27 मार्च, 2016
Anahat: गोरखपुर विश्वविद्यालय और डॉ चन्द्र बदन तिवारी
Anahat: गोरखपुर विश्वविद्यालय और डॉ चन्द्र बदन तिवारी: Although the idea of residential University at Gorakhpur was first mooted by C. J. Chako, the then Principal of St. Andrews College, ...
21 मार्च, 2016
वृद्धावस्था
वृद्धावस्था कोई आश्चर्य जनक घटना नहीं है
मनुस बेचारे की बात करे कौन हरिहर ,
दिनकर की तीन गति होत एक दिन में.
दिनकर की तीन गति होत एक दिन में.
जिसने जन्म लिया है उसे मरना भी होता है . लेकिन मैं मरूंगा यह बात मानाने को कोई तैयार नहीं होता . सिद्धार्थ जब किसी व्यक्ति की अंतिम यात्रा देखकर उत्सुकता बस पूछते है तो उन्हें बताया जाता है की इनकी मौत हो चुकी है .शायद ऐसी बात ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया …..एक दिन सबको मरना होता है……
जब आदमी चकाचौध के कारन समझ नहीं पाता है तो कहता है मरने के पहले जिन्दा रहना है . अभिप्राय यह की वह जो कुछ कर रहा है जीने के लिए कर रहा है..
वास्तविक ज्ञान शमशान भूमि में ही प्राप्त होता है . इसीलिए घर आते ही उसे लाल मिर्च खाने के लिए
दिया जाता है , तीखा लगेगा तो जो ज्ञान उत्पन्न हुआ था , वह विचलित हो जाता है , इस दुनिया वापस आ जाता है ……..शायद यही इस दुनियां की वास्तविकता है.
जब आदमी चकाचौध के कारन समझ नहीं पाता है तो कहता है मरने के पहले जिन्दा रहना है . अभिप्राय यह की वह जो कुछ कर रहा है जीने के लिए कर रहा है..
वास्तविक ज्ञान शमशान भूमि में ही प्राप्त होता है . इसीलिए घर आते ही उसे लाल मिर्च खाने के लिए
दिया जाता है , तीखा लगेगा तो जो ज्ञान उत्पन्न हुआ था , वह विचलित हो जाता है , इस दुनिया वापस आ जाता है ……..शायद यही इस दुनियां की वास्तविकता है.
समय का चक्र तो अबाध गति से चलता रहता है। नियति का स्वाभाव है। आज जो बालक है वह कल युवा तो परसों वृद्ध होगा। इसकी कोइ निश्चित आयु सीमा नहीं है , कोई समय से पहले ही बूढा हो जाता है . कोई कुछ अधिक आयु सीमा जवान ही बने रहने का दिखावा करता है.
यह निर्विवाद सत्य है कि वृद्धावस्था में मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता है… सोचने की छमता भी धूमिल होने लगाती है .सबकी अपनी सोच है मैंने बचपन से वृद्ध लोंगो को अधिक सम्मान दिया है ,हालाँकि उस समय सोच भी उम्र के स्तर से कुछ बड़ी लगाती थी ….लगता था इनके साथ वितायें गए क्षणों में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और मिला भी.
अब धीरे धीरे उस दिशा की बढ़ रहे हैं तो लगता है अनुभव वृद्ध तो बहुत पहले हो गया था अब साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा है .
बर्रे बालक एक स्वभाउ …………भी समझ में आने लगा है सोचा लिपिबद्ध करने से समय भी कटेगा और शायद इस अनुभव का कुछ लाभ किसी को मिल सके.
बर्रे बालक एक स्वभाउ …………भी समझ में आने लगा है सोचा लिपिबद्ध करने से समय भी कटेगा और शायद इस अनुभव का कुछ लाभ किसी को मिल सके.
जीवन में जिस वृद्ध को मैंने नज़दीक से देखा वह अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति हमेशा अपने बारे में ही सोचने में लगा रहना , दूसरे के विषय अपने स्वार्थ की प्रतिपूर्ति में ही सोचना ….. शायद यही सीमा सोच की सीमा थी.लेकिन इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता. आया है सो जायेगा राजा रैंक फ़क़ीर
निम्न पक्तियां मुझे कुछ सोचने का मार्ग दिखा देती हैं
ख़ुदा ने खुदकशी कर ली जो देखा जान के बाद ,
जमीं पे कोई नमूना न आदमी का रहा
जमीं पे कोई नमूना न आदमी का रहा
शायद यही इस जग की सच्चाई है . वृद्धावस्था में ज्ञान की चक्छुयें अत्यंत संवेदनशील हो जाती है .
आज के इस व्यस्ततम जीवन में किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है
आज के इस व्यस्ततम जीवन में किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है
जिंदगी सवारने की चाहत में,
हम इतने मशगूल हो गए…
चंद सिक्कों से तो रूबरू हुए,
पर ज़िन्दगी से दूर हो गए.
हम इतने मशगूल हो गए…
चंद सिक्कों से तो रूबरू हुए,
पर ज़िन्दगी से दूर हो गए.
और फिर वही बात आती है सबकुछ लूटाके होश में आया तो क्या किया ???
कहते हैं…………. आओ जिंदगी के विषय में कुछ सोचें और उदास होएं ……
कहते हैं…………. आओ जिंदगी के विषय में कुछ सोचें और उदास होएं ……
सच में अगर सोचते हैं तो उदास ही होंगें
R D N Srivastav की कविता यहाँ पे याद आती है
R D N Srivastav की कविता यहाँ पे याद आती है
जिंदगी एक कहानी है समझ लीजिये
दर्द भरी लन्ति रानी समझ लीजिये
चहरे पर खिले ये अक्षांश देशान्तर
उम्र की छेड़ कहानी समझ लीजिये
दर्द भरी लन्ति रानी समझ लीजिये
चहरे पर खिले ये अक्षांश देशान्तर
उम्र की छेड़ कहानी समझ लीजिये
यह कहना गलत है कि कमी के कारण सीनियर सिटिजंस की देखभाल नहीं कर पाते। दरअसल नई पीढ़ी आत्मग्रस्त होती जा रही है। बसों में वे सीनियर सिटिजंस को जगह नहीं देते। बुजुर्ग अकेलापन झेल रहे हैं क्योंकि युवा पीढ़ी उन्हें लेकर बहुत उदासीन हो रही है , मगर हमें भी अब इन्हीं सबके बीच जीने की आदत पड़ गई है। सीनियर सिटिजंस की तकलीफ की एक बड़ी वजह युवाओं का उनके प्रति कठोर बर्ताव है।
लाइफ इतनी फास्ट हो गयी है की सीनियर सिटिजंस के लिए उसके साथ चलना असंभव हो गया है। एक दूसरी परेशानी यह है कि युवा पीढ़ी सीनियर सिटिजंस की कुछ भी सुनने को तैयार नहीं- घर में भी और बाहर भी। दादा-दादियों को भी वे नहीं पूछते, उनकी देखभाल करना तो बहुत दूर की बात है। जिंदगी की ढलती साँझ में थकती काया और कम होती क्षमताओं के बीच हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का सबसे बड़ा रोग असुरक्षा के अलावा अकेलेपन की भावना है।
बुजुर्ग लोगों को ओल्ड एज होम में भेज देने से उनकी परिचर्या तो हो जाती है, लेकिन भावनात्मक रूप से बुजुर्ग लोगों को वह खुशी और संतोष नहीं मिल पाता, जो उन्हें अपने परिजनों के बीच में रहकर मिलता है। शहरी जीवन की आपाधापी तथा परिवारों के घटते आकार एवं बिखराव ने समाज में बुजुर्ग पीढ़ियों के लिए तमाम समस्याओं को बढ़ा दिया है। कुछ परिवारों में इन्हें बोझ के रूप में लिया जाता है।
वृद्धावस्था में शरीर थकने के कारण हृदय संबंधी रोग, रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों के दर्द जैसी आम समस्याएँ तो होती हैं, लेकिन इससे बड़ी समस्या होती है भावनात्मक असुरक्षा की। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ाहट, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मानवीय संबंध परस्पर प्रेम और विश्वास पर आधारित होते हैं। लेकिन इसे समझनेवाला है कौन ??
जिंदगी की अंतिम दहलीज पर खड़ा व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों को अगली पीढ़ी के साथ बाँटना चाहता है, लेकिन उसकी दिक्कत यह होती है कि युवा पीढ़ी के पास उसकी बात सुनने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं होता।
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