11 मई, 2013

भगवान परशुराम



भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम माने जाते हैं। भगवान परशुराम के बारे में यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने तत्कालीन अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रियों का 21 बार संहार किया। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान परशुराम ने आखिर 21 बार ही पृथ्वी से क्षत्रिय वंश का नाश क्यों किया? 13 मई को अक्षय तृतीया के साथ मनाई जाने वाली परशुराम जयंती पर जानिए इसी का जवाब देती है एक रोचक पुराण कथा
एक बार भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि के आश्रम में राजा कार्तवीर्य अर्जुन यानी सहस्त्रार्जुन आये। ऋषि जमदग्रि ने देवराज इन्द्र से प्राप्त कामधेनु गाय के अनूठे गुणों की मदद से सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना के लिए भोजन और विश्राम का बंदोबस्त किया। 
कामधेनु के ऐसे विलक्षण गुणों को देखकर सहस्त्रार्जुन को ऋषि के आगे अपना राजसी सुख कम लगने लगा। उसके मन में ऐसी अद्भुत गाय को पाने की लालसा जागी। उसने ऋषि जमदग्नि से कामधेनु को मांगा। किंतु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु को आश्रम के प्रबंधन और जीवन के भरण-पोषण का एकमात्र जरिया बताकर कामधेनु को देने से इंकार कर दिया। इस पर सहस्त्रार्जुन ने क्रोधित होकर ऋषि जमदग्नि के आश्रम को उजाड़ दिया और कामधेनु को ले जाने लगा। तभी कामधेनु सहस्त्रार्जुन के हाथों से छूट कर स्वर्ग की ओर चली गई। 

सहस्त्रार्जुन को खाली लौटना पड़ा। परम तपस्वी जमदग्रि ने अपने संत चरित्र के कारण सहस्त्रार्जुन का कोई विरोध नहीं किया और तप करते रहे। किंतु इस घटना के बाद जब पितृभक्त परशुराम का वहां आना हुआ तो उनकी माता ने सारी बात बताई। परशुराम माता-पिता के अपमान और आश्रम को तहस नहस देखकर आवेशित हो गए। 
पराक्रमी परशुराम ने उसी वक्त दुराचारी सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना का नाश करने का संकल्प लिया। परशुराम अपने परशु अस्त्र को साथ लेकर सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुंचे। जहां सहस्त्रार्जुन और परशुराम का युद्ध हुआ। किंतु परशुराम के प्रचण्ड बल के आगे सहस्त्रार्जुन बौना साबित हुआ। भगवान परशुराम ने दुष्ट सहस्त्रार्जुन की हजारों भुजाएं और धड़ परशु से काटकर कर उसका वध कर दिया। 
सहस्त्रार्जुन के वध के बाद पिता के आदेश से इस वध का प्रायश्चित करने के लिए परशुराम तीर्थ यात्रा पर चले गए। इसी बीच मौका पाकर सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने तपस्यारत ऋषि जमदग्रि का उनके ही आश्रम में सिर काटकर वध कर दिया। 

जब परशुराम तीर्थ से वापिस लौटे तो आश्रम में माता को विलाप करते देखा और माता के समीप ही पिता का कटा सिर और उनके शरीर पर 21 घाव देखे। 
यह देखकर परशुराम बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शपथ ली कि वह हैहय वंश का ही सर्वनाश नहीं कर देंगे बल्कि उसके सहयोगी समस्त क्षत्रिय वंशों का 21 बार संहार कर भूमि को क्षत्रिय विहिन कर देंगे। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान परशुराम ने अपने इस संकल्प को पूरा भी किया। इस भू-लोक से इक्कीस बार क्षत्रियों का नाश कर उनके बहते रक्त से समन्तपंचक क्षेत्र में रक्त कुण्ड बन गए। जिससे उन्होंने अपने पिता का तर्पण भी किया। 
परशुराम द्वारा तत्कालीन दुष्ट और अत्याचारी क्षत्रियों का अंत कर न केवल जगत को उनके आतंक से मुक्त कराया बल्कि इसके द्वारा एक लौकिक संदेश भी दे गए कि किसी भी व्यक्ति और समाज को असत्य, अन्याय और अत्याचार का निर्भय होकर, पुरुषार्थ और पराक्रम के साथ विरोध करना चाहिए। किंतु उसका उद्देश्य साथर्क होना चाहिए।
परशु' प्रतीक है पराक्रम का। 'राम' पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। शास्त्रोक्त मान्यता तो यह है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें आपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित होते हैं, परंतु मेरी मौलिक और विनम्र व्याख्या यह है कि 'परशु' में भगवान शिव समाहित हैं और 'राम' में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए मेरे मत में परशुराम दरअसल 'शिवहरि' हैं।

पिता जमदग्नि और माता रेणुका ने तो अपने पाँचवें पुत्र का नाम 'राम' ही रखा था, लेकिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्ना करके उनके दिव्य अस्त्र 'परशु' (फरसा या कुठार) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए। 'परशु' प्राप्त किया गया शिव से। शिव संहार के देवता हैं। परशु संहारक है, क्योंकि परशु 'शस्त्र' है। राम प्रतीक हैं विष्णु के।

विष्णु पोषण के देवता हैं अर्थात्‌ राम यानी पोषण/रक्षण का शास्त्र। शस्त्र से ध्वनित होती है शक्ति। शास्त्र से प्रतिबिंबित होती है
शांति। शस्त्र की शक्ति यानी संहार। शास्त्र की शांति अर्थात्‌ संस्कार। मेरे मत में परशुराम दरअसल 'परशु' के रूप में शस्त्र और 'राम' के रूप में शास्त्र का प्रतीक हैं। एक वाक्य में कहूँ तो परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का नाम है, संतुलन जिसका पैगाम है।

अक्षय तृतीया को जन्मे हैं, इसलिए परशुराम की शस्त्रशक्ति भी अक्षय है और शास्त्र संपदा भी अनंत है। विश्वकर्मा के अभिमंत्रित दो दिव्य धनुषों की प्रत्यंचा पर केवल परशुराम ही बाण चढ़ा सकते थे। यह उनकी अक्षय शक्ति का प्रतीक था, यानी शस्त्रशक्ति का। पिता जमदग्नि की आज्ञा से अपनी माता रेणुका का उन्होंने वध किया। यह पढ़कर, सुनकर हम अचकचा जाते हैं, अनमने हो जाते हैं, लेकिन इसके मूल में छिपे रहस्य को/सत्य को जानने की कोशिश नहीं करते।



यह तो स्वाभाविक बात है कि कोई भी पुत्र अपने पिता के आदेश पर अपनी माता का वध नहीं करेगा। फिर परशुराम ने ऐसा क्यों किया? इस प्रश्न का उत्तर हमें परशुराम के 'परशु' में नहीं परशुराम के 'राम' में मिलता है। आलेख के आरंभ में ही 'राम' की व्याख्या करते हुए कहा जा चुका है कि 'राम' पर्याय है सत्य सनातन का। सत्य का अर्थ है सदा नैतिक। सत्य का अभिप्राय है दिव्यता। सत्य का आशय है सतत्‌ सात्विक सत्ता।

परशुराम दरअसल 'राम' के रूप में सत्य के संस्करण हैं, इसलिए नैतिक-युक्ति का अवतरण हैं। यह परशुराम का तेज, ओज और शौर्य ही था कि कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का वध करके उन्होंने अराजकता समाप्त की तथा नैतिकता और न्याय का ध्वजारोहण किया। परशुराम का क्रोध मेरे मत में रचनात्मक क्रोध है।

जैसे माता अपने शिशु को क्रोध में थप्पड़ लगाती है, लेकिन रोता हुआ शिशु उसी माँ के कंधे पर आराम से सो जाता है, क्योंकि वह जानता है कि उसकी माँ का क्रोध रचनात्मक है। मेरा यह भी मत है कि परशुराम ने अन्याय का संहार और न्याय का सृजन किया।



10 मई, 2013

Shani Shingnapur







Shani Shingnapur or Shani Shinganapur or Shingnapur or Sonai is a village in the Indian state of Maharashtra. Situated in Nevasa taluka in Ahmednagar district, the village is known for its popular temple of Shani, the Hindu god of the planet (graha) Saturn. Shingnapur is 35 km from Ahmednagar city.
Shingnapur is also famous for the fact that no house in the village has doors, only door frames. Despite this, no theft is reported in the village. Villagers never keep their valuables under lock and key. Villagers believe that the temple is a "jagrut devasthan" (lit. "alive temple"), meaning that the god here is very powerful. They believe that god Shani punishes anyone attempting theft.
The village has a post office and a high school known as Shri Shanishwar Vidya Mandir besides the primary schools run by the Zilla Parishad. The chief source of water supply in the villages is wells.





Unique Features of Shinganapur:


1. No shelter over Shani Maharaj - As per the instructions received from Shani Maharaj himself, there is no roof or temple built over his idol.
2. No doors or locks in houses - The most unique feature in Shingnapur that differentiated this village from any other place in the world is that there are no doors or locks to houses. The villagers firmly believe that Shani Maharaj protects them from thieves and wrong doers and they only have door frames and curtains in the place of doors and locks. There are several stories narrated by local villagers about how nobody in the village would dare to make an attempt to steal other's property and also about how when some outsiders have made an attempt to steal they have been punished by Shani Maharaj.
3. No branches grow over the Moolasthan - There was a neem tree that grew near the Moolasthan but everytime a branch grew near Shani Maharaj it would automatically break and fall down. Few years ago, this tree




शनि मंदिर, शिंग्लापुर
शनि तीर्थ क्षेत्र महाराष्ट्र में ही शनिदेव के अनेक स्थान हैं, पर शनि शिंगणापुर का एक अलग ही महत्व है। यहाँ शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर है परंतु दरवाजा नहीं। वृक्ष है लेकिन छाया नहीं।
मूर्ति
शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। राजनेता व प्रभावशाली वर्गों के लोग यहाँ नियमित रूप से एवं साधारण भक्त हजारों की संख्या में देव दर्शनार्थ प्रतिदिन आते हैं।
 शिंगणापुर गाँव
लगभग तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गाँव में किसी भी घर में दरवाजा नहीं है। कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता। इतना ही नहीं, घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते। ऐसा शनि भगवान की आज्ञा से किया जाता है।
लोग घर की मूल्यवान वस्तुएँ, गहने, कपड़े, रुपए-पैसे आदि रखने के लिए थैली तथा डिब्बे या ताक का प्रयोग करते हैं। केवल पशुओं से रक्षा हो, इसलिए बाँस का ढँकना दरवाजे पर लगाया जाता है।
गाँव छोटा है, पर लोग समृद्ध हैं। इसलिए अनेक लोगों के घर आधुनिक तकनीक से ईंट-पत्थर तथा सीमेंट का इस्तेमाल करके बनाए गए हैं। फिर भी दरवाजों में किवाड़ नहीं हैं। यहाँ दुमंजिला मकान भी नहीं है। यहाँ पर कभी चोरी नहीं हुई। यहाँ आने वाले भक्त अपने वाहनों में कभी ताला नहीं लगाते। कितना भी बड़ा मेला क्यों न हो, कभी किसी वाहन की चोरी नहीं हुई।
शनिवार
शनिवार के दिन आने वाली अमावस को तथा प्रत्येक शनिवार को महाराष्ट्र के कोने-कोने से दर्शनाभिलाषी यहाँ आते हैं तथा शनि भगवान की पूजा, अभिषेक आदि करते हैं। प्रतिदिनप्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहाँ आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर 'लघुरुद्राभिषेक' कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।


शनि शिनगानापुर मंदिर, भगवान शनि को समर्पित है। यह शिर्डी से 65 किमी. दूर है। यह मंदिर जिस गांव में है वहां  के घरों में दरवाजे नहीं है। कहा जाता है कि गांव वालों को अपने देवता शनिश्‍वेर पर भरोसा है कि वह सदैव डकैती और चोरी होने से उनके घर की रक्षा करेगें। यह कहा जाता है कि यदि कोई व्‍यक्ति यहाँ चोरी कर ले तो उसी दिन वह अंधा हो जाता है। भगवान शनि की मूर्ति, बड़े और काले पत्‍थर की बनी हुई है। मंदिर में केवल पुरूष भक्‍तों को पूजा कीअनुमति है।



भक्‍तों को पहले सार्वजनिक बाथरूम में नहाना पड़ता है उसके बाद बिना किसी ऊपरी परिधान के गीली धोती के साथ प्रार्थना करना पड़ता है। शिर्डी में दर्शन करने के बाद यहाँ पर पूजा करना आवश्‍यक होता है। मंदिर, पूजा के लिए सुबह 5 से रात 10 तक खुला रहता है।

Shani Shingnapur







Shani Shingnapur or Shani Shinganapur or Shingnapur or Sonai is a village in the Indian state of Maharashtra. Situated in Nevasa taluka in Ahmednagar district, the village is known for its popular temple of Shani, the Hindu god of the planet (graha) Saturn. Shingnapur is 35 km from Ahmednagar city.
Shingnapur is also famous for the fact that no house in the village has doors, only door frames. Despite this, no theft is reported in the village. Villagers never keep their valuables under lock and key. Villagers believe that the temple is a "jagrut devasthan" (lit. "alive temple"), meaning that the god here is very powerful. They believe that god Shani punishes anyone attempting theft.
The village has a post office and a high school known as Shri Shanishwar Vidya Mandir besides the primary schools run by the Zilla Parishad. The chief source of water supply in the villages is wells.





Unique Features of Shinganapur:


1. No shelter over Shani Maharaj - As per the instructions received from Shani Maharaj himself, there is no roof or temple built over his idol.
2. No doors or locks in houses - The most unique feature in Shingnapur that differentiated this village from any other place in the world is that there are no doors or locks to houses. The villagers firmly believe that Shani Maharaj protects them from thieves and wrong doers and they only have door frames and curtains in the place of doors and locks. There are several stories narrated by local villagers about how nobody in the village would dare to make an attempt to steal other's property and also about how when some outsiders have made an attempt to steal they have been punished by Shani Maharaj.
3. No branches grow over the Moolasthan - There was a neem tree that grew near the Moolasthan but everytime a branch grew near Shani Maharaj it would automatically break and fall down. Few years ago, this tree




शनि मंदिर, शिंग्लापुर
शनि तीर्थ क्षेत्र महाराष्ट्र में ही शनिदेव के अनेक स्थान हैं, पर शनि शिंगणापुर का एक अलग ही महत्व है। यहाँ शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर है परंतु दरवाजा नहीं। वृक्ष है लेकिन छाया नहीं।
मूर्ति
शनि भगवान की स्वयंभू मूर्ति काले रंग की है। 5 फुट 9 इंच ऊँची व 1 फुट 6 इंच चौड़ी यह मूर्ति संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है। यहाँ शनिदेव अष्ट प्रहर धूप हो, आँधी हो, तूफान हो या जाड़ा हो, सभी ऋतुओं में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं। राजनेता व प्रभावशाली वर्गों के लोग यहाँ नियमित रूप से एवं साधारण भक्त हजारों की संख्या में देव दर्शनार्थ प्रतिदिन आते हैं।
 शिंगणापुर गाँव
लगभग तीन हजार जनसंख्या के शनि शिंगणापुर गाँव में किसी भी घर में दरवाजा नहीं है। कहीं भी कुंडी तथा कड़ी लगाकर ताला नहीं लगाया जाता। इतना ही नहीं, घर में लोग आलीमारी, सूटकेस आदि नहीं रखते। ऐसा शनि भगवान की आज्ञा से किया जाता है।
लोग घर की मूल्यवान वस्तुएँ, गहने, कपड़े, रुपए-पैसे आदि रखने के लिए थैली तथा डिब्बे या ताक का प्रयोग करते हैं। केवल पशुओं से रक्षा हो, इसलिए बाँस का ढँकना दरवाजे पर लगाया जाता है।
गाँव छोटा है, पर लोग समृद्ध हैं। इसलिए अनेक लोगों के घर आधुनिक तकनीक से ईंट-पत्थर तथा सीमेंट का इस्तेमाल करके बनाए गए हैं। फिर भी दरवाजों में किवाड़ नहीं हैं। यहाँ दुमंजिला मकान भी नहीं है। यहाँ पर कभी चोरी नहीं हुई। यहाँ आने वाले भक्त अपने वाहनों में कभी ताला नहीं लगाते। कितना भी बड़ा मेला क्यों न हो, कभी किसी वाहन की चोरी नहीं हुई।
शनिवार
शनिवार के दिन आने वाली अमावस को तथा प्रत्येक शनिवार को महाराष्ट्र के कोने-कोने से दर्शनाभिलाषी यहाँ आते हैं तथा शनि भगवान की पूजा, अभिषेक आदि करते हैं। प्रतिदिनप्रातः 4 बजे एवं सायंकाल 5 बजे यहाँ आरती होती है। शनि जयंती पर जगह-जगह से प्रसिद्ध ब्राह्मणों को बुलाकर 'लघुरुद्राभिषेक' कराया जाता है। यह कार्यक्रम प्रातः 7 से सायं 6 बजे तक चलता है।


शनि शिनगानापुर मंदिर, भगवान शनि को समर्पित है। यह शिर्डी से 65 किमी. दूर है। यह मंदिर जिस गांव में है वहां  के घरों में दरवाजे नहीं है। कहा जाता है कि गांव वालों को अपने देवता शनिश्‍वेर पर भरोसा है कि वह सदैव डकैती और चोरी होने से उनके घर की रक्षा करेगें। यह कहा जाता है कि यदि कोई व्‍यक्ति यहाँ चोरी कर ले तो उसी दिन वह अंधा हो जाता है। भगवान शनि की मूर्ति, बड़े और काले पत्‍थर की बनी हुई है। मंदिर में केवल पुरूष भक्‍तों को पूजा कीअनुमति है।



भक्‍तों को पहले सार्वजनिक बाथरूम में नहाना पड़ता है उसके बाद बिना किसी ऊपरी परिधान के गीली धोती के साथ प्रार्थना करना पड़ता है। शिर्डी में दर्शन करने के बाद यहाँ पर पूजा करना आवश्‍यक होता है। मंदिर, पूजा के लिए सुबह 5 से रात 10 तक खुला रहता है।

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