16 जून, 2012

घाघ की कहावतें !!!





घाघ की कहावतें !!!

बचपन में अपने बुजुर्गों से  भिन्न भिन्न अवसरों पर भिन्न भिन्न घाघ की कहावतें सुना करता था । घाघ का अनुभव पर आधारित गूढ़ ज्ञान निश्चय ही अचंभित करने वाला था। जब भी मौसम में कुछ बदलाव प्रतीत होता था , हमारे पूज्य पितामह पंडित सीता राम तिवारी घाघ की कोई न कोई कहावत सुना देते थे ,लोग सहज ही भविष्य का अनुमान लगा लेते थे।बाल्य काल में अल्प बुद्धि के कारन बातें तो समझ में नहीं आती थीं , लेकिन लगता था कुछ बात जरूर है, बहुत अच्छा लगता था.
आज के समय में टीवी व रेडियो पर मौसम संबंधी जानकारी मिल जाती है। लेकिन सदियों पहले न टीवी-रेडियो थे, न सरकारी मौसम विभाग। ऐसे समय में महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करते आयी हैं। बिहार व उत्‍तरप्रदेश के गांवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहां वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्‍य साबित होती हैं।
शहंशाह अकबर के दरबार के शान घाघ विद्वान पुरुष थे. घाघ अपनी कहावतों के लिए प्रसिद्ध हैं. घाघ ने मानव जीवन के अनुभवों का सूक्ष्म निरीक्षण कर बहुत सी प्रासंगिक बातें अपनी कहावतों के रूप में कहीं जो समाज में चलती रहीं. घाघ के द्वारा कही गई बहुत सी कहावतें आज भी विज्ञान सम्मत और सही प्रतीत होती हैं.
घाघ के कृषिज्ञान का पूरा पूरा परिचय उनकी कहावतों से मिलता है। उनका यह ज्ञान खादों के विभिन्न रूपों, गहरी जोत, मेंड़ बाँधने, फसलों के बोने के समय, बीज की मात्रा, दालों की खेती के महत्व एवं ज्योतिष ज्ञान, शीर्षकों के अंतर्गत विभाजित किया जा सकता है।
स्वास्थ्य  एवं  सामान्य ज्ञान


1 रहै निरोगी जो कम खाय
बिगरे न काम जो गम खाय

2 प्रातकाल खटिया ते उठि के पियइ तुरते पानी

कबहूँ घर में वैद न अइहैं बात घाघ के जानी

3 मार के टरि रहू

खाइ के परि रहू

4 ओछे बैठक ओछे काम

ओछी बातें आठो जाम
घाघ बताए तीनो निकाम
भूलि न लीजे इनकौ नाम

5 ना अति बरखा ना अति धूप

ना अति बक्ता न अति चूप

6 माघ-पूस की बादरी और कुवारा घाम

ये दोनों जो कोऊ सहे करे पराया काम

7 चींटी संचय तीतर खाय

पापी को धन पर ले जाय

8 धान पान अरू केरा

तीनों पानी के चेरा

9 बाड़ी में बाड़ी करे करे ईख में ईख

वे घर यों ही जाएंगे सुने पराई सीख

10 जेकर खेत पड़ा नहीं गोबर

वही किसान को जानो दूबर

11 जेठ मास जो तपे निरासा

तो जानो बरखा की आसा

12 दिन में गरमी रात में ओस

कहे घाघ बरखा सौ कोस

कृषि
**-**

घाघ का अभिमत था कि कृषि सबसे उत्तम व्यवसाय है, जिसमें किसान भूमि को स्वयं जोतता है :
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान।1।
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै।2।
उत्तम खेती जो हर गहा, मध्यम खेती जो सँग रहा।3।

अथवा-


जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी।1।

खादों के संबंध में घाघ के विचार अत्यंत पुष्ट थे। उन्होंने गोबर, कूड़ा, हड्डी, नील, सनई, आदि की खादों को कृषि में प्रयुक्त किए जाने के लिये वैसा ही सराहनीय प्रयास किया जैसा कि 1840 ई. के आसपास जर्मनी के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक लिबिग ने यूरोप में कृत्रिम उर्वरकों के संबंध में किया था। घाघ की निम्नलिखित कहावतें अत्यंत सारगर्भित हैं :

खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत।5।

गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै।6।

सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै।7।


गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली।8।


वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा 9।

घाघ ने गहरी जुताई को सर्वश्रेष्ठ जुताई बताया। यदि खाद छोड़कर गहरी जोत कर दी जाय तो खेती को बड़ा लाभ पहुँचता है :

छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई।10।


बांध न बाँधने से भूमि के आवश्यक तत्व घुल जाते और उपज घट जाती है। इसलिये किसानों को चाहिए कि खेतों में बाँध अथवा मेंड़ बाँधे,

सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी
जो पचास का सौ न तुलै, दव घाघ को गारी।11।

घाघ ने फसलों के बोने का उचित काल एवं बीज की मात्रा का भी निर्देश किया है। उनके अनुसार प्रति बीघे में पाँच पसेरी गेहूँ तथा जौ, छ: पसेरी मटर, तीन पसेरी चना, दो सेर मोथी, अरहर और मास, तथा डेढ़ सेर कपास, बजरा बजरी, साँवाँ कोदों और अंजुली भर सरसों बोकर किसान दूना लाभ उठा सकते हैं। यही नहीं, उन्होंने बीज बोते समय बीजों के बीच की दूरी का भी उल्लेख किया है, जैसे घना-घना सन, मेंढ़क की छलांग पर ज्वार, पग पग पर बाजरा और कपास; हिरन की छँलाग पर ककड़ी और पास पास ऊख को बोना चाहिए। कच्चे खेत को नहीं जोतना चाहिए, नहीं तो बीज में अंकुर नहीं आते। यदि खेत में ढेले हों, तो उन्हें तोड़ देना चाहिए।

आजकल दालों की खेती पर विशेष बल दिया जाता है, क्योंकि उनसे खेतों में नाइट्रोजन की वृद्धि होती है। घाघ ने सनई, नील, उर्द, मोथी आदि द्विदलों को खेत में जोतकर खेतों की उर्वरता बढ़ाने का स्पष्ट उल्लेख किया है। खेतों की उचित समय पर सिंचाई की ओर भी उनका ध्यान था। घाघ को खेती के साथ-साथ लोक समाज की व्यावहारिक बातों का भी बहुत अच्छा ज्ञान था। उनकी कहावतें लोकजीवन में आज भी लोगों की जवान पर रहती हँ I

ज्योतिष ज्ञान पर आधारित  मौसम -भविष्य वाणी ...
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।

यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।

यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।

यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।

यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।

यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी।
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे।
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।

यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी। कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज।
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।

यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।

सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात।
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।

यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त विनासै।
गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै तृनौ सहूतो।
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।

यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।।

आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।

२१ शताब्दी में जन्मे बच्चे अवश्य इस पर आश्चर्य करेंगे और उन्हें अपने महान पूर्वजों के ज्ञान और अनुभव पर गर्व भी होगा ।आवश्यकता है भोजपुरी भाषा और साहित्य को उचित सम्मान मिले तथा पद्य क्रमों के माध्यम से उन्हें अवगत कराया जाय , इसका बिलुप्त होना हम सब के लिए बड़े दुःख की बात होगी ।





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