23 जुलाई, 2012

नागपंचमी

नागपंचमी

  सोमवार, 23 जुलाई 2012.

आज नागपंचमी है.सुबह सुबह माता जी का फ़ोन आया. आज नाग पंचमी है.नाग देवता को दूध लावा चढ़ा दिया गया.विचार आया नाग पंचमी पर कुछ लिखा जाय.फेस बुक भी इसी से भरा पड़ा है. नया तो  कुछ भी नहीं है, वही है जो सबको मालूम है.फिर भी लिखना है.

यह त्योहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। इसलिए इस पंचमी को नागपंचमी कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। अत: पंचमी नागों की तिथि है। सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ‘नागपंचमी’ का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व 23 जुलाई यानी आज सोमवार को है, चूंकि सोमवार को प्रभु महादेव का दिन कहा गया है तो इस बार नागपंचमी का महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज शिव बाबा के साथ नाग देवता की भी आराधना के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाएगे।
  • गरुड़ पुराण के अनुसार नागपंचमी के दिन घर के दोनों ओर नाग की मूर्ति खींचकर अनन्त आदि प्रमुख महानागों का पूजन करना चाहिए।
  • स्कन्द पुराण के नगर खण्ड में कहा गया है कि श्रावण पंचमी को चमत्कारपुर में रहने वाले नागों को पूजने से मनोकामना पूरी होती है।
  • नारद पुराण में सर्प के डसने से बचने के लिए कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नाग व्रत करने का विधान बताया गया है। आगे चलकर सुझाव भी दिया गया है कि सर्पदंश से सुरक्षित रहने के लिए परिवार के सभी लोगों को भादों कृष्ण पंचमी को नागों को दूध पिलाना चाहिए।
  • इस व्रत में चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए। इस दिन चांदी, सोने, लकड़ी या मिट्टी की क़लम से हल्दी और चंदन की स्याही से पांच फल वाले पांच नाग बनाएँ और पंचमी के दिन, खीर, कमल, पंचामृत, धूप, नैवेद्य आदि से नागों की विधिवत पूजा करें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को लड्डू या खीर का भोजन कराएं।
  • पंचमी को नागपूजा करने वाले व्यक्ति को उस दिन भूमि नहीं खोदनी चाहिए।

पूजन विधि

प्राचीन काल में इस दिन घरों को गोबर में गेरू मिलाकर लीपा जाता था। फिर नाग देवता की पूर्ण विधि-विधान से पूजा की जाती थी। पूजा करने के लिए एक रस्सी में सात गांठें लगाकर रस्सी का सांप बनाकर इसे लकड़ी के पट्टे के ऊपर सांप का रूप मानकर बठाया जाता है। हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा की जाती है। फिर कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर इसे लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित करें। पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती करें। इसके बाद कच्चे दूध में शहद, चीनी या थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर जहां कहीं भी सांप की बांबी या बिल दिखे उसमें डाल दें और उस बिल की मिट्टी लेकर चक्की लेकर, चूल्हे, दरवाजे के निकट दीवार पर तथा घर के कोनों में सांप बनाएं। इसके बाद भीगे हुए बाजरे,घी और गुड़ से इनकी पूजा करके, दक्षिणा चढ़ाएं तथा घी के दीपक से आरती उतारें। अंत में नागपंचमी की कथा सुनें। यह तो सी जानते हैं कि सांपों के निकलने का समय वर्षा ऋतु है। वर्षा ऋतु में जब बिलों में पानी भर जाता है तो विवश होकर सांपों को बाहर निकलना पड़ता है। इसलिए नागपूजन का सही समय यही माना जाता है। सुगन्धित पुष्प तथा दूध सर्पों को अति प्रिय है। इस दिन ग्रामीण लड़कियां किसी जलाशय में गुड़ियों का विसर्जन करती हैं। ग्रामीण लड़के इन गुड़ियों को डण्डे से ख़ूब पीटते हैं। फिर बहन उन्हें रुपये भेंट करती हैं।

नागपंचमी की कथा

किसी नगर में एक किसान अपने परिवार सहित रहता था। उसके तीन बच्चे थे-दो लड़के और एक लड़की। एक दिन जब वह हल चला रहा था तो उसके हल के फल में बिंधकर सांप के तीन बच्चे मर गए। बच्चों के मर जाने पर मां नागिन विलाप करने लगी और फिर उसने अपने बच्चों को मारने वाले से बदला लेने का प्रण किया। एक रात्रि को जब किसान अपने बच्चों के साथ सो रहा था तो नागिन ने किसान, उसकी पत्नी और उसके दोनों पुत्रों को डस लिया। दूसरे दिन जब नागिन किसान की पुत्री की डसने आई तो उस कन्या ने डरकर नागिन के सामने दूध का कटोरा रख दिया और हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। उस दिन नागपंचमी थी। नागिन ने प्रसन्न होकर कन्या से वर मांगने को कहा। लड़की बोली-'मेरे माता-पिता और भाई जीवित हो जाएं और आज के दिन जो भी नागों की पूजा करे उसे नाग कभी न डसे। नागिन तथास्तु कहकर चली गई और किसान का परिवार जीवित हो गया। उस दिन से नागपंचमी को खेत में हल चलाना और साग काटना निषिद्ध हो गया।
पुराणों के अनुसार नागपंचमी के दिन नाग के दर्शन व पूजन का विशेष फल मिलता है। जो भी इस दिन नाग की पूजा करता है उसे कभी सांप का भय नहीं होता और न ही उसके परिवार में किसी को नागों द्वारा काटे जाने का भय सताता है।
कालसर्प दोष की मुक्ति का विशेष दिन

कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए नागपंचमी का दिन बहुत विशेष है। ज्योतिष के मुताबिक अगर किसी जातक की कुंडली में कालसर्प दोष है तो वह जीवन भर किसी न किसी कारण से परेशान रहता है। अधिक मेहनत करने के बाद भी उसे उचित फल नहीं मिलता है। उन्होंने बताया कि नागपंचमी के दिन दोष निवारण का उपाय किया जाए तो यह दोष काफी हद तक समाप्त हो जाता है।

यह उपाय करें

1. आज के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि कार्यो से निवृत होकर शिव मंदिर में जाएं, नहीं तो घर में ही एकांत में प्रभु शिव के सामने महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें। प्रत्येक मंत्रजाप के साथ एक-एक बिल्वपत्र शिवलिंग पर चढ़ाते रहे।
2. तीन जोड़ी नाग-नागिन पीपल, शिवलिंग व जल में ऊं नम: शिवाय का जप करते हुए प्रवाह करें।

करें इस मंत्र का जप

ऊं हौं ऊं जूं स: भूर्भव: स्व: त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवद्रधनम्, उर्वारूकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुव: स्वरों जूं स: हौं ऊं। नागपंचमी के बाद 21 दिन तक इस मंत्र का जाप 108 बार करें। इस उपाय से कालसर्प दोष का असर कम होने लगेगा। साथ ही, हर कार्य में सफलता मिलेगी।




कहा जाता है कि जो भक्त महाराजा विक्रमादित्य के न्याय की नगरी उज्जयिनी के महाकालेश्वर मंदिर में बसे शिवलिंग के दर्शन कर लेता है, उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता. महाकालेश्वर की कृपा दर्शन करने वाले भक्तों को सभी कष्टों से दूर रखती है. इसी मान्यता और भक्तों में शिव के प्रति श्रद्धा के चलते हर साल लाखों की तादाद में देश के विभिन्न कोनों से भक्त महाकालेश्वर ज्योतिर्लिग के दर्शन करने आते हैं.
मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि 1235 ई. में इल्तुतमिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किये जाने के बाद, जितने भी शासकों ने उज्जैन पर राज किया, उन्होंने इस मंदिर के सौंदर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया. सालों से मंदिर में होने वाले सुधारों और नये निर्माणों के फलस्वरूप ही मंदिर अपने वर्तमान मोहक स्वरूप को प्राप्त कर सका है.
मंदिर के इतिहास से पता चलता है कि सन् 1107 से 1728 ई तक इस ज्योतिर्लिग में यवनों का शासन रहा. इस शासनकाल में हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं को नष्ट कर दिया गया. 1690 ई में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया. 29 नवंबर, 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया. मराठों की इस विजय के बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव फिर से लौट आया और 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही. मराठों के शासनकाल में इस मंदिर का पुन: निर्माण और ज्योतिर्लिग की पुनप्र्रतिष्ठा करायी गयी. आगे चल कर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया.


वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिग है वह तीन खंडों में विभाजित है. निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर और ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है. गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है और ज्योतिष में इस शिवलिंग का विशेष महत्व है. गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणोश व कार्तिकेय की भी मोहक प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं. यहां एक नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्वलित रहता है. गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है. इस कक्ष में बैठ कर हजारों श्रद्धालु शिव की आराधना करते हैं.
  भारतीय सनातन हिन्दू धर्म का मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित नागचन्द्रेश्वर मंदिर अपने आप में अनोखा मंदिर है क्योंकि इसके पट वर्ष में केवल एक दिन खुलते है।

ग्यारहवीं शताब्दी की परमारकालीन प्रतिमा वाले भगवान नागचन्द्रेश्वर मंदिर के पट वर्ष में केवल एक दिन आम दर्शनार्थियों के दर्शन के लिए श्रावण शुक्ल पक्ष की नागपंचमी के मौके पर 24 घंटे के लिए खोले जाते है। प्राचीनकाल से शिव की नगरी रुप में पहचाने जाने वाले उज्जैन में विशाल परिसर में स्थित यह मंदिर तीन खंडो में विभक्त है। सबसे नीचे खंड में भगवान महाकालेश्वर, दूसरे खंड में ओकारेश्वर और तीसरे खंड में दुर्लभ भगवान नागचन्द्रेश्वर का मंदिर है।

हालांकि भारतीय सनातन हिन्दू धर्म के धार्मिक स्थल बाबा अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ सहित गंगोत्री और जमनोत्री मंदिरो के पट एक दिन से अधिक समय तक आम दर्शनार्थियो के दर्शन के खुलते है और लाखो श्रद्धालुजन इसके दर्शन लाभ लेते हैं, लेकिन विश्व में ऐसा कोई मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर शायद नही होगा जिसके पट वर्ष में केवल एक दिन 24 घंटे के लिए खुलते है।


नागचन्द्रेश्वर मंदिर में प्रतिमा के आसन में शिव-पार्वती की सुन्दर प्रतिमा स्थित है जिसमें छत्र के रुप में नाग का फन फैला हुआ है।

नागपंचमी के दिन इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही भक्तजन नागचन्द्रेश्वर महादेव के दर्शन करते है। यह प्रतिमा पड़ोसी देश नेपाल से यहां लायी गयी तथा यहां पर श्रीलक्ष्मी माता एवं शंकर पार्वती की नंदी पर विराजित प्रतिमा भी लायी गयी जो मंदिर के दूसरे तल पर स्थित है।

नागचन्द्रेश्वर के साथ इनका भी पूजन नागपंचमी के दिन किया जाता है।

लगभग 60 फीट ऊंचाई वाले इस मंदिर में पहुचने के लियें प्राचीन में इसका रास्ता संकरा और अंधेरा वाला होने से एक समय में एक ही व्यक्ति चढ़ सकता था, लेकिन दो दशक से अधिक समय पूर्व मंदिर में दर्शनार्थियो की बढती संख्या को देखते हुए मंदिर प्रबंध समिति और जिला प्रशासन ने लोेहे की सीढियां का रास्ता अलग से बना दिया है।

 23 जुलाई को नागपंचमी के अवसर पर भगवान नागचन्द्रेश्वर मंदिर में 22 जुलाई की मध्यरात्रि में साफ सफाई और विधि विधान से पूजा अर्चना के बाद इसके पट आम दर्शनार्थियो के खोले जायेंगे जो 23 जुलाई की अर्धरात्रि को पूजा अर्चना के बाद बंद कद दिये जाएंगे। मंदिर में दर्शन के लिए 22 जुलाई की रात्रि दस बजें से ही लाइन लगाने की अनुमति दी जायेगी। महाकालेश्वर के दर्शन लिये दर्शनार्थी को पृथक से लाइन लगेगी। इसके अलावा राशि जमा कर विशेष दर्शन टिकटधारी और भस्मार्ती में आने वालें दर्शनार्थियो को अलग से प्रवेश दिया जाएगा।


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