26 जनवरी, 2011

स्मृति में..




पिताजी की डायरी से...
स्मृति में..

मेरे नगमे तुम्हारे लबो पर, अचानक ही आते रहेंगें .
एक गुजरी हुई जिंदगी में , फिरसे वापस बुलाते रहेगें.
याद आयेगा तुमको सरोवर ,और पीपल की सुन्दर ये छाया .
ये बिल्डिंग खड़ी याद होगी , जिसको यादों में हमने बसाया .
बरबस ये कहेंगे कहानी ,और हम मुस्कराते रहेगें.
कोई मिशिर है कोई यादव कोई चौबे कोई तिवारी.
हर किसी की अलग बात होगी , चाहें नर हो या कोई नारी.
याद आयेगें ज़माने की बातें ,और हम गुनगुनाते रहेगें .
सामने होगा मंदिर ओ जंगल ,ये धाम जहाँ बैठे हैं बाबा.
जिनपर निछावर है सब कुछ , काशी मथुरा अयोध्या काबा.
सरोवर में फूले कमल पर भौरे गीत गाते रहेगें.
मेरे नगमे तुम्हारे लबो पर, अचानक ही आते रहेंगें .
-----अवधेश कुमार तिवारी

जिंदगी यह प्रेम की प्यासी जरूर है,






जिंदगी यह प्रेम की प्यासी जरूर है,
दिल रुबाई हुश्न में शाकी जरूर है.
हर गुलों में हुश्न  आयी है उसी एक नूर की .
हुश्न वालों की नज़र बाकी जरूर है.
तोड़ दी तप के नशे को लाख ही नजीर है .
बेकरारी प्यार में आती जरूर है.
थाम कर बैठे जिगर हुश्न ने ही छीन ली.
जब बना बेताब दिल ,भाती जरूर है.
 रूप तेरा दिल है ,तेरा कुछ नहीं है गैर का .
दिल सदा दिलदार ने पायी जरूर है.
-अवधेश कुमार तिवारी

पिता जी की डायरी से....



पिताजी की डायरी से.....

नेता जी.
राजनीती कहवा से सिखलीं, नेता भयिलिन कहिया .
हम  ता   देखली  कोल्हुवाड़े  में,चाटत  रहलीं महिया.  
त्यागी तपस्वी बनी नाही,कैसे चली यी गाड़ी.
काहें जाएब पटना दिल्ली ,गउएं चाटी हांड़ी .
आसन पर  बैठब जब राउया,नाश हो जाई तहिया.
हम टी देखली  कोल्हुवाड़े  में,चाटत  रहलीं महिया.  
आपन गदही पाड़ी  लेके ,वापस घर के जाईं.
हंसा कोई बिरला होला , रौवा तनि सरमायीं
आपन जोर लगाईं तनिको, धशिं जाई ई पहिया .
हम ता  देखली  कोल्हुवाड़े  में,चाटत  रहलीं महिया.  
राउर ई तिहार जेल ह  ,राउर चम्बल घाटी.
सोची समझी सिर न उठायीं  ,अति तोरी परिपाटी .
रौवा जैसे लगत बानी , पाकिस्तानी अहिया.
हम ता   देखली  कोल्हुवाड़े  में, चाटत  रहलीं महिया.  
प्रजा तंत्र के बोली बोलनी,  नेता तंत्र ले ऐली.
ज्ञान श्रधा सच्चाई जग से, नोच नोच के खैली.
इंसानियत  के   कैली बिदाई, राजा भएली जहिया.
 हम ता  देखली  कोल्हुवाड़े  में, चाटत  रहलीं महिया. 
रोज रोज चुनाव करायीं , बाटे  नाही आशा.
राउर ई सरकार कभी ,ना चली बारहों मासा .
कुर्सी के लो भी के  चलते, देश नाश के रहिया .
हम  ता  देखली  कोल्हुवाड़े  में, चाटत  रहलीं महिया. 
राज पद ह ऊँचा आसन , बैठे सब बिचारीं.
काहें रौया धईले बा, मोहि ले चल के बीमारी .
देशवा जली के राख हो जाई ,बात बुझाई तहिया .
हम ता  देखली  कोल्हुवाड़े  में, चाटत  रहलीं महिया. 
एक छत्र  छाया के निचे ,रौवा  सब चली आयीं
जाती पात के भेद भुला के ,सबके गले लगाईं
सुमति राखि कुमति के छोड़ीं , राम राज होई तहिया .
हम ता  देखली  कोल्हुवाड़े  में, चाटत  रहलीं महिया. 
----अवधेश कुमार तिवारी

25 जनवरी, 2011

पिताजी की डायरी से.......22/05/1995




पिताजी की डायरी से.......

मनुष्य में कुछ भावनाएं स्थाई रूप से रहती हैं. उन भावनाओं में परिवर्तन धीरे धीरे आता है.एक लम्बे समय के बाद उसके स्थान पर दूसरी भावना आती है.प्राचीन काल में भारतीय भावना यही रहती थी की ईश्वर को प्रसन्न रखना है. जिसके परिणाम स्वरुप वह सदगुणों के तरफ अग्रसर  था. एस प्रकार उसका समाजी जीवन बड़ा ही उत्तम था.
विदेशों में विज्ञानं का जन्म बताया जाता है,इसका कारन ईश्वर के प्रति अज्ञान या अविश्वास भी हो सकता है.विज्ञानं स्वतः राक्षश   है,आत्म ज्ञान देवता है.यह राक्षश अदृश्य के माध्यम से ही विकसित हुआ और भारत पर भी अपना अधिक कर लिया .भारत में भी राजनितिक नेताओ का जन्म होने लगा और भारत को आजाद कराने में नेताओं जो भूमिका अदा की उससे सभी भारत वासी उनके पीछे आ गए. आम जनता ने  उनके प्रति विश्वास प्रकट किया ,एस प्रकार उन्होंने प्राचीन परंपरा को तोड़ कर इश्वरीय नियमो के विरुद्ध संबिधान बनाया . विज्ञानं और संबिधान दोनों ने प्रदुषण फैलाना शुरू कर दिया जिसके फलस्वरूप पृथ्वी से जुदा होने की स्थिति आ गयी है.आज की परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है.मुख्य लीला भारत की ही होती है इस पर किसी को   विचार करने का तथा निर्णय लेने का अधिकार मिल जाय तो उसे क्या सोचना चाहिए..? मनुष्य जाति का हित किसमे होगा ? लीला को आगे बढ़ाने में या यहीं विराम देने में.फिर लीला आगे बढ़ाने से क्या लाभ , परेसानियाँ और बढ़ती जाएगी .
भव सागरीय   प्रतेक   बातें झूठी हैं ,उन्हें झूठ समझने की कोशिस की जाय और आत्मा को पहचान कर सत्य को पहचाना जाय. सत्य में ही विश्वास किया जाय . झूठ को अपने से अलग रखेगे तो सत्य की ओर अपने आप बढ़ते जायेंगें ..
----अवधेश कुमार तिवारी
२२/०५/१९९५

मोती बीए: भोजपुरी कवि (1919-2009)




मोती बीए: भोजपुरी कवि (1919-2009) 
 मोती बीए का जन्म 1  अगस्त 1919  को   गांव    तेलियाँ कला , बरेजी ,बरहज , जिला देवरिया (उ. प्र.)  हुआ था.  मोती बीए 60 से अधिक  हिन्दी तथा   भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत लिखे . और बहुत कम लोग जानते हैं कि उनका  मूल नाम मोती लाल उपाध्याय  था. वह 1938 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से  बीए   की डिग्री  प्राप्त करने के बाद 1941   में स्नातकोत्तर  डिग्री प्राप्त  किया. उन्होंने यह भी बीटी और साहित्य रत्न डिग्री हासिल कर ली. अपने कैरियर में शुरुआती दिनों के दौरान, वह " आज"    "आर्यावर्त"  और "संसार" जैसे  समाचार पत्रों  के लिए लिखते रहे . उन्होंने   हिंदी फिल्मों के लिए गाने  लिखे  जिसमे "साजन"  (1947) और "नादिया के पार "(1948)   बहुत ही  लोकप्रिय हुए   थे.   उनके लेख और कविताओं  को " आज "दैनिक  के  मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित किया जाता  था . उन्हें  भोजपुरी सम्मान साहित्य अकादमी द्वारा अगस्त 2002 में सम्मानित किया गया. श्री मोती बीए  द्वारा  लिखित और प्रकाशित   एक दर्जन से अधिक पुस्तकें  भोजपुरी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं.



उन्होंने भोजपुरी भाषा  को अपने लय दार  गाने और भावुक कविताओं से  मिला कर एक नयी पहचान दी.  उनकी उपलब्धियों  आर्थिक रूप से भूखे भोजपुरी क्षेत्रों   के नई पीढ़ी के  युवाओं के लिए , जो बिना पतवार  के हालांकि बहुत प्रतिभाशाली हैं,   एक प्रेरणा  श्रोत है.
 
भारत  सरकार ने  भोजपुरी भाषा को महत्व / मान्यता देने  का कार्य  प्रारंभ
मोती बीए   के कारण ही शुरू  किया . साहित्य अकादमी, नई दिल्ली  ने प्रथम भोजपुरी सम्मान करने के लिए  अनुभवी भोजपुरी (फिल्म) गाने और कविताएं लेखक श्री मोती, बीए  के नाम की घोषणा की .  अकादमी 300 लाखों भोजपुरी  भाषी और इस दुनिया के कोने में फैले हुए  भोजपुरी भाषियों की भावनाओं को सम्मानित किया गया है. सम्मान में 40,000 रुपये का नकद  और एक  शाल प्रदान की जाती है . स्क्रॉल करें,   भारत के राष्ट्रपति  ने  अगस्त  २००२ में   श्री मोती, बीए  को  सम्मानित किया गया. वास्तव में यह   एक महान उपलब्धि है. श्री मोती, बीए के बारे में कुछ महान व्यक्तियों  के विचार; 

मुझे इस बात का दुख है कि आपको जैसा सम्मान मिलना चाहिए, वैसा नहीं मिला। पर इससे हताश होने की कोई जरूरत नहीं। "कालोह्म निरवधिर्विपुल च पृथ्वी।" - डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी
आप सरल शैली के मास्टर हैं। इस शैली ने और कुछ भी दिया हो या न, आपको सरल बना दिया है। सरलता बड़ी साधना की देन है। आपको सन्तुष्ट होना चाहिए। -डॉ हरिवंश राय बच्चन

श्री मोती बीए के सेमर के फ़ूल में भोजपुरी क्षेत्र के वरनन एतना सटीक भ इ ल बा ज इ से केमरा में फोटो खींचल होखे।- डॉ विजय नारायण सिंह






वह पिछले 8 सालों से  उनका  स्वास्थ्य  ठीक नहीं चल रहा था .  18 जनवरी 2009 की सुबह उनका निधन हो गया. वह पुरानी भोजपुरी फिल्म नादिया के पार (सचिन और   साधना  सिंह वाला  नहीं लेकिन पुराने किशोर साहू द्वारा निर्देशित  फिल्म ) के गीत लिखे. अपने लोकप्रिय प्रकाशनों में से कुछ  महुवा बारी,   समर के फूल , तुलसी रसायन ,  बादालिका, लाचारी , मेघदूत (भोजपुरी)  आदि  बहुत ही  खूबसूरत हैं. मोती बीए की रचनाएं शेक्सपीयर के सानेट का हिन्दी पद्यानुवाद काव्य रूपक - "कवि - भावना - मानव" स्फूट रचना संग्रह - "प्रतिबिम्बिनी" "समिधा '(गीतांजली) तड़पते हुए गीत - "मृगतृष्णा" गीतधारा - "कवि कविता और" भोजपुरी कविता संग्रह - "के सेमर फूल" मेघदूत - भोजपुरी पद्यानुवाद राजनीतिक कविता संग्रह: रांची से राजघाट
मेरी स्मृति 1974 की वह घटना आज भी सजीव  है , जब मैं गौतम इंटर कॉलेज  पिपरा रामधर  में हाई स्कूल  का छात्र था .  मुझे  कॉलेज के समारोह  श्री मोती बीए की उपस्थिति में मेरी कविता और भाषण प्रस्तुत करने का  अवसर प्राप्त हुआ . वे  ही  अतिथि थे, बहुत  बहुत  प्रसन्न  हुए  और  प्रोत्साहन स्वरुप अपने  पाकेट  से मुझे पाँच रुपये का नकद पुरस्कार  प्रदान किये .  मुझे लगता है यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार था. यह पुरस्कार
मैं अपने पूरे जीवन भूल नहींसकता हूँ .   मैं  बहुत इक्छा होते हुए भी परिस्थिति बस  मैं  उनसे पुनः कभी  मिल नहीं सका .
भोजपुरी समाज से अपेक्षा है की ऐसे व्यक्तियों को भुला न दें ......
---रामेश्वर नाथ तिवारी



23 जनवरी, 2011

पिता जी की डायरी से....




पिता जी की डायरी से....

हाय भगवन क्या, दिखाया शांति मन में ,
शांति मन में विक्रांति लाकर .
सरज का नव पुष्प कोमल , 
अग्नि ज्वाला में फसाकर,
वेड ही दिवस महिना ,
श्वेत ही वर्ण था निशा का,
शास्त्र ही दिन शेष था.
सूर्य था पश्चिम दिशा का.
उत्साह का उस दिन था पहरा ,
नयन सबही के खिले थे.
एक वर वधु के व्याह में ,
दर्शक बने मन मुग्ध होंगे ,
कला और विज्ञानं,
 सब के चित्त की चोरी करेंगे
आनंद की सरिता बहेगी .
भाव मेरी भी तरंगित ,
आश में ही पल चुकी थी .
नयन की अर्जी से पहले,
मन की मर्जी मिल चुकी थी.
पाँव मेरे चल पड़े थे ,
छोड़ मन को एक किनारे ,
अनजान ही कुछ कर रहे कर,
प्राप्त नयनों के सहारे .
गुथा गए कर जा कहीं पर,
दिल ये दौड़ा था छुड़ाने .
हर गयी उसकी भी ताकत ,
कर न कुछ पाया न जाने .
हाय खंडित हो चला सब ,
मौत के द्वारे खड़ा था,
हाथ में विद्युत् पड़ी थी ,
आह भर वेवस पड़ा था.
एक भी छन भी न बीता ,
 छीन  सब कुछ ले लिया था.
जिंदगी के प्यार में ,
मुझको महा गम दे दिया था.
देख कर मेरी दशा ,
विधि ने दया मुझ पर दिखाया .
हाथ कम्पित से फिसल कर ,
ज्वाल खुद ही निम्न आया.
दोष मैं किसका बताऊँ ,
रंज मालिक हो गए थे .
बात हम सब कुछ समझ कर ,
उस समय में सो गए थे.
--अवधेश कुमार तिवारी 

21 जनवरी, 2011

TIWARI / TRIPATHI



Tiwari / Tripathi ( तिवारी/ त्रिपाठी )

In Tiwari or Tripathi or Tripedi (Ti or Tri: All the three and wari or pathi or pedi means versed, thus Tiwari/Tripathi/Tripedi means versed in knowledge of past, present and future). Another description of Tiwari or Tripathi or Tripedi (Ti or Tri means three and wari or path or pedi means person who is having the virtues of God's three forms, Brahma, Vishnu and Mahesh, which represent life's three stages, birth, life and death. Thus Tiwari/Tripathi/Tripedi means knowledgeable priest, who is versed in the life's three stages).

Tiwari / Tripathi is a Hindu Brahmin surname found mostly in the Northern and Central parts of India and Nepal. Its other forms are Tewari, Tewary, Tiwary, Tewaree, and Tewarey. It is derived from Trivedi which literally means "versed in three vedas".

 While Tiwari is common in the states Uttar Pradesh,Delhi,Uttarakhand,Bihar,Madhya Pradesh and Rajasthan, Tripathi is used in (in addition to these states)in Orissa, Gujarat, Andhra Pradesh and Maharastra. The density of Tiwari (and Tripathi) is more among Saryupareen Brahminss,Kanyakubja Brahminss, Bhumihar Brahmins,Maithil Brahmins,and Utkala Brahmins .

Tiwari's refers to those Brahmins in Vedic age who used to do all rituals in a Vedic ceremony instead of any specific one. It is one of the most widespread Brahmin surnames in the fertile Gangetic plain region and in the Indian states of Uttar Pradesh,Delhi, Orissa, Bihar,Uttarakhand, Madhya Pradesh, Rajasthan, Assam and West Bengal. It is also found in countries such as Guyana and Trinidad and Tobago, due to migration owing to agricultural/plantation employment. The surname is also found in Nepal, Fiji and Mauritius, as well as in other Indian diaspora communities. They have historically been martial Brahmins as well, and due to their involvement in the uprising against the British in the First War of Indian Independence in 1857, when many of the ranks which followed Mangal Pandey,[Chandrashekhar Azad ]](Chandrashekhar Sitaram Tiwari) in his rebellion were composed of Brahmins from the agricultural regions of Eastern Uttar Pradesh and Bihar. Due to this they were not declared a martial race like Mohyals due to their ardent support for the Indian independence movement and rebellion against the British Raj. Tiwari's were therefore devoid of the support from the newly formed Indian government. Historically, Tiwaris have always fulfilled their religious duties and had great knowledge of the Vedas and other holy texts. However presently the majority are engaged in more secular vocations. Historians believe that Tiwaris were traditional farmers sometimes with a strong connection with the original Indo-European tribe which inhabited the Great Gangetic plains.

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...