29 नवंबर, 2025

किसानों की दुखद कहानी निल गायों का उत्पात





किसानों की दुखद कहानी निल गायों का उत्पात

अब खेती करना निल गायों के कारन बहुत कठिन हो जा रहा है . किसान खेत की तैयारी करता है , उत्तम खाद बीज  का प्रवन्ध करता है . और निल गायों के आतंक से उसकी फसल बर्बाद हो जाती है . कोई चारा नहीं है . शिवाय सर धुन कर पछताने के. कर भी क्या कर सकता है --इसके नाम में जो गाय शब्द जुड़ गया है लोग इसे  उसी दृस्टि से देखते है .

वैसे  इसका सम्बन्ध हिरन प्रजाति से है . पहले ये जंगलों में छिपकर रहते थे लेकिन जैसे जैसे   जनसँख्या ज्यादे होती गयी , खेती की जमींन  कम  पड़ने लगी . मजबूरन किसान जंगलों को काट कर उसे खेती योग्य जमींन में परिवर्तित करता गया . नीलगाय जो पहले मनुष्य और आबादी को देखकर भागते थे . अब झुण्ड बनाकर  किसानों के खेतों की तरफ रुख कर लेते हैं और खेत / खेती चौपट कर देते हैं .

नीलगाय चूंकि जंगली जानवर है, इसलिए इनकी दौड़ने की रफ्तार भी 45 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है। ऐसे में इन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल काम होता है। नीलगाय हिरण की प्रजाति का होता है। चूंकि यह गाय की तरह दिखता है और इसका रंग हल्का नीला होता है, इसलिए इसका नाम नीलगाय पड़ गया है। चूंकि हिन्दू संस्कृति में गाय को मारना पाप माना जाता है, इसलिए ग्रामीण भी नीलगाय का शिकार नहीं करते है। जंगली प्राणी होने के कारण नीलगाय काफी गुस्सैल और हिंसक होती हैं। अक्सर जंगल में भी वह मांसाहारी जानवरों से अपनी जान बचाने के लिए मुकाबला करती हैं। नीलगाय के सींग छोटे पर बहुत पैने होते है। ऐसे में जब ग्रामीण उन्हें भगाने का प्रयास करते हैं, तो गायों के पलटकर हमला करने का भय हमेशा बना रहता है।


नीलगायों का अगर गांवों में आतंक है, तो वह जिला प्रशासन से मदद ले सकते हैं। अगर उन्हें लगता है कि इसमें मुआवजा मिलना चाहिए, तो किसानों को मुआवजा देने का अधिकार भी जिला प्रशासन के पास में ही है।



नीलगाय अगर किसानों की फसल चौपट कर रही हैं, तो  एसडीएम को मौके पर जाकर जाँच करनी होती है  और अगर संभव हुआ तो ,अगर फसल को नुकसान अधिक हुआ है, तो  किसानों को मुआवजा  भी कभी कभार मिल जाता है लेकिन सामान्यतया यह  कम ही संभव हो पाता है .



जंगलों में पहले बाघ, तेंदुए, लकड़बग्घे आदि मांसाहारी जानवर रहते थे, जो नीलगायों को अपना शिकार बनाकर इनकी संख्या को काबू में रखते थे, लेकिन मांसाहारी जानवरों की तादाद कम होने से नीलगायों का कोई भी प्राकृतिक शिकारी नहीं रहा। इसके कारण इनकी तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरी ओर जंगल भी कटाई के कारण सिमट कर कम होते जा रहे हैं, ऐसे में जंगलों में नीलगाय के लिए पर्याप्त खाना नहीं होने के कारण वह अक्सर जंगल से निकलकर गांवों की ओर रूख करती हैं। अबतो बहुत सामान्य बात हो गयी है इनसे किसान को बहुत नुकसान हो रहा है ...

इनकी प्रजनन छमता अधिक होने के कारण इनकी संख्या में भयानक वृद्धि होती जारही है . न तो किसान के पास न तो सरकार   के प्रशासन के पास और न किसान के इसका कोई उचित समाधान दिख नहीं रहा है अगर आपको कुछ समाधान ज्ञात हो तो अवश्य व्यक्त करें , बड़ी कृपा होगी. 

22 नवंबर, 2025

गौतम इंटर कालेज पिपरा रामधर देवरिया उत्तर प्रदेश

 एक संस्थागत स्मृति-पत्र (Institutional Note / Tribute) 


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🏫 गौतम इंटर कॉलेज, पिपरा रामधर, देवरिया (उ.प्र.)

📖 परिचय

गौतम इंटर कॉलेज, देवरिया जिले का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान रहा है, जिसने शिक्षा, संस्कार और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया।


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👑 प्रमुख हस्तियाँ (संस्थान के स्तंभ)

1. स्वर्गीय राधेश्याम द्विवेदी जी –

प्रिंसिपल

अनुशासनप्रिय, दूरदर्शी और छात्रों को संस्कारित करने वाले प्रेरणादायी व्यक्तित्व।



2. विश्वनाथ मिश्र जी –

संस्थापक एवं व्यवस्थापक

विद्यालय की नींव और विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान।



3. जगदीश मिश्र जी –

उप-प्रधानाचार्य

शिक्षा प्रशासन में सहयोगी और संस्थान को मजबूती देने वाले।





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👨‍🏫 प्रमुख शिक्षक (प्रवक्ता)

श्री शिव अवतार पांडेय "शास्त्री जी" –
प्रवक्ता (संस्कृत), गहन विद्वान और वेद-शास्त्र के आचार्य।

सच्चिदानंद कुशवाहा जी –
प्रवक्ता (अंग्रेज़ी), आधुनिक शिक्षा और भाषा ज्ञान के प्रेरक।

वकील पांडेय जी –
प्रवक्ता (भूगोल), भूगोल विषय को सरल और रोचक बनाने वाले आदरणीय शिक्षक।

अन्य विषयों के प्रवक्ताओं और शिक्षकों ने भी इस संस्थान को गौरवपूर्ण पहचान दिलाई।



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🌿 विशेषताएँ

विद्यार्थियों को शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ नैतिक संस्कार देना।

ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का प्रसार कर कई पीढ़ियों को दिशा देना।

भोजपुरी और पूर्वांचली संस्कृति की पृष्ठभूमि में आधुनिक शिक्षा का संगम।



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🙏 यह सब व्यक्तित्व न केवल शिक्षण कार्य बल्कि छात्रों के जीवन निर्माण में सदैव याद किए जाएँगे।




13 नवंबर, 2025

प्रस्तावना


“स्वाध्याय” स्वयं में एक पूर्ण जीवन-दर्शन है — 

स्वाध्याय – आत्मबोध की ज्योति

मनुष्य का सबसे बड़ा शिक्षक स्वयं उसका स्वयं होता है। जब कोई व्यक्ति बाहरी शोर से हटकर अपने भीतर झांकता है, तभी स्वाध्याय की शुरुआत होती है। यह केवल ग्रंथ पढ़ने या शास्त्रों का अध्ययन करने भर का कार्य नहीं, बल्कि आत्मा की आवाज़ को सुनने की साधना है।

स्वाध्याय हमें सिखाता है कि ज्ञान बाहर नहीं, भीतर है। जो सत्य हम वेदों, गीता या उपनिषदों में खोजते हैं, वही सत्य हमारे अंतर में छिपा होता है। अंतर बस इतना है कि कोई उसे शब्दों में पढ़ता है, और कोई अनुभव में जीता है।

जब हम स्वाध्याय करते हैं, तो धीरे-धीरे हमारे भीतर छिपे अंधकार पर प्रकाश पड़ता है। अहंकार का पर्दा हटने लगता है, और मन अपने मूल स्वरूप को पहचानने लगता है। यही वह क्षण है जब व्यक्ति बाहरी भ्रम से मुक्त होकर सत्य की दिशा में बढ़ता है।

स्वाध्याय का अर्थ यह नहीं कि हम केवल धार्मिक ग्रंथों को दोहराएँ — बल्कि यह है कि हम हर अनुभव से सीखें, हर भूल से सुधारें, और हर श्वास में आत्मबोध का अनुभव करें। जीवन स्वयं सबसे बड़ा शास्त्र है; बस पाठक बनना आना चाहिए।

जैसे-जैसे हम आत्मनिरीक्षण करते हैं, भीतर एक मौन ज्ञान जन्म लेता है — जो किसी पुस्तक से नहीं, बल्कि आत्मानुभूति से मिलता है। यही ज्ञान मनुष्य को विनम्र बनाता है, क्योंकि सच्चे ज्ञानी को यह भान होता है कि जानने को अभी भी कितना शेष है।

आज के युग में जब सूचनाएँ हर ओर बिखरी हैं, स्वाध्याय हमें विवेक देता है — क्या ग्रहण करना है और क्या त्यागना। यही विवेक अंततः हमें शांति, संतुलन और सत्य के मार्ग पर ले जाता है।

स्वाध्याय केवल पढ़ना नहीं, जीना है। जब जीवन स्वयं ग्रंथ बन जाए और हर कर्म एक श्लोक बन जाए, तभी सच्चा स्वाध्याय पूर्ण होता है।

– रामेश्वर नाथ तिवारी


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11 नवंबर, 2025

🌼 नीर-छीर विवेक : जीवन में सार और असार का ज्ञान 🌼जीवन का सागर अनगिनत लहरों से भरा है—कभी आनंद की, कभी भ्रम की। हर दिन हमें अनेक विचार, परिस्थितियाँ और लोग मिलते हैं। इनमें से कौन सा हमारे लिए शुभ है, कौन हानिकारक—यह समझ पाना ही “नीर-छीर विवेक” है।‘नीर’ अर्थात् जल और ‘छीर’ अर्थात् दूध—दोनों का मिश्रण देखने में समान लगता है, परंतु हंस उसमें से केवल दूध ग्रहण कर लेता है, पानी को छोड़ देता है। यही विवेक मनुष्य को चाहिए—जीवन के हर अनुभव में से सार को ग्रहण करना और निरर्थक को त्याग देना।आज की भागदौड़ में लोग जानकारी तो बहुत जुटा लेते हैं, परंतु विवेक कम हो गया है। ज्ञान तब ही फलदायी होता है जब उसमें नीर-छीर विवेक का प्रकाश हो। यदि यह गुण विकसित कर लिया जाए, तो व्यक्ति न केवल भ्रम से बचता है, बल्कि आत्मिक शांति और सफलता भी प्राप्त करता है।विवेक वही जो—अपमान में भी धैर्य रखे।असत्य में सत्य की खोज करे।परिस्थितियों में ईश्वर का संकेत देखे।यही नीर-छीर विवेक मनुष्य को साधारण से असाधारण बनाता है।🌺 निष्कर्ष:जिसने विवेक पा लिया, उसने जीवन का सार समझ लिया।और जो जीवन का सार समझ ले, वह स्वयं प्रकाश बन जाता है

08 नवंबर, 2025

वृद्धावस्था




वृद्धावस्था कोई आश्चर्य जनक घटना नहीं है
मनुस बेचारे की बात करे कौन हरिहर ,
दिनकर की तीन गति होत एक दिन में.
जिसने जन्म लिया है उसे मरना भी होता है . लेकिन मैं मरूंगा यह बात मानाने को कोई तैयार नहीं होता . सिद्धार्थ जब किसी व्यक्ति की अंतिम यात्रा देखकर उत्सुकता बस पूछते है तो उन्हें बताया जाता है की इनकी मौत हो चुकी है .शायद ऐसी बात ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया …..एक दिन सबको मरना होता है……
जब आदमी चकाचौध के कारन समझ नहीं पाता है तो कहता है मरने के पहले जिन्दा रहना है . अभिप्राय यह की वह जो कुछ कर रहा है जीने के लिए कर रहा है..
वास्तविक ज्ञान शमशान भूमि में ही प्राप्त होता है . इसीलिए घर आते ही उसे लाल मिर्च खाने के लिए
दिया जाता है , तीखा लगेगा तो जो ज्ञान उत्पन्न हुआ था , वह विचलित हो जाता है , इस दुनिया वापस आ जाता है ……..शायद यही इस दुनियां की वास्तविकता है.
समय का चक्र तो अबाध गति से चलता रहता है। नियति का स्वाभाव है। आज जो बालक है वह कल युवा तो परसों वृद्ध होगा। इसकी कोइ निश्चित आयु सीमा नहीं है , कोई समय से पहले ही बूढा हो जाता है . कोई कुछ अधिक आयु सीमा जवान ही बने रहने का दिखावा करता है.
यह निर्विवाद सत्य है कि वृद्धावस्था में मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता है… सोचने की छमता भी धूमिल होने लगाती है .सबकी अपनी सोच है मैंने बचपन से वृद्ध लोंगो को अधिक सम्मान दिया है ,हालाँकि उस समय सोच भी उम्र के स्तर से कुछ बड़ी लगाती थी ….लगता था इनके साथ वितायें गए क्षणों में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और मिला भी.
अब धीरे धीरे उस दिशा की बढ़ रहे हैं तो लगता है अनुभव वृद्ध तो बहुत पहले हो गया था अब साफ़ साफ़ दिखाई देने लगा है .
बर्रे बालक एक स्वभाउ …………भी समझ में आने लगा है सोचा लिपिबद्ध करने से समय भी कटेगा और शायद इस अनुभव का कुछ लाभ किसी को मिल सके.
जीवन में जिस वृद्ध को मैंने नज़दीक से देखा वह अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति हमेशा अपने बारे में ही सोचने में लगा रहना , दूसरे के विषय अपने स्वार्थ की प्रतिपूर्ति में ही सोचना ….. शायद यही सीमा सोच की सीमा थी.लेकिन इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता.              आया है सो जायेगा राजा रैंक फ़क़ीर
निम्न पक्तियां मुझे कुछ सोचने का मार्ग दिखा देती हैं
ख़ुदा ने खुदकशी कर ली जो देखा जान के बाद ,
जमीं पे कोई नमूना न आदमी का रहा
शायद यही इस जग की सच्चाई है . वृद्धावस्था में ज्ञान की चक्छुयें अत्यंत संवेदनशील हो जाती है .
आज के इस व्यस्ततम जीवन में किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है
जिंदगी सवारने की चाहत में,
हम इतने मशगूल हो गए…
चंद सिक्कों से तो रूबरू हुए,
पर ज़िन्दगी से दूर हो गए.
और फिर वही बात आती है सबकुछ लूटाके होश में आया तो क्या किया ???
कहते हैं…………. आओ जिंदगी के विषय में कुछ सोचें और उदास होएं ……
सच में अगर सोचते हैं तो उदास ही होंगें
R D N Srivastav  की कविता यहाँ पे याद आती है
जिंदगी एक कहानी है समझ लीजिये
दर्द भरी लन्ति रानी समझ लीजिये
चहरे पर खिले ये अक्षांश देशान्तर
उम्र की छेड़ कहानी समझ लीजिये
यह कहना गलत है कि कमी के कारण सीनियर सिटिजंस की देखभाल नहीं कर पाते। दरअसल नई पीढ़ी आत्मग्रस्त होती जा रही है। बसों में वे सीनियर सिटिजंस को जगह नहीं देते। बुजुर्ग अकेलापन झेल रहे हैं क्योंकि युवा पीढ़ी उन्हें लेकर बहुत उदासीन हो रही है , मगर हमें भी अब इन्हीं सबके बीच जीने की आदत पड़ गई है। सीनियर सिटिजंस की तकलीफ की एक बड़ी वजह युवाओं का उनके प्रति कठोर बर्ताव है।
लाइफ इतनी फास्ट हो गयी है की सीनियर सिटिजंस के लिए उसके साथ चलना असंभव हो गया है। एक दूसरी परेशानी यह है कि युवा पीढ़ी सीनियर सिटिजंस की कुछ भी सुनने को तैयार नहीं- घर में भी और बाहर भी। दादा-दादियों को भी वे नहीं पूछते, उनकी देखभाल करना तो बहुत दूर की बात है। जिंदगी की ढलती साँझ में थकती काया और कम होती क्षमताओं के बीच हमारी बुजुर्ग पीढ़ी का सबसे बड़ा रोग असुरक्षा के अलावा अकेलेपन की भावना है।
बुजुर्ग लोगों को ओल्ड एज होम में भेज देने से उनकी परिचर्या तो हो जाती है, लेकिन भावनात्मक रूप से बुजुर्ग लोगों को वह खुशी और संतोष नहीं मिल पाता, जो उन्हें अपने परिजनों के बीच में रहकर मिलता है। शहरी जीवन की आपाधापी तथा परिवारों के घटते आकार एवं बिखराव ने समाज में बुजुर्ग पीढ़ियों के लिए तमाम समस्याओं को बढ़ा दिया है। कुछ परिवारों में इन्हें बोझ के रूप में लिया जाता है।

वृद्धावस्था में शरीर थकने के कारण हृदय संबंधी रोग, रक्तचाप, मधुमेह, जोड़ों के दर्द जैसी आम समस्याएँ तो होती हैं, लेकिन इससे बड़ी समस्या होती है भावनात्मक असुरक्षा की। भावनात्मक असुरक्षा के कारण ही उनमें तनाव, चिड़चिड़ाहट, उदासी, बेचैनी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मानवीय संबंध परस्पर प्रेम और विश्वास पर आधारित होते हैं। लेकिन इसे समझनेवाला है कौन ??
जिंदगी की अंतिम दहलीज पर खड़ा व्यक्ति अपने जीवन के अनुभवों को अगली पीढ़ी के साथ बाँटना चाहता है, लेकिन उसकी दिक्कत यह होती है कि युवा पीढ़ी के पास उसकी बात सुनने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं होता।

03 नवंबर, 2025

Life & Spirituality in INDIA

 



     Life & Spirituality in India

Life and spirituality are most common subjects which every individual tries to learn throughout life and understand its glimpse to feel happy mostly when he is sad. Every individual has own experience which he shares to others but others may agree but not fully satisfied and thus the journey of life starts during that those who follow the path of spirituality, try to achieve mental peace and satisfaction .
 In India, spirituality and religion are part of everyday life. In no other country, perhaps, will you see a sadhu (a renounced ascetic or a practitioner of yoga)
Walking on the street with just a blanket and his rosary as his possessions without attracting any attention. India is home to all the major religions of the world, thriving in harmony since centuries. Although we will discuss the predominant religions in the country, we begin with Hinduism since it is the dominant religion in the subcontinent. Hindu’s comprise 80% of the population in India.

How to deal with Biased Boss!!!

How to deal with Biased Boss!!! Step 1 Weigh the severity of your boss’s biases before acting. A boss may allow other e...