Rameshwar Nath Tiwari ( In 1974 Photograph taken for High School Exam Form )
1976 AFTER PASSING INTER & JOINING DDU
गौतम इंटर कालेज पिपरा रामधर के छात्र जीवन की एक अविश्मर्मनीय घटना मुझे आज तक याद है ...प्रति वर्ष विद्यालय में गौतम सप्ताह बड़े जोर शोर से मनाया जाता था ,यह सब हमारे पूज्य गुरुदेव ,प्राचार्य श्री राधे श्याम जी द्विवेदी के कठिन परिश्रमों का परिणाम था । पूज्य श्री शिवावतार पाण्डेय शाश्त्री जी ज्ञान वर्धक की की भूमिका अनेक शाश्त्र संगत बातें बताते रहते थे ।उसमे से महर्शी गौतम के विषय में मुख्य बातें इस प्रकार होतीं थीं
एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम से बाहर
कहीं गये हुये थे तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने गौतम ऋषि के वेश में
आकर अहिल्या का शीलभंग कर देते हैं. जब इन्द्र आश्रम से बाहर निकलते हैं तो
तभी अपने आश्रम को वापस आते हुये गौतम ऋषि की दृष्टि इन्द्र पर पड़ती है
जो उन्हीं का वेश धारण किये हुये था और यह सब देखकर वह सब समझ जाते हैं और
इन्द्र को शाप देते हैं.
इसके पश्चात वह अपनी पत्नि अहिल्या को
श्राप देते हैं कि वह शिला बन जाए. इस प्रकार अहिल्या पत्थर कि एक शिला रूप
बन जाती है. यह कह कर गौतम ऋषि आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या
करने लगते हैं. अहिल्या की शाप मुक्ति केवल राम के चरण स्पर्श से हि दूर हो
सकती थी अत: श्री राम के चरण स्पर्श से अहिल्या श्राप से मुक्त हो जातीं
हैं.
गौतम ऋषि की श्राप से मुक्ति ;
एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी
बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो जाती हैं तथा सभी अपने पतियों को
ऋषि गौतम का तिरस्कार करने को कहती हैं. अत: विवश हो कर उनके पतियों ने
श्रीगणेशजी की आराधना तब उनकी साधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने उनसे वर
माँगने को कहते हैं. इस पर ब्राह्मणों ने कहा कि हे प्रभु आप ऋषि गौतम को
इस आश्रम से बाहर कर दें. गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर न माँगने को कहा परंतु
सभी अपने आग्रह पर दृढ रहते हैं.
विशश हो गणेशजी वरदान स्वरूप
में एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत चले जाते हैं और वहां
फसल को खाने लगते हैं. जब गौतम अपने खेत में इस गाय को देखते हैं तो उसे
वहां से बाहर हाँकने का प्रयास करते हैं किंतु उनका स्पर्श होते ही वह गाय
मर जाती है. इस घटना को देखकर सभी ब्राह्मण उन्हें गो-हत्यारा कहने लगते
हैं, उनकी निंदा करते हैं.
ऋषि गौतम इस घटना से दुःखी होकर आश्रम
छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाते हैं. परंतु गो-हत्या के कारण उनसे
वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार छीन लिया जाता है अत: ऋषि
गौतम प्रायश्चित स्वरूप भगवान शिव की आराधना करते हैं. उनकी तपस्या से
प्रसन्न हो भगवान शिव उन्हें दर्शन देते हैं और उनसे वर माँगने को कहते
हैं.
महर्षि गौतम भगवान शिव से कहते हैं वह उन्हें गो-हत्या के
पाप से मुक्त करें तथा इसी स्थान पर निवास करें. भगवान् शिव उनकी बात
मानकर वहाँ त्र्यम्ब ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए और उन्हें श्राप
से मुक्त किया गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से
प्रवाहित होने लगीं और यही गोदावरी नदी का उद्गम स्थान हुआ.
गौतम ऋषि न्याय दर्शन शास्त्र
न्याय दर्शन के आदि प्रवर्तक गौतम ऋषि माने गए हैं इन्हें ही न्यायसूत्रों
का प्रणयन किया तथा शास्त्र रूप में प्रतिष्ठापित किया. सांख्य और योग
दर्शन की तरह न्याय दर्शन का उद्देश्य मानव कल्याण रहा है.न्याय दर्शन भारत
के छः वैदिक दर्शनों में से एक है जिसके प्रवर्तक ऋषि अक्षपाद गौतम हैं.
न्याय दर्शन की उत्पत्ति मिथिला प्रदेश में हुई मानी जाती है इसका मूल
ग्रंथ गौतम ऋषि का न्याय सूत्र माना जाता है.
ऋषि गौतम के
‘न्यायसूत्र’ से ही न्यायशास्त्र का इतिहास स्पष्ट होता है. न्याय दर्शन एक
यथार्थवादी दर्शन है गौतम ऋषि के न्याय दर्शन में सोलह तथ्यों का उल्लेख
प्राप्त होता है जिसमें प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धात,
अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रह
स्थान हैं. न्याय चार तरह के प्रमाणों की चर्चा करता है- प्रत्यक्ष,
अनुमान, उपमान और शब्द.
न्याय दर्शन के अनुसार बारह प्रकार के
प्रमेय होते हैं जैसे आत्मा, शरीर, इंद्रियां, बुद्धि, मन, प्रवृत्ति, दोष,
प्रत्ययभाव, फल, दुख और अपवर्ग. न्याय तर्क के द्वारा सत्य तक पहुंचने का
मार्ग है न्याय दर्शन से नित्य या प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य
दुखों से मुक्ती प्राप्त कर सकता है.
गौतम इंटर कालेज पिपरा रामधर के छात्र जीवन के हमारे सीनियर श्री दिवस्पति मिश्र की वर्तमान की तस्बीर .....
कैसे कैसे समय बदल जाता है ......विश्वास नहीं होता है।