15 जून, 2024

बाबा मुन्जेश्वरनाथ,'भौवापार जिला गोरखपुर







बाबा मुन्जेश्वरनाथ,

बाबा मुन्जेश्वरनाथ की नगरी और कभी सतासी राजवंश की राजधानी रही . 'भौवापार जिला गोरखपुर . बताया जाता है कि बाबा मुन्जेश्वरनाथ ने अपने ऊपर आज तक किसी भी प्रकार की छत को नहीं पड़ने दिया। वे पीपल और बरगद के पेड़ की छाया में विराजमान हैं। वैसे तो यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि के दिन यहां काफी भीड़ होती है।
सतासी राजवंश, राजभर राजवंश, स्‍वतंत्रता के पहले और बाद दिए गए भौवापार के लोगों के योगदान
अविस्मरणीय हैं .

पूरी होती है बाबा के धाम में भक्तों की मुराद
मंदिर के पुजारी चंद्रभान गिरी के अनुसार भौवापार के बाबा मुन्जेश्वरनाथ भक्तों द्वारा सच्‍चे मन से मांगी गई हर मुराद को पूरा करते हैं। उन्‍होंने बताया, ''सतासी नरेश राजा मुंज सिंह सहित क्षेत्र के कई अन्य लोगों ने शिवलिंग (गर्भगृह) स्थल पर बाबा को छत के रूप में मंदिर का स्वरुप देने की कई बार कोशिश की। लेकिन बाबा के सिर पर कोई छत टिक नहीं सकी। जब-जब मंदिर बनाया जाता, तब-तब पूरा ढांचा ध्वस्त हो जाता है।''




इस कारण नाम पड़ा मुन्जेश्वरनाथ
भौवापार के ही रहने वाले युवा इतिहासविद डॉ. दानपाल सिंह ने बताया, ''किवदंतियों के अनुसार एक बार मजदूर गर्भ गृह स्थल पर मौजूद मूज (सरपत) को कुदाल से हटा रहे थे। इस बीच एक मजदूर का फावड़ा मूज की जड़ के नीचे पड़े एक पत्थर से टकराया और पत्थर का ऊपरी हिस्सा फावड़े की वार से टूट गया। मजदूर शिवलिंग के आकार के इस पत्थर को वहां से हटाना चाह रहा था, तभी पत्थर में मजदूर को भगवान शिव की छवि दिखाई दी और टूटे स्थल से दूध की धारा बहने लगी। यह देखकर मजदूर काफी डर गया और राजदरबार पहुंचा। उसने सतासी राजा मुंज सिंह को सारी कहानी बताई। मूज से स्वयंभू रूप में निकले और राजा मुंज द्वारा स्थापित किए जाने के कारण ही बाबा का नाम मुन्जेश्वरनाथ धाम पड़ा।

13 जून, 2024

बीता हुआ कल

बीता हुआ कल... 






प्रत्येक व्यकति का एक बीता हुआ कल होता है, जिसके बारे में बात ही की जाए तो बेहतर है।



इन पंक्तियों के सहारे एक बड़ी ही गंभीर लेकिन बड़े काम की बात कह गया,  कालिदास रंगालय में मंचित नाटक महुआ। नाट्य संस्था राग के बैनर तले मंचित और काशीनाथ सिंह के उपन्यास महुआ-चरित पर आधारित इस नाटक के निर्देशक थे रंधीर कुमार। वहीं इसके कलाकार थे कुमार रविकांत और रेखा सिंह। नाटक में स्त्री देह की दमित इच्छाओं और पुरुषवादी समाज की परंपरागत सोच के बीच के द्वंद्व को दिखाया गया। नाटक कहता है स्त्री के देह की भी कुछ इच्छाएं हो सकती है जिसे अक्सर समाज और खुद स्त्री भी समझ नहीं पाती।

नाटक सवाल करता है कि आखिर क्यों सारा विवेक धरा का धरा रह जाता है और देह बाजी मार ले जाता है। यह नश्वर देह, ऐसा क्या है इस देह में कि हम हर चीज का बंटवारा तो सह लेते हैं लेकिन इस देह का बंटवारा नहीं सहा जाता। ऐसा क्यो है? इसका तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन मन का सारा रिश्ता नाता तहस-नहस हो जाता है।

यहथी कहानी

नाटककी कहानी मध्यवर्गीय समाज की महुआ के इर्द गिर्द घूमती है। 29 की उम्र हो जाने के बाद भी शादी नहीं होने होने के कारण जीवन में अकेलापन छाया रहता है। पिता कहते हैं कि घूमो-फिरो कभी घर से बाहर निकलो और खुश रहो, लेकिन उदासी का असल कारण कोई नहीं समझता। एक दिन महुआ को ख्याल आता है कि घर की माली हालत और कॅरियर की चिंता के बीच उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी भी देह है और इसकी जरूरत है। उसे याद आता है कि कॉलेज के दिनों हर्षुल उसका दीवाना था, लेकिन उसने हर्षुल के प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

इसे दूर करता है उसका पड़ोसी और दो बच्चों का बाप साजिद। चंद मुलाकातों के बाद ही दाेनों में जिस्मानी संबंध बन जाते हैं। कुछ दिनों बाद ही जीवन में पूर्व प्रेमी हर्षुल आता है, जिसके जिंदगी में वृतका नाम की एक अन्य औरत भी है। इसे छुपाते हुए वह महुआ से शादी करता है लेकिन जब पता चलता है कि महुआ का पूर्व में साजिद से संबंध रहा है तो वह उसे घर से निकाल देता है।

कहानी बहुत गम्भीरता से आगे बढ़ते हुए अपने ढंग से अपनी बात कहने में सफल रही है .

मशहूर अभिनेता श्रीराम लागू का 92 साल की उम्र में निधन


1टिप्पणियां
मशहूर अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू (Shriram Lagoo) का वृद्धावस्था से संबंधित बीमारियों के चलते मंगलवार शाम पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी. नाटककार सतीश अलेकर ने बताया, 'मैंने उनके दामाद से बात की. वृद्धावस्था संबंधित बीमारियों के कारण उनका निधन हुआ.'

प्रशिक्षित ईएनटी सर्जन लागू ने विजय तेंदुलकर, विजय मेहता और अरविंद देशपांडे के साथ आजादी के बाद वाले काल में महाराष्ट्र में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी.

नीर क्षीर विवेक

नीर क्षीर विवेके हंस आलस्यम् त्वम् एव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन् अधुना अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति क: ॥
अरे हंस यदि तुम ही पानी तथा दूध भिन्न करना छोड दोगे तो दूसरा कौन तुम्हारा यह कुलव्रत का पालन कर सकता है ? यदि बुद्धि वान् तथा कुशल मनुष्य ही अपना कर्तव्य करना छोड दे तो दूसरा कौन वह काम कर सकता है 

हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

हापुस आम







हापुस आमों की सबसे बेहतरीन किस्म महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में स्थित सिंधुदुर्ग जिले की तहसील देवगढ़ में उगायी जाती है, साथ ही सबसे अच्छे आम सागर तट से 20 किलोमीटर अंदर की ओर स्थित जमीन पर ही उगते हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र का रत्नागिरि जिला, गुजरात के दक्षिणी जिले वलसाड और नवसारी भी हाफूस की पैदावार के लिए प्रसिद्ध हैं।

दर्जन के हिसाब से बिकता है .कोंकण क्षेत्र के हापुस आम की मांग अमेरिका, यूरोप, अरब देशों समेत अफ्रीका व एशिया के कई देशों में है। नासिक के लासलगांव केंद्र की इरेडिएशन मशीन से अमेरिका को करीब 25 हजार दर्जन हापुस आमों का निर्यात हरसाल किया जाता रहा है। पर अब वाशी स्थित रेडियेशन मशीन के लग जाने से निर्यात की मात्रा में दुगुनी से भी अधिक वृद्धि होने की उम्मीद है। वाशी फलमंडी के निदेशक संजय पानसरे का कहना है अमेरिका के लिए निर्यात शुरू हो गया है, पहले हमें लासलगांव जाना पड़ता था लेकिन अब वाशी में ही इस सुविधा के शुरू होने से ज्यादा आम निर्यात किया जा सकेगा। फिलहाल आम महंगा है इसलिए डिमांड कम है, लेकिन अगले हफ्ते तक डिमांड बढ़ने की पूरी उम्मीद है।

हापुस आम या किसी भी अन्य आम या फल तथा सब्जी आदि को खाने योग्य बनाने के लिए उनका निर्जन्तुकरण (इरेडियेशन प्रक्रिया) की जाती है। इस प्रक्रिया से गुजारने के लिए हापुस आमों को मशीन में डाला जाता है। इससे आमों के भीतर मौजूद हर किस्म के कीटाणु व जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में हापुस आम 60 डिग्री सेल्शियस तापमान वाली मशीन से गुजारे जाते हैं। इस दौरान मशीन के भीतर गामा किरणों के विकिरण से आमों के भीतर मौजूद संभावित कीटाणुओं व जीवाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है। इससे हापुस आमों के पकने में भी मदद मिलती है।



ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार

ओम या ॐ के 10 रहस्य और चमत्कार


1. नाद : इस ध्वनि को कहते हैं। अनाहत अर्थात जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं होती बल्कि स्वयंभू है। इसे ही नाद कहा गया है। ओम की ध्वनि एक शाश्वत ध्वनि है जिससे ब्रह्मांड का जन्म हुआ है। एक ध्वनि है, जो किसी ने बनाई नहीं है। यह वह ध्वनि है जो पूरे कण-कण में, पूरे अंतरिक्ष में हो रही है और मनुष्य के भीतर भी यह ध्वनि जारी है। सहित ब्रह्मांड के प्रत्येक गृह से यह ध्वनि बाहर निकल रही है।

2. ब्रह्मांड का जन्मदाता : पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात शुद्ध प्रकाश। यह ध्वनि आज भी सतत जारी है। ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। परमेश्वर का प्रकाश। इसे ही शुद्ध प्रकाश कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड और कुछ नहीं सिर्फ कंपन, ध्वनि और प्रकाश की उपस्थिति ही है। जहां जितनी ऊर्जा होगी वहां उतनी देर तक जीवन होगा। यह जो हमें सूर्य दिखाई दे रहा है एक दिन इसकी भी ऊर्जा खत्म हो जाने वाली है। धीरे-धीरे सबकुछ विलिन हो जाने वाला है। बस नाद और बिंदु ही बचेगा।

3. ओम शब्द का अर्थ : ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म...। इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। अ मतलब अकार, उ मतलब ऊंकार और म मतलब मकार। 'अ' ब्रह्मा का वाचक है जिसका उच्चारण द्वारा हृदय में उसका त्याग होता है। 'उ' विष्णु का वाचक हैं जिसाक त्याग कंठ में होता है तथा 'म' रुद्र का वाचक है और जिसका त्याग तालुमध्य में होता है।

4. ओम का आध्यात्मिक अर्थ : ओ, उ और म- उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अपरम्पार है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं।
5. मोक्ष का साधन : ओम ही है एकमात्र ऐसा प्रणव मंत्र जो आपको अनहद या मोक्ष की ओर ले जा सकता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मूल मंत्र या जप तो मात्र ओम ही है। ओम के आगे या पीछे लिखे जाने वाले शब्द गोण होते हैं। प्रणव ही महामंत्र और जप योग्य है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण, कैवल्य ज्ञान या मोक्ष की अवस्था का प्रतीक है। जब व्यक्ति निर्विचार और शून्य में चला जाता है तब यह ध्वनि ही उसे निरंतर सुनाई देती रहती है।

6. प्रणव की महत्ता : शिव पुराण में प्रणव के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ और भाव बताए गए हैं- 'प्र' यानी प्रपंच, 'ण' यानी नहीं और 'व:' यानी तुम लोगों के लिए। सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है। यही कारण है ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है। दूसरे अर्थों में प्रणव को 'प्र' यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली 'ण' यानी नाव बताया गया है। इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से 'प्र' अर्थात प्रकर्षेण, 'ण' अर्थात नयेत् और 'व:' अर्थात युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव: है।

7. स्वत: ही उत्पन्न होता है जाप : ॐ के उच्चारण का अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आता है जबकि उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं होती आप सिर्फ आंखों और कानों को बंद करके भीतर उसे सुनें और वह ध्वनि सुनाई देने लगेगी। भीतर प्रारंभ में वह बहुत ही सूक्ष्म सुनाई देगी फिर बढ़ती जाएगी। साधु-संत कहते हैं कि यह ध्वनि प्रारंभ में झींगुर की आवाज जैसी सुनाई देगी। फिर धीरे-धीरे जैसे बीन बज रही हो, फिर धीरे-धीरे ढोल जैसी थाप सुनाई देने लग जाएगी, फिर यह ध्वनि शंख जैसी हो जाएगी और अंत में यह शुद्ध ब्रह्मांडीय ध्वनि हो जाएगी।

8. शारीरिक रोग और मानसिक शांति हेतु : इस मंत्र के लगातार जप करने से शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होता है। इससे शारीरिक रोग के साथ ही मानसिक बीमारियां दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं।
9. सृष्टि विनाश की क्षमता : ओम की ध्वनि में यह शक्ति है कि यह इस ब्रहमांड के किसी भी गृह को फोड़ने या इस संपूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखता है। यह ध्वनि सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और विराट से भी विराट होने की क्षमता रखती है।

10. शिव के स्थानों पर होता रहता है ओम का उच्चारण : सभी ज्योतिर्लिंगों के पास स्वत: ही ओम का उच्चारण होता रहता है। यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे, तो आपको निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज 'डमरू' या 'ॐ' की ध्वनि जैसी होती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो। यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहां से 'ॐ' की आवाजें सुनाई देती हैं।

Mr.Manoj Joshi.(मनोज जोशी

Discussing Chankya Play ........ Memorable moments with Mr.Manoj Joshi. Manoj Joshi (मनोज जोशी) is an Indian film and...