12 जुलाई, 2025

रामेश्वर नाथ तिवारी: एक परिचय

हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

Mr.Manoj Joshi.(मनोज जोशी














Discussing Chankya Play ........

Memorable moments with Mr.Manoj Joshi.
Manoj Joshi (मनोज जोशी) is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujarati and Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
Manoj Joshi hails from Adapodara village near Himatnagar in north Gujarat.
 



Manoj Joshi is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujaratiand Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
He acted in TV series including ChanakyaEk Mahal Ho Sapno KaRau (Marathi), SangdilKabhi Souten Kabhi SaheliKhichdi,Mura Raska Mai La (Marathi). He debuted in Sarfarosh (SI Bajju) alongside his brother who played Bala Thakur in the film. His other works include the film Hungama followed by HulchulDhoomBhagam BhagPhir Hera PheriChup Chup KeBhool Bhulaiyaa,[and Billo Barber.
He also portrayed Chanakya in Chakravartin Ashoka Samrat.






गौतम इंटर कालेज पिपरा रामधर देवरिया


 

रामेश्वर नाथ तिवारी

रामेश्वर नाथ तिवारी जी के व्यक्तित्व, जीवनदृष्टि और मूल्यों पर आधारित एक भावनात्मक कविता — एक श्रद्धा, सम्मान और आत्मीयता से रचित रचना:


---

🖋️ "तिवारी जी - जीवन के सारथी"

धूप में छाया, छांव में दीप,
संघर्षों में रहे सदा अडिग और गम्भीर।
जिनकी वाणी में संयम का स्वर,
जिनकी दृष्टि में कर्म का पथ प्रस्फुटित हर क्षण।

बचपन देवरिया की मिट्टी से जुड़ा,
कर्मभूमि बनी पुणे की धरती बड़ी।
जहाँ शिक्षा को उन्होंने दिया आकार,
हर संस्था बनी उनके श्रम का उपहार।

मीरा सी संगिनी साथ चली जब,
गृहस्थ जीवन बना तपोवन सब।
बेटे-बेटियों में भर दी दृष्टि और संस्कार,
जैसे वटवृक्ष की छाया हो परिवार।

न रहे मंचों के भूखे, न पद की चाह,
स्वाभिमान बना उनका असली ताजमहल वाह!
जिनके शब्दों में मधुर अनुशासन था,
जिनका मौन भी एक उपदेश बना।

हर रिश्ता निभाया स्नेह की भाषा में,
हर संवाद था सत्य की आशा में।
नयनों में गंगा सा निर्मल जल,
हृदय में बसता भारत का संबल।


---

🌺 "प्रणाम है उस पुरुषार्थ को"

जो बोले कम, पर कर गए गहरा प्रभाव,
जैसे एक दीपक, देता रहा सदा उजास।
रामेश्वर नाथ तिवारी — केवल एक नाम नहीं,
बल्कि जीवन जीने की शालीन परिभाषा हैं वही।






 रामेश्वर नाथ तिवारी जी के व्यक्तित्व, जीवनदृष्टि और मूल्यों पर आधारित एक भावनात्मक कविता — एक श्रद्धा, सम्मान और आत्मीयता से रचित रचना:


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🖋️ "तिवारी जी - जीवन के सारथी"

धूप में छाया, छांव में दीप,
संघर्षों में रहे सदा अडिग और गम्भीर।
जिनकी वाणी में संयम का स्वर,
जिनकी दृष्टि में कर्म का पथ प्रस्फुटित हर क्षण।

बचपन देवरिया की मिट्टी से जुड़ा,
कर्मभूमि बनी पुणे की धरती बड़ी।
जहाँ शिक्षा को उन्होंने दिया आकार,
हर संस्था बनी उनके श्रम का उपहार।

मीरा सी संगिनी साथ चली जब,
गृहस्थ जीवन बना तपोवन सब।
बेटे-बेटियों में भर दी दृष्टि और संस्कार,
जैसे वटवृक्ष की छाया हो परिवार।

न रहे मंचों के भूखे, न पद की चाह,
स्वाभिमान बना उनका असली ताजमहल वाह!
जिनके शब्दों में मधुर अनुशासन था,
जिनका मौन भी एक उपदेश बना।

हर रिश्ता निभाया स्नेह की भाषा में,
हर संवाद था सत्य की आशा में।
नयनों में गंगा सा निर्मल जल,
हृदय में बसता भारत का संबल।


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🌺 "प्रणाम है उस पुरुषार्थ को"

जो बोले कम, पर कर गए गहरा प्रभाव,
जैसे एक दीपक, देता रहा सदा उजास।
रामेश्वर नाथ तिवारी — केवल एक नाम नहीं,
बल्कि जीवन जीने की शालीन परिभाषा हैं वही।







06 जुलाई, 2025

कर्म और भाग्य

बहुत पुराने समय की बात है। एक जंगल में एक महात्मा निवास करते थे। जंगल के दोनों ओर दो अलग-अलग राज्य थे। दोनों के ही राजा महात्मा के पास आया करते थे। जंगल के बीच में से एक नदी बहती थी। जिसे लेकर दोनों राज्यों में तनातनी रहती थी। आखिर बात बिगड़ते-बिगड़ते युद्ध तक पहुंच गयी। दोनों तरफ तैयारियां जोर-शोर से चल पड़ीं। दोनों ही राजाओं ने महात्मा से आशीर्वाद लेने के लिये सोचा।
पहला राजा महात्मा के पास पहुंचा और सारी बात बताकर आशीर्वाद मांगा। महात्मा ने थोड़ा सोच कर कहा, ‘भाग्य में तो जीत नहीं दिखती, आगे हरि इच्छा।’ यह सुनकर राजा थोड़ा विचलित तो हुआ लेकिन फिर सोचा कि यदि ऐसा है तो खून की आखिरी बूंद भी बहा देंगे लेकिन जीते-जी तो हार नहीं मानेंगे। अब उसने वापस लौटकर ​सिर पर कफन बांधकर युद्ध की तैयारी करनी शुरू कर दी। उधर दूसरा राजा भी महात्मा के पास आशीर्वाद लेने के लिये पहुंचा। महात्मा ने हंसते हुये कहा, ‘भाग्य तो तुम्हारे पक्ष में ही लगता है।’ यह सुनकर वह खुशी से भर उठा। वापस लौटकर सभी से कहने लगा, ‘चिन्ता मत करो, जीत हमारे भाग्य में लिखी है।’
युद्ध का समय आ पहुंचा। दूसरा राजा जीत का सपना लिये अभी निकला ही था कि उसके घोड़े के एक पैर की नाल निकल गयी। घोड़ा थोड़ा लंगड़ाया तो मंत्री ने कहा, ‘महाराज! अभी तो समय है, नाल लगवा लेते हैं या फिर घोड़ा बदल लेते हैं।’ लेकिन राजा बेपरवाही के साथ बोला, ‘अरे! जब जीत अपने भाग्य में लिखी है तो फिर ऐसी छोटी सी बात की चिन्ता क्यों करते हो।’
युद्ध शुरू हुआ। दोनों ओर की सेनाएं मरने-मारने के लिये एक दूसरे से भिड़ गईं। जल्दी ही दोनों राजा भी आमने-सामने आ गये। घनघोर युद्ध छिड़ गया। अचानक पैंतरा बदलते हुये वह एक नाल निकला हुआ घोड़ा लड़खड़ा कर गिर पड़ा। राजा दुश्मन के हाथ पड़ गया। पासा ही पलट गया। भाग्य ने धोखा दे दिया।
पहला राजा जीत का जश्न मनाता हुआ फिर से महात्मा के पास पहुंचा और सारा हाल बताया। दोनों ही राजाओं के मन में जिज्ञासा थी कि भाग्य का लिखा कैसे बदल गया। महात्मा ने दोनों को शान्त करते हुए कहा, ‘अरे भई! भाग्य बदला थोड़े ही है। भाग्य तो अपनी जगह बिल्कुल सही है लेकिन तुम लोग जरूर बदल गये हो।’ जीतने वाले राजा की ओर देखते हुए महात्मा आगे कहने लगे, ‘अब देखो न, अपनी संभावित हार के बारे में सुनकर तुमने दिन-रात एक करके, सारी सुख-सुविधाएं छोड़कर, खाना-पीना-सोना तक भूलकर जबर्दस्त तैयारी की और खुद प्रत्येक बात का पूरा-पूरा ध्‍यान रखा। जबकि पहले वही तुम थे कि सेनापति के बल पर ही युद्ध जीतना चाह रहे थे।’
‘और तुम’ महात्मा बन्दी राजा से बोले ‘अभी युद्ध शुरू भी नहीं हुआ कि जीत का जश्न मनाने लगे। एक घोड़े का तो समय पर यान नहीं रख पाये तो भला युद्ध में इतनी बड़ी सेना को कैसे सही से संभाल पाते और वही हुआ जो होना था। भाग्य नहीं बदला लेकिन जिन व्यक्तियों के लिये वह भाग्य लिखा हुआ था उन्होंने अपना व्यक्तित्व ही बदल डाला तो बेचारा भाग्य भी क्या करता।’
यह कहानी भले ही सुनने में काल्पनिक लगे लेकिन आज यह प्राय: घर-घर में दुहारायी जा रही है। समस्या केवल इतनी ही है कि नकल सभी दूसरे राजा की करते हैं और अन्तत: हारते हैं। अरे, जरा सोच कर तो देखो कि भाग्य आखिर कहते किसे हैंॽ
पूर्व जन्मों में या पूर्व समय में हमने जो भी कर्म किये, उन्हीं सब का फल मिलकर तो भाग्य रूप में हमारे सामने आता है। भाग्य हमारे पूर्व कर्म संस्कारों का ही तो नाम है और इनके बारे में एकमात्र सच्चाई यही है कि वह बीत चुके हैं। अब उन्हें बदला नहीं जा सकता। लेकिन अपने वर्तमान कर्म तो हम चुन ही सकते हैं। यह समझना कोई मुश्किल नहीं कि भूत पर वर्तमान हमेशा ही भारी रहेगा क्योंकि भूत तो जैसे का तैसा रहेगा लेकिन वर्तमान को हम अपनी इच्छा और अपनी हिम्मत से अपने अनुसार ढाल सकते हैं।
हमारे पूर्व कर्म संस्कार जिन्हें हम भाग्य भी कह लेते हैं, मात्र परि​स्थितियों का निर्माण करते हैं। जैसे हमारे जन्म का देश-काल, घर-व्यापार, शरीर-स्वास्थ्य आदि हमारी इच्छा से नहीं मिलता लेकिन उन परिस्थितियों का हम कैसे मुकाबला करते हैं, वही हमारी नियति को निर्धारित करता है। कालिदास, बोपदेव, नेपोलियन आदि कितने ही नाम गिनाये जा सकते हैं जिन्होंने अपना भाग्य, भाग्य के सहारे छोड़कर धोखा नहीं खाया, वरन् कर्म के प्रबल वेग से सुनहरे अक्षरों में लिखवाया।
वस्तुत: भाग्य तो हम सभी का एक ही है, जिसे कोई बदल नहीं सकता और वह भाग्य है कि हम सभी ने परम पद की, पूर्णता की प्राप्ति करनी है। जो कर्मयोगी हैं, पूरी दृढ़ता, हिम्मत और उत्साह से हंसते-खेलते सहज ही वहां पहुंचने का यत्न करेंगे। दूसरी ओर जो आलसी और तमोगुणी हैं, वह बचने या टालने की कोशिश करेंगे। लेकिन कब तकॽ आखिर चलना तो उन्हें भी पड़ेगा क्योंकि सचमुच भाग्य को कोई नहीं बदल सकता। हम सभी ने संघर्ष के द्वारा अपनी चेतना का विकास करना ही है, चाहे या अनचाहे। परमात्मा ने मनुष्य को इसीलिये तो सोचने-समझने की शक्ति दी है ताकि वह अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर सही रास्ते का चुनाव कर सके और माया के चक्कर से निकल कर पूरी समझ के साथ पूर्णता के पथ पर आगे बढ़े। सुख तो स्वयं प्राप्ति में ही है, उधार या दान के द्वारा भोजन-धन आदि तो मिल सकता है लेकिन सुख और संतोष नहीं।। 

How to deal with Biased Boss!!!

How to deal with Biased Boss!!! Step 1 Weigh the severity of your boss’s biases before acting. A boss may allow other e...