05 मई, 2012

रिटायर्मेंट के दिन...


 
पिता जी की डायरी से....

रिटायर्मेंट के दिन....

एक जीवन के अंतिम क्षण का, दृश्य देखने आया.
जो पाया था आज गंवाया,खोया, खोया पाया.
आने का मतलब है जाना, जाने का है आना,
विरह मिलन का इस, दुनिया में सुनता तराना.
व्यथा ह्रदय की गीत बनी है,हमने उसे सुनाया,
एक जीवन के अंतिम क्षण का दृश्य देखने आया.

टूट गया एक पद का नाता ,टूट गयी ये डाली.
वही नगर है ,वही डगर है, बनी विषैली व्याली.
समय चक्र ही चिढा रहा है, जिसने कभी हंशाया.
एक जीवन के अंतिम क्षण का दृश्य देखने आया.

बदल गया इस भवन से नाता , बदल गए हर प्राणी.
अब तो याद कभी आएगी,कहेगी एक कहानी.
जग की सारी झूठी दुनियां ,झूठी है ये काया.
एक जीवन के अंतिम क्षण का दृश्य देखने आया.

आदि अंत जब कुछ भी नहीं है, झूठ है मरना जीना,
झूठ है आना ,झूठ है जाना ,झूठ है गुदरी सीना .
बंधन मय एक खेल खेलकर ,हमने मुक्ति पाया.
एक जीवन के अंतिम क्षण का दृश्य देखने आया.

--अवधेश कुमार तिवारी

02 मई, 2012

ज्ञानी कौन ?

  ज्ञानी  कौन ?
-जो बीती बातों को याद नहीं करता .
-जो भविष्य की चिंता नहीं करता.
-जो वर्तमान के दुःख से उदासीन नहीं होता.
मुर्ख कौन ?
-बिना पढ़े/ अध्ययन किये ही   गर्व करने वाले ,दरिद्र होकर भी,बड़े,बड़े मंशुबे बांधने वाले और बिना काम किये ही धन की इक्छा रखने वाले ही मुर्ख होते हैं..
 


OLD MEMORIES....









भगवान परशुराम



अगर भगवान राम विष्णु अवतार थे तो भगवान परशुराम भी विष्णु के अवतार थे. अवतार तो अवतार होता है. उसमें बड़ा छोटा कुछ नहीं होता. लेकिन कालक्रम के लिहाज से परशुराम राम से बड़े हो जाते हैं. परशुराम को सिर्फ ब्राह्मणों का इष्ट, आराध्य या देव बताकर समाज के कुछ स्वार्थी तत्वों ने उनकी गरिमा को कम करने की कोशिश जरूर की है लेकिन अब वक्त आ गया है जब हम परशुराम के पराक्रम को सही अर्थों में जानें और इस महान वीर और अजेय योद्धा को वह सम्मान दें जिसके वे अधिकारी हैं. आम तौर पर परशुराम को एक क्रोधी और क्षत्रिय संहारक ब्राह्मण के रूप में जाना जाता है लेकिन ऐसा है नहीं. परशुराम ने कभी क्षत्रियों को संहार नहीं किया. उन्होंने क्षत्रिय वंश में उग आई उस खर पतवार को साफ किया जिससे क्षत्रिय वंश की साख खत्म होती जा रही थी. लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि हम भगवान परशुराम को क्षत्रिय संहारक के रूप में चिन्हित करते हैं. अगर वे क्षत्रिय संहारक होते तो भला एक क्षत्रियकुल वंशी के हाथ में अपना फरसा क्यों सौंप देते? जिस दिन भगवान परशुराम को योग्य क्षत्रियकुलभूषण प्राप्त हो गया उन्होंने स्वत: अपना समस्त राम के हाथ में सौंप दिया. भगवान परशुराम के जीवन का यह भाग पुराणेतिहास में बाकायदा लिखा हुआ है लेकिन बाद की दुनिया में उन्हें एक वर्ग के ही महापुरुष के रूप में पेश करने की कोशिश की जाती रही है. विष्णु के अवतार तो वे हैं ही, परशुराम हमारे इतिहास के एक ऐसे महापुरुष हैं जिनकी याद हमेशा न्याय के पक्षधर के रूप में की जानी चाहिए. राम चरित मानस में शंकरजी के धनुष के टूटने के बाद भगवान परशुराम के जिस गुस्से का वर्णन है, उसका तो खूब प्रचार किया जाता है लेकिन विष्णु के अवतार, राम के साथ भगवान परशुराम के अन्य संबंधों का कहीं उल्लेख नहीं किया जाता. राम कथा में बताया गया है कि भगवान रामचन्द्र ने जब शिव का धनुष तोड़ दिया तो परशुराम बहुत ही नाराज़ हुए लेकिन जब उन्हें पता चला कि रामचन्द्र विष्णु के अवतार हैं तो उन्होंने राम की वंदना भी की. तुलसीदास ने बताया है कि उन्होंने जय जय रघुकुल केतू कहा और तपस्या के लिए वन गमन किया . भगवान परशुराम की याद एक ऐसे महान वीर और तपस्वी के रूप में की जानी चाहिए जो कभी भी गलत काम को बर्दाश्त नहीं कर सकता था. उनकी न्यायप्रियता किसी प्रमाण की मोहताज नहीं है. जहां कहीं भी अन्याय होता था, भगवान परशुराम उसके खिलाफ हर तरह से संघर्ष करते थे और खुद ही दंड देते थे. हैहय के नरेश सहस्त्रबाहु अर्जुन की सेना के नाश और उसके वध को इसी न्यायप्रियता के सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए. आज जब चारों तरफ हमारी प्राचीन मनीषा और परम्पराओं के नाम पर हर तरह की हेराफेरी हो रही है, मीडिया का इस्तेमाल करके बाबा पैदा हो रहे हैं, ऐसी हालत में ज़रूरी है कि भगवान परशुराम के चरित्र का चारों तरफ प्रचार हो और नई पीढियां जान सकें कि हमारा इतिहास कितना गौरवशाली रहा है और अपने समय का सबसे वीर योद्धा जो सत्रह अक्षौहिणी सेना को बात बात में हरा सकता था, अपने पिता की आकाशवाणी में हुई आज्ञा को मानकर तप करने चला जाता है. बताते हैं कि यह तपस्या उन्होंने उस जगह पर की थी जहां से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है. वहां परशुराम कुंड बना हुआ है. यहीं तपस्या करके उन्होंने शिवजी से फरसा प्राप्त किया था. बाद में इसी जगह पर उसे विसर्जित भी किया.

तक्षशिला विश्वविद्यालय

तक्षशिला विश्वविद्यालय वर्तमान पश्चिमी पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था। आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी। शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे। परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी। चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छरू माह का शोध कार्य करना पड़ता था। इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री मिलती थी। अनेक शोधों से यह अनुमान लगाया गया है कि यहां बारह वर्ष तक अध्ययन के पश्चात दीक्षा मिलती थी। 500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतडिय़ों तक का आपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था। शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे। इनकी संख्या प्रायरू सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी। अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्व दिया जाता था। छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था। शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उस समय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी। धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढऩे वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की। इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे। चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारत वर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे। विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफी क्षति पहुंचाई। अंततरू छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया।

नोट छापने का खर्च

नोट छापने का खर्च :- 3 रूपये 95 पैसे में छपता है 1000 का नोट ( यह जानकारी सूचना के अधिकार कानून ( RTI )से मिली है ...

साभार :- Lokesh Kumar Prajapati


हमारे हाथ में आने वाला 1000 का लाल रंग का नोट रिजर्व बैंक 2.69 रुपये और 3.95 रुपये में
छपवाता है। इसी तरह 10 रुपये का छोटा नोट 64 पैसे और 92 पैसे में छपता है। यह जानकारी आरबीआई ने एक आरटीआई कार्यकर्ता नंद किशोर कर्दम के सवाल के जवाब में दी है। कर्दम ने नोटों का दुरुपयोग कर माला आदि बनाने , मोड़ने , तोड़ने आदि हरकत करने वालों के खिलाफ हो सकने वाले कानून की जानकारी भी आरबीआई से मांगी थी , जिसके जवाब में आरबीआई ने बताया कि फिलहाल कोई सशक्त कानून नहीं होने के कारण वह लोगों से अपील ही कर सकते हैं।

पन्हेडा कलां गांव के निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट नंद किशोर कर्दम महज 10 वीं तक पढ़े हैं। एक सिक्युरिटी कंपनी में कार्यरत कर्दम आरटीआई के जरिये सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार को रोकने के साथ - साथ समाज को भी उनकी जिम्मेदारी का सबक सिखाना चाहते हैं। नेताओं के गले में डाले जाने वाले नोटों की मालाओं , मंडपों को सजाने में नोटों के इस्तेमाल , देव मूर्तियों को पहनाए जाने वाली मालाओं और लोगों के नोटों को तोड़ने - मरोड़ने की घटनाओं ने कर्दम का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। उन्होंने आरबीआई से आरटीआई के माध्यम से नोटों का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कानून की जानकारी मांगी।

आश्चर्यजनक रूप से आरबीआई ने उन्हें बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम , 1934 या अन्य किसी प्रचलित अधिनियम में ऐसी हरकतों को रोकने के लिए कोई कानून मौजूद नहीं है। आरबीआई ने बताया कि वह लोगों को नोटों का दुरुपयोग न करने के लिए समझाते हैं। इसके लिए वह प्रेस नोट भी जारी करते हैं। कर्दम ने आरबीआई से नोटों को छापने पर आने वाले खर्च के बारे में भी जानकारी मांगी थी। इसके जवाब में आरबीआई ने बताया कि वह दो कंपनियों भारत प्रतिभूति मुद्रण एवं मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड ( एसपीएमसीआईएल ) और भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड ( बीआरबीएनएमपीएल ) से नोट छपवाते हैं। बीआरबीएनएमपीएल और एसपीएमसीआईएल की छपाई के रेट में भी काफी अंतर है। जहां बीआरबीएनएमपीएल एक हजार के नोट को 2.69 पैसे ( 2 रूपये 69 पैसे )में छाप रही है , वहीं एसपीएमसीआईएल इसे 3.95 रुपये में छाप कर दे रही है।

नोट छापने का खर्च

नोट एसपीएमसीआईएल बीआरबीएनएमपीएल

पाँच रुपये 85 पैसे 58 पैसे

10 रुपये 92 पैसे 64 पैसे

20 रुपये 1.17 रुपये 95 पैसे

50 रुपये 1.54 रुपये 1.04 रुपये

100 रुपये 1.89 रुपये 1.34 रुपये

500 रुपये 3.09 रुपये 2.40 रुपये

1000 रुपये 3.95 रुपये 2.69 रुपये.

मित्रों अब सोचिये जरा की ये बड़े नोट रिश्वत लेने में , पाकिस्तान से छपके नकली नोट के रूप में भारत में वितरित होने में , सट्टा बाज़ार में भ्रष्टाचार करने में जमा करने में कितने कारगर हैं ...

जागो भारतियों जागो बड़े नोट जैसे 1000 , 500 के नोट भ्रष्टाचार और जमाखोरी , काले धन के रूप में देश को बहुत दरिद्र बना रहे है ...

हमें बड़े नोट बन्द करवाने की माँग करने वाले भारत स्वाभिमान व्यवस्था परिवर्तन आन्दोलन जो की स्वामी रामदेव जी के नेतृत्व में चल रहा है हमें उनके इस आन्दोलन को समर्थन देना चाहिए ...

 

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार 1.  अनहद  नाद :  इस ध्वनि को  अनाहत  कहते हैं। अनाहत अर्थात जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं होती...