05 जनवरी, 2016

बहुत ही चमत्कारी दवा:

बहुत ही चमत्कारी दवा:
250 ग्राम मैथीदाना
100 ग्राम अजवाईन
50 ग्राम काली जीरी (ज्यादा जानकारी के लिए नीचे देखे)

उपरोक्त तीनो चीजों को साफ-सुथरा करके हल्का-हल्का सेंकना(ज्यादा सेंकना नहीं) तीनों को अच्छी तरह मिक्स करके मिक्सर में पावडर बनाकर कांच की शीशी या बरनी में भर लेवें ।
रात्रि को सोते समय एक चम्मच पावडर एक गिलास पूरा कुन-कुना पानी के साथ लेना है। गरम पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है। यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति ले सकतें है।
चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में जमा पडी गंदगी(कचरा) मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी । पूरा फायदा तो 80-90 दिन में महसूस करेगें, जब फालतू चरबी गल जाएगी, नया शुद्ध खून का संचार होगा । चमड़ी की झुर्रियाॅ अपने आप दूर हो जाएगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्तिवाला व सुंदर बन जायेगा ।
‘‘फायदे’’
1. गठिया दूर होगा और गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा ।
2. हड्डियाँ मजबूत होगी ।
3. आॅख का तेज बढ़ेगा ।
4. बालों का विकास होगा।
5. पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति।
6. शरीर में खुन दौड़ने लगेगा ।
7. कफ से मुक्ति ।
8. हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी ।
9. थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तहर दौड़ते जाएगें।
10. स्मरण शक्ति बढ़ेगी ।
11. स्त्री का शारीर शादी के बाद बेडोल की जगह सुंदर बनेगा ।
12. कान का बहरापन दूर होगा ।
13. भूतकाल में जो एलाॅपेथी दवा का साईड इफेक्ट से मुक्त होगें।
14. खून में सफाई और शुद्धता बढ़ेगी ।
15. शरीर की सभी खून की नलिकाएॅ शुद्ध हो जाएगी ।
16. दांत मजबूत बनेगा, इनेमल जींवत रहेगा ।
17. नपुसंकता दूर होगी।
18. डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज की जो दवा लेते है वह चालू रखना है। इस चूर्ण का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा । जिंदगी निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और आयुष्ययवर्धक बनेगी । जीवन जीने योग्य बनेगा ।
कुछ लोग कलौंजी को काली जीरी समझ रहे है जो कि गल्त है काली जीरी अलग होती है जो आपको पंसारी/करियाणा की दुकान से मिल जाएगी जिसके नाम इस तरह से है
हिन्दी कालीजीरी, करजीरा।
संस्कृत अरण्यजीरक, कटुजीरक, बृहस्पाती।
मराठी कडूकारेलें, कडूजीरें।
गुजराती कडबुंजीरू, कालीजीरी।
बंगाली बनजीरा।
अंग्रेजी पर्पल फ्लीबेन।

29 सितंबर, 2015

पिता जी की डायरी से...






बिन ढूढे मिले नहीं , अपना ही पहचान .
क्या ढुढत हो गैर को,बसत जहाँ अज्ञान .
बसत जहाँ अज्ञान, राम भी पास में आये,
मनुष्य जीवन धन्य,बृथा नर मुर्ख गवाए,
कहें मौन कविराय , जग मन दुःख ही दुःख है
अपने को पहचान,सदा ही सुख ही सुख है.

-अवधेश कुमार तिवारी

29 September 2004



मृत्यु जीवन का सत्य है लेकिन एक सत्य, मृत्यु के बाद शुरु होता है। इस सच के बारे में, बहुत कम लोग जानते हैं। क्या वाकई, मृत्यु के समय व्यक्ति को कोई दिव्य दृष्टि मिलती है? आखिर मृत्यु के कितने दिनों बाद, आत्मा यमलोक पहुंचती है? गरुण पुराण में, भगवान के वाहन गरुण, श्रीहरि विष्णु से मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति को लेकर प्रश्न उठाते हैं। वह पूछते हैं कि मृत्यु के बाद, आत्मा कहां जाती है? इसका उत्तर भगवान विष्णु ने, गरुण पुराण में दिया है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है।
क्या होता है मृत्यु से पहले?
गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु से पहले, मनुष्य की आवाज चली जाती है। जब  अंतिम समय आता है, तो मरने वाले व्यक्ति को दिव्य दृष्टि मिलती है। इस दिव्य दृष्टि के बाद, मनुष्य, सारे संसार को, एक रूप में देखने लगता है। उसकी सारी इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं।
क्या होता है मृत्यु के समय?
गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु के समय 2 यमदूत आते हैं। इनके भय से अंगूठे के बराबर जीव, हा हा की आवाज़ करते हुये, शरीर से बाहर निकलता है। यमराज के दूत, जीवात्मा के गले में पाश बांधकर, उसे यमलोक ले जाते हैं। इसके बाद, जीव का सूक्ष्म शरीर, यमदूतों से डरता हुआ आगे बढ़ता है।
कैसा है मृत्यु का मार्ग?
मृत्यु का रास्ता अंधेरा और गर्म बालू से भरा होता है। यमलोक पहुंचने पर, पापी जीव को यातना देने के बाद, यमराज के कहने पर, उसे आकाश मार्ग से घर छोड़ दिया जाता है। घर आकर वह जीवात्मा, अपने शरीर में, फिर से घुसना चाहती है। लेकिन यमदूत के पाश से मुक्त नहीं हो पाती है। पिंडदान के बाद भी, वह जीवात्मा तृप्त नहीं हो पाती है। इस तरह भूख प्यास से बेचैन आत्मा, फिर यमलोक आ जाती है। जब तक उस आत्मा के वंशज, उसका पिंडदान नहीं करते, तो आत्मा दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय यातना भोगने के बाद, उसे विभिन्न योनियों में नया शरीर मिलता है। इसीलिये मनुष्य की मृत्यु के 10 दिन तक, पिंडदान ज़रुर करना चाहिए। दसवें दिन पिंडदान से, सूक्ष्म शरीर को चलने की शक्ति मिलती है। मृत्यु के 13वें दिन फिर यमदूत उसे पकड़ लेते हैं। उसके बाद शुरू होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। वैतरणी नदी को पार करने में पूरे 47 दिन का समय लगता है। उसके बाद जीवात्मा यमलोक पहुंच जाती है।
क्या है गरुण पुराण?
गरुण पुराण के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं। इसमें 19 हजार श्लोक थे, लेकिन अब सिर्फ 7 हज़ार श्लोक ही हैं। गरुण पुराण 2 भागों में है। पहले भाग में श्रीविष्णु की भक्ति, उनके 24 अवतार की कथा और पूजा विधि के बारे में बताया गया है। दूसरे भाग में, प्रेत कल्प और कई तरह के नरक के वर्णन है। मृत्यु के बाद मनुष्य की क्या गति होती है? उसे किन-किन योनियों में जन्म लेना पड़ता है? क्या प्रेत योनि से मुक्ति पाई जा सकती है? श्राद्ध और पिंडदान कैसे किया जाता है? श्राद्ध के कौन-कौन से तीर्थ हैं? मोक्ष कैसे मिल सकता है? इस बारे में विस्तार से वर्णन है।
गरुण पुराण की कथा
महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद जीवात्मा की स्थिति के बारे में प्रश्न किया था। तब विष्णु जी ने, मृत्यु के बाद की जीवात्मा की गति के बारे में, गरुण को बताया था। इसीलिए इसका नाम गरुण पुराण पड़ा।
गरुण पुराण का विषय
गरुण पुराण की शुरुआत में सृष्टि के बनने की कहानी है। इसके बाद सूर्य की पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा, नवव्यूह की पूजा विधि के बारे में बताया गया है। साथ ही साथ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार और निष्काम कर्म की महिमा भी बताई गयी है। श्राद्ध में गरुण पुराण के पाठ से आत्मा को मुक्ति और मोक्ष मिलता है। इसीलिये श्राद्ध के 15 दिनों में जगह जगह गरुण पुराण के पाठ का आयोजन होता है। अपने पितरों और पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के  लिये, ज़रूर पढ़ें गरुण पुराण।

26 फ़रवरी, 2014

रामेश्वर नाथ तिवारी








अपने बारे में

मेरा जन्म    तेरह जनवरी  उन्नीस सौ उनसठ को   ग्राम  टैरिया  , पत्रालय - सोहनाग,  तहसील-सलेमपुर  , जिला  देवरिया , उत्तर प्रदेश  में हुआ। पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी प्राइमरी स्कूल तिलौली ,सोहनाग में सहायक अध्यापक थे . बाद में प्रधान अध्यापक और फिर जूनियर हाई स्कूल सोहनाग में सहायक अध्यापक हो गए थे और वाही से रिटायर भी गए थे .

 पिता जी ृ रिटायरमेंट के बाद अपना पूरा समय भगवान की भक्ति में और काव्य रचना में व्यतीत करते थे .  अधय्त्मिक उत्कर्ष इतना अधिक हो गया था की वे संसार की हर बात को मिथ्या समझ बैठे थे .

जब भी दुखी और चिंतित होता हूँ  उनकी कविताओं से बड़ी राहत मिलती है और एक दिव्य दृष्टि भी .

देख रहा हूँ सपना क्या है ?
सपना है तो अपना क्या है ?

विशुद्ध ग्रामीण परिवेश    टैरिया  नामक  गाँव , देवरिया जनपद में सलेमपुर से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . यह प्रसिद्ध सोहनाग , परशुराम धाम सोहनाग  से मात्र २ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है . ऐतिहासिक धार्मिक केंद्र .

नाना पंडित राम चन्द्र शर्मा ,प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  थे।

पितामह पंडित श्री  सीता राम तिवारी रेलवे में कार्यरत थे । अत्यंत दयालु स्वाभाव  के थे .


सोहनाग  के प्रसिद्द  प्राइमरी  स्कूल से पाचवी  पास की एवं जूनियर  हाई स्कूल सोहनाग से आठवीं । बाद में गौतम इण्टर कॉलेज पिपरा रामधर से  दसवीं और बारहवी उत्तर प्रदेश  बोर्ड, इलाहाबाद   से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ.   बारहवी में  मैरिट लिस्ट में नाम था –जनपद में प्रथम स्थान  था ।    गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर    में  जब बी.ए . प्रवेश लिया तो      विश्व विद्यालय  में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था .       गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर से इंग्लिश, संस्कृत और भूगोल विषय से प्रथम श्रेणी में बी.ए .  १९७८ में   उत्तीर्ण हुआ . गोरखपुर विश्व विद्यालय से ही एम् .ए .भूगोल  १९८० में उत्तीर्ण हुआ ।

मदन मोहन मालवीय डिग्री कॉलेज भाटपार रानी में लेक्चरर शिप न हो पाने के बाद  गांव छोड़ने निश्चय किया और यहाँ पुणे ,महाराष्ट्र को अपनी कर्म स्थली बनाया .

कॉर्पोरेट्स में २५ साल कार्य किया . ग्रुप जनरल मैनेजर के पद पर पचीस  वर्षों कार्य करने के बाद त्याग पत्र दे  दिया  था . फाउंडर ट्रस्टी के रूप में मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की स्थापना भी किया था .

बाद में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन एंड एच आर साढ़े आठ साल रहा , इंदिरा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूट्स जिसमें के जी से   पी जी    तक की पढ़ाई होती थी मैनेजमेंट ,इंजीनियरिंग , फार्मेसी,इत्यादि .इत्यादि .
अब रिटायर्ड लाइफ बड़े आनंद से बीत रहा है .






































रामेश्वर नाथ तिवारी








अपने बारे में

मेरा जन्म    तेरह जनवरी  उन्नीस सौ उनसठ को   ग्राम  टैरिया  , पत्रालय - सोहनाग,  तहसील-सलेमपुर  , जिला  देवरिया , उत्तर प्रदेश  में हुआ। पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी प्राइमरी स्कूल तिलौली ,सोहनाग में सहायक अध्यापक थे . बाद में प्रधान अध्यापक और फिर जूनियर हाई स्कूल सोहनाग में सहायक अध्यापक हो गए थे और वाही से रिटायर भी गए थे .

 पिता जी ृ रिटायरमेंट के बाद अपना पूरा समय भगवान की भक्ति में और काव्य रचना में व्यतीत करते थे .  अधय्त्मिक उत्कर्ष इतना अधिक हो गया था की वे संसार की हर बात को मिथ्या समझ बैठे थे .

जब भी दुखी और चिंतित होता हूँ  उनकी कविताओं से बड़ी राहत मिलती है और एक दिव्य दृष्टि भी .

देख रहा हूँ सपना क्या है ?
सपना है तो अपना क्या है ?

विशुद्ध ग्रामीण परिवेश    टैरिया  नामक  गाँव , देवरिया जनपद में सलेमपुर से मात्र ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . यह प्रसिद्ध सोहनाग , परशुराम धाम सोहनाग  से मात्र २ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है . ऐतिहासिक धार्मिक केंद्र .

नाना पंडित राम चन्द्र शर्मा ,प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  थे।

पितामह पंडित श्री  सीता राम तिवारी रेलवे में कार्यरत थे । अत्यंत दयालु स्वाभाव  के थे .


सोहनाग  के प्रसिद्द  प्राइमरी  स्कूल से पाचवी  पास की एवं जूनियर  हाई स्कूल सोहनाग से आठवीं । बाद में गौतम इण्टर कॉलेज पिपरा रामधर से  दसवीं और बारहवी उत्तर प्रदेश  बोर्ड, इलाहाबाद   से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ.   बारहवी में  मैरिट लिस्ट में नाम था –जनपद में प्रथम स्थान  था ।    गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर    में  जब बी.ए . प्रवेश लिया तो      विश्व विद्यालय  में मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था .       गोरखपुर विश्व विद्यालय ,गोरखपुर से इंग्लिश, संस्कृत और भूगोल विषय से प्रथम श्रेणी में बी.ए .  १९७८ में   उत्तीर्ण हुआ . गोरखपुर विश्व विद्यालय से ही एम् .ए .भूगोल  १९८० में उत्तीर्ण हुआ ।

मदन मोहन मालवीय डिग्री कॉलेज भाटपार रानी में लेक्चरर शिप न हो पाने के बाद  गांव छोड़ने निश्चय किया और यहाँ पुणे ,महाराष्ट्र को अपनी कर्म स्थली बनाया .

कॉर्पोरेट्स में २५ साल कार्य किया . ग्रुप जनरल मैनेजर के पद पर पचीस  वर्षों कार्य करने के बाद त्याग पत्र दे  दिया  था . फाउंडर ट्रस्टी के रूप में मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की स्थापना भी किया था .

बाद में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन एंड एच आर साढ़े आठ साल रहा , इंदिरा ग्रुप ऑफ़ इंस्टीटूट्स जिसमें के जी से   पी जी    तक की पढ़ाई होती थी मैनेजमेंट ,इंजीनियरिंग , फार्मेसी,इत्यादि .इत्यादि .
अब रिटायर्ड लाइफ बड़े आनंद से बीत रहा है .






































यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...