30 सितंबर, 2023

क्षणभंगुर : पद्म भूषण श्री पंडित रामकिंकर उपाध्याय जी महार...

क्षणभंगुर : पद्म भूषण श्री पंडित रामकिंकर उपाध्याय जी महार...: पद्म  भूषण श्री पंडित  रामकिंकर  उपाध्याय  जी महाराज   - मानस मर्मज्ञ वर्ष  1984 में बिरला मंदिर , नयी दिल्ली के प...

शमी - Prosopis spicigera.


अति प्रसन्न शमी बृक्ष की दिव्य छटा......











शमी - Prosopis spicigera.


Shami trees are planted for checking desertification, and stabilization of sand dunes.These trees are also planted for the reclamation of land.Shami is a rare medicinal tree and it can grow in very harsh climatic
conditions, and in poor or degraded soil. Roots of shami can grow down as deep as 35 meters in search of water.Being a Legume, it adds nitrogen to the soil and increases its fertility.
Shami the sacred plant is the beloved tree of Lord Rama & the protector of the arms of Pandavas during their one year long "Agyaat Vaas". Shami protects human beings from the bad forces of Shani, and the symbol of victory in all walks of life … Shami samyate papam …”,
Ayurvedic Uses:Shami is an important medicinal plant. Ayurveda recommends it for the treatment of a number of ailments and iseases like mental disorder, Schizophrenia, respiratory tract infection, excessive heat, herpes, loose motion, leucorrhoea etc. but different parts of the plant are used for different purposes.
The extract of leaves of shami tree has been reported to kill intestinal parasitic worms. Its extract is reported to be useful in the treatment of leprosy also.The methanolic extract of shami leaves has anti-inflamatory activities.The pods and roots of the plant have been reported to possess astringent properties, and are used for the treatment of dysentery. Flowers of shami when mixed with sugar, are eaten by women during pregnancy as a safeguard against miscarriage.
The bark of SHAMI is used in Ayurvedic formulations for its medicinal benefits in ailments like: Diarrhea, Anorexia, Piles, Rheumatoid Arthritis, Asthma, Chronic cough & minor Skin diseases. Pods are indicated un Uro-genital conditions.









माता पार्वती ने शमी वृक्ष की महत्ता पर विस्तार से बताने को कहा तो भगवान शिव ने कहा- दुर्योधन ने पांडवों को इस शर्त पर वनवास दिया था कि वे बारह वर्ष प्रकट रूप से वन में घूमें, लेकिन एक वर्ष पूरी तरह से अज्ञातवास में रहें। और अज्ञातवास के दौरान अगर पांडवों का परिचय किसी ने जान लिया तो फिर से उन्हें 12 साल का वनवास भोगना होगा। इस अज्ञातवास के दौरान ही अर्जुन ने शमी वृक्ष पर अपने धनुष और बाण रख थे। राजा विराट के यहां बृहन्नला के रूप में रह रहे अर्जुन दुर्योधन के नेतृत्व में आए कौरवों से गायों की रक्षा के लिए राजा विराट के पुत्र उत्तर के सारथी बने और उस समय शमी वृक्ष से अपने धनुष और बाण उतारे। उत्तर को विश्वास दिलाया कि वह ही अर्जुन है। शमी ने तब तक देवता की तरह अपने खोल में उनके धनुष और बाण की पूरी तरह से रक्षा की। ऐसे ही शमी वृक्ष की पूजा जब भगवान राम ने की तो शमी ने कहा- आपकी विजय होगी। दशहरे के दिन शमी वृक्ष का पूजन राजाओं द्वारा किया जाता है। घर के ईशान कोण में विराजमान शमी का वृक्ष विशेष लाभकारी माना गया है।


हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

हापुस आम







हापुस आमों की सबसे बेहतरीन किस्म महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में स्थित सिंधुदुर्ग जिले की तहसील देवगढ़ में उगायी जाती है, साथ ही सबसे अच्छे आम सागर तट से 20 किलोमीटर अंदर की ओर स्थित जमीन पर ही उगते हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र का रत्नागिरि जिला, गुजरात के दक्षिणी जिले वलसाड और नवसारी भी हाफूस की पैदावार के लिए प्रसिद्ध हैं।

दर्जन के हिसाब से बिकता है .कोंकण क्षेत्र के हापुस आम की मांग अमेरिका, यूरोप, अरब देशों समेत अफ्रीका व एशिया के कई देशों में है। नासिक के लासलगांव केंद्र की इरेडिएशन मशीन से अमेरिका को करीब 25 हजार दर्जन हापुस आमों का निर्यात हरसाल किया जाता रहा है। पर अब वाशी स्थित रेडियेशन मशीन के लग जाने से निर्यात की मात्रा में दुगुनी से भी अधिक वृद्धि होने की उम्मीद है। वाशी फलमंडी के निदेशक संजय पानसरे का कहना है अमेरिका के लिए निर्यात शुरू हो गया है, पहले हमें लासलगांव जाना पड़ता था लेकिन अब वाशी में ही इस सुविधा के शुरू होने से ज्यादा आम निर्यात किया जा सकेगा। फिलहाल आम महंगा है इसलिए डिमांड कम है, लेकिन अगले हफ्ते तक डिमांड बढ़ने की पूरी उम्मीद है।

हापुस आम या किसी भी अन्य आम या फल तथा सब्जी आदि को खाने योग्य बनाने के लिए उनका निर्जन्तुकरण (इरेडियेशन प्रक्रिया) की जाती है। इस प्रक्रिया से गुजारने के लिए हापुस आमों को मशीन में डाला जाता है। इससे आमों के भीतर मौजूद हर किस्म के कीटाणु व जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में हापुस आम 60 डिग्री सेल्शियस तापमान वाली मशीन से गुजारे जाते हैं। इस दौरान मशीन के भीतर गामा किरणों के विकिरण से आमों के भीतर मौजूद संभावित कीटाणुओं व जीवाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है। इससे हापुस आमों के पकने में भी मदद मिलती है।



Mr.Manoj Joshi.(मनोज जोशी














Discussing Chankya Play ........

Memorable moments with Mr.Manoj Joshi.
Manoj Joshi (मनोज जोशी) is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujarati and Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
Manoj Joshi hails from Adapodara village near Himatnagar in north Gujarat.
 



Manoj Joshi is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujaratiand Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
He acted in TV series including ChanakyaEk Mahal Ho Sapno KaRau (Marathi), SangdilKabhi Souten Kabhi SaheliKhichdi,Mura Raska Mai La (Marathi). He debuted in Sarfarosh (SI Bajju) alongside his brother who played Bala Thakur in the film. His other works include the film Hungama followed by HulchulDhoomBhagam BhagPhir Hera PheriChup Chup KeBhool Bhulaiyaa,[and Billo Barber.
He also portrayed Chanakya in Chakravartin Ashoka Samrat.






मशहूर अभिनेता श्रीराम लागू का 92 साल की उम्र में निधन


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मशहूर अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू (Shriram Lagoo) का वृद्धावस्था से संबंधित बीमारियों के चलते मंगलवार शाम पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी. नाटककार सतीश अलेकर ने बताया, 'मैंने उनके दामाद से बात की. वृद्धावस्था संबंधित बीमारियों के कारण उनका निधन हुआ.'

प्रशिक्षित ईएनटी सर्जन लागू ने विजय तेंदुलकर, विजय मेहता और अरविंद देशपांडे के साथ आजादी के बाद वाले काल में महाराष्ट्र में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी.

बाबा मुन्जेश्वरनाथ,'भौवापार जिला गोरखपुर







बाबा मुन्जेश्वरनाथ,

बाबा मुन्जेश्वरनाथ की नगरी और कभी सतासी राजवंश की राजधानी रही . 'भौवापार जिला गोरखपुर . बताया जाता है कि बाबा मुन्जेश्वरनाथ ने अपने ऊपर आज तक किसी भी प्रकार की छत को नहीं पड़ने दिया। वे पीपल और बरगद के पेड़ की छाया में विराजमान हैं। वैसे तो यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि के दिन यहां काफी भीड़ होती है।
सतासी राजवंश, राजभर राजवंश, स्‍वतंत्रता के पहले और बाद दिए गए भौवापार के लोगों के योगदान
अविस्मरणीय हैं .

पूरी होती है बाबा के धाम में भक्तों की मुराद
मंदिर के पुजारी चंद्रभान गिरी के अनुसार भौवापार के बाबा मुन्जेश्वरनाथ भक्तों द्वारा सच्‍चे मन से मांगी गई हर मुराद को पूरा करते हैं। उन्‍होंने बताया, ''सतासी नरेश राजा मुंज सिंह सहित क्षेत्र के कई अन्य लोगों ने शिवलिंग (गर्भगृह) स्थल पर बाबा को छत के रूप में मंदिर का स्वरुप देने की कई बार कोशिश की। लेकिन बाबा के सिर पर कोई छत टिक नहीं सकी। जब-जब मंदिर बनाया जाता, तब-तब पूरा ढांचा ध्वस्त हो जाता है।''




इस कारण नाम पड़ा मुन्जेश्वरनाथ
भौवापार के ही रहने वाले युवा इतिहासविद डॉ. दानपाल सिंह ने बताया, ''किवदंतियों के अनुसार एक बार मजदूर गर्भ गृह स्थल पर मौजूद मूज (सरपत) को कुदाल से हटा रहे थे। इस बीच एक मजदूर का फावड़ा मूज की जड़ के नीचे पड़े एक पत्थर से टकराया और पत्थर का ऊपरी हिस्सा फावड़े की वार से टूट गया। मजदूर शिवलिंग के आकार के इस पत्थर को वहां से हटाना चाह रहा था, तभी पत्थर में मजदूर को भगवान शिव की छवि दिखाई दी और टूटे स्थल से दूध की धारा बहने लगी। यह देखकर मजदूर काफी डर गया और राजदरबार पहुंचा। उसने सतासी राजा मुंज सिंह को सारी कहानी बताई। मूज से स्वयंभू रूप में निकले और राजा मुंज द्वारा स्थापित किए जाने के कारण ही बाबा का नाम मुन्जेश्वरनाथ धाम पड़ा।

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार 1.  अनहद  नाद :  इस ध्वनि को  अनाहत  कहते हैं। अनाहत अर्थात जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं होती...