यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि।।
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इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित वस्तुओं की ओर भागता है उसके हाथों से दोनों ही वस्तुएं निकल जाती है। अत: जीवन में निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की गलतियां हमें नहीं करना चाहिए।आचार्य चाणक्य के अनुसार लालची लोगों के साथ अक्सर ऐसा ही होता है, अंत में वह खाली हाथ ही रह जाता है। जो वस्तुएं, सुविधाएं हमारे पास पहले से ही हैं उन्हें छोड़कर अनिश्चित सुविधाओं के पीछे भागने वाले इंसान को अंत में दुख का ही सामना करना पड़ता है। जबकि समझदारी इसी में है कि जो वस्तुएं या सुविधाएं हमारे पास हैं उन्हीं से संतोष प्राप्त करें। इसके विपरित जो सुविधाएं हमारे पास हैं वे भी नष्ट हो जाएंगी।
निद्र्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खगा वीतफलं वृक्ष भुक्तवा चाभ्यागतो गृहम्।।
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आचार्य चाणक्य को उच्चकोटि की राजनीति और कूटनीति के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई ऐसी अचूक नीतियां बताई हैं जिनमें जीवन का सारांश छिपा हुआ है
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इसका अर्थ है कि यदि कोई बहुत अमीर व्यक्ति किसी वेश्या पर मोहित होकर अपना सबकुछ भी उसे दे तब भी वह उसे छोड़ सकती है। वेश्याओं का काम दूसरों का पैसा लूटना होता है। वे तब तक ही किसी पुरुष के संपर्क में रहती हैं जब तक वह आदमी धनी है। गरीब पुरुष को वेश्या तुरंत छोड़ देती है। इसी प्रकार जिस देश का राजा निर्बल है उसकी राज्य की प्रजा अपने राजा पर भरोसा नहीं करती है और उसे सम्मान नहीं देती है। यहां तक कि पक्षी भी उसी वृक्ष पर निवास करते हैं जहां उन्हें फल प्राप्त होता हैं। समाज का एक नियम यह भी है कि मेहमान अच्छा भोजन, स्वागत-सत्कार के बाद तुरंत अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ जाता हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें अपने आत्मसम्मान की रक्षा स्वयं करनी है और अपमान की स्थिति बने इससे पहले हमें संभल जाना चाहिए। किसी भी स्थान विशेष, व्यक्ति, वस्तु से अधिक लगाव रखना उचित नहीं है।
न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं मित्रं सर्वगुह्यं प्रकाशयेत्।।
इसका अर्थ है कि अपनी गुप्त बात के लिए किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। यदि कोई मित्र बुरे स्वभाव वाला है तो उस पर तो कभी भी अपनी राज की बातें जाहिर न होने दें। यहां तक कि जो आपके अच्छे मित्र हैं उन्हें भी ऐसी बातें नहीं बताना चाहिए क्योंकि जब उस व्यक्ति से मित्रता बिगड़ जाए तो वह आपको क्षति भी पहुंचा सकता है।
मूर्खस्तु परिहत्र्तव्य: प्रत्यक्षो द्विपद: पशु:।
भिद्यते वाक्यशूलेन अद्वश्यं कण्टकं यथा।।
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इसका अर्थ है कि मूर्ख या बेवकूफ व्यक्ति दो पैर वाला जानवर ही है। अत: ऐसे लोगों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि बुद्धिहीन लोग अक्सर शब्दों के शूल से नुकसान पहुंचाते रहते हैं।आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारे आसपास कई ऐसे लोग हैं जो अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते। ये लोग समय-समय पर मूर्खता पूर्ण कार्य करते रहते हैं। इस प्रकार के मूर्ख या बेवकूफ लोग किसी दो पैर वाले पशु के समान ही है, जिनमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं होती है। इन लोगों का आचरण और स्वभाव भी दूषित ही होता है। मूर्ख लोगों हमेशा ऐसी बातें करते हैं जो हमें किसी कांटे की चुभन के समान दर्द पहुंचाती है। अत: ऐसे लोगों से हमें दूर ही रहना चाहिए।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि।।
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इस श्लोक का अर्थ है कि जो व्यक्ति निश्चित वस्तुओं को छोड़कर अनिश्चित वस्तुओं की ओर भागता है उसके हाथों से दोनों ही वस्तुएं निकल जाती है। अत: जीवन में निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की गलतियां हमें नहीं करना चाहिए।आचार्य चाणक्य के अनुसार लालची लोगों के साथ अक्सर ऐसा ही होता है, अंत में वह खाली हाथ ही रह जाता है। जो वस्तुएं, सुविधाएं हमारे पास पहले से ही हैं उन्हें छोड़कर अनिश्चित सुविधाओं के पीछे भागने वाले इंसान को अंत में दुख का ही सामना करना पड़ता है। जबकि समझदारी इसी में है कि जो वस्तुएं या सुविधाएं हमारे पास हैं उन्हीं से संतोष प्राप्त करें। इसके विपरित जो सुविधाएं हमारे पास हैं वे भी नष्ट हो जाएंगी।
निद्र्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खगा वीतफलं वृक्ष भुक्तवा चाभ्यागतो गृहम्।।
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आचार्य चाणक्य को उच्चकोटि की राजनीति और कूटनीति के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई ऐसी अचूक नीतियां बताई हैं जिनमें जीवन का सारांश छिपा हुआ है
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इसका अर्थ है कि यदि कोई बहुत अमीर व्यक्ति किसी वेश्या पर मोहित होकर अपना सबकुछ भी उसे दे तब भी वह उसे छोड़ सकती है। वेश्याओं का काम दूसरों का पैसा लूटना होता है। वे तब तक ही किसी पुरुष के संपर्क में रहती हैं जब तक वह आदमी धनी है। गरीब पुरुष को वेश्या तुरंत छोड़ देती है। इसी प्रकार जिस देश का राजा निर्बल है उसकी राज्य की प्रजा अपने राजा पर भरोसा नहीं करती है और उसे सम्मान नहीं देती है। यहां तक कि पक्षी भी उसी वृक्ष पर निवास करते हैं जहां उन्हें फल प्राप्त होता हैं। समाज का एक नियम यह भी है कि मेहमान अच्छा भोजन, स्वागत-सत्कार के बाद तुरंत अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ जाता हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें अपने आत्मसम्मान की रक्षा स्वयं करनी है और अपमान की स्थिति बने इससे पहले हमें संभल जाना चाहिए। किसी भी स्थान विशेष, व्यक्ति, वस्तु से अधिक लगाव रखना उचित नहीं है।
न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं मित्रं सर्वगुह्यं प्रकाशयेत्।।
इसका अर्थ है कि अपनी गुप्त बात के लिए किसी पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। यदि कोई मित्र बुरे स्वभाव वाला है तो उस पर तो कभी भी अपनी राज की बातें जाहिर न होने दें। यहां तक कि जो आपके अच्छे मित्र हैं उन्हें भी ऐसी बातें नहीं बताना चाहिए क्योंकि जब उस व्यक्ति से मित्रता बिगड़ जाए तो वह आपको क्षति भी पहुंचा सकता है।
मूर्खस्तु परिहत्र्तव्य: प्रत्यक्षो द्विपद: पशु:।
भिद्यते वाक्यशूलेन अद्वश्यं कण्टकं यथा।।
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इसका अर्थ है कि मूर्ख या बेवकूफ व्यक्ति दो पैर वाला जानवर ही है। अत: ऐसे लोगों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि बुद्धिहीन लोग अक्सर शब्दों के शूल से नुकसान पहुंचाते रहते हैं।आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमारे आसपास कई ऐसे लोग हैं जो अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते। ये लोग समय-समय पर मूर्खता पूर्ण कार्य करते रहते हैं। इस प्रकार के मूर्ख या बेवकूफ लोग किसी दो पैर वाले पशु के समान ही है, जिनमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं होती है। इन लोगों का आचरण और स्वभाव भी दूषित ही होता है। मूर्ख लोगों हमेशा ऐसी बातें करते हैं जो हमें किसी कांटे की चुभन के समान दर्द पहुंचाती है। अत: ऐसे लोगों से हमें दूर ही रहना चाहिए।
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