23 जनवरी, 2011

पिता जी की डायरी से....




पिता जी की डायरी से....

हाय भगवन क्या, दिखाया शांति मन में ,
शांति मन में विक्रांति लाकर .
सरज का नव पुष्प कोमल , 
अग्नि ज्वाला में फसाकर,
वेड ही दिवस महिना ,
श्वेत ही वर्ण था निशा का,
शास्त्र ही दिन शेष था.
सूर्य था पश्चिम दिशा का.
उत्साह का उस दिन था पहरा ,
नयन सबही के खिले थे.
एक वर वधु के व्याह में ,
दर्शक बने मन मुग्ध होंगे ,
कला और विज्ञानं,
 सब के चित्त की चोरी करेंगे
आनंद की सरिता बहेगी .
भाव मेरी भी तरंगित ,
आश में ही पल चुकी थी .
नयन की अर्जी से पहले,
मन की मर्जी मिल चुकी थी.
पाँव मेरे चल पड़े थे ,
छोड़ मन को एक किनारे ,
अनजान ही कुछ कर रहे कर,
प्राप्त नयनों के सहारे .
गुथा गए कर जा कहीं पर,
दिल ये दौड़ा था छुड़ाने .
हर गयी उसकी भी ताकत ,
कर न कुछ पाया न जाने .
हाय खंडित हो चला सब ,
मौत के द्वारे खड़ा था,
हाथ में विद्युत् पड़ी थी ,
आह भर वेवस पड़ा था.
एक भी छन भी न बीता ,
 छीन  सब कुछ ले लिया था.
जिंदगी के प्यार में ,
मुझको महा गम दे दिया था.
देख कर मेरी दशा ,
विधि ने दया मुझ पर दिखाया .
हाथ कम्पित से फिसल कर ,
ज्वाल खुद ही निम्न आया.
दोष मैं किसका बताऊँ ,
रंज मालिक हो गए थे .
बात हम सब कुछ समझ कर ,
उस समय में सो गए थे.
--अवधेश कुमार तिवारी 

21 जनवरी, 2011

TIWARI / TRIPATHI



Tiwari / Tripathi ( तिवारी/ त्रिपाठी )

In Tiwari or Tripathi or Tripedi (Ti or Tri: All the three and wari or pathi or pedi means versed, thus Tiwari/Tripathi/Tripedi means versed in knowledge of past, present and future). Another description of Tiwari or Tripathi or Tripedi (Ti or Tri means three and wari or path or pedi means person who is having the virtues of God's three forms, Brahma, Vishnu and Mahesh, which represent life's three stages, birth, life and death. Thus Tiwari/Tripathi/Tripedi means knowledgeable priest, who is versed in the life's three stages).

Tiwari / Tripathi is a Hindu Brahmin surname found mostly in the Northern and Central parts of India and Nepal. Its other forms are Tewari, Tewary, Tiwary, Tewaree, and Tewarey. It is derived from Trivedi which literally means "versed in three vedas".

 While Tiwari is common in the states Uttar Pradesh,Delhi,Uttarakhand,Bihar,Madhya Pradesh and Rajasthan, Tripathi is used in (in addition to these states)in Orissa, Gujarat, Andhra Pradesh and Maharastra. The density of Tiwari (and Tripathi) is more among Saryupareen Brahminss,Kanyakubja Brahminss, Bhumihar Brahmins,Maithil Brahmins,and Utkala Brahmins .

Tiwari's refers to those Brahmins in Vedic age who used to do all rituals in a Vedic ceremony instead of any specific one. It is one of the most widespread Brahmin surnames in the fertile Gangetic plain region and in the Indian states of Uttar Pradesh,Delhi, Orissa, Bihar,Uttarakhand, Madhya Pradesh, Rajasthan, Assam and West Bengal. It is also found in countries such as Guyana and Trinidad and Tobago, due to migration owing to agricultural/plantation employment. The surname is also found in Nepal, Fiji and Mauritius, as well as in other Indian diaspora communities. They have historically been martial Brahmins as well, and due to their involvement in the uprising against the British in the First War of Indian Independence in 1857, when many of the ranks which followed Mangal Pandey,[Chandrashekhar Azad ]](Chandrashekhar Sitaram Tiwari) in his rebellion were composed of Brahmins from the agricultural regions of Eastern Uttar Pradesh and Bihar. Due to this they were not declared a martial race like Mohyals due to their ardent support for the Indian independence movement and rebellion against the British Raj. Tiwari's were therefore devoid of the support from the newly formed Indian government. Historically, Tiwaris have always fulfilled their religious duties and had great knowledge of the Vedas and other holy texts. However presently the majority are engaged in more secular vocations. Historians believe that Tiwaris were traditional farmers sometimes with a strong connection with the original Indo-European tribe which inhabited the Great Gangetic plains.

17 जनवरी, 2011

बीरबल की पैनी दृष्टि

बीरबल की पैनी दृष्टि :: अकबर-बीरबल के किस्से

बीरबल बहुत नेक दिल इंसान थे। वह सैदव दान करते रहते थे और इतना ही नहीं, बादशाह से मिलने वाले इनाम को भी ज्यादातर गरीबों और दीन-दुःखियों में बांट देते थे, परन्तु इसके बावजूद भी उनके पास धन की कोई कमी न थी। दान देने के साथ-साथ बीरबल इस बात से भी चौकन्ने रहते थे कि कपटी व्यक्ति उन्हें अपनी दीनता दिखाकर ठग न लें।

ऐसे ही अकबर बादशाह ने दरबारियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई कि देखें कि सच्चे दीन दुःखियों की पहचान बीरबल को हो पाती है या नही। बादशाह ने अपने एक सैनिक को वेश बदलवाकर दीन-हीन अवस्था में बीरबल के पास भेजा कि अगर वह आर्थिक सहायता के रूप में बीरबल से कुछ ले आएगा, तो अकबर की ओर से उसे इनाम मिलेगा।


एक दिन जब बीरबल पूजा-पाठ करके मंदिर से आ रहे थे तो भेष बदले हुए सैनिक ने बीरबल के सामने आकर कहा, “हुजूर दीवान! मैं और मेरे आठ छोटे बच्चे हैं, जो आठ दिनों से भूखे हैं....भगवान का कहना है कि भूखों को खाना खिलाना बहुत पुण्य का कार्य है, मुझे आशा है कि आप मुझे कुछ दान देकर अवश्य ही पुण्य कमाएंगे।”


बीरबल ने उस आदमी को सिर से पांव तक देखा और एक क्षण में ही पहचान लिया कि वह ऐसा नहीं है, जैसा वह दिखावा कर रहा है।

बीरबल मन ही मन मुस्कराए और बिना कुछ बोले ही उस रास्ते पर चल पडे़ जहां से होकर एक नदी पार करनी पड़ती थी। वह व्यक्ति भी बीरबल के पीछे-पीछे चलता रहा। बीरबल ने नदी पार करने के लिए जूती उतारकर हाथ में ले ली। उस व्यक्ति ने भी अपने पैर की फटी पुरानी जूती हाथ में लेने का प्रयास किया।


बीरबल नदी पार कर कंकरीले मार्ग आते ही दो-चार कदम चलने के बाद ही जूती पहन लेता। बीरबल यह बात भी गौर कर चुके थे कि नदी पार करते समय उसका पैर धुलने के कारण वह व्यक्ति और भी साफ-सुथरा, चिकना, मुलायम गोरी चमड़ी का दिखने लगा था इसलिए वह मुलायम पैरों से कंकरीले मार्ग पर नहीं चल सकता था।

“दीवानजी! दीन ट्टहीन की पुकार आपने सुनी नहीं?” पीछे आ रहे व्यक्ति ने कहा।


बीरबल बोले, “जो मुझे पापी बनाए मैं उसकी पुकार कैसे सुन सकता हूँ? ”

“क्या कहा? क्या आप मेरी सहायता करके पापी बन जांएगे?”

“हां, वह इसलिए कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे का जन्म होने से पहले ही भगवान उसके भोजन का प्रबन्ध करते हुए उसकी मां के स्तनों में दूध दे देता है, उसके लिए भोजन की व्यव्स्था भी कर देता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान इन्सान को भूखा उठाता है पर भूखा सुलाता नहीं है। इन सब बातों के बाद भी तुम अपने आप को आठ दिन से भूखा कह रहे हो। इन सब स्थितियों को देखते हुए यहीं समझना चाहिये कि भगवान तुमसे रूष्ट हैं और वह तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भूखा रखना चाहते हैं लेकिन मैं उसका सेवक हूँ, अगर मैं तुम्हारा पेट भर दूं तो ईश्वर मुझ पर रूष्ट होगा ही। मैं ईश्वर के विरूध्द नहीं जा सकता, न बाबा ना! मैं तुम्हें भोजन नहीं करा सकता, क्योंकि यह सब कोई पापी ही कर सकता है।”

बीरबल का यह जबाब सुनकर वह चला गया।


उसने इस बात की बादशाह और दरबारियों को सूचना दी।

बादशाह अब यह समझ गए कि बीरबल ने उसकी चालाकी पकड़ ली है।

गले दिन बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम्हारे धर्म-कर्म की बड़ी चर्चा है पर तुमने कल एक भूखे को निराश ही लौटा दिया, क्यों?”

“आलमपनाह! मैंने किसी भूखे को नहीं, बल्कि एक ढोंगी को लौटा दिया था और मैं यह बात भी जान गया हूँ कि वह ढोंगी आपके कहने पर मुझे बेवकूफ बनाने आया था।”

अकबर ने कहा, “बीरबल! तुमनें कैसे जाना कि यह वाकई भूखा न होकर, ढोंगी है?”
“उसके पैरों और पैरों की चप्पल देखकर। यह सच है कि उसने अच्छा भेष बनाया था, मगर उसके पैरों की चप्पल कीमती थी।”

बीरबल ने आगे कहा, “माना कि चप्पल उसे भीख में मिल सकती थी, पर उसके कोमल, मुलायम पैर तो भीख में नहीं मिले थे, इसलिए कंकड क़ी गड़न सहन न कर सके।”

तना कहकर बीरबल ने बताया कि किस प्रकार उसने उस मनुष्य की परीक्षा लेकर जान लिया कि उसे नंगे पैर चलने की भी आदत नहीं, वह दरिद्र नहीं बल्कि किसी अच्छे कुल का खाता कमाता पुरूष है।”


बादशाह बोले, “क्यों न हो, वह मेरा खास सैनिक है।” फिर बहुत प्रसन्न होकर बोले, “सचमुच बीरबल! माबदौलत तुमसे बहुत खुश हुए! तुम्हें धोखा देना आसान काम नहीं है।”

बादशाह के साथ साजिश में शामिल हुए सभी दरबारियों के चेहरे बुझ गए।

रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र





Ram Prasad Bismil (11 June 1897 - 19 December 1927) was an Indian revolutionary who participated in Mainpuri Conspiracy of 1918, and the Kakori conspiracy of 1925, both against British Empire. As well as being a freedom fighter, he was also a patriotic poet and wrote in Hindi and Urdu using the pen names Ram, Agyat and Bismil. But, he became popular with the last name "Bismil" only. He was associated with Arya Samaj where he got inspiration from Satyarth Prakash, a book written by Swami Dayanand Saraswati. He also had a confidential connection with Lala Har Dayal through his guru Swami Somdev, a renowned preacher of Arya Samaj.
Bismil was one of the founder members of the revolutionary organisation Hindustan Republican Association. Bhagat Singh praised him as a great poet-writer of Urdu and Hindi, who had also translated the books Catherine from English and Bolshevikon Ki Kartoot from Bengali. Several inspiring patriotic verses are attributed to him. The famous poem "Sarfaroshi ki Tamanna" is also popularly attributed to him, although some progressive writers have remarked that 'Bismil' Azimabadi actually wrote the poem and Ram Prasad Bismil immortalized it.



रामप्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र



शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -

"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।
आत्मा अमर है जो मनुष्य की तरह वस्त्र धारण किया करती है।"
यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्रो बार भी।
तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।।
हे ईश! भारतवर्ष में, शतवार मेरा जन्म हो।
कारण सदा ही मृत्यु का, देशीय कारक कर्म हो।।
मरते हैं बिस्मिल, रोशन, लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से।
होंगे पैदा सैंकड़ों, उनके रूधिर की धार से।।
उनके प्रबल उद्योग से, उद्धार होगा देश का।
तब नाश होगा सर्वदा, दुख शोक के लव लेश का।।
सब से मेरा नमस्कार कहिए,

तुम्हारा

बिस्मिल"



रामप्रसाद बिस्मिल की शायरी, जो उन्होने कालकोठरी में लिखी और गाई थी,

उसका एकट-एक शब्द आज भी भारतीय जनमानस पर उतना ही असर रखता है जितना

उन दिनो रखता था। बिस्मिल की निम्न शायरी का हर शब्द अमर है:


सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना, बाजुए कातिल में है।।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।।

और:


दिन खून के हमारे, यारो न भूल जाना
सूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।

11 जनवरी, 2011

कबीर की कुंडलियां

कबीर की कुंडलियां-Kabir Ki Kundaliyan

माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर 
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
#
आया है किस काम को किया कौन सा काम
भूल गए भगवान को कमा रहे धनधाम
कमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबारी
झूठ कपट कर जोड़ बने तुम माया धारी
कहते दास कबीर साहब की सुरत बिसारी
मालिक के दरबार मिलै तुमको दुख भारी
#
चलती चाकी देखि के दिया कबीरा रोय
दो पाटन के बीच में साबित बचा न कोय
साबित बचा न कोय लंका को रावण पीसो
जिसके थे दस शीश पीस डाले भुज बीसो
कहिते दास कबीर बचो न कोई तपधारी
जिन्दा बचे ना कोय पीस डाले संसारी
#
कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर 
ना काहू से बैर ज्ञान की अलख जगावे
भूला भटका जो होय राह ताही बतलावे
बीच सड़क के मांहि झूठ को फोड़े भंडा
बिन पैसे बिन दाम ज्ञान का मारै डंडा

07 जनवरी, 2011

Drinking Alcohol and Diabetes

Diabetes, a disease where insulin is not properly produced or used by the body, affects millions of people worldwide. The cause is unknown, and a cure has not been found, but many diabetics try to “control” their disease with a healthy lifestyle.
With that said, can a diabetic drink alcohol?
Drinking Alcohol and Diabetes
A diabetic should never drink alcohol
Alcohol Can Make Some Diabetic Problems Worse
Some people who have diabetes can safely drink moderate amounts of alcohol, but for others any amount of alcohol intake can have very negative health consequences.
There are some circumstances under which diabetics should not drink alcohol in any amount. The key for those with diabetes is to understand what conditions can be worsen if they consume alcohol.
When Drinking Is Harmful
According to the American Diabetes Association, drinking alcohol is a poor choice if diabetics have the following conditions:
Alcohol can damage nerve cells; even light drinking can cause nerve damage. For diabetics with nerve damage drinking can increase the pain, numbness, tingling or burning sensation associated with diabetic nerve damage.
For diabetics with eye disease symptoms, heavy drinking can make the condition worse and heavy drinking is defined as three or more drinks during one day. Diabetics who also have high blood pressure should also not drink alcohol.
Alcohol can also increase the amount of triglycerides in the blood. Even very light drinking, defined as two drinks a week, can increase triglyceride levels. Diabetics who have high triglycerides should not drink alcohol at all.
Risking Low Blood Sugar
Diabetics who take medication -- insulin shots or oral diabetes pills -- run the risk of low blood sugar levels if they drink alcohol.
When blood sugar levels drop, the liver usually begins to produce glucose from stored carbohydrates to compensate. But drinking alcohol blocks the liver's ability to produce glucose.
The liver treats alcohol as a toxin and works to rid the body of alcohol as quickly as possible. The liver will not produce glucose again until the alcohol has been processed and cleared from the body.
The American Diabetes Association recommends that diabetics never drink on an empty stomach in order to protect themselves from low blood sugar -- drinking only after a meal or a snack.
The association also recommends that diabetics who have had something to drink check their blood sugar before going to sleep. And "eat a snack before you retire to avoid a low blood sugar reaction while you sleep."
How Much Alcohol Is Okay?
Diabetics taking medication to control blood sugar levels should first ask their doctor if it is okay to drink alcohol with their specific medication.
For those taking medication, it is recommended to limit alcohol intake to one drink for women and two drinks for men. Even two ounces of alcohol can interfere with the liver's ability to produce glucose.
Because exercise can also decrease blood sugar levels -- because the liver takes glucose from the blood and sends it to the muscles -- drinking immediately following exercise is not recommended.
For diabetics trying to control weight gain, drinking alcohol is not a wise choice. Alcohol quickly adds calories to the diet without adding any nutritional value. Even two light beers can add 200 calories.
For type 2 diabetics, who control their diabetes with diet and exercise, rather than medication, drinking alcohol is less of a risk factor for low blood sugar.



01 जनवरी, 2011

आत्मकथा --अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल

अमर शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने यह आत्मकथा दिसम्बर १९२७ में गोरखपुर जेल में लिखी थी । उन्हें १९ दिसम्बर १९२७ को फांसी पर लटकाया गया था । गोरखपुर में अपनी जेल की कोठरी में उन्होने अपनी जीवनी लिखनी शुरू की, जो फांसी के केवल तीन दिन पहले समाप्त हुई। १८ दिसम्बर १९२७ को उनकी माँ अपने एक संगी श्री शिव वर्मा के साथ उनसे मिलने आयीं । बिस्मिल ने अपनी जीवनी की हस्तलिखित पांडुलिपि माँ द्वारा लाये गये खाने के बक्से (टिफिन) में छिपाकर रख दी और इसे शिव वर्मा जी को सौंप दिया। शिव वर्मा जी इसे जेल के बाहर लाने में सफल रहे। बाद में श्री भगवतीचरण वर्मा जी ने इन पन्नों को पुस्तक रूप में छपवाया। पता चलते ही ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया और इसकी प्रतियाँ जब्त कर लीं गयीं। सन १९४७ में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद कुछ आर्यसमाजी लोगों ने इस जीवनी को पुन: प्रकाशित कराया।

आत्म-चरित

तोमरधार में चम्बल नदी के किनारे पर दो ग्राम आबाद हैं, जो ग्वालियर राज्य में बहुत ही प्रसिद्ध हैं, क्योंकि इन ग्रामों के निवासी बड़े उद्दण्ड हैं । वे राज्य की सत्ता की कोई चिन्ता नहीं करते । जमीदारों का यह हाल है कि जिस साल उनके मन में आता है राज्य को भूमि-कर देते हैं जिस साल उनकी इच्छा नहीं होती, मालगुजारी देने से साफ इन्कार कर जाते हैं । यदि तहसीलदार या कोई और राज्य का अधिकारी आता है तो ये जमींदार बीहड़ में चले जाते हैं और महीनों बीहड़ों में ही पड़े रहते हैं । उनके पशु भी वहीं रहते हैं और भोजनादि भी बीहड़ों में ही होता है । घर पर कोई ऐसा मूल्यवान पदार्थ नहीं छोड़ते जिसे नीलाम करके मालगुजारी वसूल की जा सके । एक जमींदार के सम्बंध में कथा प्रचलित है कि मालगुजारी न देने के कारण ही उनको कुछ भूमि माफी में मिल गई । पहले तो कई साल तक भागे रहे । एक बार धोखे से पकड़ लिये गए तो तहसील के अधिकारियों ने उन्हें बहुत सताया । कई दिन तक बिना खाना-पानी के बँधा रहने दिया । अन्त में जलाने की धमकी दे, पैरों पर सूखी घास डालकर आग लगवा दी । किन्तु उन जमींदार महोदय ने भूमि-कर देना स्वीकार न किया और यही उत्तर दिया कि ग्वालियर महाराज के कोष में मेरे कर न देने से ही घाटा न पड़ जायेगा । संसार क्या जानेगा कि अमुक व्यक्‍ति उद्दंडता के कारण ही अपना समय व्यतीत करता है । राज्य को लिखा गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि उतनी भूमि उन महाशय को माफी में दे दी गई । इसी प्रकार एक समय इन ग्रामों के निवासियों को एक अद्‍भुत खेल सूझा । उन्होंने महाराज के रिसाले के साठ ऊँट चुराकर बीहड़ों में छिपा दिए । राज्य को लिखा गया; जिस पर राज्य की ओर से आज्ञा हुई कि दोनों ग्राम तोप लगाकर उड़वा दिए जाएँ । न जाने किस प्रकार समझाने-बुझाने से वे ऊँट वापस किए गए और अधिकारियों को समझाया गया कि इतने बड़े राज्य में थोड़े से वीर लोगों का निवास है, इनका विध्वंस न करना ही उचित होगा । तब तोपें लौटाईं गईं और ग्राम उड़ाये जाने से बचे । ये लोग अब राज्य-निवासियों को तो अधिक नहीं सताते, किन्तु बहुधा अंग्रेजी राज्य में आकर उपद्रव कर जाते हैं और अमीरों के मकानों पर छापा मारकर रात-ही-रात बीहड़ में दाखिल हो जाते हैं । बीहड़ में पहुँच जाने पर पुलिस या फौज कोई भी उनका बाल बाँका नहीं कर सकती । ये दोनों ग्राम अंग्रेजी राज्य की सीमा से लगभग पन्द्रह मील की दूरी पर चम्बल नदी के तट पर हैं । यहीं के एक प्रसिद्ध वंश में मेरे पितामह श्री नारायणलाल जी का जन्म हुआ था । वह कौटुम्बिक कलह और अपनी भाभी के असहनीय दुर्व्यवहार के कारण मजबूर हो अपनी जन्मभूमि छोड़ इधर-उधर भटकते रहे । अन्त में अपनी धर्मपत्‍नी और दो पुत्रों के साथ वह शाहजहाँपुर पहुँचे । उनके इन्हीं दो पुत्रों में ज्येष्‍ठ पुत्र श्री मुरलीधर जी मेरे पिता हैं । उस समय इनकी अवस्था आठ वर्ष और उनके छोटे पुत्र - मेरे चाचा (श्री कल्याणमल) की उम्र छः वर्ष की थी । इस समय यहां दुर्भिक्ष का भयंकर प्रकोप था ।

 

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...