24 मार्च, 2013

होली का त्योहार

होली का त्योहार
 होली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। इसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। फाल्गुन मास हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम मास होता है।

हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है एवं प्रत्येक मास की पूर्णिमा किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, जो कि मानव मन एवं मस्तिष्क का कारक है, आकाश में पूर्ण रूप से बली होता है तथा इस दिन पृथ्वी पर इसकी रश्मियां पूर्ण रूप से प्रभावी होती हैं। भगवान सूर्य जो कि पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं इनकी रश्मियां तो पृथ्वी पर सदैव ही प्रभावी होती हैं। अतः पूर्णिमा के दिन सूर्य एवं चंद्रमा दोनों का प्रकाश पृथ्वी पर पूर्ण रूप से प्रभावी होता है।
होलाष्टक
होली पूर्णिमा हिन्दू वर्ष का अंतिम दिन होता है तथा इससे आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है। इस आठ दिन के समय में कोई शुभ कार्य या नया कार्य आरंभ करना शास्त्रों के अनुसार वर्जित है। होली से पहले के आठ दिन के समय को होलाष्टक के नाम से जाना जाता है एवं इस काल में कोई नया कार्य एवं शुभ कार्य नहीं किया जाता है वरन इसे भगवत भक्ति एवं मंगल गीत गाकर बिताया जाता है।

हिन्दू वर्ष के इन अंतिम आठ दिनों में लोग आपसी कटुता भुलाकर एक दूसरे के साथ मिल बैठकर गाते-बजाते हैं एवं आनंदपूर्वक समय व्यतीत करते हैं जिससे नए वर्ष को नए सिरे से आरंभ किया जा सके। वर्ष के अंतिम दिन लोग होलिका दहन करते हैं।

होलिका दहन भक्त प्रहलाद की याद में किया जाता है। भक्त प्रहलाद राक्षस कुल में जन्मे थे परंतु फिर भी वे भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे।
  आग में होलिका स्वयं ही जल कर भस्म हो गई क्योंकि भगवत कृपा से वह वस्त्र तेज हवा चलने से होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद के शरीर पर गिर गया। इस प्रकार यह कहानी यह संदेश देती है कि दूसरों का बुरा करने वालों का ही बुरा पहले होता है। तथा जो अच्छे एवं बुरे दोनों समय में भक्त प्रहलाद की भांति ईश्वर में अटूट विश्वास रखते हुए अपना कार्य करतें है उनको भगवत कृपा प्राप्त होती है।

होलिका दहन बुराइयों के अंत एवं अच्छाइयों की विजय के पर्व के रूप में मनाया जाता है। काम, क्रोध, मद,मोह एवं लोभ रूपी राक्षस होलिका के रूप में हमारे अंदर विद्यमान हैं। होलिका दहन यह संदेश देता है कि मनुष्य को इन दोषों का त्याग करना चाहिए तथा ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।

यदि होली शब्द का अर्थ देखें तो इसका अर्थ है जो होना था हो गया अर्थात् पिछले वर्ष में जो होना था सो हो गया अब नए वर्ष को नए सिरे से आरंभ किया जाए। इस प्रकार होली भाईचारे, आपसी प्रेम एवं सद्भावना का त्योहार है जो यह संदेश देता है कि हमें नए वर्ष का आरंभ आपसी शत्रुता एवं वैमनस्य भुलाकर नए रूप में करना चाहिए एवं अपनी बुराइयों को छोड़कर नए वर्ष का नए प्रकार से स्वागत करना चाहिए।

सच्ची ईश्वर भक्ति इसी में है कि इस दिन हम थोड़े समय के लिए शांत भाव से बैठकर वर्षभर में हमारे द्वारा किए गए कार्यों का विश्लेषण करें, दूसरों के साथ किए हुए अपने गलत व्यवहार एवं अपनी गलतियों का विश्लेषण करें एवं इन्हे पुन: नहीं दोहराने का निश्चय करें। दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने का प्रण करें जैसा कि हम अपने लिए चाहते हैं। ऐसा करना दूसरों के लिए ही नहीं वरन हमारे लिए भी लाभदायक होगा क्योंकि कर्म सिद्धान्त के अनुसार सद्व्यहार एवं सदाचार का फल सदैव शुभ एवं लाभदायक होता है। यदि हम लेशमात्र भी ऐसा करते हैं तो अवश्य ही हम ईश्वर की कृपा के पात्र बनते हैं। ऐसा करके न केवल हम अपने सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन में उचित संतुलन बना पाएंगे वरन अपने भीतर एवं अपने आसपास के वातावरण में सुख एवं शांति के बीज भी बोएंगे। केवल पूजा करने एवं मंत्र पढ़ने से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होती इसके लिए हमें इसका पात्र बनना पड़ेगा, हमे अपने आचरण एवं जीवन शैली में आवश्यक सकारात्मक परिवर्तन करने होगें।

  होली यह संदेश देती है कि यदि मनुष्य उसके भीतर स्थित होलिका के रूप में विद्यमान काम, क्रोध, मद, मोह एवं लोभ कि भावनाओं पर नियंत्रण रखकर ईश्वर द्वारा बनाए इस संसार में उसके बनाए नियमों का पालन करते हुए अपना जीवनयापन करते हैं तो सदैव ईश्वर की कृपा के पात्र बनते हैं।

23 मार्च, 2013

एक चिंतन





*** कर्मों में कुशलता का सूत्र : ; एक चिंतन ***

सम्मानित मित्रो, आइये आज संत तुलसीदास कृत रामचरित-मानस की, कुछ चौपाइयों का वैज्ञानिक विश्लेषण कर, हम इस जीवनोपयोगी सूत्र की खोज करें :----
1. कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करिय सो तस फल चाखा !
2. सकल पदारथ हैं जग माहीं, कर्म हीन नर पावत नाहीं !
3. जो इच्छा करिहऊ मन माहीं, प्रभु प्रताप कछु दुर्लभ नाहीं !......

प्रथम, दो चौपाइयाँ हमें बताती हैं कि :---
1. संसार में कर्म की ही प्रधानता है; हम सब जैंसा कर्म करते हैं, वैसा ही फल पाते हैं ! अर्थात जैसा बीज बोते हैं, वैसी ही फसल काटते हैं .. !
( As we sow, so we reap) ...

2. संसार में सभी पदार्थ उपलब्ध हैं, परन्तु कर्मों में कुशलता से रहित व्यक्ति को, वह प्राप्त नहीं होते ....!
( every thing is available in d world, but in d absence of proper method, we do not find them ..)

और तीसरी चोपाई हमें कर्मों में कुशलता का सूत्र देती है कि :---

3. .हम जो भी इच्छा करेंगे, प्रभु परमेश्वर के प्रताप से, उसे प्राप्त करने में, हमें कभी कोई, परेशानी नहीं जायेगी ....! .
(Nothing is impossible in d world, provided we have d grace of d Almighty with us ...!) ...

परन्तु,
हम इसे मानने के लिए तैयार नहीं होते ..! क्योंकि, यह हमारे अहंकार (ego) पर, गहरी चोट करती हैं ....!

आज तो स्थिति यह है कि,यदि युरॊप को परिभाषित करना हो तो, बहुत ही सरल परिभाषा में कहा जा सकता है कि :---

विश्व के ग्लोव का वह भाग,
जहाँ के अधिकाँश व्यक्तियों की नज़र में, भगवान् नाम की सत्ता ही नहीं है,को युरॊप कहते हैं ...!
(That part of d glob, where God is being declared dead, is known as Europa) ....

सम्मानित मित्रो,
हमारे हिन्दुस्तान में भी प्राचीन समय में एक, नास्तिक मनीषी हुए थे चार्वाक, जिनका सिद्धांत था :--

यावत जीवेत सुखी जीवेत,
रिर्णंम कृत्वा, घिर्तम पीवेत ..!

अर्थात,
जब तक जियें, सुख से जिए, और कर्ज लेकर घी पियें, अर्थात मजा-मौन्ज करें ....!
क्योंकि कौन जाने,
आज ही जीवन का अंतिम दिन हो ?

और फिर मरकर भी वापिस आते, किसने देखा है ?

अतः बस, इसी दिन और इसी जीवन तक, जिन्दगी को सच समझ, मजा-मौज करें ...!

परन्तु, उनको, भारतवर्ष में अधिक अनुयाई (followers) नहीं मिले,

क्योंकि,
ये राम और कृष्ण, और संत कबीर, संत नानक, आदि-गुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद जैंसे, और भी बहुत से, महान अवतारों की भूमि हैं, जिन्होंने, एक बहुत ही उच्च चिंतन को जन्म दिया ...!

कृष्ण ने गीता में, बताया कि,
हे अर्जुन,तेरे और मेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं, अंतर सिर्फ इतना है कि, मैं उन सब को जानता हूँ और तूँ उनको नहीं जानता ..!
(We both have taken many births, d difference is only this, that i know all of them, but you have forgotten all of them ..!) ..

अतः फिर्क मत कर, धर्म-युक्त आचरण कर, इससे तूँ अगले जन्म में, येंसे श्रीमानों के घर जन्म लेगा, जहाँ तुझे सुलभता से, आगे के जीवन-विकास में, बहुत सुगमता रहेगी ...!

राजा राम ने भी,
प्रजाजनों को दिए गए सन्देश में यही बताया कि :---
यह मानव जीवन, परलोक सँवारने के लिए मिला है ....! और हम सब तब तक अविरल धर्माचरण करता रहें, जब तक की हमें अपना अंतिम लक्ष, ना प्राप्त हो जाये .... !
(Arise-awake & stop not, till thy goal is reached ...!)...

संत कबीर ने कहा कि :----
मर जाऊं माँगूं नहीं अपने तन के काज,
पर-स्वारथ के कारजे, मोहि ना आवे लाज ...!

{अर्थात, गृहस्थ के रूप में, मुझे मरजाना पसंद है, पर अपना जीवन बचाने के लिए भी, कर्ज (loan) कभी नहीं लूँगा ..! हाँ परमार्थ के कार्यों के लिए मुझे कर्ज लेने में, कोई शर्म महसूस नहीं होगी ...!
(As a house-holder, I would prefer to die, than to survive on a borrowed money, however I would not feel ashamed in borrowing for d welfare of others...!
(जैंसे, आदि-गुरु शंकराचार्य/स्वामी विवेकानंद जैंसे सन्यासियों का जीवन, जो सिर्फ परमार्थ के लिए था ..!)..
The Saints can however can borrow for survival, because they sustain their bodies, only for the welfare of others, as d Messengers on d God, on d earth ...!)} ..

और संत नानक ने तो,
बहुत ही स्पष्ट वाणी में कह दिया कि :---
नानक दुखिया सब संसारा, सुखिया केवल नाम अधारा ....!

{One can never be at ease, without d support of d holy name (d God) ..! } ..

सम्मानित मित्रो,
भारतवर्ष में, प्राचीन-काल में, तो चार्वाक, प्रभाव-हीन हो गए थे .....!
परन्तु, आज यह चितन का विषय है, क्योंकि, आज हम सब भी, धीरे-धीरे, यूरोपीय सभ्यता के अनुयाई होते जा रहे हैं, जो चार्वाक द्वारा दर्शित जीवन-शैली ही है .....!

*सम्मानित मित्रो,
एक प्रश्न हम सब मित्र, अपने अंतर्मन से अवश्य खुद पूँछें कि :---

"क्या कोई भी वैज्ञानिक, किसी भी तथ्य को बगैर, परीक्षण किये ठुकराता है" ? .....यदि नहीं, तो क्यों ना हम भी :---

ये ईस्वर क्या है ? और इसकी क्या जरूरत है ?

का संक्षिप्त वैज्ञनिक-चिंतन कर,
जीवन में कर्मों की कुशलता के जीवनोपयोगी सूत्र को स्वीकार कर लाभान्वित हों ?

*संक्षिप्त-वैज्ञानिक-चिंतन :

जैंसे, आज हमारा, इस भौतिक संसार में, शारीरिक अस्तित्व, इस कारण है कि, हमारी माँ या पिताजी, दोनों में से किसी एक में, यह इच्छा उत्पन्न हुई की वह, अपने स्वरुप का विस्तार करें ...

अतः उन्होंने एक एक येंसे साथी की तलाश की, जो शिव-शक्ति की तरह, एक दूसरे को, अर्द्ध-अंग की तरह, अंगीकार करे ...! और फिर उन्होंने अपने स्वरुप का विस्तार किया,

अर्थात अपने अंश के रूप में, हमें और हमारे अन्य भाई-बहिनों को, जन्म दिया ..!

उन्होंने आपसी टकराव से बचने के लिए,
अपने पति-पत्नी के संबंधों के पहले, ट्राफिक नियमों की तरह, एक आचार-संहिता को, उपसर्ग की तरह जोड़ लिया, जिसे उन्होंने सनातन से, "धर्म" के नाम से पाया ..... !

अर्थात,
वह माता-पिता बनने से पहले, धर्म-पत्नी और धर्म-पति बने ...!
और फिर अपने अपने, नियमों का स्वेक्षा से पालन करते हुए, ना वह स्वयं आपसी टकराव से बचे,
वरन हम बच्चों को भी, शांति-मय जीवन जीने के लिए, इस "सनातन-धर्म' के सूत्रों से अबगत कराया ...!

मित्रो,
हम सब जानते हैं कि, जहाँ भी भौतिक रूप से दो या दो से अधिक, चलायमान वस्तुयें होते हैं, उन्हें, आपसी टकराहट से बचाने के लिए, ट्राफिक-नियमों की, परम आवश्यकता होती है ...!

और इसी कारण, हमारे माता-पिता ने हमें भी, "सनातन-धर्म" की आचार-संहिता, पर चलने का सन्देश दिया !!

सम्मानित मित्रो, "सनातन-धर्म", से अभिप्राय है,
वह आचार-संहिता, जो हमें सनातन काल से, जियो और जीने दो, ( live & let live ) का सूत्र प्रदान कर रही है ...!

विचार करें मित्रो,
क्या कभी किसी पुत्र/पुत्री, को अपने माता-पिता के, उपकारों को भूलना चाहिए ?

यदि वह अपने पूरे के पूरे शरीर भी, माता-पिता के चरणों में, अर्पित कर दें, तो भी माता-पिता के, एहसान से मुक्त नहीं हो सकते, क्योंकि यह शरीर भी, उन्हीं की कृपा/आशीर्वाद, का प्रसाद हैं ...!

अतः,
हमारा भला इसमें है की हम अपने अपने माता-पिता, के आशीवादों को प्राप्त करते रहें ..! इससे हमारे किसी अहंकार को चोट नहीं लगती .!

बस सम्मानित मित्रो,
संत तुलसीदास ने, हमें सिर्फ हमारे सनातन-माता-पिता (जिन्हें भगवान् के नाम की संज्ञा दी गई है), से
आशीर्वाद लेने का कहा है ...!

क्योंकि उन्होंने पाया कि, लौकिक माता-पिता में तो, मोह-जनित, कमियाँ आ जाती हैं, परन्तु अलौकिक माता-पिता ( भगवान्) में, कभी कोई, विक्रति नहीं आती ...!

और संतों ने पाया कि,
वह अलौकिक माता-पिता, हमेशा हमारे ह्रदय में, आत्मा के रूप में बैठे हैं, जरूरत है, सिर्फ उनसे जुड़ने की ..! उनकी वाणी (अंतरात्मा की आवाज) सुनने की ....!

और,
यदि कभी हमें जीवन में, दो में से एक का चुनाव करना पड़े ? अर्थात, लौकिक माता-पिता का आदेश या, अंतरात्मा की आवाज ? तो हम, हमेशा अंतरात्मा की आवाज (अलौकिक माता-पिता), को ही महत्व दें . ....!

अतः,
यदि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार चलेंगे, तो जो भी मन में, इच्छा उत्पन्न होगी, वह प्रभु परमेश्वर के आशीर्वाद से, अवश्य ही पूरी होगी .... !

{परन्तु,सम्मानित मित्रो,
हमें अपनी अंतरात्मा से जुड़ने के लिए, अपने जीवन के कुछ पल, ध्यान (meditation) के लिए अवश्य निकालने पड़ेंगे ...! उस ध्यान के लिए, जिसकी सलाह, बचपन से आज तक, हमारे सभी शुभ- चिंतकों ने, किसी भी कार्य को करने से पूर्व, दी है ..!

ध्यान से,
सरलतम भाषा में, सिर्फ इतना अभिप्राय है कि :---

जैंसे,
यदि हमें मोबाइल से बात करनी हो, तो रिसीवर और ट्रांसमीटर, दोनों का कार्य करना आवश्यक है ...!

वैंसे ही हमारे शरीर में,
प्रार्थना (Prayer: अपनी तरफ से आत्मा से अपनी बात कहना) और ध्यान ( Meditation : मौन अर्थात अपनी आवाज बंद कर, आत्मा की आवाज सुनने की क्षमता), दोनों का, कार्य करना आवश्यक हैं ...!

अतः
हमें, ध्यान/मौन (अंतरात्मा की आवाज सुनना) का भी जीवन में, समावेश करना चाहिए ...!
और जीवन में वही कार्य करना चाहिए, जो हमारी अंतरात्मा हमें सलाह दे ...! } ....

21 मार्च, 2013

Dr.Veer Bhadra Mishra















Veer Bhadra Mishra was the founding president of the Sankat Mochan Foundation.[1]
He was a former professor of Hydraulic engineering and former Head of the Civil Engineering Department at the Indian Institute of Technology (BHU) Varanasi. He was also the Mahant (High Priest) of the Sankat Mochan Hanuman temple, Varanasi at Varanasi founded by poet-saint Goswami Tulsidas. Dr Mishra was recognized on the United Nations Environment Programme's (UNEP) "Global 500 Roll of Honour" in 1992,[2] and was a TIME Magazines "Hero of the Planet" recipient in 1999 for his work related to cleaning of the Ganges through the Sankat Mochan Foundation.[3] He is one of the members of the National Ganga River Basin Authority (NGRBA) under Ministry of Environment, Govt. of India, which was set up in 2009, by the Government of India as an empowered planning, financing, monitoring and coordinating authority for the Ganges, in exercise of the powers conferred under the Environment (Protection) Act,1986.[4]
His education has helped him understand threats to the Ganges, and since 1982 he has struggled to open the eyes of bureaucrats and the public. Supported in part by aid from the various individuals and some Government agencies of the United States and Sweden, Mishra juggles his roles as priest and activist.
Motivated most of all by "respect and love for the river," Mishra, working with William Oswald, an engineering professor emeritus at the University of California, Berkeley, proposed what is called an Advanced Integrated Wastewater oxidation Pond System (AIWPS). It would store sewage for 45 days, using bacteria and algae to eliminate waste and purify the water. Mishra expects the plan to be adopted but recalls past defeats. "My campaign has been like a game of snakes and ladders. When it has gained speed, a snake has swallowed it up," he says. "But one day I'll dodge all the snakes. Mother Ganges will help me to save her." That's another chant the followers of this modern mahant can truly believe in.



 
Noted environmentalist and 'mahant' of Sankatmochan temple Prof. Virbhadra Mishra died on 13/3/2013 at Sundar Lal hospital, where he was admitted on March 3 for lung infection.

He was 75 years old. Mishra is survived by his wife, two sons and two daughters.
Veer Bhadra Mishra was the founding president of the Sankat Mochan Foundation.
He was a former professor of Hydraulic engineering and former Head of the Civil Engineering Department at the Indian Institute of Technology (BHU) Varanasi. He was also the Mahant (High Priest) of the Sankat Mochan Hanuman temple, Varanasi at Varanasi founded by poet-saint Goswami Tulsidas. Dr Mishra was recognized on the United Nations Environment Programme's (UNEP) "Global 500 Roll of Honour" in 1992, and was a TIME Magazines "Hero of the Planet" recipient in 1999 for his work related to cleaning of the Ganges through the Sankat Mochan Foundation. He is one of the members of the National Ganga River Basin Authority (NGRBA) under Ministry of Environment, Govt. of India, which was set up in 2009, by the Government of India as an empowered planning, financing, monitoring and coordinating authority for the Ganges, in exercise of the powers conferred under the Environment (Protection) Act,1986.
His education has helped him understand threats to the Ganges, and since 1982 he has struggled to open the eyes of bureaucrats and the public. Supported in part by aid from the various individuals and some Government agencies of the United States and Sweden, Mishra juggles his roles as priest and activist.

Prof Veer Bhadra Mishra was given the title of Hero of the Planet by the TIME magazine in 1999.
• He was the founder of Sankat Mochan Foundation. He founded Sankat Mochan Foundation in 1982.
• He was also the former professor of Hydraulic engineering, apart from being the former Head of the Civil Engineering Department at the Institute of Technology.
• Mishra was also recognised on United Nations Environment Programme's (UNEP) Global 500 Roll of Honour in 1992.
• Prof Veer Bhadra Mishra was among the various expert members of National Ganga River Basin Authority (NGRBA).


'सामान बांधा, महंत जी चा निरोप आला आहे'। पंडित जसराज जी के इस आदेश के साथ ही घर वाले समझ जाते थे कि काशी से संकट मोचन संगीत समारोह का बुलावा आ गया। न कोई सौदा, ना कोई डील ,महंत जी की प्यार पगी अपील के बाद रुकने का सवाल ही कहां। बाकी के सारे कार्यक्रम रद और अगले दिन की पहली फ्लाइट से पंडित जी काशी रवाना। यह थी कशिश उस स्नेह और अपनापे की जो शास्त्रीय संगीत के शलाका पुरुष पं. जसराज जैसे व्यस्त महान फनकार को बिना किसी किंतु परंतु के काशी खींचे लिए चली आती थी।

 पंडित जसराज ही क्यों, किसका-किसका नाम लें, किसको भूलें जो महंत वीरभद्र जी के स्नेहपाश के इस बंधन से बरी हो। नृत्य के महागुरु पं. केलूचरण महापात्र, आगे चल कर उनकी विरासत संभालते पुत्र रतिकांत, पुत्रवधू सुजाता महापात्र और शिष्या संयुक्ता पाणिग्रही, कथक सम्राट पं. बिरजू महाराज, पं.किशन महाराज, पं. हरिप्रसाद चौरसिया संकटमोचन बाबा की प्रेरणा से ही साध्वी बन गई सुनंदा पटनायक, मोहन वीणा वादक पं.विश्वमोहन भट्ट, पं. राजन-साजन मिश्र, पं. भजन सोपोरी, कौन-कौन संकट मोचन के दरबार में नहीं आया, मारुति नंदन का आशीष और उनके अनन्य सेवक महंत जी का प्रेम प्रसाद नहीं पाया।


 रिश्ते-नातों की नींव जब दिल की गहराइयों तक गई हो तो औपचारिकता के भला मायने क्या। सुनंदा जी तो जितने दिन समारोह में रहती थीं, लंच-डिनर सबको विदा, बाबा के चरणों में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद पर ही फिदा। बेसन वाले दो लड्डू और दो पुए में परम संतोष। क्या देखा-सुना है किसी ने देश-दुनिया में कोई ऐसा समारोह। संगीत के महाआयोजन का ऐसा आरोह अवरोह जहां लगे मानों मंच से प्रस्तुति न दे रहे हों ..ईष्ट की पूजा कर रहे हों। किसी 'अपने' को उसके 'अपनेपन' की एवज में भाव भरी भेंट दे रहे हों।

 प्रोफ़ेसर मिश्र संकटमोचन मंदिर के महंत रहे और साथ ही बीएचयू में प्रोफ़ेसर के पद पर रहते हुए वो मात्र एक रुपया तन्ख्य्वाह लेते थे और बाकी पैसा गरीबों में दान कर दिया करते थे.

16 मार्च, 2013

Former Prime Minister Chandrashekhar – पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर





जीवन-परिचय

स्वतंत्र भारत के आठवें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म 1 जुलाई, 1927 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव इब्राहिमपुर के एक कृषक परिवार में हुआ था. विश्वनाथ प्रताप सिंह के असफल शासन के बाद चंद्रशेखर ने ही प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था. राजनीति की ओर चंद्रशेखर का रुझान विद्यार्थी जीवन में ही हो गया था. निष्पक्ष देश-प्रेम के कारण इन्हें ‘युवा तुर्क’ के नाम से भी जाना जाता है. चंद्रशेखर की कुशल भाषा शैली विपक्षी खेमे में भी काफी लोकप्रिय थी. वह राजनीति को पक्ष-विपक्ष के दृष्टिकोण से नहीं देखते थे. वह केवल देश हित के लिए कार्य करने में ही खुद को सहज महसूस करते थे. इलाहाबाद विश्विद्यालय से स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही उन्होंने भारतीय राजनीति में कदम रख दिया था.



चंद्रशेखर का व्यक्तित्व

चंद्रशेखर के विषय में कहा जाता है कि बहुत कम लोगों को मेधावी योग्यता प्राप्त होती है और यह उन्हीं में से एक हैं. चंद्रशेखर आचार्य नरेंद्र के काफी करीब माने जाते थे जिससे उनका व्यक्तित्व और चरित्र काफी हद तक प्रभावित हुआ. उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि पक्ष हो या विपक्ष सभी उनका सम्मान करते थे. साथ ही किसी भी समस्या की स्थिति में इनके परामर्श को वरीयता देते थे. वह पूर्णत: निष्पक्ष रह कर काम करते थे. वह अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने जाते थे. इनके विषय में एक व्यंग्य भी प्रचलित है कि अगर संसद मछली बाजार बन रहा हो तो इनके भाषण से वहां सन्नाटा पसर जाता था. उनका स्वभाव बेहद संयमित था. यहां तक कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह अपने संयम और कुशल व्यवहार के लिए जाने जाते थे.



चंद्रशेखर का राजनैतिक सफर

राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वह समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए थे. जल्द ही वह बलिया जिला के प्रजा समाजवादी दल के सचिव बने और उसके बाद राज्य स्तर पर इसके संयुक्त सचिव बने. राष्ट्रीय राजनीति में चंद्रशेखर का आगमन उत्तर प्रदेश राज्यसभा में चयनित होने के बाद हुआ. यहीं से ही उन्होंने वंचित और दलित वर्गों के लोगों के हितों के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी थी. गंभीर मुद्दों पर वह बेहद तीक्ष्ण भाव में अपनी बात रखते थे. विपक्ष भी उनके तेवरों को भांपते हुए कुछ नहीं कह पाता था. सन 1975 में अपातकाल लागू होने के बाद जिन नेताओं को इन्दिरा गांधी ने जेल भेजा था उनमें से एक चंद्रशेखर भी थे. वी.पी. सिंह के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद चंद्रशेखर, कॉग्रेस आई के समर्थन से सत्तारूढ़ हुए. रिजर्व बैंक में मुद्रा संतुलन बनाए रखने में चंद्रशेखर का बहुत बड़ा योगदान था.



चंद्रशेखर का लेखन और पत्रकारिता के प्रति रुझान

चंद्रशेखर अपने विचारों की अभिव्यक्ति बड़े तीखे अंदाज में करते थे. राजनीति और समाज से जुड़े किसी भी मसले को वह तथ्यों के आधार पर ही देखते और समझते थे. केवल राजनीति ही नहीं वह पत्रकारिता में भी खासी रुचि रखते थे. उन्होंने यंग इण्डिया नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र का भी संपादन और प्रकाशन किया. अपने समाचार पत्र में वह किसी भी समस्या की समीक्षा बड़ी बेबाकी से करते थे. अपनी इसी बेबाकी और निष्पक्षता के कारण वह बौद्धिक वर्ग में भी काफी लोकप्रिय रहे. वह लेखन को आम जनता तक अपनी बात पहुंचाने का सबसे सशक्त माध्यम मानते थे. इसी कारण आपातकाल के समय इन्दिरा गांधी द्वारा जेल भेजे जाने की घटना को और अपने जेल के अनुभवों को उन्होंने एक डायरी में समेट लिया जो मेरी जेल डायरी के नाम से प्रकाशित हुई. इसके अलावा चंद्रशेखर की एक और कृति ‘डायनमिक्स ऑफ चेंज’ के नाम से प्रकाशित हुई. जिसमें उन्होंने यंग इंडिया के अपने अनुभवों और कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को संकलित किया. उनके लेखन की सबसे खास बात यह थी कि वह विषय का भली प्रकार अध्ययन करते और शुरू से अंत तक अपनी पकड़ बनाए रखते थे.



चंद्रशेखर को दिए गए सम्मान

चंद्रशेखर देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्हें वर्ष 1955 में सर्वाधिक योग्य सांसद का सम्मान प्रदान किया गया था.



चंद्रशेखर का निधन

चंद्रशेखर काफी समय से प्लाज्मा कैंसर से पीडित थे. 8 जुलाई, 2007 को नई दिल्ली के एक अस्पताल में चंद्रशेखर का निधन हो गया.





चंद्रशेखर एक ईमानदार और कर्मठ प्रधानमंत्री थे. उनकी एक विशेषता यह भी थी कि वह हर कार्य को समर्पण भाव से करते थे. प्रधानमंत्री के पद से हटने के बाद वह भोंडसी में अपने आश्रम में ही रहना पसंद करते थे जहां सत्तारूढ़ नेता और विपक्षी दोनों ही उनसे परामर्श लेने आते थे. सरकार द्वारा अपने आश्रम की जमीन का विरोध करने पर उन्होंने इसका एक बड़ा हिस्सा सरकार को वापस कर दिया. चंद्रशेखर के विषय में यह कहना गलत नहीं होगा कि वह एक संयमित चरित्र वाला व्यक्ति होने के साथ-साथ एक ईमानदार प्रधानमंत्री भी थे जिनकी योग्यताओं और महत्वाकांक्षाओं पर संदेह करना मुश्किल है. अपने जीवनकाल में वह बेहद सम्मानीय पुरुष रहे. आज भी राजनैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से इनकी लोकप्रियता को कम नहीं आंका जा सकता.

ICICI Bank suspends 18 employees

ICICI Bank  suspended 18 employees pending investigation, sources in the bank said, a day after an independent journalist accused it and two other private banks of money-laundering practices.

The suspension is pending the bank’s investigation into money laundering charges. The probe is expected to be completed in two weeks.
Country’s three largest private banks, including the ICICI Bank, were on Thursday accused of indulging in money-laundering both within and outside, with an online portal Cobrapost claiming that a sting operation conducted by it has revealed a scam.
Cobrapost had on Thursday played the contents of purported video recording of officials of private banks allegedly agreeing to receive unverified sums of cash and put them in their investment schemes and benami accounts in violation of anti-money-laundering laws.

14 मार्च, 2013

Diabetes : Astrological Reasons


Diabetes : Astrological Reasons


What causes diabetes?
First of all we should know what diabetes is and what causes diabetes.
Diabetes mellitus is a group of metabolic diseases characterized by high blood sugar (glucose) levels that result from defects in insulin secretion, or its action, or both.
Insulin is a hormone that is produced by specialized cells (beta cells) of the pancreas. The Pancreas is a deep-seated organ in the abdomen located behind the stomach. In addition to helping glucose enter the cells, insulin is also important in tightly regulating the level of glucose in the blood.
Glucose is a simple sugar found in food. Glucose is an essential nutrient that provides energy for the proper functioning of the body cells. Carbohydrates are broken down in the small intestine and the glucose in digested food is then absorbed by the intestinal cells into the bloodstream, and is carried by the bloodstream to all the cells in the body where it is utilized. However, glucose cannot enter the cells alone and needs insulin to aid in its transport into the cells. Without insulin, the cells become starved of glucose energy despite the presence of abundant glucose in the bloodstream. In certain types of diabetes, the cells’ inability to utilize glucose gives rise to the ironic situation of "starvation in the midst of plenty". The abundant, unutilized glucose is wastefully excreted in the urine.
Normally, blood glucose levels are tightly controlled by insulin, a hormone produced by the pancreas. Insulin lowers the blood glucose level. When the blood glucose elevates (for example, after eating food), insulin is released from the pancreas to normalize the glucose level. In patients with diabetes, the absence or insufficient production of insulin causes hyperglycaemia. (Hyperglycaemia, when the bodies blood sugar is higher than the normal range.)
What is Pancreas?
A spongy, tube-shaped organ that is about 6 inches long and is located in the back of the abdomen, behind the stomach. The head of the pancreas is on the right side of the abdomen. It is connected to the upper end of the small intestine. The narrow end of the pancreas, called the tail, extends to the left side of the body. The pancreas makes pancreatic juices and hormones, including insulin and secretin. Pancreatic juices contain enzymes that help digest food in the small intestine. Both pancreatic enzymes and hormones are needed to keep the body working correctly. As pancreatic juices are made, they flow into the main pancreatic duct, which joins to the common bile duct, which connects the pancreas to the liver and the gallbladder and carries bile to the small intestine near the stomach.
Insufficient production of insulin by the pancreas (either absolutely or relative to the body’s needs), production of defective insulin (which is uncommon), or the inability of cells to use insulin properly and efficiently leads to hyperglycaemia and diabetes.
Findings:
  1. Diabetes mellitus is a group of metabolic diseases.
  2. Insufficient production of insulin by the pancreas.
  3. Insulin is a hormone.
Astrologically metabolism is matter of 5th and 6th house. 5th house signifies stomach, pancreas, spleen and liver. 6th house signifies indigestion, liver diseases. Diabetes is indigestion of Carbohydrates.
Astrologically significator of 5th house is Jupiter. Jupiter rules over liver and pancreas. It regulates sugars, lipids, the liver, and the gall-bladder. So, there is strong reason to blame Jupiter for bad metabolic system. While searching reasons of diabetes, we should take in consideration Jupiter, Sagittarius, Pisces, Leo signs; 5th, 6th and 8th houses. A malefic Jupiter in 5th, 6th and 8th house can give this disorder.

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