रावण संहिता की एक प्रति देवनागरी लिपि में देवरिया जिले के गाँव
गुरूनलिया में सुरक्षित रखी है। जिन ज्योतिषी के पास रावण संहिता है, उनका
नाम श्री बागेश्वरी पाठक है। उनके पितामह ज्योतिष के प्रतिष्ठित विद्वान थे
और उनकी फलित ज्योतिष से सम्बन्धित भविष्यवाणी प्रायः सत्य साबित होती थी।
बागेश्वरी पाठक के ज्येष्ठ भाई को ज्योतिष के ज्ञान की प्रेरणा अपनी दादी
से प्राप्त हुयी और उन्होने पितामह से ज्योतिष शास्त्र की अनेक पुस्तके
पढ़ी परन्तु उनसे उनकी सन्तुष्टि नहीं हुयी, क्योंकि उनके कथनानुसार जो
भविष्यवाणी की जाती थी, उनमें से कुछ तो सही होती थी और कुछ गलत निकलती थी।
पितामह को विशेष जानकरी अथवा कुछ साधना थी जिसके माध्यम से उन्होने अपनी
मृत्यु की भविष्यवाणी कर दी थी। उनकी मृत्यु 36 वर्ष की आयु में हो गयी थी।
उस समय पिता की आयु मात्र 3 वर्ष एंव ज्येष्ठ भाई की आयु बागेश्वरी पाठक
से 10 वर्ष अधिक थी। इस प्रकार ज्येष्ठ भाई को ज्योतिष में रूचि थी जिस
कारण वह अनेक ज्योतिषयों से सम्पर्क करते-रहते रहें और 27 वर्ष की आयु में
घर से भागकर नेपाल चले गये और वहां पर दो साल तक ज्योतिषयों के सम्पर्क में
बने रहें और पुनः जब अपने घर लौटे तो हस्त लिखित कुछ पुस्तके वहां से लाये
थे।
यही रावण संहिता थी। उस हस्त लिखित पोथी के पन्ने इतने जर्जर थे कि उसके
संपादन की आवश्यकता थी। उस रावण संहिता में जब इन्होने अपनी कुण्डली देखी
तो इनकी आयु मात्र 30 वर्ष ही लिखी थी। अतः यह चिन्तित हुये परन्तु फिर भी
ये लिखते-पढ़ते और समझते रहे। इस ग्रन्थ को इन्होने एक वर्ष के अन्तर्गत
उसकी दूसरी प्रतिलिप बनाई। और अपने छोटे भाई बागेश्वरी पाठक को बीच-बीच में
समझाते भी रहे।
इन्होने अपने घर में किसी से यह नहीं बताया कि मेरी आयु मात्र 30 वर्ष ही
है। जब लगभग 1 माह से कम समय बचा तो कुछ उदासीन भाव से यह संहिता बागेश्वरी
पाठक जी को सौंप दी और कहा कि इसको समझकर दूसरों का भविष्य बताना और
रोजी-रोटी के लिए कुछ धन ले लिया करना। मैं अब एक माह से अधिक जीवित नहीं
रहूंगा और अन्ततः उनकी मृत्यु 30 वर्ष की अवस्था में एक क्षुद्र बीमारी के
कारण हो गयी।
तब से यह रावण संहिता बागेश्वरी पाठक जी के पास विद्यमान है। वह इसके
माध्यम से फलादेश करते थे, परन्तु अब शायद नहीं करते है। इसके द्वारा की
गयी भविष्यवाणी 90 प्रतिशत सत्य होती है। यह ग्रन्थ भी अपूर्ण है। इस
ग्रन्थ में न तो लग्न के विभाग किये जाते है और न ही किसी प्रकार की
नाणियों का उल्लेख मिलता है।
केवल जन्मपत्री के मिलने से उसके फलों की चर्चा 20-25 श्लोकों के माध्यम से
की गयी है। फल के काल-कथन में किसी प्रकार की दशाओं का प्रयोग नहीं किया
गया है। आयु के वर्षो के अनुसार फलादेश का वर्णन मिलता है। सभी
जन्मपत्रियों के अन्त में लिखा है। ''इति रावण संहितायां रावण मेघनाद
संवादे अध्यायः।"
27 जून, 2013
rntiwari1.blogspot.com
बिलकुल! नीचे आपकी ब्लॉग की पहली "आधिकारिक" पोस्ट का एक भावनात्मक, आत्मिक और साहित्यिक अंदाज़ में ड्राफ्ट तैयार किया गया है। आप इसे...
-
Articles [1] : Origin of Hindu Religion [2] [3] Kewin: swamiji, you claim that hindu religion exists from 3000 thousands year,do you...
-
"ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत: क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमो-नम:"। देवराहा बाबा के भक्तों में कई बड़े लो...