02 दिसंबर, 2013

Brain stroke

 Emergency treatment with medications. Therapy with clot-busting drugs (thrombolytics) must start within 4.5 hours if they are given into the vein — and the sooner, the better. Quick treatment not only improves your chances of survival but also may reduce the complications from your stroke.



Brain stroke, commonly causing paralysis of one half of the body (called as "Lakwa" in Hindi) is among the top 3 causes of death and disability in the world (the other two being heart attack and cancer). Stroke brings about a sudden transformation in the sufferer's life. A completely independent person may become paralysed, making him/her dependent on others for even their basic needs such as bathing, toileting and feeding needs.
Moreover, stroke is a major cause of financial burden for the sufferer. The patient is unable to attend to his job due to disability leading to the loss of income. In addition, the treatment of stroke and caring for the stroke patient adds to the financial burden. 

What is a stroke?
A stroke occurs when the blood supply to a part of the brain is compromised, either because of a blockage in the blood vessel, or due to a rupture of the blood vessel, resulting in bleeding into the brain.

Brain cells require a continuous supply of blood, which carries oxygen and vital nutrients. If blood supply is cut-off the brain cells begin to die.
There are two main types of stroke: • Ischemic stroke: An ischemic stroke occurs when the blood supply to a part of the brain is cut-off due to a blockage in an artery. The clot that blocks the artery may form within the artery (thrombotic stroke), or be carried to the brain from another part of the body (embolic stroke).
• Hemorrhagic stroke: A hemorrhagic stroke occurs when a blood vessel in the brain ruptures. This decreases the amount of blood flowing to the affected part of the brain. Also, the blood that accumulates in the brain clots over time and presses on the brain, decreasing its ability to function. The bleed may happen inside the brain (intracerebral bleed) or in the space between the brain and skull.

Risk factors:
A variety of risk factors predispose a person to a stroke. These are of two types – ones that can be changed or modified and ones that cannot.
The modifiable risk factors include:
  • Obesity
  • Smoking
  • High blood pressure
  • Diabetes mellitus
  • Elevated cholesterol
  • Elevated homocysteine levels
  • Cardiac diseases
  • Stress
  • Excess alcohol intake
  • A sedentary lifestyle
  • Use of oral contraceptives (esp. for women who smoke)

Non-modifiable risk factors for stroke include: 
  • Older age
  • Family history of brain stroke
  • Male sex
It is important to get regular check-ups done to identify any risk factors for stroke. If any of the above conditions are identified, proper treatment may ensure a stroke-free life.

Warning signs of a stroke:
The acronym FAST is useful to remember to assess whether a person might have a stroke or not:
  • F – Face: Ask the person to smile. Does one side of the face droop?
  • A – Arms: Ask the person to raise both arms. Does one arm drift downwards?
  • S – Speech: Ask the person to repeat a simple sentence. Is the speech slurred or strange?
  • T – Time: If the answer to any of the above questions is Yes, rush the patient to the nearest hospital.
Importance of timely treatment in brain stroke
An ischemic stroke can be treated with a clot-buster medicine called Tissue Plasminogen Activator (TPA). However, this drug is effective only if given within 4.5 hours of onset of the stroke symptoms. Hence, it is essential that a patient with any of the above signs of stroke receives immediate medical attention at a hospital that can identify and treat a stroke.
All Apollo Hospitals are equipped to handle a stroke case. Apollo Hospital, Jubilee Hills, Hyderabad is accredited by Joint Commission International (JCI, USA) for the management of acute stroke since April 2006.
Dr.Sudhir Kumar
Consultant Neurologist, Apollo Health City, Jubilee Hills, Hyderabad

26 अगस्त, 2013

घाघ कवि के दोहे


 घाघ कवि के दोहे



सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।

अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।

सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।

12 अगस्त, 2013

Pt. Ram Chandra Sharma , A Great Freedom Fighter



पंडितरामचंद्रशर्मा -अप्रतिमस्वतंत्रतासंग्रामसेनानी 
 Pt. Ram Chandra Sharma- A great Freedom Fighter.......

पंडित राम चन्द्र शर्मा की  गड़ना   उन कुछ गिने चुने लोगो में की जा सकती है, जिनके जीवन का उद्देश्य व्यक्तिगत सुख लिप्सा न होकर समाज के उन सभी लोगो के हित के लिए अत्मोत्सर्ग रहा है। यही कारण है कि स्वतंत्रता संग्राम मे अपने अद्वितिय योगदान के पश्चात पंडित जी ने अपने संघर्ष की  इति  स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी नही मानी । वे आजीवन पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए जूझते रहे ।पंडित जी सर्वे भवंतु सुखीनः मे विश्वास करते थे । उनकी मान्यता थी " कीरति भनति भूति भुलि सोई ,सुरसरि सम सब कन्ह हित होई."

पंडित जी का जन्म 7 मार्च  1902  को ग्राम अमवा, पोस्ट: घाटी, थाना- खाम पार , जनपद -गोरखपुर( वर्तमान देवरिया जनपद) मे हुआ था. वे अपने माता पिता की अंतिम संतान थे। पंडित जी से बड़ी पाँच बहनें थी । यही कारण था की पंडित जी का बचपन अत्यंत लड़ प्यार से बीता। यद्यपि पंडित जी उच्च शिक्ष प्राप्त नहीं कर सके किंतु स्वाध्याय और बाबा राघव दास के सनिध्य में  इतना  ज्ञानार्जन किया कि उन्हें किसी विश्वविद्यालीय डिग्री की आवश्यकता नहीं रही।

तत्कालीन परम्पराके अनुसार पंडित जी का विवाह भी बचपन मे ही ग्राम- अमावाँ से चार किलोमीटेर उत्तर दिशा मे स्थित ग्राम-दुबौलि के पं रामअधीन दूबे जी की पुत्री श्रीमती लवंगा देवी, के साथ हो गया था किन्तु बाबा राघव दास से दीक्षा लेने के पश्चात्  सभी बंधनों को  तोड़कर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। सर्व प्रथम 1927  ई. में नमक सत्याग्रह में जेल गये। सन 1928  ई में भेंगारी में नमक क़ानून तोड़कर बाबा राघव दास जी के साथ जेल गये। वहाँ बाबा ने उन्हे राजनीति का विधिवत पाठ पढ़ाया । सन 1930  ईमें नेहरू जी के नेतृत्व में गोरखपुर में सत्याग्रह  करते समय गिरफ्तार हुए । सन 1932  ई मे थाना भोरे जिला सिवान (बिहार) मे गिरफ़तार हुएऔर गोपालगंज जेल में निरुध रहे . 1933 में पटना में सत्याग्रह करते समय गिरफ्तार हुए और १ वर्ष तक दानापुर जेल में बंद रहे. 1939  में लाल बहादुर शास्त्री ,डॉ सम्पूर्णा नन्द , कमलापति त्रिपाठी के साथ बनारस में गिरफ्तार हुए. कुछ दिनों बनारस जेल में रहने के पश्चात उन्हें बलिया जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। 10 अगस्त 1942  को ये भारत छोडो आन्दोलन में गिरफ्तार हुए । जब ये जेल में ही थे, इनके पिता राम प्रताप पाण्डेय का स्वर्गवास हो गया , फिर भी अंग्रेजों ने अपने दमनात्मक दृष्टि कोण के कारन इन्हें पेरोल पर भी नहीं छोड़ा। 1945  में इनकी माता निउरा देवी भी दिवंगत हो गयीं। इनकी पत्नी श्रीमती लवंगा देवी भी स्वतंत्र भारत देखने से वंचित रही। 14  अगस्त 1947  को इनका भी निधन हो गया किन्तु पंडित जी के लिए राष्ट्र के सुख दुःख के समक्ष व्यक्तिगत सुख दुःख का अर्थ नहीं रह गया था।

पंडित जी 1947  में कांग्रस के जिला मंत्री निर्वाचित हुए। जहाँ अन्य लोग सत्ता सुख में निमग्न थे ,पंडित जी को पुकार रहा था...देश के अनेकानेक वंचित लोगों का   करुण क्रंदन , और यही कारण था की पंडित जी समाजवादी आन्दोलन से जुड़॰ गए। 1952  में मार्क्स के दार्शनिक चिंतन से अत्यंत प्रभावित हुए और तबसे जीवन पर्यंत एक सच्चे समाजवादी के रूप में संघर्ष रत रहे ।


यद्यपि 26  अगस्त 1992  को काल के कुटिल हाथों ने पंडित जी को हमसे छीन लिया , फिरभी अपनी यशः काया से वे हमारे बीच सदैव विद्यमान हैं। पंडित जी अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं । जिनमें उनके एकलौते पुत्र श्री हनुमान पाण्डेय ( अब  स्वर्गीय ) और  तीन पुत्रियाँ श्रीमती अन्न पूर्णा  देवी, श्रीमती धन्न पूर्णा (अब  स्वर्गीय और श्रीमती ललिता देवी के साथ तीन पौत्र  श्री वशिष्ठ पाण्डेय , रामानुज पाण्डेय , द्वारिका पाण्डेय और दो पौत्रिया उर्मिला देवी और उषा देवी विद्यमान हैं.
भारत माता के ऐसे सपूत स्वतंत्रता संग्राम योद्धा को शतशः नमन.............

  ऐसे थे हमारे नाना जी  !!!


02 अगस्त, 2013

भगवान शिव

"ॐ तत पुरुषाय विदमहे महादेवाय धी मही ..तन्नो रुद्रः प्रचो दयात "

भगवान शिव ही एकमात्र आदि स्वयंभू देव हैं, जिन्हें लींग स्वरुप में पूजने से पहले प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं रहती। पार्थिव शिवलिंग तो स्वत: ही चेतना संपन्न होते है पूजने से पहले किसी तरह की प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।

भगवान शिव के जितने रूप और उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव की प्रतिष्ठा पूरे संसारमें ही फैली हुई है।
उनके विविध रूपों को पूजने का आदि काल से ही प्रचलन रहा है।

शिव के मंदिर अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील, तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका, चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा,सुमात्रा तक हर जगह पाए गए हैं।
ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनसमंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था। यूरोपियन फणिश और इबरानीजाति के पूर्वज बालेश्वर लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप मेंउल्लेख हुआ है।चाहे नाम अलग हो .. स्वरुप में थोडा फर्क हो पूजन - विधि विधान के नियम अलग ..शिव की महिमा तो अनंत और अपार |

भगवान शिव के रूप में

परमात्मा के ब्रह्मा और विष्णु रूप को समझना और उन्हें आत्मसात करना तो सहज है, परंतु उनके शिव रूप को पूर्णतः आत्मसात करना अत्यधिक मुश्किल है,क्योंकि शिव रूप में उनके रूप, श्रंगार, शक्तियों और अवतारों में इतनी विशिष्टता एवं विरोधाभास बना रहा है कि उन्हें अनगिनत नामों की उपाधियां प्रदान की जाती रही।
उनहें मान्यता तो [ रूद्र - भेरव ] संहारक और विध्वंसक देव की दी गई,
लेकिन उन्हें आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव),
परमशिव (समस्त जगत का कल्याण करने वाले देव),
रूद्र (मृत्यु के मुंह से निकाल लेने वाला),
ओघड़ (गुण, रस,राग, दोष रहित),
ओघड़दानी, श्मशानवासी, कापालिक, पिनाक्षी, विरूपाक्ष,दिगंबर ,अर्धनारेश्वर
जैसे अनगिनत नामों की मान्यता भी दी गई। शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं,जिन्होंने देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र से प्राप्त हुए विष को स्वयं अपने कण्ठ में धारण कर लिया और स्वयं नीलकण्ठ कहलाए।

शास्त्रों में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के साथ-साथ पंचानन शिव, अष्टमुखी शिव, अर्धनरेश्वर , मृत्युंजय शिव, दक्षिणाभिमुख शिव, हरिहर शिव ,पशुपतिनाथ से लेकर नटराज तक अनगिनत रूपों में मान्यता प्रदान की है। भक्त जीस भाव से यजन करे वही स्वरुप शिव धारण कर लेते हे |

शिव ही एकमात्र देव हैं, जिन्हें पूजने से पहले प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं रहती।
पार्थिव शिवलिंग तो स्वतः ही चेतना संपन्न होते हैं और उन्हें पूजन से पहले किसी तरह की
प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे मृतिका या बालू से निर्मित शिवलिंगों को कहीं भी, किसी मंदिर, वन क्षेत्र, पहाड़, गुफा से लेकर नदी , सरोवर , समुद्र तट ,शमशान भूमि तक, किसी चबूतरे अथवा वृक्ष के नीचे स्थापित करके या घर में ही पूजा जा सकता है और उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। इसी तरह शिव की उपासना के लिए किसी प्रकार की विशिष्ट सामग्री आदि की जरुरत नहीं होती।
उन्हें तो फल, फूल, बिल्व पत्र आदि समर्पित करना ही पर्याप्त होता है और अगर वह भी
सुलभ नहीं हो पाए,तो शिव को रिझाने के लिये केवल एक लोटा पानी से ही काम चल जाता है।
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप या शिव मानस पूजा ही पर्याप्त हे |

भगवान अपने शिव भक्तों की करूणा पुकार, शीघ्र सुनते हैं और तत्काल ही अपनी कृपा दृष्टि प्रदान करके अपने आशीर्वाद स्वरूप उनके समस्त दुखों को हर लेते हैं।शिव महिमा की ऐसी अनुभूतियां - शिव अनुकंपा अनेको साधकों - भक्तो को को समय-समय पर मिलती रही हैं।
शिवोपासना का प्रसिद्ध महामंत्र है महामृत्यंजय मंत्र। इस अकेले मंत्र के विविध अनुष्ठानों के द्वारा ही न केवल अपमृत्यु का ही निवारण होता देखा गया है, बल्किलंबे समय से परेशान करती आ रही लाइलाज बीमारियों से भी सहज ही मुक्तिमिलते देखी गई है, यहां तक कि इस महामंत्र के अनुष्ठान से साधक की समस्त अभीष्ट मनोकामनाएं भी सहज ही पूर्ण हो जाती है।
इस महामृत्युंजय मंत्र के द्वाराघोर विपत्तियों में फंसे, मुकदमेबाजी में उलझे, कर्ज से दबे हुए लोगों को कुछ ही समय में राहत देखी गई है। इस महामृत्युंजय मंत्र के दो रूप हैं वेदोक्त और पुराणोक्त जिनके अनुष्ठान के अलग- अलग कर्मकांड एवं विधान हैं।

शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं अन्य मुख्य लिंग

शिव पूजा द्वारश ज्योतिर्लिंग की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि इन ज्योतिर्लिंग में स्वयं उमाशंकर महादेव मां पार्वती के साथ सदैव विराजमान रहते हैं। इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही शिव कृपा की प्राप्ति हो जाती है। अगर इन सिद्धी स्थलों पर पूर्ण भक्ति से शिव मंत्रों या शिव स्त्रोत आदि का पाठ किया जाए, तो शिव निश्चित ही अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हैं और उसे सहस्त्रों समस्याओं से निकाल सकते हैं।

शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की तो बहुत मान्यता रही है, अनंत महिमा हे ,लेकिन इनके अतिरिक्त भी शिव के अनेक मंदिर में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विराजमान होकर संसार का कल्याण कर रहे हैं। हमारे देश में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त शिव के कुछ प्रमुख पूजाग्रह इस प्रकार रहे हैं।

तमिलनाडु के शिव कांची क्षेत्र में एकमेश्वर नामक शिव केन्द्र, केरल प्रदेश मेंतिरूचनापल्ली में श्रीरन्नम् से पांच मील दूर जम्बूकेश्वर शिवलिंग, नेपाल केकाठमाण्डू में बागमती नदी के दक्षिणी तट पर विराजमान पशुपतिनाथ, बांग्लादेश के चटगांव स्थित चंद्रमूर्तिकार चंद्रनाथ शिव, उत्तरप्रदेश के प्रयोग स्थित नीळकठेश्वरशिव, बिठूर स्थित मधुरेश्वर, वृंदावन स्थित गोपीश्वर शिव, उत्तरांचल में भीमताल स्थित भीमेश्वर महादेव, कर्णप्रयाग स्थित महामृत्युंजय महादेव हरिद्वार स्थितबिल्वेश्वर शिवलिंग, कनखल स्थित दक्षेश्वर शिव, हिमाचल में स्थित मणिकर्णस्थित मणीकर्णेश्वर, मण्डी स्थित बिजली महादेव और नीकण्ठ महादेव, मणिमहेश, कैलाश मानसरोवर स्थित हिम निर्मित अमरनाथ, पूंछ स्थित शिवखेड़ीमहादेव, राजस्थान के पुष्कर स्थित पुस्ववर महादेव .. आदि आदि अनंत

और भी अनेक अनगिनत देश - विदेश और प्रादेशिक मान्यता अनुसार शिव आराधन के प्रकार भक्तो में प्रचलित हे | बस भोले होकर भोले का आराधन इतना ही पार्यप्त हे |
हर कंकर में शंकर ...हर हर महादेव ...जय हो .

30 जुलाई, 2013

Congratulations...Anurag




A week back one of my relative has mentioned me a proud father of Anurag Tiwari Asst. Manager,Retail Lending-Legal.
Today I am feeling most happy n proud when Anurag has shown me a letter received from Addl.Sr.General Manager -Human Resource ,HDFC Ltd.The words of said letter has enthused me a lot….
“ We would like to convey our deep appreciation of your significant contribution to overall growth & Delopment of HDFC,and your performance during last year.
It gives us pleasure to inform you that effective 1 April 2013,you have been promoted to Grade 9 and designated as Dy.Manager “
Hearty congratulations Anurag….



27 जून, 2013

रावण संहिता



रावण संहिता की एक प्रति देवनागरी लिपि में देवरिया जिले के गाँव गुरूनलिया में सुरक्षित रखी है। जिन ज्योतिषी के पास रावण संहिता है, उनका नाम श्री बागेश्वरी पाठक है। उनके पितामह ज्योतिष के प्रतिष्ठित विद्वान थे और उनकी फलित ज्योतिष से सम्बन्धित भविष्यवाणी प्रायः सत्य साबित होती थी। बागेश्वरी पाठक के ज्येष्ठ भाई को ज्योतिष के ज्ञान की प्रेरणा अपनी दादी से प्राप्त हुयी और उन्होने पितामह से ज्योतिष शास्त्र की अनेक पुस्तके पढ़ी परन्तु उनसे उनकी सन्तुष्टि नहीं हुयी, क्योंकि उनके कथनानुसार जो भविष्यवाणी की जाती थी, उनमें से कुछ तो सही होती थी और कुछ गलत निकलती थी। पितामह को विशेष जानकरी अथवा कुछ साधना थी जिसके माध्यम से उन्होने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी कर दी थी। उनकी मृत्यु 36 वर्ष की आयु में हो गयी थी। उस समय पिता की आयु मात्र 3 वर्ष एंव ज्येष्ठ भाई की आयु बागेश्वरी पाठक से 10 वर्ष अधिक थी। इस प्रकार ज्येष्ठ भाई को ज्योतिष में रूचि थी जिस कारण वह अनेक ज्योतिषयों से सम्पर्क करते-रहते रहें और 27 वर्ष की आयु में घर से भागकर नेपाल चले गये और वहां पर दो साल तक ज्योतिषयों के सम्पर्क में बने रहें और पुनः जब अपने घर लौटे तो हस्त लिखित कुछ पुस्तके वहां से लाये थे। यही रावण संहिता थी। उस हस्त लिखित पोथी के पन्ने इतने जर्जर थे कि उसके संपादन की आवश्यकता थी। उस रावण संहिता में जब इन्होने अपनी कुण्डली देखी तो इनकी आयु मात्र 30 वर्ष ही लिखी थी। अतः यह चिन्तित हुये परन्तु फिर भी ये लिखते-पढ़ते और समझते रहे। इस ग्रन्थ को इन्होने एक वर्ष के अन्तर्गत उसकी दूसरी प्रतिलिप बनाई। और अपने छोटे भाई बागेश्वरी पाठक को बीच-बीच में समझाते भी रहे। इन्होने अपने घर में किसी से यह नहीं बताया कि मेरी आयु मात्र 30 वर्ष ही है। जब लगभग 1 माह से कम समय बचा तो कुछ उदासीन भाव से यह संहिता बागेश्वरी पाठक जी को सौंप दी और कहा कि इसको समझकर दूसरों का भविष्य बताना और रोजी-रोटी के लिए कुछ धन ले लिया करना। मैं अब एक माह से अधिक जीवित नहीं रहूंगा और अन्ततः उनकी मृत्यु 30 वर्ष की अवस्था में एक क्षुद्र बीमारी के कारण हो गयी। तब से यह रावण संहिता बागेश्वरी पाठक जी के पास विद्यमान है। वह इसके माध्यम से फलादेश करते थे, परन्तु अब शायद नहीं करते है। इसके द्वारा की गयी भविष्यवाणी 90 प्रतिशत सत्य होती है। यह ग्रन्थ भी अपूर्ण है। इस ग्रन्थ में न तो लग्न के विभाग किये जाते है और न ही किसी प्रकार की नाणियों का उल्लेख मिलता है। केवल जन्मपत्री के मिलने से उसके फलों की चर्चा 20-25 श्लोकों के माध्यम से की गयी है। फल के काल-कथन में किसी प्रकार की दशाओं का प्रयोग नहीं किया गया है। आयु के वर्षो के अनुसार फलादेश का वर्णन मिलता है। सभी जन्मपत्रियों के अन्त में लिखा है। ''इति रावण संहितायां रावण मेघनाद संवादे अध्यायः।"

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार 1.  अनहद  नाद :  इस ध्वनि को  अनाहत  कहते हैं। अनाहत अर्थात जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं होती...