14 जून, 2011

पिता जी से सुनी एक कहानी.....



पिता जी से सुनी एक कहानी.

प्राचीन काल में एक ब्रह्मण देवता थे जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे.एक दिन वे गंगा स्नान के लिए जा रहे थे , रास्ते में एक  गिद्धिनी मिली  जो गर्भिणी थी .उसने ब्राह्मण से कहा कृपया मेरा एक उपकार कर दीजिये. गंगा किनारे गिद्धराज एकांत में बैठे होंगें जो मेरे पति हैं, उनसे कह दीजियेगा की आपकी पत्नी आदमी का मांस खाना चाहती है.
ब्राह्मण  ने देखा गंगा किनारे बहुत सरे गिद्ध बैठे हुए हैं उसमें एक गिद्ध ऐसा हो जो सबसे अलग है. उसी के पास जाकर उन्हों ने गिद्धिनी की बात कह दी. उसने कहा आदमी की एक लाश आ रही है लेकिन अभी बहुत दूर है. ब्राह्मण ने कहा यहाँ तो बहुत सी आदमी की लाशें पड़ीं हैं.गिद्ध ने कहा ऐसा नहीं है इसमे एक भी आदमी की लाश नहीं है.
ब्राह्मण की शंका दूर करने के लिए उसने एक पंख दिया और कहा इसे आँख पर लगाकर देखें तो स्पष्ट दिखाई देगा. ब्राह्मण ने जब ऐसा किया तो उसे सब पशु दिखाई पड़ने लगे. वह पंख लेकर ब्राह्मण अपने घर लौट आये और सबसे पहले अपनी पत्नी को देखा, वह कुतिया दिखाई पड़ी .आगे शहर में गया और वहां भी कोई आदमी दिखाई नहीं पड़ा.अंत में एक वेश्या के यहाँ गया जो मनुष्य दिखाई पड़ी. बहुत आश्चर्य हुवा. उसने शादी का प्रस्ताव रखा , वेश्या ने अपनी हीनता प्रकट की,ब्राह्मण अपनी बात पर अटल रहे और अंत में शादी कर लिए. इससे रुष्ट होकर ब्राह्मणी न्याय के लिए  राजा के पास गयी.  ब्राह्मण  को जब बुलाया गया वह पंख  लेकर गया और राजा से कहा आप यह पंख अपनी आँख पर रख कर देखिये , ब्राह्मणी कुतिया दिखाई दी. ब्राह्मण  आदमी दिखाई दिया.स्वयं को कुत्ते के रूप में देखा और रानी बिल्ली के रूपमें. राजा ने ब्राह्मणी से शादी कर लिया. रानी का कोई स्थान नहीं बचा वह वेश्यालय चली गयी.
कहानी का शारांश यह है की सभी जो आदमी के रूप में दिखाई पद रहें हैं , सब के सब आदमी नहीं हैं. उनका गुण देखकर उन्हें समझाने की कोशिश करनी चाहिए. ज्ञान ,श्रद्धा,सच्चाई और परोपकार ही मनुष्य के गुण हैं.

10 जून, 2011

बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.




बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.
 
न जीव चाहिए न जहान चाहिए ,
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.
हैरत हो बाढ़  से या प्लेग का जमाना,
हैजा भूकंप और गोली का निशाना.
न आंख चाहिए न कान चाहिए,
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.

संविधान प्रजातंत्र पार्टी  व  नेता ,
घूस लूट फूट गुट दुनियां को देता,
न मान चाहिए न सम्मान चाहिए.
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.

आरक्षण की बोल के बोली
चलती रहेगी दनादन गोली.
न धर्म चाहिए न इमान चाहिए
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.

यह अपना है यह  है  पराया,
कुर्सी पर मुरख की ऐसी है काया
न शांति चाहिए न इंसान चाहिए,
बस कुर्सी पर केवल बेईमान चाहिए.
---अवधेश कुमार  तिवारी


 

09 जून, 2011

भक्त अपने भगवान से.

भक्त अपने भगवान से.
 

खेल खेलिला राउर नज़ारा रहल,
हम नाचीं ला राउर इशारा रहल.
चाहे प्यारा रहल या किनारा रहल,
जे बा आईल राउरे सहारा रहल.

चाहे निमन भईल चाहे बाउर भईल,
सम्मान अपमान राउर भईल.
हम नाचिला राउर इसारा रहल,
चाहे भूसी भईल चाहे चाउर भईल.

रउरा भेजले  बानी हम आईल बानी,
भोर डल लीं हमहूँ भुलाईल बानी.
जब पवली ना राउर सुरतिया कभी.
राउरे माया में अजहूँ लुभाईल बानी.
---रामेश्वर नाथ तिवारी

 

08 जून, 2011

अब भगवान पैदा कर...

अब भगवान पैदा कर...
मेरा कहना  अगर मानो तो,
एक इन्सान पैदा कर.
सम्हाले डोलती नैया,
बना बलवान पैदा कर.
तुम्हारे ही इसारे पर,
सभी ये दृश्य आते हैं.
हमारी प्रार्थना तुमसे ,
अब सम्मान पैदा कर.
हजारों कुर्सियां रोतीं की ,
सहभागी नहीं भेजा.
ये हमने देख ली दुनिया,
कोई अनजान पैदा कर.
पढ़ा है हमने दृश्यों को,
कोई दुर्भाग्य लिखा है.
डूबाने को ही भेजे हो,
 यहाँ नादान पैदा कर,
मिलीं हैं लाख तस्बीरें,
लगे नफरत के हैं रिश्ते.
अब एक तस्बीर में भरकर ,
श्रद्धा ,इमान पैदा कर.
अगर बर्बाद करने के ,
तमाशे हो रहे तेरे,
हमारो दर्शनों के वास्ते,
अब भगवान पैदा कर.
 ---रामेश्वर नाथ तिवारी


THE SITARAM KESRI CASE: HOW DYNASTY TRUMPED ETHICS

In his book  24 Akbar Lane , journalist Rasheed Kidwai reveals how, in 1998, senior Congressmen played dirty and bent every rule to...