26 अक्टूबर, 2012

Father of the Nation






Father of the Nation is an honorific title given to a man considered the driving force behind the establishment of their country, state or nation. The term founding fathers may be used if more than one person is considered key.
 Mahatma Gandhi was never formally conferred the title of 'Father of the Nation' by the government. 
There are various father of the nation of other countries who had  declared official gazette. 
Even Pakistan had declared as under;
Mohammad Ali Jinnah Pakistan Quaid-e-Azam Great Leader Founder of Pakistan, leader of the Muslim League and first Governor-General of Pakistan.

Neta ji subhash Chandra Bose was the first person to call Gandhi ji Rashtra Pita. He did this first on the radio, when Gandhi started war against the British in Myanmar in1944.
Later, it was recognised by the Indian government. When Gandhi was assassinated, India's first Prime Minister Jawaharlal Nehru, in a radio address to the nation, had announced that the Father of the Nation "is no more."

This was stated by the Home Ministry in reply to an RTI query.
"Although Mahatma Gandhi is popularly known as 'Father of the Nation', no such title was ever formally conferred upon him by the government," Shyamala Mohan, Director and Central Public Information Officer (CPIO), said in a reply dated June 18 this year.
The query was filed by social activist Abhishek Kadyan with the Home Ministry on May 21, 2012 seeking information about declaration of Mahatma Gandhi as 'Father of the Nation'.
Abhishek Kadyan is an advisor to Italy based animal rights NGO OIPA.
Earlier, Aishwarya Parashar, a Class-VI student from Lucknow, had filed a similar query through the Right to Information (RTI) Act seeking a photocopy of the order through which Mahatma Gandhi was declared as 'Father of the Nation' and was informed that there were no specific documents on the information sought.
In February, she had sent the RTI application to the central public information officer of Prime Minister's Office.
From the PMO, the application was forwarded to Ministry of Home Affairs. The MHA, however, stating that it does not come under its purview forwarded the application to the National Archives of India.
The NAI in its reply sent to Aishwarya had said: "As per the search among the public records in the NAI there is no specific document on the information being sought by you."

A Lucknow girl's simple query to know if Mahatma Gandhi was ever conferred the title of 'The Father of The Nation' has come a cropper.

From the Prime Minister's Office (PMO) to the ministry of home affairs (MHA) no one seems to really know the answer to the 10-year-old's question. 


 
RTI Foundation of India
Although Mahatma Gandhi is popularly known as 'Father of the Nation', no such title was ever formally conferred upon him by the government," Director and Central Public Information Officer (CPIO), Ministry of Home Affairs said in a reply to an application filed under the Right to Information (RTI) Act seeking information about declaration of Mahatma Gandhi as 'Father of the Nation'. Earlier, a student from Lucknow had filed a similar query through the Right to Information (RTI) Act seeking a photocopy of the order through which Mahatma Gandhi was declared as 'Father of the Nation' and was informed that there were no specific documents on the information sought. The RTI application was filed with Prime Minister's Office, from where it was forwarded to Ministry of Home Affairs and finally to the National Archives of India. In its reply the NIA had said: "As per the search among the public records in the NAI there is no specific document on the information being sought by you.


24 अक्टूबर, 2012

भारत में पान और पान की खेती

भारत में पान और पान की खेती


पान भारत के इतिहास एवं परंपराओं से गहरे से जुड़ा है। इसका उद्भव स्थल मलाया द्वीप है। पान विभिन्न भारतीय भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे ताम्बूल (संस्कृत), पक्कू (तेलुगू), वेटिलाई (तमिल और मलयालम) और नागुरवेल (गुजराती) आदि। पान का प्रयोग हिन्दू संस्कार से जुड़ा है, जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत आदि। वेदों में भी पान के सेवन की पवित्रता का वर्णन है।
इस लता के पत्ते छोटे, बड़े अनेक आकार प्रकार के होते हैं। बीच में एक मोटी नस होती है और प्राय: इस पत्ते की आकृति मानव के हृदय (हार्ट) से मिलती जुलती होती है। भारत के विभिन्न भागों में होनेवाले पान के पत्तों की सैकड़ों किस्में हैं - कड़े, मुलायम, छोटे, बड़े, लचीले, रूखे आदि। उनके स्वाद में भी बड़ा अंतर होता है। कटु, कषाय, तिक्त और मधुर-पान के पत्ते प्राय: चार स्वाद के होते हैं। उनमें औषधीय गुण भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं। देश, गंध आदि के अनुसार पानों के भी गुणर्धममूलक सैकड़ों जातिनाम हैं जैसे- जगन्नाथी, बँगाली, साँची, मगही, सौंफिया, कपुरी (कपूरी) कशकाठी, महोबाई आदि। गर्म देशों में, नमीवाली भूमि में ज्यादातर इसकी उपज होती है। भारत, बर्मा, सिलोन आदि में पान की अघिक पैदायश होती है। इसकी खेती कि लिये बड़ा परिश्रम अपेक्षित है। एक ओर जितनी उष्णता आवश्यक है, दूसरी ओर उतना ही रस और नमी भी अपेक्षित है। देशभेद से इसकी लता की खेती और सुरक्षा में भेद होता है। पर सर्वत्र यह अत्यंत श्रमसाध्य है। इसकी खेती के स्थान को कहीं बरै, कहीं बरज, कहीं बरेजा और कहीं भीटा आदि भी कहते हैं। खेती आदि कतरनेवालों को बरे, बरज, बरई भी कहते हैं। सिंचाई, खाद, सेवा, उष्णता सौर छाया आदि के कारण इसमें बराबर सालभर तक देखभाल करते रहना पड़ता है और सालों बाद पत्तियाँ मिल पानी हैं और ये भी प्राय: दो तीन साल ही मिलती हैं। कहीं कहीं 7-8 साल तक भी प्राप्त होती हैं। कहीं तो इस लता को विभिन्न पेड़ों-मौलसिरी, जयंत आदि पर भी चढ़ाया जाता है। इसके भीटों और छाया में इतनी ठंढक रहती है कि वहाँ साँप, बिच्छू आदि भी आ जाते हैं।



इन हरे पत्तों को सेवा द्वारा सफेद बनाया जाता है। तब इन्हें बहुधा पका या सफेद पान कहते हैं। बनारस में पान की सेवा बड़े श्रम से की जाती है। मगह के एक किस्म के पान को कई मास तक बड़े यत्न से सुरक्षित रखकर पकाते हैं जिसे "मगही पान" कहा जाता है और जो अत्यंत सुस्वादु एवं मूल्यवान् जाता है। समस्त भारत में (विशेषत: पश्चिमी भाग को छोड़कर) सर्वत्र पान खाने की प्रथा अत्यधिक है। मुगल काल से यह मुसलमानों में भी खूब प्रचलित है। संक्षेप में, लगे पान को भारत का एक सांस्कृतिक अंग कह सकते हैं।

पान के पौधे
वैज्ञानिक दृष्टि से पान एक महत्वपूर्ण वनस्पति है। पान दक्षिण भारत और उत्तर पूर्वी भारत में खुली जगह उगाया जाता है, क्योंकि पान के लिए अधिक नमी व कम धूप की आवश्यकता होती है। उत्तर और पूर्वी प्रांतों में पान विशेष प्रकार की संरक्षणशालाओं में उगाया जाता है। इन्हें भीट या बरोज कहते हैं। पान की विभिन्न किस्मों को वैज्ञानिक आधार पर पांच प्रमुख प्रजातियों बंगला, मगही, सांची, देशावरी, कपूरी और मीठी पत्ती के नाम से जाना जाता है। यह वर्गीकरण पत्तों की संरचना तथा रासायनिक गुणों के आधार पर किया गया है। रासायनिक गुणों में वाष्पशील तेल का मुख्य योगदान रहता है। ये सेहत के लिये भी लाभकारी है। खाना खाने के बाद पान का सेवन पाचन में सहायक होता है।

पान में वाष्पशील तेलों के अतिरिक्त अमीनो अम्ल, कार्बोहाइड्रेट और कुछ विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं। पान के औषधीय गुणों का वर्णन चरक संहिता में भी किया गया है। ग्रामीण अंचलों में पान के पत्तों का प्रयोग लोग फोड़े-फुंसी उपचार में पुल्टिस के रूप में करते हैं। हितोपदेश के अनुसार पान के औषधीय गुण हैं बलगम हटाना, मुख शुद्धि, अपच, श्वांस संबंधी बीमारियों का निदान। पान की पत्तियों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है। प्रात:काल नाश्ते के उपरांत काली मिर्च के साथ पान के सेवन से भूख ठीक से लगती है। ऐसा यूजीनॉल अवयव के कारण होता है। सोने से थोड़ा पहले पान को नमक और अजवायन के साथ मुंह में रखने से नींद अच्छी आती है। यही नहीं पान सूखी खांसी में भी लाभकारी होता है।

सांस्कृतिक महत्व

भारत की सांस्कृतिक दृष्टि से तांबूल (पान) का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। जहाँ वह एक ओर धूप, दीप और नैवेद्य के साथ आराध्य देव को चढ़ाया जाता है, वहीं शृंगार और प्रसाधन का भी अत्यावश्यक अंग है। इसके साथ साथ विसालक्रीड़ा का भी वह अंग रहा है। मुखशुद्धि का साधन भी है और औषधीय गुणों से संपन्न भी माना गया है। संस्कृत की एक सूक्ति में तांबूल के गुणवर्णन में कहा है - वह वातध्न, कृमिनाशक, कफदोषदूरक, (मुख की) दुर्गंध का नाशकर्ता और कामग्नि संदीपक है। उसे र्धर्य उत्साह, वचनपटुता और कांति का वर्धक कहा गया है। सुश्रुत संहिता के समान आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ में भी इसके औषधीय द्रव्यगुण की महिमा वर्णित है। आयुर्वेदिक चिकित्सको द्वारा विभिन्न रोगों में औषधों के अनुपान के रूप में पान के रस का प्रयोग होता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी अन्वेषण द्वारा इसके गुणदोषों का विवरण दिया है।
पुराणों, संस्कृत साहित्य के ग्रंथों, स्तोत्रों आदि में तांबूल के वर्णन भरे पड़े हैं। शाक्त तंत्रों (संगमतंत्र-कालीखंड) में इसे सिद्धिप्राप्ति का सहायक ही नहीं कहा है वरन् यह भी कहा है कि जप में तांबूल-चर्वण और दीक्षा में गुरु को समर्पण किए बिना सिद्धि अप्राप्त रहती है। उसे यश, धर्म, ऐश्वर्य, श्रीवैराग्य और मुक्ति का भी साधक कहा है। इसके अतिरिक्त पाँचवीं शती के बादवाले कई अभिलेखों में भी इसका प्रचुर उल्लेख है। इसी तरह हिंदी की रीतिकालीन कविता में भी तांबूल की बड़ी प्रशंसा मिलती है - सौंदर्यवर्धक और शोभाकारक रूप में भी और मादक, उद्दीपक रूप में भी।
राजाओं और महाराजाओं के हाथ से तांबूलप्राप्ति को कवि, विद्वान, कलाकार आदि बहुत बड़ी प्रतिष्ठा की बात मानते थे। नैषधकार ने अपना गौरववर्णन करते हुए बताया है कि कान्यकुब्जेश्वर से तांबूलद्वय प्राप्त करने का उन्हें सौभाग्य मिला था। मंगलकार्य में, उत्सवों में, देवपूजन तथा विवाहादि शुभ कार्यों में पान के बीड़ों का प्रयोग होता है और उसके द्वारा आगतों का शिष्टाचारपरक स्वागत किया जाता हे। सबका तात्पर्य इतना ही है कि भारतीय संस्कृति में तांबूल का महत्वपूर्ण और व्यापक स्थान रहा है। भारत के सभी भागों में इसका प्रचार चिरकाल से चला आ रहा है। उत्तर भारत की समस्त भाषाओं में ही नहीं दक्षिण की तमिल (वेत्तिलाई), तेलगू (तमालपाडू नागवल्ली), मलयालम (वित्तिल्ला, वेत्ता) और कनाड़ी (विलेदेले) आदि भाषाओं में इसके लिये विभिन्न नाम हैं। बर्मी, सिंहली और अरबी फारसी में भी इसके नाम मिलते हें। इससे पान की व्यापकता ज्ञात होती है।


भारत में पान खाने की प्रथा कब से प्रचलित हुई इसका ठीक ठीक पता नहीं चलता। परंतु "वात्स्यायनकामसूत्र" और रघुवंश आदि प्राचीन ग्रंथों में "तांबूल" शब्द का प्रयोग मिलता है। इस शब्द को अनेक भाषाविज्ञ आर्येतर मूल का मानते है। बहुतों के विचार से यवद्वीप इसका आदि स्थान है। तांबूल के अतिरिक्त नागवल्ली, नागवल्लीदल, तांबूली, पर्ण (जिससे हिंदी का पान शब्द निकला है), नागरबेल (गुजराती) आदि इसके नाम हैं। यह औषधीय काम में भी आता है पर इसका सर्वाधिक उपयोग के लिये होता है।


उत्तर प्रदेश में पान की खेती के लिए महोबा, वाराणसी और लखनऊ से सटे बंथरा और निगोहां का इलाका काफी मशहूर है। इसमें भी बनारस और महोबा के पान का गुणगान कई फिल्मों में किया जा चुका है।

भारत में पान की खेती अनेक स्थानों में होती है। परन्तु मगही पान सर्वोत्तम है। आर्थिक दृष्टिकोण से बी मगही पान की कीमत अन्य जगहों की पान की अपेक्षा अधिक है। मगध के अनेको ग्रामों में पान की खेती की जाती है। मगध के मुख्यत: तीन जिलों में पान की खेती होती है। वे जिले हैं नवादा, नालन्दा, तथा औरंगाबाद। नवादा जिल के मंझवे, तुंगी, बेलदारी, ठियौरी, कैथी हतिया, पचिया, नारदीगंज, छत्तरवार डोला तथा डफलपुरा में, नालन्दा जिले को बौरी, गाँव के बारह टोले में, कोचरा, जौए, डेउरा सरथुआ में तता औरंगाबाद जिले के देव प्रखण्ड के बारह गाँवों में पान की खेती होती है। इसके साथ ही साथ गया जिले के बोध गया। आमस तथा बजीरगंज प्रखण्डों में भी पान की खेती होती है। उपरोक्त सभी स्थानों में पान की खेती एक विशेष जाति के लोग जिन्हें चौरसिया "बरई" के नां से जाने जाते हैं सदियों से करते आ रहे हैं। मगध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि जहाँ भी पृथ्वी पर पान का खेती होती है उसे चौरसिया ही सिर्फ पान की खेती होती है उसे चौरसिया ही सिर्फ पान की खेती क्यों करते ?

 इसकी श्रुतियों के आधार पर एक पौराणिक कहानी है। अत्यंत प्राचीन काल में एक बार समस्त ॠषिगणों ने पृथ्वी पर विष्णु यज्ञ का आयोजन करने का संकल्प किया। यज्ञ के लिये समस्त वस्तु पृथ्वी पर उपलब्ध थी। परन्तु पान पृथ्वी पर नहीं था। बिना पान के यज्ञ की पूर्णता पर प्रश्न चिन्ह उपस्थित हो गया। समस्त ॠषिगण चिन्तित हो गये। क्योंकि पाना नागलोक के सिवा कहीं उपलब्ध नहीं था। यज्ञ के आयोजन कर्त्तार्थों में "चौॠषि" नामक ॠषि के पुत्र पान को नागलोक से लाने को तैयार हुए। अपने संकल्प के अनुसार "चौॠषि" पुत्र अनेक विघ्न बाधाओं को पारकर नागलोक से पान पृथ्वी पर लाये और उस समय से अभी तक नागदेवता से पाये वरदान के आधार पर पृथ्वी पर पान की खेती हो रही है। पान की खेती भी "चौॠषि" के वंशज चौरसिया के सिवा अन्य कोई अन्यकोई नहीं के बराबर करते हैं।

पान की खेती करने के लिए भूमि  का चुनाव बड़ा सोच समझकर किया जाता है। पान की खेती ऊँची जमीन पर की जाती है। पान की खेती वैसी जमीन पर की जाती है जहाँ बरसात में भी पानी का तल एक फीट नीचे रहना चाहिए। इसके लिये दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ है। पान की खेती के लिये सिंचाई आवश्यक है। पुन: मिट्टी को मुलायम रखने के लिये भुर-भुरा बना देते हैं। उसके बाद बरैठा तैयार किया जाता है। बरैठा पान की खेती के लिये तैयार किया गये पूर्ण घेरे को कहा जाता है।

बरैठा के लिये आवश्यक समान तथा उसके व्यवहार की विधि - बाँस का फट्टा तीन सौ, कान्ह चौबालीस, बाती - एक सौ साठ, जिम्मर का साटा - पैंतालीस, राड़ी, खडछौनी हेतु - बारह बोझा पान का पेड़ बाँधने वाले साड़े चार हजार, लोहे की पतली तार दो किलो-ग्राम, धान की पुआल दो बोझा। मिट्टी की लोइट - दो, मिट्टी उठाने के लिये टोकरी-२, पान बाँधने का सवा दो किलोग्राम प्रतिकट्टा की दर से पहले से जुटा रखना पड़ता है।
जमीन में गाड़े फट्टे में साढ़े छ: इंच ऊँचाई पर कान्ह डालकर तार से एक-सूत्र में बाँध दिया जाता है। इन कान्हों पर एक फीट की दूरी पर बाँस की पतली बत्ती नारियल की रस्सी या गोढ बत्ती से बाँध देते हैं जिस पर राडी खर डालकर पतला ढ्ँक देते हैं। ऊपर से एक-दो बाती छोड़ते हुए खडही डालकर नाड् की जड़ भाग या केले के पत्ते के डंठल को चीर-चीर कर उससे बाँध डालते हैं।
बरैठा को चारों तरफ से ढट्टी लगाते समय खूटा के रुप में जिम्मर का साटा इस प्रकार गाड़ देते हैं कि कान्ह उस जिम्मर साटे में गोढ लत्ती या नारियल रस्सी से बाँधी जा सके।
पान लगाने की विधि
पान मुख्यत: तीन प्रकार से लगाया जाता है -
(१) छपट पान - १५ मार्च से ५ अप्रैल तक लगाये जाने वाले पान के छपटा पान कहा जाता है।
(२) बेल पान - १६ जून से १५ जुलाई तक लगाये जाने वाले पान के बेल पान कहा जाता है।
(३) एक पन्ना - १५ अगस्त से ५ सितम्बर तक लगाये जाने वाले पान को एक पन्ना कहा जाता है।

इस प्रकार पाना लगाने के समय को देखते हुए छपटा पान की रोपनी के समय दिन में पछिया हक के प्रभाव को देखते हुए ५ या ६ बार पानी की फुहार देनी पड़ती है। बेलपान में बरसात के समय को देखते हुए दो या तीन बार हल्का पानी का छींटा दिया जाता है। एक पन्ना में दिन में एक या दो बार हल्का छींटा देकर पराया जाता है।

सभी कि के पान रोपाई के चौथे महीने से तोड़े लायक हो जाते हैं। पान को बड़ी सावधानी से तोड़ा जाता है। पान गंदे हाथ से नहीं तोड़ा जाता है। किसी प्रकार की गंदगी का प्रवेश पान के बरैठा में वर्जित है। "पान की खेती में सबसे ज्यादा असर मौसम का होता है। तापमान 20 डिग्री के आसपास हो तो पान की खेती अच्छी होती है। अधिक तापमान होने पर पानी से सिंचाई कर पान को झुलसने से बचा लिया जाता है, मगर ठंड ज्यादा पड़ने पर पान के उत्पादन का प्रभावित होना तय है।"

पान की खेती के लिये प्राकृतिक प्रकोप जैसे आँधी, तूफान, मोला, सुखाड आदि लाइलाज है। पान की खेती करने वाले किसान को हर मौसम की आपदाओं का सामना करना पड़ता है। उसके अलावा भी विभिन्न रोगों के कारण पान का नुकसान होता है। पान में लगने वाले रोगों के नाम हैं - झेलमा, चनाक, गलका, लाल मकड़ी, पेड़ सूखना, दीमक का लगना इत्यादि। इन रोगों के निदान हेतु सल्फेक्स, डमा-इथेन, एम-४५ अनुकौपर, बोडो मिश्रण, रोगर इणजडोसल्फालन कीटनाशोको का व्यवहार समय-समय पर किया जाता है।

प्राकृतिक आपदाओं तथा 'पान' में लगने वाले रोगों से होने वाली क्षति से पान की खेती करने वाले किसान हतोत्साहित तो जरुर होते हैं। लेकिन पुन: अपनी हिम्मत जुटा कर यथासम्भव क्षतिपूर्ति करने में प्रयासरत रहते हैं। मगही पान अपनी विशेषताओं के कारण विश्व बाजार में अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त किये हुए हैं। पान की खेती को सरकारी संरक्षण दिया जाए तो मगही पान विदेशी मुद्रा कमाने के लिए भारत का एक प्रमुख जरिया साबित हो सकता है।

19 अक्टूबर, 2012

Rajiv Dixit





 Rajiv  Dixit was an Indian social activist. He started social movements in order to spread awareness on topics of Indian national interest through the Swadeshi Movement, Azadi Bachao Andolan, and various other works. He served as the National Secretary of Bharat Swabhiman Andolan. He was a strong believer and preacher of Bharatiyata He had also worked for spreading awareness about Indian history, issues in the Indian Constitution and Indian economic policies.
Life
Dixit was born on 30 November 1967 in Naah village, Atrauli tehsil of Aligarh district, Uttar Pradesh . Under the tutelage of his father RadheShyam Dixit, he was educated till the 12th grade in the village schooling system (P.D. Jain Inter College) in Firozabad district.. He started his B.Tech. degree in Electronics and Communications from K.K.M.College,jamui,Bihar, in 1984. But his passion for his motherland made him give up a paid-position for the sake of Indian culture and Swadeshi movement, serving the cause of "Rashtra Dharma". He started the Azaadi Bachaao Aandolan in 1991. In 1997, he first met and was inspired by Prof.Dharampal. His audio cassettes on Indian Nationalism and greatness of India's past did well in 1999. He had been recording them over months traveling across India spreading his message of great optimism about India and its enormous contributions to the human civilization. He was a Brahmachari and never married. He started his collaboration with Swami Ramdev in 1999. He was influenced by the ideologies of Indian revolutionaries like Chandrashekhar Azad, Bhagat Singh and Udham Singh. Later in life, he began to appreciate the early works of Mahatma Gandhi. His life was also dedicated to causes like stopping alcohol and "gutka" production, cow-butchering and social injustices. On the 9th of January 2009, he became one of the founders of "Bharat Swabhiman" movement. He died on 30 November 2010, while in Bhilai in Chattisgarh. The circumstances around his death are uncertain and the cause of his death is unknown. In his memory, the constructed Bharat Swabhiman building in Haridwar has been named "Rajiv Bhawan". He refused to take any modern medicine on his death bed, insisting instead on Ayurvedic medicine.

Work
Dixit suggested that the Indian Supreme Court should declare money held by Indians in Swiss banks as national property so that foreign banks would have to legally hand over this money to India.[6]
He fought various MNCs like man force, Coca-Cola, Unilever, and Colgate as he considered that these companies are draining wealth in their country making India poorer.
Initiated and supported movements
  • Dixit supported the movement of opening a chain of Swadeshi General Stores, where only Indian-made goods are sold.
He believed in swadeshi. He initiated movements like the Swadeshi Movement and Azadi Bachao Andolan and became their spokesperson.[7] He addressed a rally of over 50,000 people under the leadership of Swadeshi Jagaran Manch in New Delhi.[8] He also took leadership of the programme held at Calcutta which was supported and promoted by various organizations and prominent personalities and was celebrated all over India on the eve of the 150th Anniversary of the 1857 war of Indian Independence.[8]
  • He demanded decentralization of taxation system, saying that the current system is the core reason for the corruption in bureaucracy. He said that 80% of taxes is being used to pay the politicians and bureaucrats and just 20% for development purposes for the people. He compared the current budget system of the Indian government to the earlier British budget system in India, presenting statistics to show that they are the same. Recently he was working with Swami Ramdev in Bharat Swabhiman Trust as national secretary.
  • He also doubted the terrorist attack on the United States Twin Towers, claiming that it was stage managed by U.S. Government itself, and supported the claims of the Lone Lantern Society of the U.S.
  • He also said that "liberalization, privatization and globalization, the three evil faces staring at us today, have pushed us towards a suicidal state."
  • He argued that modern thinkers have neglected agricultural sectors and farmers have been left to feed themselves and commit suicide. Expressing his views on the Indian judiciary and legal system, he said that India is still following the laws and acts enacted during the British era and had not taken the burden of changing them as per the requirement of Indian people.
  • He accused the current Indian Government (Congress person Mr. Manmohan Singh, Prime Minister of India) of being an agent for USA. He claimed a huge stock of radio-active elements is buried in Indian sea below Setu Samudram, also known as Sri Ram Setu. These radio-active elements could be used to produce electricity and Nuclear weapons for coming 150 years. He also accused that Indian government is trying to break that bridge, which is more than 700,000 years old.

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...