"ॐ तत पुरुषाय विदमहे महादेवाय धी मही ..तन्नो रुद्रः प्रचो दयात "
भगवान शिव ही एकमात्र आदि स्वयंभू देव हैं, जिन्हें लींग स्वरुप में पूजने से पहले प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं रहती। पार्थिव शिवलिंग तो स्वत: ही चेतना संपन्न होते है पूजने से पहले किसी तरह की प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
भगवान शिव के जितने रूप और उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव की प्रतिष्ठा पूरे संसारमें ही फैली हुई है।
उनके विविध रूपों को पूजने का आदि काल से ही प्रचलन रहा है।
शिव के मंदिर अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील, तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका, चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा,सुमात्रा तक हर जगह पाए गए हैं।
ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनसमंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था। यूरोपियन फणिश और इबरानीजाति के पूर्वज बालेश्वर लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप मेंउल्लेख हुआ है।चाहे नाम अलग हो .. स्वरुप में थोडा फर्क हो पूजन - विधि विधान के नियम अलग ..शिव की महिमा तो अनंत और अपार |
भगवान शिव के रूप में
परमात्मा के ब्रह्मा और विष्णु रूप को समझना और उन्हें आत्मसात करना तो सहज है, परंतु उनके शिव रूप को पूर्णतः आत्मसात करना अत्यधिक मुश्किल है,क्योंकि शिव रूप में उनके रूप, श्रंगार, शक्तियों और अवतारों में इतनी विशिष्टता एवं विरोधाभास बना रहा है कि उन्हें अनगिनत नामों की उपाधियां प्रदान की जाती रही।
उनहें मान्यता तो [ रूद्र - भेरव ] संहारक और विध्वंसक देव की दी गई,
लेकिन उन्हें आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव),
परमशिव (समस्त जगत का कल्याण करने वाले देव),
रूद्र (मृत्यु के मुंह से निकाल लेने वाला),
ओघड़ (गुण, रस,राग, दोष रहित),
ओघड़दानी, श्मशानवासी, कापालिक, पिनाक्षी, विरूपाक्ष,दिगंबर ,अर्धनारेश्वर
जैसे अनगिनत नामों की मान्यता भी दी गई। शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं,जिन्होंने देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र से प्राप्त हुए विष को स्वयं अपने कण्ठ में धारण कर लिया और स्वयं नीलकण्ठ कहलाए।
शास्त्रों में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के साथ-साथ पंचानन शिव, अष्टमुखी शिव, अर्धनरेश्वर , मृत्युंजय शिव, दक्षिणाभिमुख शिव, हरिहर शिव ,पशुपतिनाथ से लेकर नटराज तक अनगिनत रूपों में मान्यता प्रदान की है। भक्त जीस भाव से यजन करे वही स्वरुप शिव धारण कर लेते हे |
शिव ही एकमात्र देव हैं, जिन्हें पूजने से पहले प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं रहती।
पार्थिव शिवलिंग तो स्वतः ही चेतना संपन्न होते हैं और उन्हें पूजन से पहले किसी तरह की
प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे मृतिका या बालू से निर्मित शिवलिंगों को कहीं भी, किसी मंदिर, वन क्षेत्र, पहाड़, गुफा से लेकर नदी , सरोवर , समुद्र तट ,शमशान भूमि तक, किसी चबूतरे अथवा वृक्ष के नीचे स्थापित करके या घर में ही पूजा जा सकता है और उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। इसी तरह शिव की उपासना के लिए किसी प्रकार की विशिष्ट सामग्री आदि की जरुरत नहीं होती।
उन्हें तो फल, फूल, बिल्व पत्र आदि समर्पित करना ही पर्याप्त होता है और अगर वह भी
सुलभ नहीं हो पाए,तो शिव को रिझाने के लिये केवल एक लोटा पानी से ही काम चल जाता है।
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप या शिव मानस पूजा ही पर्याप्त हे |
भगवान अपने शिव भक्तों की करूणा पुकार, शीघ्र सुनते हैं और तत्काल ही अपनी कृपा दृष्टि प्रदान करके अपने आशीर्वाद स्वरूप उनके समस्त दुखों को हर लेते हैं।शिव महिमा की ऐसी अनुभूतियां - शिव अनुकंपा अनेको साधकों - भक्तो को को समय-समय पर मिलती रही हैं।
शिवोपासना का प्रसिद्ध महामंत्र है महामृत्यंजय मंत्र। इस अकेले मंत्र के विविध अनुष्ठानों के द्वारा ही न केवल अपमृत्यु का ही निवारण होता देखा गया है, बल्किलंबे समय से परेशान करती आ रही लाइलाज बीमारियों से भी सहज ही मुक्तिमिलते देखी गई है, यहां तक कि इस महामंत्र के अनुष्ठान से साधक की समस्त अभीष्ट मनोकामनाएं भी सहज ही पूर्ण हो जाती है।
इस महामृत्युंजय मंत्र के द्वाराघोर विपत्तियों में फंसे, मुकदमेबाजी में उलझे, कर्ज से दबे हुए लोगों को कुछ ही समय में राहत देखी गई है। इस महामृत्युंजय मंत्र के दो रूप हैं वेदोक्त और पुराणोक्त जिनके अनुष्ठान के अलग- अलग कर्मकांड एवं विधान हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं अन्य मुख्य लिंग
शिव पूजा द्वारश ज्योतिर्लिंग की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि इन ज्योतिर्लिंग में स्वयं उमाशंकर महादेव मां पार्वती के साथ सदैव विराजमान रहते हैं। इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही शिव कृपा की प्राप्ति हो जाती है। अगर इन सिद्धी स्थलों पर पूर्ण भक्ति से शिव मंत्रों या शिव स्त्रोत आदि का पाठ किया जाए, तो शिव निश्चित ही अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हैं और उसे सहस्त्रों समस्याओं से निकाल सकते हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की तो बहुत मान्यता रही है, अनंत महिमा हे ,लेकिन इनके अतिरिक्त भी शिव के अनेक मंदिर में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विराजमान होकर संसार का कल्याण कर रहे हैं। हमारे देश में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त शिव के कुछ प्रमुख पूजाग्रह इस प्रकार रहे हैं।
तमिलनाडु के शिव कांची क्षेत्र में एकमेश्वर नामक शिव केन्द्र, केरल प्रदेश मेंतिरूचनापल्ली में श्रीरन्नम् से पांच मील दूर जम्बूकेश्वर शिवलिंग, नेपाल केकाठमाण्डू में बागमती नदी के दक्षिणी तट पर विराजमान पशुपतिनाथ, बांग्लादेश के चटगांव स्थित चंद्रमूर्तिकार चंद्रनाथ शिव, उत्तरप्रदेश के प्रयोग स्थित नीळकठेश्वरशिव, बिठूर स्थित मधुरेश्वर, वृंदावन स्थित गोपीश्वर शिव, उत्तरांचल में भीमताल स्थित भीमेश्वर महादेव, कर्णप्रयाग स्थित महामृत्युंजय महादेव हरिद्वार स्थितबिल्वेश्वर शिवलिंग, कनखल स्थित दक्षेश्वर शिव, हिमाचल में स्थित मणिकर्णस्थित मणीकर्णेश्वर, मण्डी स्थित बिजली महादेव और नीकण्ठ महादेव, मणिमहेश, कैलाश मानसरोवर स्थित हिम निर्मित अमरनाथ, पूंछ स्थित शिवखेड़ीमहादेव, राजस्थान के पुष्कर स्थित पुस्ववर महादेव .. आदि आदि अनंत
और भी अनेक अनगिनत देश - विदेश और प्रादेशिक मान्यता अनुसार शिव आराधन के प्रकार भक्तो में प्रचलित हे | बस भोले होकर भोले का आराधन इतना ही पार्यप्त हे |
हर कंकर में शंकर ...हर हर महादेव ...जय हो .
भगवान शिव ही एकमात्र आदि स्वयंभू देव हैं, जिन्हें लींग स्वरुप में पूजने से पहले प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं रहती। पार्थिव शिवलिंग तो स्वत: ही चेतना संपन्न होते है पूजने से पहले किसी तरह की प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
भगवान शिव के जितने रूप और उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव की प्रतिष्ठा पूरे संसारमें ही फैली हुई है।
उनके विविध रूपों को पूजने का आदि काल से ही प्रचलन रहा है।
शिव के मंदिर अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील, तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका, चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा,सुमात्रा तक हर जगह पाए गए हैं।
ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनसमंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था। यूरोपियन फणिश और इबरानीजाति के पूर्वज बालेश्वर लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप मेंउल्लेख हुआ है।चाहे नाम अलग हो .. स्वरुप में थोडा फर्क हो पूजन - विधि विधान के नियम अलग ..शिव की महिमा तो अनंत और अपार |
भगवान शिव के रूप में
परमात्मा के ब्रह्मा और विष्णु रूप को समझना और उन्हें आत्मसात करना तो सहज है, परंतु उनके शिव रूप को पूर्णतः आत्मसात करना अत्यधिक मुश्किल है,क्योंकि शिव रूप में उनके रूप, श्रंगार, शक्तियों और अवतारों में इतनी विशिष्टता एवं विरोधाभास बना रहा है कि उन्हें अनगिनत नामों की उपाधियां प्रदान की जाती रही।
उनहें मान्यता तो [ रूद्र - भेरव ] संहारक और विध्वंसक देव की दी गई,
लेकिन उन्हें आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव),
परमशिव (समस्त जगत का कल्याण करने वाले देव),
रूद्र (मृत्यु के मुंह से निकाल लेने वाला),
ओघड़ (गुण, रस,राग, दोष रहित),
ओघड़दानी, श्मशानवासी, कापालिक, पिनाक्षी, विरूपाक्ष,दिगंबर ,अर्धनारेश्वर
जैसे अनगिनत नामों की मान्यता भी दी गई। शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं,जिन्होंने देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र से प्राप्त हुए विष को स्वयं अपने कण्ठ में धारण कर लिया और स्वयं नीलकण्ठ कहलाए।
शास्त्रों में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के साथ-साथ पंचानन शिव, अष्टमुखी शिव, अर्धनरेश्वर , मृत्युंजय शिव, दक्षिणाभिमुख शिव, हरिहर शिव ,पशुपतिनाथ से लेकर नटराज तक अनगिनत रूपों में मान्यता प्रदान की है। भक्त जीस भाव से यजन करे वही स्वरुप शिव धारण कर लेते हे |
शिव ही एकमात्र देव हैं, जिन्हें पूजने से पहले प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं रहती।
पार्थिव शिवलिंग तो स्वतः ही चेतना संपन्न होते हैं और उन्हें पूजन से पहले किसी तरह की
प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे मृतिका या बालू से निर्मित शिवलिंगों को कहीं भी, किसी मंदिर, वन क्षेत्र, पहाड़, गुफा से लेकर नदी , सरोवर , समुद्र तट ,शमशान भूमि तक, किसी चबूतरे अथवा वृक्ष के नीचे स्थापित करके या घर में ही पूजा जा सकता है और उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। इसी तरह शिव की उपासना के लिए किसी प्रकार की विशिष्ट सामग्री आदि की जरुरत नहीं होती।
उन्हें तो फल, फूल, बिल्व पत्र आदि समर्पित करना ही पर्याप्त होता है और अगर वह भी
सुलभ नहीं हो पाए,तो शिव को रिझाने के लिये केवल एक लोटा पानी से ही काम चल जाता है।
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप या शिव मानस पूजा ही पर्याप्त हे |
भगवान अपने शिव भक्तों की करूणा पुकार, शीघ्र सुनते हैं और तत्काल ही अपनी कृपा दृष्टि प्रदान करके अपने आशीर्वाद स्वरूप उनके समस्त दुखों को हर लेते हैं।शिव महिमा की ऐसी अनुभूतियां - शिव अनुकंपा अनेको साधकों - भक्तो को को समय-समय पर मिलती रही हैं।
शिवोपासना का प्रसिद्ध महामंत्र है महामृत्यंजय मंत्र। इस अकेले मंत्र के विविध अनुष्ठानों के द्वारा ही न केवल अपमृत्यु का ही निवारण होता देखा गया है, बल्किलंबे समय से परेशान करती आ रही लाइलाज बीमारियों से भी सहज ही मुक्तिमिलते देखी गई है, यहां तक कि इस महामंत्र के अनुष्ठान से साधक की समस्त अभीष्ट मनोकामनाएं भी सहज ही पूर्ण हो जाती है।
इस महामृत्युंजय मंत्र के द्वाराघोर विपत्तियों में फंसे, मुकदमेबाजी में उलझे, कर्ज से दबे हुए लोगों को कुछ ही समय में राहत देखी गई है। इस महामृत्युंजय मंत्र के दो रूप हैं वेदोक्त और पुराणोक्त जिनके अनुष्ठान के अलग- अलग कर्मकांड एवं विधान हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं अन्य मुख्य लिंग
शिव पूजा द्वारश ज्योतिर्लिंग की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि इन ज्योतिर्लिंग में स्वयं उमाशंकर महादेव मां पार्वती के साथ सदैव विराजमान रहते हैं। इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही शिव कृपा की प्राप्ति हो जाती है। अगर इन सिद्धी स्थलों पर पूर्ण भक्ति से शिव मंत्रों या शिव स्त्रोत आदि का पाठ किया जाए, तो शिव निश्चित ही अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हैं और उसे सहस्त्रों समस्याओं से निकाल सकते हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की तो बहुत मान्यता रही है, अनंत महिमा हे ,लेकिन इनके अतिरिक्त भी शिव के अनेक मंदिर में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विराजमान होकर संसार का कल्याण कर रहे हैं। हमारे देश में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त शिव के कुछ प्रमुख पूजाग्रह इस प्रकार रहे हैं।
तमिलनाडु के शिव कांची क्षेत्र में एकमेश्वर नामक शिव केन्द्र, केरल प्रदेश मेंतिरूचनापल्ली में श्रीरन्नम् से पांच मील दूर जम्बूकेश्वर शिवलिंग, नेपाल केकाठमाण्डू में बागमती नदी के दक्षिणी तट पर विराजमान पशुपतिनाथ, बांग्लादेश के चटगांव स्थित चंद्रमूर्तिकार चंद्रनाथ शिव, उत्तरप्रदेश के प्रयोग स्थित नीळकठेश्वरशिव, बिठूर स्थित मधुरेश्वर, वृंदावन स्थित गोपीश्वर शिव, उत्तरांचल में भीमताल स्थित भीमेश्वर महादेव, कर्णप्रयाग स्थित महामृत्युंजय महादेव हरिद्वार स्थितबिल्वेश्वर शिवलिंग, कनखल स्थित दक्षेश्वर शिव, हिमाचल में स्थित मणिकर्णस्थित मणीकर्णेश्वर, मण्डी स्थित बिजली महादेव और नीकण्ठ महादेव, मणिमहेश, कैलाश मानसरोवर स्थित हिम निर्मित अमरनाथ, पूंछ स्थित शिवखेड़ीमहादेव, राजस्थान के पुष्कर स्थित पुस्ववर महादेव .. आदि आदि अनंत
और भी अनेक अनगिनत देश - विदेश और प्रादेशिक मान्यता अनुसार शिव आराधन के प्रकार भक्तो में प्रचलित हे | बस भोले होकर भोले का आराधन इतना ही पार्यप्त हे |
हर कंकर में शंकर ...हर हर महादेव ...जय हो .