28 अगस्त, 2013
26 अगस्त, 2013
घाघ कवि के दोहे
घाघ कवि के दोहे
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर।
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय।
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय।
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय।
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय।
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
12 अगस्त, 2013
Pt. Ram Chandra Sharma , A Great Freedom Fighter
पंडितरामचंद्रशर्मा -अप्रतिमस्वतंत्रतासंग्रामसेनानी
Pt. Ram Chandra Sharma- A great Freedom Fighter.......
पंडित राम चन्द्र शर्मा की गड़ना उन कुछ गिने चुने लोगो में की जा सकती है, जिनके जीवन का उद्देश्य व्यक्तिगत सुख लिप्सा न होकर समाज के उन सभी लोगो के हित के लिए अत्मोत्सर्ग रहा है। यही कारण है कि स्वतंत्रता संग्राम मे अपने अद्वितिय योगदान के पश्चात पंडित जी ने अपने संघर्ष की इति स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी नही मानी । वे आजीवन पीड़ित मानवता के कल्याण के लिए जूझते रहे ।पंडित जी सर्वे भवंतु सुखीनः मे विश्वास करते थे । उनकी मान्यता थी " कीरति भनति भूति भुलि सोई ,सुरसरि सम सब कन्ह हित होई."
पंडित जी का जन्म 7 मार्च 1902 को ग्राम अमवा, पोस्ट: घाटी, थाना- खाम पार , जनपद -गोरखपुर( वर्तमान देवरिया जनपद) मे हुआ था. वे अपने माता पिता की अंतिम संतान थे। पंडित जी से बड़ी पाँच बहनें थी । यही कारण था की पंडित जी का बचपन अत्यंत लड़ प्यार से बीता। यद्यपि पंडित जी उच्च शिक्ष प्राप्त नहीं कर सके किंतु स्वाध्याय और बाबा राघव दास के सनिध्य में इतना ज्ञानार्जन किया कि उन्हें किसी विश्वविद्यालीय डिग्री की आवश्यकता नहीं रही।
तत्कालीन परम्पराके अनुसार पंडित जी का विवाह भी बचपन मे ही ग्राम- अमावाँ से चार किलोमीटेर उत्तर दिशा मे स्थित ग्राम-दुबौलि के पं रामअधीन दूबे जी की पुत्री श्रीमती लवंगा देवी, के साथ हो गया था किन्तु बाबा राघव दास से दीक्षा लेने के पश्चात् सभी बंधनों को तोड़कर वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। सर्व प्रथम 1927 ई. में नमक सत्याग्रह में जेल गये। सन 1928 ई में भेंगारी में नमक क़ानून तोड़कर बाबा राघव दास जी के साथ जेल गये। वहाँ बाबा ने उन्हे राजनीति का विधिवत पाठ पढ़ाया । सन 1930 ईमें नेहरू जी के नेतृत्व में गोरखपुर में सत्याग्रह करते समय गिरफ्तार हुए । सन 1932 ई मे थाना भोरे जिला सिवान (बिहार) मे गिरफ़तार हुएऔर गोपालगंज जेल में निरुध रहे . 1933 में पटना में सत्याग्रह करते समय गिरफ्तार हुए और १ वर्ष तक दानापुर जेल में बंद रहे. 1939 में लाल बहादुर शास्त्री ,डॉ सम्पूर्णा नन्द , कमलापति त्रिपाठी के साथ बनारस में गिरफ्तार हुए. कुछ दिनों बनारस जेल में रहने के पश्चात उन्हें बलिया जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। 10 अगस्त 1942 को ये भारत छोडो आन्दोलन में गिरफ्तार हुए । जब ये जेल में ही थे, इनके पिता राम प्रताप पाण्डेय का स्वर्गवास हो गया , फिर भी अंग्रेजों ने अपने दमनात्मक दृष्टि कोण के कारन इन्हें पेरोल पर भी नहीं छोड़ा। 1945 में इनकी माता निउरा देवी भी दिवंगत हो गयीं। इनकी पत्नी श्रीमती लवंगा देवी भी स्वतंत्र भारत देखने से वंचित रही। 14 अगस्त 1947 को इनका भी निधन हो गया किन्तु पंडित जी के लिए राष्ट्र के सुख दुःख के समक्ष व्यक्तिगत सुख दुःख का अर्थ नहीं रह गया था।
पंडित जी 1947 में कांग्रस के जिला मंत्री निर्वाचित हुए। जहाँ अन्य लोग सत्ता सुख में निमग्न थे ,पंडित जी को पुकार रहा था...देश के अनेकानेक वंचित लोगों का करुण क्रंदन , और यही कारण था की पंडित जी समाजवादी आन्दोलन से जुड़॰ गए। 1952 में मार्क्स के दार्शनिक चिंतन से अत्यंत प्रभावित हुए और तबसे जीवन पर्यंत एक सच्चे समाजवादी के रूप में संघर्ष रत रहे ।
यद्यपि 26 अगस्त 1992 को काल के कुटिल हाथों ने पंडित जी को हमसे छीन लिया , फिरभी अपनी यशः काया से वे हमारे बीच सदैव विद्यमान हैं। पंडित जी अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं । जिनमें उनके एकलौते पुत्र श्री हनुमान पाण्डेय ( अब स्वर्गीय ) और तीन पुत्रियाँ श्रीमती अन्न पूर्णा देवी, श्रीमती धन्न पूर्णा (अब स्वर्गीय) और श्रीमती ललिता देवी के साथ तीन पौत्र श्री वशिष्ठ पाण्डेय , रामानुज पाण्डेय , द्वारिका पाण्डेय और दो पौत्रिया उर्मिला देवी और उषा देवी विद्यमान हैं.
भारत माता के ऐसे सपूत स्वतंत्रता संग्राम योद्धा को शतशः नमन.............
ऐसे थे हमारे नाना जी !!!
02 अगस्त, 2013
भगवान शिव
"ॐ तत पुरुषाय विदमहे महादेवाय धी मही ..तन्नो रुद्रः प्रचो दयात "
भगवान शिव ही एकमात्र आदि स्वयंभू देव हैं, जिन्हें लींग स्वरुप में पूजने से पहले प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं रहती। पार्थिव शिवलिंग तो स्वत: ही चेतना संपन्न होते है पूजने से पहले किसी तरह की प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
भगवान शिव के जितने रूप और उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव की प्रतिष्ठा पूरे संसारमें ही फैली हुई है।
उनके विविध रूपों को पूजने का आदि काल से ही प्रचलन रहा है।
शिव के मंदिर अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील, तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका, चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा,सुमात्रा तक हर जगह पाए गए हैं।
ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनसमंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था। यूरोपियन फणिश और इबरानीजाति के पूर्वज बालेश्वर लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप मेंउल्लेख हुआ है।चाहे नाम अलग हो .. स्वरुप में थोडा फर्क हो पूजन - विधि विधान के नियम अलग ..शिव की महिमा तो अनंत और अपार |
भगवान शिव के रूप में
परमात्मा के ब्रह्मा और विष्णु रूप को समझना और उन्हें आत्मसात करना तो सहज है, परंतु उनके शिव रूप को पूर्णतः आत्मसात करना अत्यधिक मुश्किल है,क्योंकि शिव रूप में उनके रूप, श्रंगार, शक्तियों और अवतारों में इतनी विशिष्टता एवं विरोधाभास बना रहा है कि उन्हें अनगिनत नामों की उपाधियां प्रदान की जाती रही।
उनहें मान्यता तो [ रूद्र - भेरव ] संहारक और विध्वंसक देव की दी गई,
लेकिन उन्हें आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव),
परमशिव (समस्त जगत का कल्याण करने वाले देव),
रूद्र (मृत्यु के मुंह से निकाल लेने वाला),
ओघड़ (गुण, रस,राग, दोष रहित),
ओघड़दानी, श्मशानवासी, कापालिक, पिनाक्षी, विरूपाक्ष,दिगंबर ,अर्धनारेश्वर
जैसे अनगिनत नामों की मान्यता भी दी गई। शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं,जिन्होंने देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र से प्राप्त हुए विष को स्वयं अपने कण्ठ में धारण कर लिया और स्वयं नीलकण्ठ कहलाए।
शास्त्रों में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के साथ-साथ पंचानन शिव, अष्टमुखी शिव, अर्धनरेश्वर , मृत्युंजय शिव, दक्षिणाभिमुख शिव, हरिहर शिव ,पशुपतिनाथ से लेकर नटराज तक अनगिनत रूपों में मान्यता प्रदान की है। भक्त जीस भाव से यजन करे वही स्वरुप शिव धारण कर लेते हे |
शिव ही एकमात्र देव हैं, जिन्हें पूजने से पहले प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं रहती।
पार्थिव शिवलिंग तो स्वतः ही चेतना संपन्न होते हैं और उन्हें पूजन से पहले किसी तरह की
प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे मृतिका या बालू से निर्मित शिवलिंगों को कहीं भी, किसी मंदिर, वन क्षेत्र, पहाड़, गुफा से लेकर नदी , सरोवर , समुद्र तट ,शमशान भूमि तक, किसी चबूतरे अथवा वृक्ष के नीचे स्थापित करके या घर में ही पूजा जा सकता है और उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। इसी तरह शिव की उपासना के लिए किसी प्रकार की विशिष्ट सामग्री आदि की जरुरत नहीं होती।
उन्हें तो फल, फूल, बिल्व पत्र आदि समर्पित करना ही पर्याप्त होता है और अगर वह भी
सुलभ नहीं हो पाए,तो शिव को रिझाने के लिये केवल एक लोटा पानी से ही काम चल जाता है।
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप या शिव मानस पूजा ही पर्याप्त हे |
भगवान अपने शिव भक्तों की करूणा पुकार, शीघ्र सुनते हैं और तत्काल ही अपनी कृपा दृष्टि प्रदान करके अपने आशीर्वाद स्वरूप उनके समस्त दुखों को हर लेते हैं।शिव महिमा की ऐसी अनुभूतियां - शिव अनुकंपा अनेको साधकों - भक्तो को को समय-समय पर मिलती रही हैं।
शिवोपासना का प्रसिद्ध महामंत्र है महामृत्यंजय मंत्र। इस अकेले मंत्र के विविध अनुष्ठानों के द्वारा ही न केवल अपमृत्यु का ही निवारण होता देखा गया है, बल्किलंबे समय से परेशान करती आ रही लाइलाज बीमारियों से भी सहज ही मुक्तिमिलते देखी गई है, यहां तक कि इस महामंत्र के अनुष्ठान से साधक की समस्त अभीष्ट मनोकामनाएं भी सहज ही पूर्ण हो जाती है।
इस महामृत्युंजय मंत्र के द्वाराघोर विपत्तियों में फंसे, मुकदमेबाजी में उलझे, कर्ज से दबे हुए लोगों को कुछ ही समय में राहत देखी गई है। इस महामृत्युंजय मंत्र के दो रूप हैं वेदोक्त और पुराणोक्त जिनके अनुष्ठान के अलग- अलग कर्मकांड एवं विधान हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं अन्य मुख्य लिंग
शिव पूजा द्वारश ज्योतिर्लिंग की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि इन ज्योतिर्लिंग में स्वयं उमाशंकर महादेव मां पार्वती के साथ सदैव विराजमान रहते हैं। इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही शिव कृपा की प्राप्ति हो जाती है। अगर इन सिद्धी स्थलों पर पूर्ण भक्ति से शिव मंत्रों या शिव स्त्रोत आदि का पाठ किया जाए, तो शिव निश्चित ही अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हैं और उसे सहस्त्रों समस्याओं से निकाल सकते हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की तो बहुत मान्यता रही है, अनंत महिमा हे ,लेकिन इनके अतिरिक्त भी शिव के अनेक मंदिर में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विराजमान होकर संसार का कल्याण कर रहे हैं। हमारे देश में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त शिव के कुछ प्रमुख पूजाग्रह इस प्रकार रहे हैं।
तमिलनाडु के शिव कांची क्षेत्र में एकमेश्वर नामक शिव केन्द्र, केरल प्रदेश मेंतिरूचनापल्ली में श्रीरन्नम् से पांच मील दूर जम्बूकेश्वर शिवलिंग, नेपाल केकाठमाण्डू में बागमती नदी के दक्षिणी तट पर विराजमान पशुपतिनाथ, बांग्लादेश के चटगांव स्थित चंद्रमूर्तिकार चंद्रनाथ शिव, उत्तरप्रदेश के प्रयोग स्थित नीळकठेश्वरशिव, बिठूर स्थित मधुरेश्वर, वृंदावन स्थित गोपीश्वर शिव, उत्तरांचल में भीमताल स्थित भीमेश्वर महादेव, कर्णप्रयाग स्थित महामृत्युंजय महादेव हरिद्वार स्थितबिल्वेश्वर शिवलिंग, कनखल स्थित दक्षेश्वर शिव, हिमाचल में स्थित मणिकर्णस्थित मणीकर्णेश्वर, मण्डी स्थित बिजली महादेव और नीकण्ठ महादेव, मणिमहेश, कैलाश मानसरोवर स्थित हिम निर्मित अमरनाथ, पूंछ स्थित शिवखेड़ीमहादेव, राजस्थान के पुष्कर स्थित पुस्ववर महादेव .. आदि आदि अनंत
और भी अनेक अनगिनत देश - विदेश और प्रादेशिक मान्यता अनुसार शिव आराधन के प्रकार भक्तो में प्रचलित हे | बस भोले होकर भोले का आराधन इतना ही पार्यप्त हे |
हर कंकर में शंकर ...हर हर महादेव ...जय हो .
भगवान शिव ही एकमात्र आदि स्वयंभू देव हैं, जिन्हें लींग स्वरुप में पूजने से पहले प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं रहती। पार्थिव शिवलिंग तो स्वत: ही चेतना संपन्न होते है पूजने से पहले किसी तरह की प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
भगवान शिव के जितने रूप और उपासना के जितने विधान संसार भर में प्रचलित रहे हैं, वे अवर्णनीय हैं। हमारे देश में ही नहीं, भगवान शिव की प्रतिष्ठा पूरे संसारमें ही फैली हुई है।
उनके विविध रूपों को पूजने का आदि काल से ही प्रचलन रहा है।
शिव के मंदिर अफगानिस्तान के हेमकुट पर्वत से लेकर मिस्र, ब्राजील, तुर्किस्तान के बेबीलोन, स्कॉटलैंड के ग्लासगो, अमेरिका, चीन, जापान, कम्बोडिया, जावा,सुमात्रा तक हर जगह पाए गए हैं।
ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि हिरोपोलिस में वीनसमंदिर के सामने दो सौ फीट ऊंचा प्रस्तर लिंग था। यूरोपियन फणिश और इबरानीजाति के पूर्वज बालेश्वर लिंड के पूजक थे। बाईबिल में इसका शिउन के रूप मेंउल्लेख हुआ है।चाहे नाम अलग हो .. स्वरुप में थोडा फर्क हो पूजन - विधि विधान के नियम अलग ..शिव की महिमा तो अनंत और अपार |
भगवान शिव के रूप में
परमात्मा के ब्रह्मा और विष्णु रूप को समझना और उन्हें आत्मसात करना तो सहज है, परंतु उनके शिव रूप को पूर्णतः आत्मसात करना अत्यधिक मुश्किल है,क्योंकि शिव रूप में उनके रूप, श्रंगार, शक्तियों और अवतारों में इतनी विशिष्टता एवं विरोधाभास बना रहा है कि उन्हें अनगिनत नामों की उपाधियां प्रदान की जाती रही।
उनहें मान्यता तो [ रूद्र - भेरव ] संहारक और विध्वंसक देव की दी गई,
लेकिन उन्हें आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव),
परमशिव (समस्त जगत का कल्याण करने वाले देव),
रूद्र (मृत्यु के मुंह से निकाल लेने वाला),
ओघड़ (गुण, रस,राग, दोष रहित),
ओघड़दानी, श्मशानवासी, कापालिक, पिनाक्षी, विरूपाक्ष,दिगंबर ,अर्धनारेश्वर
जैसे अनगिनत नामों की मान्यता भी दी गई। शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं,जिन्होंने देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र से प्राप्त हुए विष को स्वयं अपने कण्ठ में धारण कर लिया और स्वयं नीलकण्ठ कहलाए।
शास्त्रों में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के साथ-साथ पंचानन शिव, अष्टमुखी शिव, अर्धनरेश्वर , मृत्युंजय शिव, दक्षिणाभिमुख शिव, हरिहर शिव ,पशुपतिनाथ से लेकर नटराज तक अनगिनत रूपों में मान्यता प्रदान की है। भक्त जीस भाव से यजन करे वही स्वरुप शिव धारण कर लेते हे |
शिव ही एकमात्र देव हैं, जिन्हें पूजने से पहले प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं रहती।
पार्थिव शिवलिंग तो स्वतः ही चेतना संपन्न होते हैं और उन्हें पूजन से पहले किसी तरह की
प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे मृतिका या बालू से निर्मित शिवलिंगों को कहीं भी, किसी मंदिर, वन क्षेत्र, पहाड़, गुफा से लेकर नदी , सरोवर , समुद्र तट ,शमशान भूमि तक, किसी चबूतरे अथवा वृक्ष के नीचे स्थापित करके या घर में ही पूजा जा सकता है और उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। इसी तरह शिव की उपासना के लिए किसी प्रकार की विशिष्ट सामग्री आदि की जरुरत नहीं होती।
उन्हें तो फल, फूल, बिल्व पत्र आदि समर्पित करना ही पर्याप्त होता है और अगर वह भी
सुलभ नहीं हो पाए,तो शिव को रिझाने के लिये केवल एक लोटा पानी से ही काम चल जाता है।
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप या शिव मानस पूजा ही पर्याप्त हे |
भगवान अपने शिव भक्तों की करूणा पुकार, शीघ्र सुनते हैं और तत्काल ही अपनी कृपा दृष्टि प्रदान करके अपने आशीर्वाद स्वरूप उनके समस्त दुखों को हर लेते हैं।शिव महिमा की ऐसी अनुभूतियां - शिव अनुकंपा अनेको साधकों - भक्तो को को समय-समय पर मिलती रही हैं।
शिवोपासना का प्रसिद्ध महामंत्र है महामृत्यंजय मंत्र। इस अकेले मंत्र के विविध अनुष्ठानों के द्वारा ही न केवल अपमृत्यु का ही निवारण होता देखा गया है, बल्किलंबे समय से परेशान करती आ रही लाइलाज बीमारियों से भी सहज ही मुक्तिमिलते देखी गई है, यहां तक कि इस महामंत्र के अनुष्ठान से साधक की समस्त अभीष्ट मनोकामनाएं भी सहज ही पूर्ण हो जाती है।
इस महामृत्युंजय मंत्र के द्वाराघोर विपत्तियों में फंसे, मुकदमेबाजी में उलझे, कर्ज से दबे हुए लोगों को कुछ ही समय में राहत देखी गई है। इस महामृत्युंजय मंत्र के दो रूप हैं वेदोक्त और पुराणोक्त जिनके अनुष्ठान के अलग- अलग कर्मकांड एवं विधान हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं अन्य मुख्य लिंग
शिव पूजा द्वारश ज्योतिर्लिंग की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि इन ज्योतिर्लिंग में स्वयं उमाशंकर महादेव मां पार्वती के साथ सदैव विराजमान रहते हैं। इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही शिव कृपा की प्राप्ति हो जाती है। अगर इन सिद्धी स्थलों पर पूर्ण भक्ति से शिव मंत्रों या शिव स्त्रोत आदि का पाठ किया जाए, तो शिव निश्चित ही अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हैं और उसे सहस्त्रों समस्याओं से निकाल सकते हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की तो बहुत मान्यता रही है, अनंत महिमा हे ,लेकिन इनके अतिरिक्त भी शिव के अनेक मंदिर में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विराजमान होकर संसार का कल्याण कर रहे हैं। हमारे देश में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त शिव के कुछ प्रमुख पूजाग्रह इस प्रकार रहे हैं।
तमिलनाडु के शिव कांची क्षेत्र में एकमेश्वर नामक शिव केन्द्र, केरल प्रदेश मेंतिरूचनापल्ली में श्रीरन्नम् से पांच मील दूर जम्बूकेश्वर शिवलिंग, नेपाल केकाठमाण्डू में बागमती नदी के दक्षिणी तट पर विराजमान पशुपतिनाथ, बांग्लादेश के चटगांव स्थित चंद्रमूर्तिकार चंद्रनाथ शिव, उत्तरप्रदेश के प्रयोग स्थित नीळकठेश्वरशिव, बिठूर स्थित मधुरेश्वर, वृंदावन स्थित गोपीश्वर शिव, उत्तरांचल में भीमताल स्थित भीमेश्वर महादेव, कर्णप्रयाग स्थित महामृत्युंजय महादेव हरिद्वार स्थितबिल्वेश्वर शिवलिंग, कनखल स्थित दक्षेश्वर शिव, हिमाचल में स्थित मणिकर्णस्थित मणीकर्णेश्वर, मण्डी स्थित बिजली महादेव और नीकण्ठ महादेव, मणिमहेश, कैलाश मानसरोवर स्थित हिम निर्मित अमरनाथ, पूंछ स्थित शिवखेड़ीमहादेव, राजस्थान के पुष्कर स्थित पुस्ववर महादेव .. आदि आदि अनंत
और भी अनेक अनगिनत देश - विदेश और प्रादेशिक मान्यता अनुसार शिव आराधन के प्रकार भक्तो में प्रचलित हे | बस भोले होकर भोले का आराधन इतना ही पार्यप्त हे |
हर कंकर में शंकर ...हर हर महादेव ...जय हो .
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