19 सितंबर, 2012

Ganesh Chaturthi 19 sept 2012

वक्रतुण्ड महाकाये सूर्यकोटिसमप्रभः।निर्विघ्नम् कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।


श्रीगणेश सदैव हम सब पर अपनी कृपा बनाये रखे। आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ।    In Hindu mythology Lord Ganesha is known as the lord of beginnings and as the lord of obstacle remover. Hence all auspicious occasions and religious functions begin by invoking his blessings..

04 सितंबर, 2012

हिंदू 'पंचांग'

हिंदू 'पंचांग' की अवधारणा
हिंदू पंचांग की उत्पत्ति वैदिक काल में ही हो चुकी थी। सूर्य को जगत की आत्मा मानकर उक्त काल में सूर्य व नक्षत्र सिद्धांत पर आधारित पंचांग होता था। वैदिक काल के पश्चात् आर्यभट, वराहमिहिर, भास्कर आदि जैसे खगोलशास्त्रियों ने पंचांग को विकसित कर उसमें चंद्र की कलाओं का भी वर्णन किया।

वेदों और अन्य ग्रंथों में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी और नक्षत्र सभी की स्थिति, दूरी और गति का वर्णन किया गया है। स्थिति, दूरी और गति के मान से ही पृथ्वी पर होने वाले दिन-रात और अन्य संधिकाल को विभाजित कर एक पूर्ण सटीक पंचांग बनाया गया है। जानते हैं हिंदू पंचांग की अवधारणा क्या है।
पंचांग काल दिन को नामंकित करने की एक प्रणाली है। पंचांग के चक्र को खगोलकीय तत्वों से जोड़ा जाता है। बारह मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है।

पंचांग की परिभाषा
: पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है। एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।
तिथि : एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में 30 तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में 1-14 और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में 1-14 और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।

तिथियों के नाम निम्न
हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।
वार : एक सप्ताह में सात दिन होते हैं:- रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार।
नक्षत्र : आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है। नक्षत्रों के नाम नीचे चंद्रमास में दिए गए हैं-
योग : योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।

27
योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।
करण : एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
पक्ष को भी जानें : प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।
सौरमास :
सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है।

12
राशियों को बारह सौरमास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना ‍शुरू माना गया है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब हिंदू धर्म अनुसार यह तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है। पुराणों अनुसार अश्विन, कार्तिक मास में तीर्थ का महत्व बताया गया है। उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है जबकि सूर्य कुंभ से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य दक्षिणायन होता है। दक्षिणायन व्रतों का समय होता है जबकि चंद्रमास अनुसार अषाढ़ या श्रावण मास चल रहा होता है। व्रत से रोग और शोक मिटते हैं।
सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन।
चंद्रमास :
चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्‍ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमांत' मास मुख्‍य चंद्रमास है। कृष्‍ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमात' पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।
पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बड़े हुए दिनों को 'मलमास' या 'अधिमास' कहते हैं।
चंद्रमास के नाम : चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन।
नक्षत्रमास :
आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं।

चंद्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।

महीनों के नाम पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है:
1.चैत्र : चित्रा, स्वाति।
2.वैशाख : विशाखा, अनुराधा।
3.ज्येष्ठ : ज्येष्ठा, मूल।
4.आषाढ़ : पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा।
5.श्रावण : श्रवण, धनिष्ठा।
6.भाद्रपद : पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र।
7.आश्विन : अश्विन, रेवती, भरणी।
8.कार्तिक : कृतिका, रोहणी।
9.मार्गशीर्ष : मृगशिरा, उत्तरा।
10.पौष : पुनर्वसु, पुष्य।
11.माघ : मघा, अश्लेशा।
12.फाल्गुन : पूर्वाफाल्गुन, उत्तराफाल्गुन, हस्त।
नक्षत्रों के गृह स्वामी :
केतु : अश्विन, मघा, मूल।
शुक्र : भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़।
रवि : कार्तिक, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़।
चंद्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण।
मंगल : मॄगशिरा, चित्रा, श्रविष्ठा।
राहु : आद्रा, स्वाति, शतभिषा ।
बृहस्पति : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा।
शनि . पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपदा।
बुध : अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती।

25 अगस्त, 2012

कुन्जिका स्तोत्रं

शिवजी बोले – देवी ! सुनो। मैं उत्तम कुंजिकास्तोत्रका उपदेश करुँगा , जिस मन्त्र के प्रभाव से देवीका जप ( पाठ ) सफ़ल होता है ||१||
कवच , अर्गला , कीलक ,रहस्य,सूक्त,ध्यान,न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी (आवश्यक ) नहीं हैं ||२||
केवल कुंजिकाके पाठसे दुर्गा-पाठका फल प्राप्त हो जाता है । ( यह कुंजिका) अत्यन्त गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है ||३||
हे पार्वती! इसे स्वयोनिकी भाँती प्रयत्नपुर्वक गुप्त रखना चाहिये । यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र केवल पाठके द्वारा मारण , मोहन, वशीकरण,स्तंभन और उच्चाटन आदि (आभिचारिक) उद्देश्योंको सिद्ध कर्ता है ||४||
कुन्जिका स्तोत्रं

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्‌॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्‌॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।
पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥4॥
अथ मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाह
॥ इति मंत्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥2॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥5॥
धां धीं धू धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्‌।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
। इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ।

16 अगस्त, 2012

योगी अरविन्द घोष




 योगी अरविन्द घोष
अरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 को बंगाल की धरती पर हुआ था। कहते हैं 15 अगस्त के दिन जन्म लेने के कारण उनका स्वतंत्रता दिवस के साथ गहरा नाता था। महर्षि अरविन्द के पिता के डी घोष अंग्रेजी सभ्यता के पोषक तथा अंग्रेजों के प्रशंसक थे। अक्सर यह कहा जाता है कि जैसे मां बाप होते हैं वैसी ही संतान भी होती है परंतु यहां यह बात तो बिल्कुल विपरीत हो गई थी। पिता अंग्रेजों के प
्रशंसक और उनके चारों बेटे अंग्रेजों के लिए यमराज की भांति बन गए थे।

आज का युग वैज्ञानिक युग है और इस युग में योग द्वारा साधना करके अमूल्य सिद्धियां प्राप्त करना अचरज की बात है। अरविन्द घोष जिन्हें लोग महर्षि के रूप में ही जानते थे उन्होंने योग के द्वारा सिद्धियां प्राप्त करके लोगों को बता दिया था कि ऐसी शक्तियां आज भी विद्यमान हैं जो इस जगत की बागडोर को अपने हाथों में रखे हुए हैं। इंसान तो इनकी कृपा का पात्र बन सकता है।

अरविन्द तो योगी नहीं थे। इस योग साधना के पहले वे कुछ और ही थे। जी हां, वे बंगाल के महान क्रांतिकारियों में गिने जाते थे। बंगाल के क्रांतिकारियों को उनकी ही प्रेरणा थी। उन्हीं के आह्वान पर हजारों बंगाली युवकों ने देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया था। अपने जीवन में उन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या तो क्या इसके विषय में सोचा मात्र नहीं था, न ही कभी हथियार का प्रयोग उन्होंने अपने हाथों से किया परंतु यह कटु सत्य है कि सशस्त्र क्रांति के पीछे उनकी ही प्रेरणा थी।

वैसे तो अरविन्द ने अपनी शिक्षा खुलना में पूर्ण की थी लेकिन उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए वे इंग्लैंड चले गए और कई वर्ष वहां रहने के पश्चात कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राचीन दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की। वे आई सी एस अधिकारी बनना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने भरपूर कोशिश की पर वे अनुत्तीर्ण हो गए।

एक बार उन्होंने अपने ज्ञान तथा विचारों से गायकवाड़ नरेश को भी मोह लिया। गायकवाड़ नरेश उनसे इतने प्रभावित हुए कि बड़ौदा में उन्होंने अरविंद को अपनी निजी सविच के पद पर नियुक्त कर लिया।

सन् 1906 में जब बंग भंग का आंदोलन चल रहा था तो अरविंद ने बड़ौदा से कलकत्ता की ओर प्रस्थान कर दिया। जनता को जागृत करने के लिए अरविंद ने उत्तेजक भाषण दिए। उन्होंने अपने भाषणों तथा बंदे मांतरम में प्रकाशित लेखों के द्वारा अंग्रेज सरकार की दमन नीति की कड़ी निंदा की थी जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकद्मा चला कर जेल की सजा सुना दी।

सजा सुन कर अरविंद घबराए नहीं बल्कि उन्होंने कहा था चाहे सरकार क्रांतिकारियों को जेल में बंद करे, फांसी दे या यातनाएं दे पर हम यह सब सहन करेंगे लेकिन यह स्वतंत्रता का आंदोलन कभी रूकेगा नहीं। एक दिन अवश्य आएगा जब अंग्रेजों को हिन्दुस्तान छोड़ कर जाना होगा।

सजा के लिए उन्हें अलीपुर जेल में रखा गया। जेल में अरविन्द का जीवन ही बदल गया। वे जेल की कोठी में ज्यादा से ज्यादा समय साधना और तप में लगाने लगे। वे गीता पढ़ा करते और भगवान श्री कृष्ण की आराधना किया करते। ऐसा करने से उनके जीवन के प्रति विचार ही बदल गए।

जेल से बाहर आकर वे किसी भी आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे पर अंग्रेजों के जासूस हर दम उनके पीछे लगे रहते क्योंकि अंग्रेजी सरकार उन्हें अपने लिए मुसीबत का पहाड़ समझती थी। फिर इसके पश्चात अरविन्द गुप्त रूप से पांडिचेरी चले गए क्योंकि वहां फ्रांसीसियों का अधिकार था। अंग्रेज सरकार महर्षि अरविंद को गिरफ्तार न कर सकी।

अरविन्द जी के पांडिचेरी चले जाने की बात मालूम होने पर अंग्रेज सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगाया पर उन्हें बंदी न बना सकी। वहीं पर रहते हुए अरविन्द ने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त की और आज के वैज्ञानिकों को बता दिया कि इस जगत को चलाने के लिए एक अन्य जगत और भी है।

5 दिसम्बर 1950 को महर्षि अरविंद निर्वाण प्राप्त कर गए। जब भी क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा तो अरविंद जी के त्याग, साहस तथा यौगिक साधना की चर्चा बड़े गर्व के साथ की जायेगी।

महर्षि अरविंद देशभक्ति एवं राष्ट्रवाद के देवदूत, मानवता के प्रेमी, ज्ञानी, क्रन्तिकारी और महायोगी के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। वे संस्कृत, बंगला आदि स्वदेशी तथा ग्रीक, इतालवी, फ्रेंच, अंग्रेजी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने पूर्व और पश्चिम की आध्यात्मिक विचारधाराओ का यौगिक स्तर से समन्वय किया।
आश्रम में श्री अरविन्द अपने चिंतन और मनन को गंभीरतापूर्वक लिपिबद्ध किया। उनके कृतित्व को चार भागो में बांटा जा सकता है-१.योग एवं आध्यात्म; 2. समाज ,संस्कृति एवं राजनीती ; ३. कविता ,नाटक आदि ; ४.चिट्ठी -पत्री। श्री अरविन्द की रचनाओ का संग्रह 'अरविन्द रचनावली 'के नाम से सन १९७२ में उनके जन्मशती पर तीस खंडो में प्रकाशित हुआ था। बाद में शोधकरतो ने कुछ अन्य रचनाए भी खोज निकाली और उनके १२५ वी जयंती पर सन१९९७ में उनके रचनावली पैतीस खंडो में प्रकाशित हुयी।


24 जुलाई, 2012

Surha-Tal-Bird-Sanctuary, Ballia (U.P.)

Surha-Tal-Bird-Sanctuary, Ballia


Ballia (Bhojpuri: बलिया, Hindi: बलिया) is a city with a municipal board in the Indian state of Uttar Pradesh. The eastern boundary of the city lies at the junction of the Ganges and the Ghaghara. The city is situated from 141 km from Varanasi. Bhojpuri, a dialect of Hindi, is the primary local language.
Ballia is also known as Baghi Ballia (Rebel Ballia) for its significant contribution in India's freedom struggle. During the first Independence War of India in 1857, Ballia came in picture in front of the world and Shree Mangal Pandey was that first freedom fighter of that war who was born in village Nagwa Ballia district of India. During the Quit India Movement of 1942 Ballia gained independence from British rule for a short period of time when the district overthrew the government and installed an independent administration under Chittu Pandey.




LocationAbout 17 km from Ballia bus stand, on the road leading to Maniar & 1 km from Maniar, total distance 18 km from Ballia city, 159 km from Varanasi, in district Ballia, U.P., India
Ideal time to visit Oct.- March
Timings best time morning & evening
Attractions Nature & Wildlife
How to reachBy Road-Ballia is well connected by road from Varanasi & other major cities By Rail- Ballia is located on the Railway line of NERBy Air-Babatpur Airport, Varanasi, 179 km 

This lake was declared as Bird Sanctuary in 1991, covering an area of about 34.32 km2 and comes under Divisional Forest Officer, Kashi Wildlife Division. Ramnagar Nepali King Surat got the digging work done for the lake. Fishing is the main occupation of the local natives (Mallah-the boatman & Bind).
On one end of this lake a big fountain has been built in the memory of freedom fighters with the efforts of Late Prime Minister Mr. Chandrashekhar. Migratory birds from Siberia, and other colder regions, migrate to this lake to spend their winters here. The Bird Sanctuary is worth watching during that period.










यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए  जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए  मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते ...