18 अप्रैल, 2016

शांडिल्य गोत्र

शांडिल्य गोत्र

शांडिल्य नाम गोत्रसूची में है, अत: पुराणादि में शांडिल्य नाम से जो कथाएँ मिलती हैं, वे सब एक व्यक्ति की नहीं हो सकतीं। छांदोग्य और बृहदारण्यक उपनिषद् में शांडिल्य का प्रसंग है। पंचरात्र की परंपरा में शांडिल्य आचार्य प्रामाणिक पुरुष माने जाते हैं। शांडिल्यसंहिता प्रचलित है; शांडिल्य भक्तिसूत्र भी प्रचलित है। इसी प्रकार शांडिल्योपनिषद् नाम का एक ग्रंथ भी है, जो बहुत प्राचीन ज्ञात नहीं होता।
युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शांडिल्य का नाम है। राजा सुमंतु ने इनको प्रचुर दान दिया था, यह अनुशासन पर्व (137। 22) से जाना जाता है। अनुशासन 65.19 से जाना जाता है कि इसी ऋषि ने बैलगाड़ी के दान को श्रेष्ठ दान कहा था।
शांडिल्य नामक आचार्य अन्य शास्त्रों में भी स्मृत हुए हैं। हेमाद्रि के लक्षणप्रकाश में शांडिल्य को आयुर्वेदाचार्य कहा गया है। विभिन्न व्याख्यान ग्रंथों से पता चलता है कि इनके नाम से एक गृह्यसूत्र एवं एक स्मृतिग्रंथ भी था।
शाण्डिल्य ऋषि के १२ पुत्र थे जो इन १२ गाँवो में प्रभुत्व रखते थे
१ सांडी २ सोहगौरा ३ संरयाँ ४ श्रीजन ५ धतूरा ६ भगराइच ७ बलुआ ८ हरदी ९ झूड़ीयाँ १० उनवलियाँ ११ लोनापार १२ कटियारी
इन्हे आज बरगाव ब्राम्हण के नाम से भी जाना जाता है
उपरोक्त बारह गाँव के चारो तरफ इनका विकास हुआ है ! ये सरयूपारीण ब्राम्हण है! इनका गोत्र श्री मुख शाण्डिल्य - त्रि - प्रवर है, श्री मुख शाण्डिल्य में घरानो का प्रचलन है, जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, मणि घराना है ! इन चारो का उदय सोहगौरा, गोरखपुर से है, जहा आज भी इन चारो का अस्तित्व कायम है
यही विश्व के सर्वोत्तम श्रेष्ठ उच्च कुलीन ब्राम्हण कहलाते है इनके वंशज समय के साथ भारत के विकास के लिए लोगो को शिक्षित करने ज्ञान बाटने के उद्देश्य से भारत के विभिन्न क्षेत्रो में जा कर बस गए और वर्तमान में भारत के विभिन्न क्षेत्रो में निवास करते है
इनमे से धतूरा ब्राम्हण के वंशज छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के तिल्दा तहसील के ताराशिव नामक ग्राम में निवास करते है जिनमे स्वर्गीय पंडित हीरालाल तिवारी जी के सुपुत्र स्वर्गीय पंडित श्री लखनलाल तिवारी जी हुए एवं उनके सुपुत्र श्री तेजेन्द्र प्रसाद तिवारी एवं उनके सुपुत्र श्री हितेन्द्र तिवारी जी है जिनकी ख्याति चारो ओर है
चूकि ये ऋषि धतूरा के वंशज है एवं धतुरिया ग्राम के वासी थे अतः इन्हे धतुरिया तिवारी भी कहते है 

05 अप्रैल, 2016

किसानों की दुखद कहानी निल गायों का उत्पात





किसानों की दुखद कहानी निल गायों का उत्पात

अब खेती करना निल गायों के कारन बहुत कठिन हो जा रहा है . किसान खेत की तैयारी करता है , उत्तम खाद बीज  का प्रवन्ध करता है . और निल गायों के आतंक से उसकी फसल बर्बाद हो जाती है . कोई चारा नहीं है . शिवाय सर धुन कर पछताने के. कर भी क्या कर सकता है --इसके नाम में जो गाय शब्द जुड़ गया है लोग इसे  उसी दृस्टि से देखते है .

वैसे  इसका सम्बन्ध हिरन प्रजाति से है . पहले ये जंगलों में छिपकर रहते थे लेकिन जैसे जैसे   जनसँख्या ज्यादे होती गयी , खेती की जमींन  कम  पड़ने लगी . मजबूरन किसान जंगलों को काट कर उसे खेती योग्य जमींन में परिवर्तित करता गया . नीलगाय जो पहले मनुष्य और आबादी को देखकर भागते थे . अब झुण्ड बनाकर  किसानों के खेतों की तरफ रुख कर लेते हैं और खेत / खेती चौपट कर देते हैं .

नीलगाय चूंकि जंगली जानवर है, इसलिए इनकी दौड़ने की रफ्तार भी 45 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है। ऐसे में इन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल काम होता है। नीलगाय हिरण की प्रजाति का होता है। चूंकि यह गाय की तरह दिखता है और इसका रंग हल्का नीला होता है, इसलिए इसका नाम नीलगाय पड़ गया है। चूंकि हिन्दू संस्कृति में गाय को मारना पाप माना जाता है, इसलिए ग्रामीण भी नीलगाय का शिकार नहीं करते है। जंगली प्राणी होने के कारण नीलगाय काफी गुस्सैल और हिंसक होती हैं। अक्सर जंगल में भी वह मांसाहारी जानवरों से अपनी जान बचाने के लिए मुकाबला करती हैं। नीलगाय के सींग छोटे पर बहुत पैने होते है। ऐसे में जब ग्रामीण उन्हें भगाने का प्रयास करते हैं, तो गायों के पलटकर हमला करने का भय हमेशा बना रहता है।


नीलगायों का अगर गांवों में आतंक है, तो वह जिला प्रशासन से मदद ले सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि इसमें मुआवजा मिलना चाहिए, तो किसानों को मुआवजा देने का अधिकार भी जिला प्रशासन के पास में ही है।



नीलगाय अगर किसानों की फसल चौपट कर रही हैं, तो  एसडीएम को मौके पर जाकर जाँच करनी होती है  और अगर संभव हुआ तो ,अगर फसल को नुकसान अधिक हुआ है, तो  किसानों को मुआवजा  भी कभी कभार मिल जाता है लेकिन सामान्यतया यह  कम ही संभव हो पाता है .



जंगलों में पहले बाघ, तेंदुए, लकड़बग्घे आदि मांसाहारी जानवर रहते थे, जो नीलगायों को अपना शिकार बनाकर इनकी संख्या को काबू में रखते थे, लेकिन मांसाहारी जानवरों की तादाद कम होने से नीलगायों का कोई भी प्राकृतिक शिकारी नहीं रहा। इसके कारण इनकी तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरी ओर जंगल भी कटाई के कारण सिमट कर कम होते जा रहे हैं, ऐसे में जंगलों में नीलगाय के लिए पर्याप्त खाना नहीं होने के कारण वह अक्सर जंगल से निकलकर गांवों की ओर रूख करती हैं। अबतो बहुत सामान्य बात हो गयी है इनसे किसान को बहुत नुकसान हो रहा है ...

इनकी प्रजनन छमता अधिक होने के कारण इनकी संख्या में भयानक वृद्धि होती जारही है . न तो किसान के पास न तो सरकार   के प्रशासन के पास और न किसान के इसका कोई उचित समाधान दिख नहीं रहा है अगर आपको कुछ समाधान ज्ञात हो तो अवश्य व्यक्त करें , बड़ी कृपा होगी. 

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...