होली का त्योहार
होली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। इसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। फाल्गुन मास हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम मास होता है।
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है एवं प्रत्येक मास की पूर्णिमा किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, जो कि मानव मन एवं मस्तिष्क का कारक है, आकाश में पूर्ण रूप से बली होता है तथा इस दिन पृथ्वी पर इसकी रश्मियां पूर्ण रूप से प्रभावी होती हैं। भगवान सूर्य जो कि पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं इनकी रश्मियां तो पृथ्वी पर सदैव ही प्रभावी होती हैं। अतः पूर्णिमा के दिन सूर्य एवं चंद्रमा दोनों का प्रकाश पृथ्वी पर पूर्ण रूप से प्रभावी होता है।होलाष्टक
होली पूर्णिमा हिन्दू वर्ष का अंतिम दिन होता है तथा इससे आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है। इस आठ दिन के समय में कोई शुभ कार्य या नया कार्य आरंभ करना शास्त्रों के अनुसार वर्जित है। होली से पहले के आठ दिन के समय को होलाष्टक के नाम से जाना जाता है एवं इस काल में कोई नया कार्य एवं शुभ कार्य नहीं किया जाता है वरन इसे भगवत भक्ति एवं मंगल गीत गाकर बिताया जाता है।
हिन्दू वर्ष के इन अंतिम आठ दिनों में लोग आपसी कटुता भुलाकर एक दूसरे के साथ मिल बैठकर गाते-बजाते हैं एवं आनंदपूर्वक समय व्यतीत करते हैं जिससे नए वर्ष को नए सिरे से आरंभ किया जा सके। वर्ष के अंतिम दिन लोग होलिका दहन करते हैं।
होलिका दहन भक्त प्रहलाद की याद में किया जाता है। भक्त प्रहलाद राक्षस कुल में जन्मे थे परंतु फिर भी वे भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे।
आग में होलिका स्वयं ही जल कर भस्म हो गई क्योंकि भगवत कृपा से वह वस्त्र तेज हवा चलने से होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद के शरीर पर गिर गया। इस प्रकार यह कहानी यह संदेश देती है कि दूसरों का बुरा करने वालों का ही बुरा पहले होता है। तथा जो अच्छे एवं बुरे दोनों समय में भक्त प्रहलाद की भांति ईश्वर में अटूट विश्वास रखते हुए अपना कार्य करतें है उनको भगवत कृपा प्राप्त होती है।
होलिका दहन बुराइयों के अंत एवं अच्छाइयों की विजय के पर्व के रूप में मनाया जाता है। काम, क्रोध, मद,मोह एवं लोभ रूपी राक्षस होलिका के रूप में हमारे अंदर विद्यमान हैं। होलिका दहन यह संदेश देता है कि मनुष्य को इन दोषों का त्याग करना चाहिए तथा ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।
यदि होली शब्द का अर्थ देखें तो इसका अर्थ है जो होना था हो गया अर्थात् पिछले वर्ष में जो होना था सो हो गया अब नए वर्ष को नए सिरे से आरंभ किया जाए। इस प्रकार होली भाईचारे, आपसी प्रेम एवं सद्भावना का त्योहार है जो यह संदेश देता है कि हमें नए वर्ष का आरंभ आपसी शत्रुता एवं वैमनस्य भुलाकर नए रूप में करना चाहिए एवं अपनी बुराइयों को छोड़कर नए वर्ष का नए प्रकार से स्वागत करना चाहिए।
सच्ची ईश्वर भक्ति इसी में है कि इस दिन हम थोड़े समय के लिए शांत भाव से बैठकर वर्षभर में हमारे द्वारा किए गए कार्यों का विश्लेषण करें, दूसरों के साथ किए हुए अपने गलत व्यवहार एवं अपनी गलतियों का विश्लेषण करें एवं इन्हे पुन: नहीं दोहराने का निश्चय करें। दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने का प्रण करें जैसा कि हम अपने लिए चाहते हैं। ऐसा करना दूसरों के लिए ही नहीं वरन हमारे लिए भी लाभदायक होगा क्योंकि कर्म सिद्धान्त के अनुसार सद्व्यहार एवं सदाचार का फल सदैव शुभ एवं लाभदायक होता है। यदि हम लेशमात्र भी ऐसा करते हैं तो अवश्य ही हम ईश्वर की कृपा के पात्र बनते हैं। ऐसा करके न केवल हम अपने सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन में उचित संतुलन बना पाएंगे वरन अपने भीतर एवं अपने आसपास के वातावरण में सुख एवं शांति के बीज भी बोएंगे। केवल पूजा करने एवं मंत्र पढ़ने से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होती इसके लिए हमें इसका पात्र बनना पड़ेगा, हमे अपने आचरण एवं जीवन शैली में आवश्यक सकारात्मक परिवर्तन करने होगें।
होली यह संदेश देती है कि यदि मनुष्य उसके भीतर स्थित होलिका के रूप में विद्यमान काम, क्रोध, मद, मोह एवं लोभ कि भावनाओं पर नियंत्रण रखकर ईश्वर द्वारा बनाए इस संसार में उसके बनाए नियमों का पालन करते हुए अपना जीवनयापन करते हैं तो सदैव ईश्वर की कृपा के पात्र बनते हैं।
होली हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। इसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। फाल्गुन मास हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम मास होता है।
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का विशेष महत्व है एवं प्रत्येक मास की पूर्णिमा किसी न किसी उत्सव के रूप में मनाई जाती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, जो कि मानव मन एवं मस्तिष्क का कारक है, आकाश में पूर्ण रूप से बली होता है तथा इस दिन पृथ्वी पर इसकी रश्मियां पूर्ण रूप से प्रभावी होती हैं। भगवान सूर्य जो कि पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं इनकी रश्मियां तो पृथ्वी पर सदैव ही प्रभावी होती हैं। अतः पूर्णिमा के दिन सूर्य एवं चंद्रमा दोनों का प्रकाश पृथ्वी पर पूर्ण रूप से प्रभावी होता है।होलाष्टक
होली पूर्णिमा हिन्दू वर्ष का अंतिम दिन होता है तथा इससे आठ दिन पहले होलाष्टक लग जाता है। इस आठ दिन के समय में कोई शुभ कार्य या नया कार्य आरंभ करना शास्त्रों के अनुसार वर्जित है। होली से पहले के आठ दिन के समय को होलाष्टक के नाम से जाना जाता है एवं इस काल में कोई नया कार्य एवं शुभ कार्य नहीं किया जाता है वरन इसे भगवत भक्ति एवं मंगल गीत गाकर बिताया जाता है।
हिन्दू वर्ष के इन अंतिम आठ दिनों में लोग आपसी कटुता भुलाकर एक दूसरे के साथ मिल बैठकर गाते-बजाते हैं एवं आनंदपूर्वक समय व्यतीत करते हैं जिससे नए वर्ष को नए सिरे से आरंभ किया जा सके। वर्ष के अंतिम दिन लोग होलिका दहन करते हैं।
होलिका दहन भक्त प्रहलाद की याद में किया जाता है। भक्त प्रहलाद राक्षस कुल में जन्मे थे परंतु फिर भी वे भगवान नारायण के अनन्य भक्त थे।
आग में होलिका स्वयं ही जल कर भस्म हो गई क्योंकि भगवत कृपा से वह वस्त्र तेज हवा चलने से होलिका के शरीर से उड़कर भक्त प्रहलाद के शरीर पर गिर गया। इस प्रकार यह कहानी यह संदेश देती है कि दूसरों का बुरा करने वालों का ही बुरा पहले होता है। तथा जो अच्छे एवं बुरे दोनों समय में भक्त प्रहलाद की भांति ईश्वर में अटूट विश्वास रखते हुए अपना कार्य करतें है उनको भगवत कृपा प्राप्त होती है।
होलिका दहन बुराइयों के अंत एवं अच्छाइयों की विजय के पर्व के रूप में मनाया जाता है। काम, क्रोध, मद,मोह एवं लोभ रूपी राक्षस होलिका के रूप में हमारे अंदर विद्यमान हैं। होलिका दहन यह संदेश देता है कि मनुष्य को इन दोषों का त्याग करना चाहिए तथा ईश्वर भक्ति में मन लगाना चाहिए।
यदि होली शब्द का अर्थ देखें तो इसका अर्थ है जो होना था हो गया अर्थात् पिछले वर्ष में जो होना था सो हो गया अब नए वर्ष को नए सिरे से आरंभ किया जाए। इस प्रकार होली भाईचारे, आपसी प्रेम एवं सद्भावना का त्योहार है जो यह संदेश देता है कि हमें नए वर्ष का आरंभ आपसी शत्रुता एवं वैमनस्य भुलाकर नए रूप में करना चाहिए एवं अपनी बुराइयों को छोड़कर नए वर्ष का नए प्रकार से स्वागत करना चाहिए।
सच्ची ईश्वर भक्ति इसी में है कि इस दिन हम थोड़े समय के लिए शांत भाव से बैठकर वर्षभर में हमारे द्वारा किए गए कार्यों का विश्लेषण करें, दूसरों के साथ किए हुए अपने गलत व्यवहार एवं अपनी गलतियों का विश्लेषण करें एवं इन्हे पुन: नहीं दोहराने का निश्चय करें। दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने का प्रण करें जैसा कि हम अपने लिए चाहते हैं। ऐसा करना दूसरों के लिए ही नहीं वरन हमारे लिए भी लाभदायक होगा क्योंकि कर्म सिद्धान्त के अनुसार सद्व्यहार एवं सदाचार का फल सदैव शुभ एवं लाभदायक होता है। यदि हम लेशमात्र भी ऐसा करते हैं तो अवश्य ही हम ईश्वर की कृपा के पात्र बनते हैं। ऐसा करके न केवल हम अपने सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन में उचित संतुलन बना पाएंगे वरन अपने भीतर एवं अपने आसपास के वातावरण में सुख एवं शांति के बीज भी बोएंगे। केवल पूजा करने एवं मंत्र पढ़ने से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त नहीं होती इसके लिए हमें इसका पात्र बनना पड़ेगा, हमे अपने आचरण एवं जीवन शैली में आवश्यक सकारात्मक परिवर्तन करने होगें।
होली यह संदेश देती है कि यदि मनुष्य उसके भीतर स्थित होलिका के रूप में विद्यमान काम, क्रोध, मद, मोह एवं लोभ कि भावनाओं पर नियंत्रण रखकर ईश्वर द्वारा बनाए इस संसार में उसके बनाए नियमों का पालन करते हुए अपना जीवनयापन करते हैं तो सदैव ईश्वर की कृपा के पात्र बनते हैं।