से नुकसान पहुंचाते रहते हैं।आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारे आसपास कई ऐसे लोग हैं जो अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते। ये लोग समय-समय पर मूर्खता पूर्ण कार्य करते रहते हैं। इस प्रकार के मूर्ख या बेवकूफ लोग किसी दो पैर वाले पशु के समान ही है, जिनमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं होती है। इन लोगों का आचरण और स्वभाव भी दूषित ही होता है। मूर्ख लोगों हमेशा ऐसी बातें करते हैं जो हमें किसी कांटे की चुभन के समान दर्द पहुंचाती है। अत: ऐसे लोगों से हमें दूर ही रहना चाहिए।

उपदेशोऽहि मूर्खाणां प्रकोपाय न शांतये।
पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम्॥
Advice given to fools, makes them angry and not calm them down.
Just like feeding a snake with milk, increases its venom.
भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैः
नवाम्बुभिर्भूरिविलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैषः परोपकारिणाम् ॥
On bearing fruits, trees bend (i.e. become humble),
with new [recently] gathered water, clouds hang very low,
wealthy good men maintain non-arrogant nature,
this is the nature of benevolent persons.
काममय एवायं पुरुष इति।
स यथाकामो भवति तत्क्रतुर्भवति।
यत्क्रतुर्भवति तत्कर्म कुरुते।
यत्कर्म कुरुते तदभिसंपद्यते॥
You are what your deep, driving desire is
As your desire is, so is your will
As your will is, so is your deed
As your deed is, so is your destiny
गुणा: गुणज्ञेषु गुणीभवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषा:
सुस्वादुतोया: प्रवहंति नद्य:
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेय:
With virtuous persons, virtues remain virtues. On reaching a non-virtuous person, they become faults. (Just like)
a river flowing with sweet water, becomes salty on reaching ocean.
काकस्य गात्रं यदि कांचनस्य
माणिक्यरत्नं यदि चंचुदेशे।
एकैकपक्षे ग्रथितं मणीनां
तथापि काको न तु राजहंसः॥


19 मई, 2012

Omkareshwar Temple- Jyotirling....


Omkareshwar is a holy town situated at a distance of 77 km from Indore. It derives its name from the sacred Hindu symbol of Om. The place is a pilgrimage site, as there are a number of Hindu temples and Jain temples located here. It is basically an island, in the shape of Om, on the confluence of the rivers Narmada and Kaveri. The island is divided into north and south by a deep gully and is linked by a bridge. A boat ride in Narmada River around the island of Omkareshwar is quite enjoyable.


Omkareshwar is considered to be one of the holiest Hindu sites in the nation. This is due to the presence of the Jyotirlingam, one of the twelve in India. Lingam is the symbol of Lord Shiva but the Jyotirlingam is special. Jyotirlingam is called the lingam of light. It is said to derive currents of power from within itself. While, an ordinary lingam is ritually invested with mantra shakti (power invested by chants) by the priests. The Jyotirlingam is enshrined in the Temple of Sri Omkareshwar Mahadeo. 







Also known as the Temple of Shri Omkar Mandhata, it is made up of locally available soft stone. As a result, there is detailed carving in the front chamber and mesmerizing wall paintings on the upper parts of the structure. Omkareshwar draws hundreds of pilgrims every year from various parts of the nation. The devotees kneel before the Jyotirlinga to be blessed by it. Omkareshwar presents a magnificent blend of natural as well as the human artistry. Apart from this, there are some other temples worth watching.

Even the 10th century Satmatrika Temples and the Kajal Rani Cave situated nearby are worth visiting. Omkareshwar lies on the Ratlam-Indore-Khandwa line and the nearest railway station is Omkareshwar Road. The town is just 12 km from the station and there are many Local buses on the Indore-Omkareshwar route at frequent intervals. Though they are no luxurious hotels, there are a number of Dharamshalas here.

18 मई, 2012

Gayatri Mantra







Om  bhurbhuvah swah  tatsaviturvarenyam  bhargo devasya dhimahi dhiyo yo nah  prachodayat

 Om!                Brahma or Almighty God
 Bhuh               embodiment of vital spiritual energy (Pran)
 bhuvah           destroyer of sufferings
 swah                embodiment of happiness
 tat                   that
 savituh           bright, luminous like the Sun
 varenyam       best, most exalted
 bhargo           destroyer of sins 
 devasya         divine
 dhimahi         may imbibe
 dhiyo             intellect
 yo                  who
 nah                our
 prachodayat  may inspire


In short it is a prayer to the Almighty Supreme God, the Creator of entire cosmos, the essence of our life existence, who removes all our pains and sufferings and grants happiness beseeching His divine grace to imbibe within us His Divinity and Brilliance which may purify us and guide our righteous wisdom on the right path. 



Pt. Ram Chandra Sharma- A great Freedom Fighter

 
 
पंडितरामचंद्रशर्मा -अप्रतिमस्वतंत्रतासंग्रामसेनानी 
 Pt. Ram Chandra Sharma- A great Freedom Fighter.......

पंडित राम चन्द्र शर्मा की गड़ना  उन कुछ गिने चुने लोगो में की जा सकती है, जिनके जीवन का उद्देश्य व्यक्तिगत सुख लिप्सा न होकर समाज के उन सभी लोगो के हित के लिए अत्मोत्सर्ग रहा है यही कारण है कि स्वतंत्रता संग्राम मे अपने अद्वितिय योगदान के पश्चात पंडित जी ने अपने संघर्ष की ईति स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी नही मानी वे आजीवन पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए जूझते रहे पंडित जी सर्वे भवंतु सुखीनः मे विश्वास करते थे उनकी मान्यता थी " कीरति भनति भूति भुलि सोई ,सुरसरि सम सब कन्ह हित होई."

पंडित जी का जन्म 7 मार्च  1902  को ग्राम अमवा, पोस्ट: घाटी, थाना- खाम पार , जनपद -गोरखपुर( वर्तमान देवरिया जनपद) मे हुआ था. वे अपने माता पिता की अंतिम संतान थे पंडित जी से बड़ी पाँच बहनें थी  यही कारण था की पंडित जी का बचपन अत्यंत लड़ प्यार से बीता यद्यपि पंडित जी उच्च शिक्ष प्राप्त नहीं कर सके किंतु स्वाध्याय और बाबा राघव दास के सनिध्य में ईतना ज्ञानार्जन किया कि उन्हें किसी विश्वविद्यालीय डिग्री की आवश्यकता नहीं रही

तत्कालीन परम्पराके अनुसार पंडित जी का विवाह भी बचपन मे ही ग्राम-अमवा से चार किलोमीटेर उत्तर दिशा मे स्थित ग्राम-दुबौलि के पं रामअधीन दूबे जी की पुत्री श्रीमती लवंगा देवी, के साथ हो गया था किन्तु बाबा राघव दास से दीक्षा लेने के पश्चात्  सभी बंधनों को  तोड़कर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े
सर्व प्रथम 1927  ई. में नमक सत्याग्रह में जेल गये सन 1928  ई में भेगारी में नमक क़ानून तोड़कर बाबा राघव दास जी के साथ जेल गये वहाँ बाबा ने उन्हे राजनीति का विधिवत पाठ पढ़ाया सन 1930  ईमें नेहरू जी के नेतृत्व में गोरखपुर में सत्याग्रह  करते समय गिरफ्तार हुए सन 1932  ई मे थाना भोरे जिला सिवान (बिहार) मे गिरफ़तार हुएऔर गोपालगंज जेल में निरुध रहे . 1933 में पटना में सत्याग्रह करते समय गिरफ्तार हुए और १ वर्ष तक दानापुर जेल में बंद रहे. 1939  में लाल बहादुर शास्त्री ,डॉ सम्पूर्णा नन्द , कमलापति त्रिपाठी के साथ बनारस में गिरफ्तार हुए. कुछ दिनों बनारस जेल में रहने के पश्चात उन्हें बलिया जेल में स्थानांतरित कर दिया गया 10 अगस्त 1942  को ये भारत छोडो आन्दोलन में गिरफ्तार हुए जब ये जेल में ही थे, इनके पिता राम प्रताप पाण्डेय का स्वर्गवास हो गया , फिर भी अंग्रेजों ने अपने दमनात्मक दृष्टि कोण के कारन इन्हें पेरोल पर भी नहीं छोड़ा 1945  में इनकी माता निउरा देवी भी दिवंगत हो गयीं इनकी पत्नी श्रीमती लवंगा देवी भी स्वतंत्र भारत देखने से वंचित रही 14  अगस्त 1947  को इनका भी निधन हो गया किन्तु पंडित जी के लिए राष्ट्र के सुख दुःख के समक्ष व्यक्तिगत सुख दुःख का अर्थ नहीं रह गया था

पंडित जी 1947  में कांग्रस के जिला मंत्री निर्वाचित हुएहाँ अन्य लोग सत्ता सुख में निमग्न थे ,पंडित जी को पुकार रहा था...देश के अनेकानेक वंचित लोगों का   करुण क्रंदन , और यही कारण था की पंडित जी समाजवादी आन्दोलन से जुड़॰ गए 1952  में मार्क्स के दार्शनिक चिंतन से अत्यंत प्रभावित हुए और तबसे जीवन पर्यंत एक सच्चे समाजवादी के रूप में संघर्ष रत रहे

यद्यपि 26  अगस्त 1992  को काल के कुटिल हाथों ने पंडित जी को हमसे छीन लिया , फिरभी अपनी यशः काया से वे हमारे बीच सदैव विद्यमान हैं पंडित जी अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं जिनमें उनके एकलौते पुत्र श्री हनुमान पाण्डेय ( अब स्वर्गिय०) और  तीन पुत्रियाँ श्रीमती अन्न पूर्णा  देवी, श्रीमती धन्न पूर्णा पूर्ण देवी और श्रीमती ललिता देवी के साथ तीन पौत्र  श्री वशिष्ठ पाण्डेय , रामानुज पाण्डेय , द्वारिका पाण्डेय और दो पौत्रिया उर्मिला देवी और उषा देवी विद्यमान हैं.
भारत माता के ऐसे सपूत स्वतंत्रता संग्राम योद्धा को शतशः नमन.............

  ऐसे थे हमारे नाना जी  !!!

16 मई, 2012

RAMESHWARAM.....


Rameswaram, is a town in RAMNATHAPURAM   district in Tamilnadu. It is located on   Pamban Island         separated from mainland India by the Pamban Channel   and is about 50 kilometers from Mannar Island,Srilanka.     Pamban Island, also known as Rameswaram Island, is connected to mainland India by the Pamban Bridge.   Rameswaram is the terminus of the railway line from  
Chennai and  Madurai. It is considered to be one of the holiest places in India to  Hindus and part of the Char Dham pilgrimages. Hence, it is a bustling pilgrim   centre.
According to legend, this is the place from where Lord Rama built a bridge [[Ram Setu] across the sea to Lanka to rescue his consort Sita from her abductor Ravana. Both the Vaishnavites and Shaivites visit this pilgrimage centre which is known as the Varanasi of the south.


Rameswaram is significant for many Indians as a pilgrimage to Varanasi is considered by some to be incomplete without a pilgrimage to Rameswaram. The presiding deity here is usually referred to as a Linga with the name Sri Ramanatha Swamy, it is one of the twelve Jyotirlinga. Inner sanctum of the temple was built by Sri Lankan monarch Parakrama Bahu in 10th century. This masterpiece of Indian architecture boasts of the biggest temple corridor in India. Different rulers built the Ramanathaswamy Temple over a period of time starting from the twelfth century.(Although this theory is devised by westerners who have been proven to be false). The temple comprises twenty two wells where the taste of the water of each well is different from the other. The grandest part of the temple is the 1219 m pillared corridor consisting of 3.6 m high granite pillars, richly carved and well proportioned. The perspective presented by these pillars run uninterruptedly to a length of nearly 230 m.



According to the Puranas , upon the advice of Rishis, Bhagwan Rama along with Mata Sita and Shri Lakshmana, installed and worshipped the Sivalinga(A form of Lord Shiva) here to expiate the sin of Brahmahatya (killing of a Brahmin).  ( Ravana, the son of Vishrava and the great grandson of Lord Brahma). Shri Rama fixed an auspicious time for the installation and sent Shri  Anjaneya to Mount Kailas (Kailash parvat)to bring a lingam. As Bhagwan Anjaneya could not return in time, Sita herself made a linga of sand. When Anjaneya returned with a linga from Mount Kailas the rituals had been over. To comfort the disappointed Bhagwan Anjaneya, Rama had Anjaneya’s lingam (Visvalingam) also installed by the side of Ramalinga, and ordained that rituals be performed first to the Visvalingam.
The above account is however, not supported by the original Ramayana as authored by Maharishi Valmiki, nor in the Tamil version of the Ramayana as authored by Kambar. Support for this account may however be found in some of the later versions of the Ramayana as penned by Tulasidas (15th Century) and others.
In Rameswaram Temple, a spiritual "Mani Darisanam" (Mani Darshan) happens in early morning every day. This "Mani" is made of "spatikam"[a precious stone] and in form of "Holy shivling". According to some accounts, this is "Mani" of "sheshnag" (Bhagwaan Vishnu's bed).
Sethu Karai is a place 22 km before the island of Rameswaram from where Bhagwaan Ram is said to have built a Floating Stone Bridge Rama sethu from Rameswaram that further continued to Dhanushkodi in Rameswaram till Talaimannar in Sri Lanka as mentioned in the great epic Ramayana.

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...