13 जून, 2024

यादें .....

अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गए 

जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गए 
मुड़ मुड़ कर पीछे देखा था जाते जाते कई उसने 
जैसे उसे कुछ कहना था जो वो कहना भूल गया





सजा बन जाती है गुज़रे हुए वक़्त की यादें 

न जाने क्यों छोड़ जाने के लिए मेहरबान होते हैं लोग




यादों का इक झोंका आया हम से मिलने बरसों बाद 

पहले इतना रोये न थे जितना रोये बरसों बाद 
लम्हा लम्हा उजड़ा तो ही हम को एहसास हुआ 
पत्थर आये बरसों पहले शीशे टूटे बरसों बाद



ऐ दिल किसी की याद में होता है बेकरार क्यों 

जिस ने भुला दिया तुझे , उस का है इंतज़ार क्यों 
वो न मिलेगा अब तुझे , जिस की तुझे तलाश है 
राहों में आज बे-कफ़न तेरी बेवफ़ाई की लाश है



फासलों ने दिल की क़ुर्बत को बढ़ा दिया 

आज उस की याद ने बे हिसाब रुला दिया 
उस को शिकायत है के मुझे उस की याद नहीं 
हम ने जिस की याद में खुद को भुला दिया

दिल को तेरा सुकूँ दे वो ग़ज़ल कहाँ से लाऊँ 

भूल के ग़ज़ल अपनी तेरी ग़ज़ल कैसे सजाऊँ 
दिल में उतार जाएं वो लफ़ज़ कहाँ से लाऊँ 
भूल के कुछ यादें तेरी, याद कैसे दिल में बसाऊँ

बीता हुआ कल

बीता हुआ कल... 






प्रत्येक व्यकति का एक बीता हुआ कल होता है, जिसके बारे में बात ही की जाए तो बेहतर है।



इन पंक्तियों के सहारे एक बड़ी ही गंभीर लेकिन बड़े काम की बात कह गया,  कालिदास रंगालय में मंचित नाटक महुआ। नाट्य संस्था राग के बैनर तले मंचित और काशीनाथ सिंह के उपन्यास महुआ-चरित पर आधारित इस नाटक के निर्देशक थे रंधीर कुमार। वहीं इसके कलाकार थे कुमार रविकांत और रेखा सिंह। नाटक में स्त्री देह की दमित इच्छाओं और पुरुषवादी समाज की परंपरागत सोच के बीच के द्वंद्व को दिखाया गया। नाटक कहता है स्त्री के देह की भी कुछ इच्छाएं हो सकती है जिसे अक्सर समाज और खुद स्त्री भी समझ नहीं पाती।

नाटक सवाल करता है कि आखिर क्यों सारा विवेक धरा का धरा रह जाता है और देह बाजी मार ले जाता है। यह नश्वर देह, ऐसा क्या है इस देह में कि हम हर चीज का बंटवारा तो सह लेते हैं लेकिन इस देह का बंटवारा नहीं सहा जाता। ऐसा क्यो है? इसका तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन मन का सारा रिश्ता नाता तहस-नहस हो जाता है।

यहथी कहानी

नाटककी कहानी मध्यवर्गीय समाज की महुआ के इर्द गिर्द घूमती है। 29 की उम्र हो जाने के बाद भी शादी नहीं होने होने के कारण जीवन में अकेलापन छाया रहता है। पिता कहते हैं कि घूमो-फिरो कभी घर से बाहर निकलो और खुश रहो, लेकिन उदासी का असल कारण कोई नहीं समझता। एक दिन महुआ को ख्याल आता है कि घर की माली हालत और कॅरियर की चिंता के बीच उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी भी देह है और इसकी जरूरत है। उसे याद आता है कि कॉलेज के दिनों हर्षुल उसका दीवाना था, लेकिन उसने हर्षुल के प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

इसे दूर करता है उसका पड़ोसी और दो बच्चों का बाप साजिद। चंद मुलाकातों के बाद ही दाेनों में जिस्मानी संबंध बन जाते हैं। कुछ दिनों बाद ही जीवन में पूर्व प्रेमी हर्षुल आता है, जिसके जिंदगी में वृतका नाम की एक अन्य औरत भी है। इसे छुपाते हुए वह महुआ से शादी करता है लेकिन जब पता चलता है कि महुआ का पूर्व में साजिद से संबंध रहा है तो वह उसे घर से निकाल देता है।

कहानी बहुत गम्भीरता से आगे बढ़ते हुए अपने ढंग से अपनी बात कहने में सफल रही है .

मशहूर अभिनेता श्रीराम लागू का 92 साल की उम्र में निधन


1टिप्पणियां
मशहूर अभिनेता डॉ. श्रीराम लागू (Shriram Lagoo) का वृद्धावस्था से संबंधित बीमारियों के चलते मंगलवार शाम पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वह 92 वर्ष के थे. उनके परिवार के सूत्रों ने यह जानकारी दी. नाटककार सतीश अलेकर ने बताया, 'मैंने उनके दामाद से बात की. वृद्धावस्था संबंधित बीमारियों के कारण उनका निधन हुआ.'

प्रशिक्षित ईएनटी सर्जन लागू ने विजय तेंदुलकर, विजय मेहता और अरविंद देशपांडे के साथ आजादी के बाद वाले काल में महाराष्ट्र में रंगमंच को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई थी.

सारस बाग़, पुणे



सारस बाग़, पुणे
सरस बाग पुणे में एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।  इस बाग का निर्माण नाना साहेब पेशवा द्वारा करवाया गया था। यह सुंदर बाग पार्वती हिल्‍स के पास स्थित है। इस पार्क में गणपति का मंदिर भी है।

जो लगभग 220 साल पुराना है।


In the 18th century soon after completion of Shree Devdeveshwar Temple on the crest of Parvati hill, Shrimant Nanasaheb Peshwa turned his attention towards the development and beautification of environs of Parvati hills.
He constructed a lake along the Ambil odhha(stream) near Parvati foot hill. This lake was to be used for boating and creating gardens in the area. The excavation of the lake started around 1750, after completion of Parvati Temple and was still going on in 1753. One day, on his way to Parvati Temple, Shrimant Nanasaheb Peshwa noticed the slow progress of this work. Annoyed Shrimant got down from his elephant and himself started picking up boulders for erection of the dam wall. The shirking labourers were ashamed by Nanasaheb Peshwa's act and the citizens also felt equally embarassed. Following this, It is said that the work got better momentum and was completed soon.
This lake at the Parvati foot hills had an area of about 25 acres(2000 Sq.mts.). An island of about 25000 Sq.ft. area was retained in the middle of this lake. Later on, a beautiful garden was created on this island. Shrimant Nanasaheb Peshwa gave it a rather  poetic name, “Sarasbaug



In 1784,  Shrimant Sawai Madhavrao Peshwa built a small temple in Sarasbaug and installed the idol of Shree Siddhivinayak Gajanan, the God he worshipped. Naturally Parvati, Sarasbaug and the lake became places of worship and leisurely walks for the people of Pune.
Folklore says that Shrimant Nanasaheb Peshwa and his astute consultants, conducted secret meetings and discussions while on the boat ride in this lake. The persons who rowed the boat at such times were either Habshis (Negros), who didn’t understand a single word of Marathi or Hindi, or were stone deaf and dumb. The purpose was to prevent any leaking of the secret discussions. Even if this is just a  myth, it is believed that it has mentions in historical chronicles. Historical documents mention of many such confidential discussions between Shrimant Peshwa, Mahadaji Shinde and Nana Phadnis.


Sarasbaug Ganesh temple is built in such a way that the devotees can see the idol of lord Ganesh from the main road. The idol is small but very beautiful and divine. The small museum that was added to the place in the year 1995 displays hundreds of idols of Lord Ganesh. The temple is surrounded by water pond from all sides that has water lotus lots of it. There are some fountains too. You go to the temple by crossing bridge. While the last renovation was taking place a small zoo is added to the Saras Baug and this zoo is named Peshwa Park. Last but not the least the temple has big gardens on all four sides that is a part of Saras Baug. This garden is divided in different sections. Some parts are prohibited to walk on but some are open to use by general public. The gardens are well maintained and tried hard to kept clean but it is India and things can happen here like throwing chips packets in this serene place.

Mr.Manoj Joshi.(मनोज जोशी














Discussing Chankya Play ........

Memorable moments with Mr.Manoj Joshi.
Manoj Joshi (मनोज जोशी) is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujarati and Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
Manoj Joshi hails from Adapodara village near Himatnagar in north Gujarat.
 



Manoj Joshi is an Indian film and television actor. He began his career in Marathi theatre, also putting up performances in Gujaratiand Hindi theatre. He has also acted in over 60 films since 1998, many of his roles being comedy.
He acted in TV series including ChanakyaEk Mahal Ho Sapno KaRau (Marathi), SangdilKabhi Souten Kabhi SaheliKhichdi,Mura Raska Mai La (Marathi). He debuted in Sarfarosh (SI Bajju) alongside his brother who played Bala Thakur in the film. His other works include the film Hungama followed by HulchulDhoomBhagam BhagPhir Hera PheriChup Chup KeBhool Bhulaiyaa,[and Billo Barber.
He also portrayed Chanakya in Chakravartin Ashoka Samrat.






नीर क्षीर विवेक

नीर क्षीर विवेके हंस आलस्यम् त्वम् एव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन् अधुना अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति क: ॥
अरे हंस यदि तुम ही पानी तथा दूध भिन्न करना छोड दोगे तो दूसरा कौन तुम्हारा यह कुलव्रत का पालन कर सकता है ? यदि बुद्धि वान् तथा कुशल मनुष्य ही अपना कर्तव्य करना छोड दे तो दूसरा कौन वह काम कर सकता है 

हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

हमेशा याद रखना अच्छे दिनों के लिए हमेशा बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है

कर्म और भाग्य

बहुत पुराने समय की बात है। एक जंगल में एक महात्मा निवास करते थे। जंगल के दोनों ओर दो अलग-अलग राज्य थे। दोनों के ही राजा महात्मा के पास आ...